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[[चित्र:Ramayana.jpg|श्री राम, लक्षमण और सीता<br /> Shri Ram, Laxman And Sita|thumb|200px]]
[[चित्र:Ramayana.jpg|श्री [[राम]], [[लक्ष्मण]] और [[सीता]]<br /> Shri Ram, Laxman And Sita|thumb|200px]]
'''श्री राम चालीसा / Ram Chalisa'''<br />


श्री रघुवीर भक्त हितकारी । सुन लीजै प्रभु अरज हमारी ।।<br />
'''चालीसा'''
निशिदिन ध्यान धरै जो कोई । ता सम भक्त और नहिं होई ।।<br />
<blockquote><span style="color: maroon"><poem>श्री रघुवीर भक्त हितकारी । सुन लीजै प्रभु अरज हमारी ।।
ध्यान धरे शिवजी मन माहीं । ब्रहृ इन्द्र पार नहिं पाहीं ।।<br />
निशिदिन ध्यान धरै जो कोई । ता सम भक्त और नहिं होई ।।
दूत तुम्हार वीर हनुमाना । जासु प्रभाव तिहूं पुर जाना ।।<br />
ध्यान धरे शिवजी मन माहीं । ब्रहृ इन्द्र पार नहिं पाहीं ।।
तब भुज दण्ड प्रचण्ड कृपाला । रावण मारि सुरन प्रतिपाला ।।<br />
दूत तुम्हार वीर हनुमाना । जासु प्रभाव तिहूं पुर जाना ।।
तुम अनाथ के नाथ गुंसाई । दीनन के हो सदा सहाई ।।<br />
तब भुज दण्ड प्रचण्ड कृपाला । रावण मारि सुरन प्रतिपाला ।।
ब्रहादिक तव पारन पावैं । सदा ईश तुम्हरो यश गावैं ।।<br />
तुम अनाथ के नाथ गुंसाई । दीनन के हो सदा सहाई ।।
चारिउ वेद भरत हैं साखी । तुम भक्तन की लज्जा राखीं ।।<br />
ब्रहादिक तव पारन पावैं । सदा ईश तुम्हरो यश गावैं ।।
गुण गावत शारद मन माहीं । सुरपति ताको पार न पाहीं ।।<br />
चारिउ वेद भरत हैं साखी । तुम भक्तन की लज्जा राखीं ।।
नाम तुम्हार लेत जो कोई । ता सम धन्य और नहिं होई ।।<br />
गुण गावत शारद मन माहीं । सुरपति ताको पार न पाहीं ।।
राम नाम है अपरम्पारा । चारिहु वेदन जाहि पुकारा ।।<br />
नाम तुम्हार लेत जो कोई । ता सम धन्य और नहिं होई ।।
गणपति नाम तुम्हारो लीन्हो । तिनको प्रथम पूज्य तुम कीन्हो ।।<br />
राम नाम है अपरम्पारा । चारिहु वेदन जाहि पुकारा ।।
शेष रटत नित नाम तुम्हारा । महि को भार शीश पर धारा ।।<br />
गणपति नाम तुम्हारो लीन्हो । तिनको प्रथम पूज्य तुम कीन्हो ।।
फूल समान रहत सो भारा । पाव न कोऊ तुम्हरो पारा ।।<br />
शेष रटत नित नाम तुम्हारा । महि को भार शीश पर धारा ।।
