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*पलामू में विद्रोह के दौरान स्थानीय जनजातियों ने पीताम्बर साही और नीलाम्बर साही के नेतृत्व में बड़े पैमाने पर स्वयं को संगठित कर लिया था। | |||
*संगठित लोगों ने [[अंग्रेज़]] समर्थक ज़मींदार रघुवीर दयाल सिंह से कड़ा मुकाबला किया। विद्रोह को दबाने के लिए जब [[अंग्रेज़]] अधिकारी ग्राहम और डेविस सेना लेकर आए तो विद्रोही सरगुजा के जंगलों में जा छुपे। इधर पलामू में विद्रोह तीव्र हो गया। | |||
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*[[1858]] ई. में कमिश्नर डाल्टन स्वयं पलामू आया। उसके साथ [[मद्रास]] रेजीमेंट के सिपाही और रामगढ़ की घुड़सवार सेना थी। | |||
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13:06, 23 मई 2014 के समय का अवतरण
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पलामू भारत के नवनिर्मित झारखण्ड के पूर्वोत्तर भाग में स्थित एक ऐतिहासिक स्थान है। 1857 ई. के स्वतंत्रता संग्राम के दौरान पलामू इस प्रदेश का सर्वाधिक अशांत क्षेत्र था। पलामू में सबसे अधिक समय तक विद्रोह की ज्वाला धधकती रही थी।
- पलामू में विद्रोह के दौरान स्थानीय जनजातियों ने पीताम्बर साही और नीलाम्बर साही के नेतृत्व में बड़े पैमाने पर स्वयं को संगठित कर लिया था।
- संगठित लोगों ने अंग्रेज़ समर्थक ज़मींदार रघुवीर दयाल सिंह से कड़ा मुकाबला किया। विद्रोह को दबाने के लिए जब अंग्रेज़ अधिकारी ग्राहम और डेविस सेना लेकर आए तो विद्रोही सरगुजा के जंगलों में जा छुपे। इधर पलामू में विद्रोह तीव्र हो गया।
- नवम्बर, 1857 ई. को विद्रोहियों ने 'राजहरा कोयला कम्पनी' पर हमला कर दिया, जिसके कारण अंग्रेज़ों को बहुत क्षति पहुँची।
- 1858 ई. में कमिश्नर डाल्टन स्वयं पलामू आया। उसके साथ मद्रास रेजीमेंट के सिपाही और रामगढ़ की घुड़सवार सेना थी।
- अंग्रेज़ी सेना ने क्रूर दमन चक्र चलाया। अंततः विद्रोही नेता टिकैत उमराव सिंह और दीवान शेख़ भिखारी की गिरफ्तारी सम्भव हुई और 1858 ई. तक विद्रोह समाप्त हो गया।
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