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Dinesh Singh (वार्ता | योगदान) (फिर से बज गया बिगुल) |
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भटके पैदल राही अन्धकार में - | भटके पैदल राही अन्धकार में - | ||
पर रथियों को अहसास नहीं | पर रथियों को अहसास नहीं | ||
रण की नीति बनाकर बैठा - | रण की नीति बनाकर बैठा - | ||
हर योद्धा शातिर मन वाला - | हर योद्धा शातिर मन वाला - | ||
कुछ भी कर गुजरेंगे वो - | कुछ भी कर गुजरेंगे वो - | ||
बस मिले जीत की जय माला | बस मिले जीत की जय माला |
08:06, 18 अक्टूबर 2013 के समय का अवतरण
फिर से बज गया बिगुल गूंज उठी फिर रणभेरी अपने अपने रथो में सजकर निकल पड़े है फिर महारथी
वही रथी है वही सारथी- दागदार है सैन्य खड़ी - लड़ने को लाचार कारवाँ - कोई अन्य विकल्प नहीं -
भरे हुये बातो का तरकश - प्रतिद्वंदी पर करते प्रहार - गिर गिरकर वो फिर उठते है - नहीं मानते है वो हार
बिछा दिया शतरंजी बाजी - ना नया खेल ना चाल नयी - घुमा फिरा कर वही खेल - खेल वही संकल्प वही
बात बात फिर बात वही - वही रंग पर , ढंग नयी - भटके पैदल राही अन्धकार में - पर रथियों को अहसास नहीं रण की नीति बनाकर बैठा - हर योद्धा शातिर मन वाला - कुछ भी कर गुजरेंगे वो - बस मिले जीत की जय माला