भरत नाम तुम्हरो उर धारो । तासों कबहुं न रण में हारो ।।<br />
फूल समान रहत सो भारा । पाव न कोऊ तुम्हरो पारा ।।
नाम अक्षुहन हृदय प्रकाशा । सुमिरत होत शत्रु कर नाशा ।।<br />
भरत नाम तुम्हरो उर धारो । तासों कबहुं न रण में हारो ।।
लखन तुम्हारे आज्ञाकारी । सदा करत सन्तन रखवारी ।।<br />
नाम अक्षुहन हृदय प्रकाशा । सुमिरत होत शत्रु कर नाशा ।।
ताते रण जीते नहिं कोई । युद्घ जुरे यमहूं किन होई ।।<br />
लखन तुम्हारे आज्ञाकारी । सदा करत सन्तन रखवारी ।।
महालक्ष्मी धर अवतारा । सब विधि करत पाप को छारा ।।<br />
ताते रण जीते नहिं कोई । युद्घ जुरे यमहूं किन होई ।।
सीता राम पुनीता गायो । भुवनेश्वरी प्रभाव दिखायो ।।<br />
महालक्ष्मी धर अवतारा । सब विधि करत पाप को छारा ।।
घट सों प्रकट भई सो आई । जाको देखत चन्द्र लजाई ।।<br />
सीता राम पुनीता गायो । भुवनेश्वरी प्रभाव दिखायो ।।
सो तुमरे नित पांव पलोटत । नवो निद्घि चरणन में लोटत ।।<br />
घट सों प्रकट भई सो आई । जाको देखत चन्द्र लजाई ।।
सिद्घि अठारह मंगलकारी । सो तुम पर जावै बलिहारी ।।<br />
सो तुमरे नित पांव पलोटत । नवो निद्घि चरणन में लोटत ।।
औरहु जो अनेक प्रभुताई । सो सीतापति तुमहिं बनाई ।।<br />
सिद्घि अठारह मंगलकारी । सो तुम पर जावै बलिहारी ।।
{{राम}}
औरहु जो अनेक प्रभुताई । सो सीतापति तुमहिं बनाई ।।
इच्छा ते कोटिन संसारा । रचत न लागत पल की बारा ।।<br />
इच्छा ते कोटिन संसारा । रचत न लागत पल की बारा ।।
जो तुम्हे चरणन चित लावै । ताकी मुक्ति अवसि हो जावै ।।<br />
जो तुम्हे चरणन चित लावै । ताकी मुक्ति अवसि हो जावै ।।
जय जय जय प्रभु ज्योति स्वरुपा । नर्गुण ब्रहृ अखण्ड अनूपा ।।<br />
जय जय जय प्रभु ज्योति स्वरूपा । नर्गुण ब्रहृ अखण्ड अनूपा ।।
सत्य सत्य जय सत्यव्रत स्वामी । सत्य सनातन अन्तर्यामी ।।<br />
सत्य सत्य जय सत्यव्रत स्वामी । सत्य सनातन अन्तर्यामी ।।
सत्य भजन तुम्हरो जो गावै । सो निश्चय चारों फल पावै ।।<br />
सत्य भजन तुम्हरो जो गावै । सो निश्चय चारों फल पावै ।।
सत्य शपथ गौरीपति कीन्हीं । तुमने भक्तिहिं सब विधि दीन्हीं ।।<br />
सत्य शपथ गौरीपति कीन्हीं । तुमने भक्तिहिं सब विधि दीन्हीं ।।
