"सदस्य:Dinesh Singh": अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें
(फिर से बज गया बिगुल)
 
No edit summary
 
पंक्ति 23: पंक्ति 23:
भटके पैदल राही अन्धकार में -  
भटके पैदल राही अन्धकार में -  
पर रथियों को अहसास नहीं
पर रथियों को अहसास नहीं
रण की नीति बनाकर बैठा -  
रण की नीति बनाकर बैठा -  
हर योद्धा शातिर मन वाला -
हर योद्धा शातिर मन वाला -
कुछ भी कर गुजरेंगे वो -
कुछ भी कर गुजरेंगे वो -
बस मिले जीत की जय माला
बस मिले जीत की जय माला

08:06, 18 अक्टूबर 2013 के समय का अवतरण

फिर से बज गया बिगुल गूंज उठी फिर रणभेरी अपने अपने रथो में सजकर निकल पड़े है फिर महारथी

वही रथी है वही सारथी- दागदार है सैन्य खड़ी - लड़ने को लाचार कारवाँ - कोई अन्य विकल्प नहीं -

भरे हुये बातो का तरकश - प्रतिद्वंदी पर करते प्रहार - गिर गिरकर वो फिर उठते है - नहीं मानते है वो हार

बिछा दिया शतरंजी बाजी - ना नया खेल ना चाल नयी - घुमा फिरा कर वही खेल - खेल वही संकल्प वही

बात बात फिर बात वही - वही रंग पर , ढंग नयी - भटके पैदल राही अन्धकार में - पर रथियों को अहसास नहीं रण की नीति बनाकर बैठा - हर योद्धा शातिर मन वाला - कुछ भी कर गुजरेंगे वो - बस मिले जीत की जय माला