लिच्छवी
लिच्छवी, बिहार में गंगा के उत्तर मुजफ्फरपुर ज़िले में स्थित एक जनवर्ग थी, जिसकी राजधानी वैशाली (आधुनिक बसाढ़ के निकट) एक विशाल नगरी थी, जिसकी परिधि दस अथवा बारह मील थी। नगरी गगनचुम्बी अट्टालिकाओं से शोभायमान थी।
स्थापना
लिच्छवी बुद्धकालीन समय में, बिहार में स्थित प्राचीन गणराज्यों में सबसे बड़ा तथा शक्तिशाली राज्य था। इस गणराज्य की स्थापना सूर्यवंशीय राजा इक्ष्वाकु के पुत्र विशाल ने की थी, जो कालान्तर में 'वैशाली' के नाम से विख्यात हुई। लिच्छवियों का एक कुलीन गणतंत्रात्मक राज्य था। इसमें सभी उच्च कुलों के मुखियाओं (राजाओं) को बराबर के अधिकार प्राप्त थे। गौतम बुद्ध के समकालीन समाज में उनको अत्यन्त महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त था।
अतीत की धारणाएँ
विश्वास किया जाता है कि बुद्ध ने अपने भिक्षु संघ का संगठन लिच्छवियों के गणराज्य के आदर्शों के अनुसार ही किया था। ब्राह्मण ग्रंथों में लिच्छवियों को हीन जाति का क्षत्रिय बताया गया है। महावग्ग जातक के अनुसार लिच्छवि वज्जिसंघ का एक धनी समृद्धशाली नगर था। यहाँ अनेक सुन्दर भवन, चैत्य तथा विहार थे । लिच्छवियों ने महात्मा बुद्ध के निवारण हेतु महावन में प्रसिद्ध कतागारशाला का निर्माण करवाया था।
प्रतिष्ठापूर्ण स्थान
वास्तव में लिच्छवि सम्भवत: किसी पहाड़ी कबीले अथवा कुल के थे, जिनको क्रमिक रीति से आर्यों के सामाजिक संगठन में सम्मिलित कर लिया गया। छठी शताब्दी ई. पू. से चौथी शताब्दी ई. तक लिच्छवियों को अत्यन्त महत्त्वपूर्ण एवं प्रतिष्ठापूर्ण स्थान प्राप्त रहा। चौथी शताब्दी ई. में लिच्छवि कुमारी कुमार देवी के साथ विवाह होने के कारण मगध के चन्द्रगुप्त प्रथम को गुप्त साम्राज्य की स्थापना करने में सहायता मिली। द्वितीय गुप्त सम्राट समुद्रगुप्त अपने को लिच्छवि दौहित्र घोषित करने में गर्व का अनुभव करता था।
लिच्छवि गण का अन्त
राजा चेतक की पुत्री चेलना का विवाह मगध नरेश बिम्बिसार से हुआ था। ईसा पूर्व 7वीं शती में वैशाली के लिच्छवि राजतन्त्र से गणतन्त्र में परिवर्तित हो गया। विशाल ने वैशाली शहर की स्थापना की। वैशालिका राजवंश का प्रथम शासक नमनेदिष्ट था, जबकि अन्तिम राजा सुति या प्रमाति था। इस राजवंश में 24 राजा हुए हैं। चौथी शताब्दी में गुप्त साम्राज्य के उत्कर्ष के बाद लिच्छवियों का नाम मिट गया।
|
|
|
|
|
संबंधित लेख