सुनहु राम तुम तात हमारे । तुमहिं भरत कुल पूज्य प्रचारे ।।<br />
सुनहु राम तुम तात हमारे । तुमहिं भरत कुल पूज्य प्रचारे ।।
तुमहिं देव कुल देव हमारे । तुम गुरु देव प्राण के प्यारे ।।<br />
तुमहिं देव कुल देव हमारे । तुम गुरु देव प्राण के प्यारे ।।
जो कुछ हो सो तुम ही राजा । जय जय जय प्रभु राखो लाजा ।।<br />
जो कुछ हो सो तुम ही राजा । जय जय जय प्रभु राखो लाजा ।।
राम आत्मा पोषण हारे । जय जय दशरथ राज दुलारे ।।<br />
राम आत्मा पोषण हारे । जय जय दशरथ राज दुलारे ।।
ज्ञान हृदय दो ज्ञान स्वरुपा । नमो नमो जय जगपति भूपा ।।<br />
ज्ञान हृदय दो ज्ञान स्वरूपा । नमो नमो जय जगपति भूपा ।।
धन्य धन्य तुम धन्य प्रतापा । नाम तुम्हार हरत संतापा ।।<br />
धन्य धन्य तुम धन्य प्रतापा । नाम तुम्हार हरत संतापा ।।
सत्य शुद्घ देवन मुख गाया । बजी दुन्दुभी शंख बजाया ।।<br />
सत्य शुद्घ देवन मुख गाया । बजी दुन्दुभी शंख बजाया ।।
सत्य सत्य तुम सत्य सनातन । तुम ही हो हमरे तन मन धन ।।<br />
सत्य सत्य तुम सत्य सनातन । तुम ही हो हमरे तन मन धन ।।
याको पाठ करे जो कोई । ज्ञान प्रकट ताके उर होई ।।<br />
याको पाठ करे जो कोई । ज्ञान प्रकट ताके उर होई ।।
आवागमन मिटै तिहि केरा । सत्य वचन माने शिर मेरा ।।<br />
आवागमन मिटै तिहि केरा । सत्य वचन माने शिर मेरा ।।
और आस मन में जो होई । मनवांछित फल पावे सोई ।।<br />
और आस मन में जो होई । मनवांछित फल पावे सोई ।।
तीनहुं काल ध्यान जो ल्यावै । तुलसी दल अरु फूल चढ़ावै ।।<br />
तीनहुं काल ध्यान जो ल्यावै । तुलसी दल अरु फूल चढ़ावै ।।
साग पत्र सो भोग लगावै । सो नर सकल सिद्घता पावै ।।<br />
साग पत्र सो भोग लगावै । सो नर सकल सिद्घता पावै ।।
अन्त समय रघुबरपुर जाई । जहां जन्म हरि भक्त कहाई ।।<br />
अन्त समय रघुबरपुर जाई । जहां जन्म हरि भक्त कहाई ।।
श्री हरिदास कहै अरु गावै । सो बैकुण्ठ धाम को पावै ।।<br />
श्री हरिदास कहै अरु गावै । सो बैकुण्ठ धाम को पावै ।।</poem></span></blockquote>
।। दोहा ।।<br />
सात दिवस जो नेम कर, पाठ करे चित लाय ।<br />
हरिदास हरि कृपा से, अवसि भक्ति को पाय ।।<br />
राम चालीसा जो पढ़े, राम चरण चित लाय ।<br />
जो इच्छा मन में करै, सकल सिद्घ हो जाय ।।<br />
 
