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'''तुज़्क-ए-बाबरी''' अथवा 'बाबरनामा' [[भारत]] में [[मुग़ल साम्राज्य]] के संस्थापक [[बाबर]] की आत्मलिखित जीवनी है। बाबर ने इस कृति की रचना तुर्की भाषा में की थी। बाद के समय में बाबर के पोते [[अकबर]] ने 1583 ई. में अर्ब्दुरहमान ख़ानख़ाना द्वारा 'तुज़्क-ए-बाबरी' का फ़ारसी में अनुवाद करवाया। यह पुस्तक भारत की 1504 से 1529 ई. तक की राजनीतिक एवं प्राकृतिक स्थिति पर वर्णनात्मक प्रकाश डालती है।  
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==विषय वस्तु==
==विषय वस्तु==
ऐतिहासिक दृष्टि से 'तुज़्क-ए-बाबरी' बड़ा ही महत्वपूर्ण [[ग्रंथ]] माना जाता है। इसका अनुवाद कई भाषाओं में भी हो चुका है। इसकी यह विशेषता है कि बाबर ने इसमें अपने चरित्र का इतना रोचक चित्र प्रस्तुत किया है कि इसे पढ़ने वाला आश्चर्य में पड़ जाता है। बाबर ने इसमें अपने जीवन की अनेक घटनाओं को विस्तार से लिखा है। 'तुज़्क-ए-बाबरी' में [[बाबर]] ने अपना उज़्बेकिस्तान की फ़रग़ना वादी में गुज़ारा हुआ बचपन और यौवन, बाद में [[अफ़ग़ानिस्तान]] और भारतीय उपमहाद्वीप पर आक्रमण और क़ब्ज़ा और अन्य घटनाओं का विवरण दिया है। उसने हर क्षेत्र की भूमि, राजनीति, अर्थव्यवस्था, प्राकृतिक वातावरण, शहरों-इमारतों, फलों, जानवरों, इत्यादि का भी उल्लेख किया है। इस ग्रंथ में कुछ [[फ़ारसी भाषा]] के छोटे-मोटे [[छंद]] भी आते हैं, हालांकि फ़ारसी बोलने वाले इसे समझने में कठिनता महसूस करते हैं। यद्यपि चग़ताई भाषा विलुप्त हो चुकी है और आधुनिक उज़बेक भाषा उसी की वंशज है और उसे बोलने वाले उज़बेक लोग ''तुज़्क-ए-बाबरी'' पढ़ सकते हैं। इस किताब को चग़ताई और उज़बेक भाषाओं के साहित्य का एक महत्वपूर्ण अंग माना जाता है।  
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इस ग्रंथ में कुछ [[फ़ारसी भाषा]] के छोटे-मोटे [[छंद]] भी आते हैं, हालांकि फ़ारसी बोलने वाले इसे समझने में कठिनता महसूस करते हैं। यद्यपि चग़ताई भाषा विलुप्त हो चुकी है और आधुनिक उज़बेक भाषा उसी की वंशज है और उसे बोलने वाले उज़बेक लोग ''तुज़्क-ए-बाबरी'' पढ़ सकते हैं। इस किताब को चग़ताई और उज़बेक भाषाओं के साहित्य का एक महत्त्वपूर्ण अंग माना जाता है।  


'तुज़्क-ए-बाबरी' न सिर्फ़ [[बाबर|बादशाह बाबर]] के अनुभवों का दर्पण है, बल्कि तत्कालीन समाज के बारे में एक दस्तावेज भी है। 'तुजुक-ए-बाबरी' में बाबर ने अपनी अद्भुत साहित्यिक क्षमता, प्रकृति प्रेम और रुचि का परिचय दिया है, जिसे पढ़कर ही जाना जा सकता है। इस पुस्तक से यह पता चलता है कि स्थितियों ने बाबर को भले ही योद्धा बना दिया था, किंतु उसके अंदर भी एक सुरुचिपूर्ण कला-प्रेमी व्यक्तित्व मौजूद था।
'तुज़्क-ए-बाबरी' न सिर्फ़ [[बाबर|बादशाह बाबर]] के अनुभवों का दर्पण है, बल्कि तत्कालीन समाज के बारे में एक दस्तावेज भी है। 'तुजुक-ए-बाबरी' में बाबर ने अपनी अद्भुत साहित्यिक क्षमता, प्रकृति प्रेम और रुचि का परिचय दिया है, जिसे पढ़कर ही जाना जा सकता है। इस पुस्तक से यह पता चलता है कि स्थितियों ने बाबर को भले ही योद्धा बना दिया था, किंतु उसके अंदर भी एक सुरुचिपूर्ण कला-प्रेमी व्यक्तित्व मौजूद था।
==भारत का ज़िक्र==
==भारत का ज़िक्र==
इस पुस्तक में बाबर [[भारत]] की जो महत्वपूर्ण जानकारी देता है, वह है- भारत के लोगों का जीवन, रहन-सहन, स्वभाव, भूमि, जलवायु, प्राकृतिक दृश्य, [[भारत की नदियाँ]], पशु-पक्षी, [[फल]], [[फूल]], भवन निर्माण कला और उद्योग धंधे। बाबर लिखता है कि- "हिन्दुस्तान की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह एक विशाल देश है। इसमें सोने और [[चाँदी]] की अधिकता है। यहाँ [[वर्षा]] के दिनों में जलवायु अच्छी रहती है।" वह यह भी लिखता है कि- "उसे यह देखकर बड़ा आश्चर्य हुआ कि भारत में जरा देर में ही गाँव बस जाते है और उजड़ जाते हैं।"  
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तुज़्क-ए-बाबरी
तुज़्क-ए-बाबरी
तुज़्क-ए-बाबरी
लेखक बाबर
मूल शीर्षक 'तुज़्क-ए-बाबरी'
देश भारत
भाषा तुर्की भाषा
विषय 'तुजुक-ए-बाबरी' में बाबर ने अपनी अद्भुत साहित्यिक क्षमता, प्रकृति प्रेम और रुचि का परिचय दिया है। बाबर ने इसमें अपने जीवन की अनेक घटनाओं को विस्तार से लिखा है।
विशेष बाबर लिखता है कि- "हिन्दुस्तान की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह एक विशाल देश है। इसमें सोने और चाँदी की अधिकता है। यहाँ वर्षा के दिनों में जलवायु अच्छी रहती है।"

