"वृहस्पतिदेव जी की आरती": अवतरणों में अंतर
भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
('<blockquote><span style="color: maroon"><poem>जय वृहस्पति देवा, ऊँ जय वृहस्पति दे...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
व्यवस्थापन (वार्ता | योगदान) छो (Text replace - "Category:हिन्दू धर्म कोश" to "Category:हिन्दू धर्म कोशCategory:धर्म कोश") |
||
(3 सदस्यों द्वारा किए गए बीच के 5 अवतरण नहीं दर्शाए गए) | |||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
[[चित्र:brahaspati dev.jpg|thumb|250|वृहस्पतिदेव <br />Brahspati Dev]] | |||
<blockquote><span style="color: maroon"><poem>जय वृहस्पति देवा, ऊँ जय वृहस्पति देवा । | <blockquote><span style="color: maroon"><poem>जय वृहस्पति देवा, ऊँ जय वृहस्पति देवा । | ||
छि छिन भोग लगाऊँ, कदली फल मेवा ॥ | छि छिन भोग लगाऊँ, कदली फल मेवा ॥ | ||
पंक्ति 14: | पंक्ति 15: | ||
जेठानन्द आनन्दकर, सो निश्चय पावे ॥</poem></span></blockquote> | जेठानन्द आनन्दकर, सो निश्चय पावे ॥</poem></span></blockquote> | ||
==संबंधित लेख== | |||
{{आरती स्तुति स्तोत्र}} | |||
[[Category:आरती स्तुति स्तोत्र]] | |||
[[Category:हिन्दू धर्म]] [[Category:हिन्दू धर्म कोश]][[Category:धर्म कोश]] | |||
}} | |||
[[Category: | |||
__INDEX__ | __INDEX__ | ||
12:17, 21 मार्च 2014 के समय का अवतरण
जय वृहस्पति देवा, ऊँ जय वृहस्पति देवा ।
छि छिन भोग लगाऊँ, कदली फल मेवा ॥
तुम पूरण परमात्मा, तुम अन्तर्यामी ।
जगतपिता जगदीश्वर, तुम सबके स्वामी ॥
चरणामृत निज निर्मल, सब पातक हर्ता ।
सकल मनोरथ दायक, कृपा करो भर्ता ॥
तन, मन, धन अर्पण कर, जो जन शरण पड़े ।
प्रभु प्रकट तब होकर, आकर द्घार खड़े ॥
दीनदयाल दयानिधि, भक्तन हितकारी ।
पाप दोष सब हर्ता, भव बंधन हारी ॥
सकल मनोरथ दायक, सब संशय हारो ।
विषय विकार मिटाओ, संतन सुखकारी ॥
जो कोई आरती तेरी, प्रेम सहत गावे ।
जेठानन्द आनन्दकर, सो निश्चय पावे ॥