[[Category:विविध]]


'''दोहा'''
<blockquote><span style="color: blue"><poem>सात दिवस जो नेम कर, पाठ करे चित लाय ।
हरिदास हरि कृपा से, अवसि भक्ति को पाय ।।
राम चालीसा जो पढ़े, राम चरण चित लाय ।
जो इच्छा मन में करै, सकल सिद्घ हो जाय ।।</poem></span></blockquote>


{{seealso|राम|राम स्तुति|रामचंद्र जी की आरती|}}
==संबंधित लेख==
{{आरती स्तुति स्तोत्र}}
[[Category:आरती स्तुति स्तोत्र]]
[[Category:हिन्दू धर्म]] [[Category:हिन्दू धर्म कोश]][[Category:धर्म कोश]]
[[Category:राम]]
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11:34, 29 जुलाई 2014 के समय का अवतरण

श्री राम, लक्ष्मण और सीता
Shri Ram, Laxman And Sita

चालीसा

श्री रघुवीर भक्त हितकारी । सुन लीजै प्रभु अरज हमारी ।।
निशिदिन ध्यान धरै जो कोई । ता सम भक्त और नहिं होई ।।
ध्यान धरे शिवजी मन माहीं । ब्रहृ इन्द्र पार नहिं पाहीं ।।
दूत तुम्हार वीर हनुमाना । जासु प्रभाव तिहूं पुर जाना ।।
तब भुज दण्ड प्रचण्ड कृपाला । रावण मारि सुरन प्रतिपाला ।।
तुम अनाथ के नाथ गुंसाई । दीनन के हो सदा सहाई ।।
ब्रहादिक तव पारन पावैं । सदा ईश तुम्हरो यश गावैं ।।
चारिउ वेद भरत हैं साखी । तुम भक्तन की लज्जा राखीं ।।
गुण गावत शारद मन माहीं । सुरपति ताको पार न पाहीं ।।
नाम तुम्हार लेत जो कोई । ता सम धन्य और नहिं होई ।।
राम नाम है अपरम्पारा । चारिहु वेदन जाहि पुकारा ।।
गणपति नाम तुम्हारो लीन्हो । तिनको प्रथम पूज्य तुम कीन्हो ।।
शेष रटत नित नाम तुम्हारा । महि को भार शीश पर धारा ।।
फूल समान रहत सो भारा । पाव न कोऊ तुम्हरो पारा ।।
भरत नाम तुम्हरो उर धारो । तासों कबहुं न रण में हारो ।।
नाम अक्षुहन हृदय प्रकाशा । सुमिरत होत शत्रु कर नाशा ।।
लखन तुम्हारे आज्ञाकारी । सदा करत सन्तन रखवारी ।।
ताते रण जीते नहिं कोई । युद्घ जुरे यमहूं किन होई ।।
महालक्ष्मी धर अवतारा । सब विधि करत पाप को छारा ।।
सीता राम पुनीता गायो । भुवनेश्वरी प्रभाव दिखायो ।।
घट सों प्रकट भई सो आई । जाको देखत चन्द्र लजाई ।।
सो तुमरे नित पांव पलोटत । नवो निद्घि चरणन में लोटत ।।
सिद्घि अठारह मंगलकारी । सो तुम पर जावै बलिहारी ।।
औरहु जो अनेक प्रभुताई । सो सीतापति तुमहिं बनाई ।।
इच्छा ते कोटिन संसारा । रचत न लागत पल की बारा ।।
जो तुम्हे चरणन चित लावै । ताकी मुक्ति अवसि हो जावै ।।
जय जय जय प्रभु ज्योति स्वरूपा । नर्गुण ब्रहृ अखण्ड अनूपा ।।
सत्य सत्य जय सत्यव्रत स्वामी । सत्य सनातन अन्तर्यामी ।।
सत्य भजन तुम्हरो जो गावै । सो निश्चय चारों फल पावै ।।
सत्य शपथ गौरीपति कीन्हीं । तुमने भक्तिहिं सब विधि दीन्हीं ।।
सुनहु राम तुम तात हमारे । तुमहिं भरत कुल पूज्य प्रचारे ।।
तुमहिं देव कुल देव हमारे । तुम गुरु देव प्राण के प्यारे ।।
जो कुछ हो सो तुम ही राजा । जय जय जय प्रभु राखो लाजा ।।
राम आत्मा पोषण हारे । जय जय दशरथ राज दुलारे ।।
ज्ञान हृदय दो ज्ञान स्वरूपा । नमो नमो जय जगपति भूपा ।।
धन्य धन्य तुम धन्य प्रतापा । नाम तुम्हार हरत संतापा ।।
सत्य शुद्घ देवन मुख गाया । बजी दुन्दुभी शंख बजाया ।।
सत्य सत्य तुम सत्य सनातन । तुम ही हो हमरे तन मन धन ।।
याको पाठ करे जो कोई । ज्ञान प्रकट ताके उर होई ।।
आवागमन मिटै तिहि केरा । सत्य वचन माने शिर मेरा ।।
और आस मन में जो होई । मनवांछित फल पावे सोई ।।
तीनहुं काल ध्यान जो ल्यावै । तुलसी दल अरु फूल चढ़ावै ।।
साग पत्र सो भोग लगावै । सो नर सकल सिद्घता पावै ।।
अन्त समय रघुबरपुर जाई । जहां जन्म हरि भक्त कहाई ।।
श्री हरिदास कहै अरु गावै । सो बैकुण्ठ धाम को पावै ।।

दोहा

सात दिवस जो नेम कर, पाठ करे चित लाय ।
हरिदास हरि कृपा से, अवसि भक्ति को पाय ।।
राम चालीसा जो पढ़े, राम चरण चित लाय ।
जो इच्छा मन में करै, सकल सिद्घ हो जाय ।।

इन्हें भी देखें: राम, राम स्तुति एवं रामचंद्र जी की आरती

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