तुज़्क-ए-बाबरी अथवा 'बाबरनामा' भारत में मुग़ल साम्राज्य के संस्थापक बाबर की आत्मलिखित जीवनी है। बाबर ने इस कृति की रचना तुर्की भाषा में की थी। बाद के समय में बाबर के पोते अकबर ने 1583 ई. में अब्दुर्रहीम ख़ानख़ाना द्वारा 'तुज़्क-ए-बाबरी' का फ़ारसी में अनुवाद करवाया। यह पुस्तक भारत की 1504 से 1529 ई. तक की राजनीतिक एवं प्राकृतिक स्थिति पर वर्णनात्मक प्रकाश डालती है।

विषय वस्तु

ऐतिहासिक दृष्टि से 'तुज़्क-ए-बाबरी' बड़ा ही महत्त्वपूर्ण ग्रंथ माना जाता है। इसका अनुवाद कई भाषाओं में भी हो चुका है। इसकी यह विशेषता है कि बाबर ने इसमें अपने चरित्र का इतना रोचक चित्र प्रस्तुत किया है कि इसे पढ़ने वाला आश्चर्य में पड़ जाता है। बाबर ने इसमें अपने जीवन की अनेक घटनाओं को विस्तार से लिखा है। 'तुज़्क-ए-बाबरी' में बाबर ने अपना उज़्बेकिस्तान की फ़रग़ना वादी में गुज़ारा हुआ बचपन और यौवन, बाद में अफ़ग़ानिस्तान और भारतीय उपमहाद्वीप पर आक्रमण और क़ब्ज़ा और अन्य घटनाओं का विवरण दिया है। उसने हर क्षेत्र की भूमि, राजनीति, अर्थव्यवस्था, प्राकृतिक वातावरण, शहरों-इमारतों, फलों, जानवरों, इत्यादि का भी उल्लेख किया है।

इस ग्रंथ में कुछ फ़ारसी भाषा के छोटे-मोटे छंद भी आते हैं, हालांकि फ़ारसी बोलने वाले इसे समझने में कठिनता महसूस करते हैं। यद्यपि चग़ताई भाषा विलुप्त हो चुकी है और आधुनिक उज़बेक भाषा उसी की वंशज है और उसे बोलने वाले उज़बेक लोग तुज़्क-ए-बाबरी पढ़ सकते हैं। इस किताब को चग़ताई और उज़बेक भाषाओं के साहित्य का एक महत्त्वपूर्ण अंग माना जाता है।

'तुज़्क-ए-बाबरी' न सिर्फ़ बादशाह बाबर के अनुभवों का दर्पण है, बल्कि तत्कालीन समाज के बारे में एक दस्तावेज भी है। 'तुजुक-ए-बाबरी' में बाबर ने अपनी अद्भुत साहित्यिक क्षमता, प्रकृति प्रेम और रुचि का परिचय दिया है, जिसे पढ़कर ही जाना जा सकता है। इस पुस्तक से यह पता चलता है कि स्थितियों ने बाबर को भले ही योद्धा बना दिया था, किंतु उसके अंदर भी एक सुरुचिपूर्ण कला-प्रेमी व्यक्तित्व मौजूद था।

भारत का ज़िक्र

इस पुस्तक में बाबर भारत की जो महत्त्वपूर्ण जानकारी देता है, वह है- भारत के लोगों का जीवन, रहन-सहन, स्वभाव, भूमि, जलवायु, प्राकृतिक दृश्य, भारत की नदियाँ, पशु-पक्षी, फल, फूल, भवन निर्माण कला और उद्योग धंधे। बाबर लिखता है कि- "हिन्दुस्तान की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह एक विशाल देश है। इसमें सोने और चाँदी की अधिकता है। यहाँ वर्षा के दिनों में जलवायु अच्छी रहती है।" वह यह भी लिखता है कि- "उसे यह देखकर बड़ा आश्चर्य हुआ कि भारत में जरा देर में ही गाँव बस जाते है और उजड़ जाते हैं।"


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