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'''बूटा''' [[मुग़लकालीन स्थापत्य एवं वास्तुकला|मुग़ल-भारतीय कला]] के सबसे महत्त्वपूर्ण सजावटी कला रूपांकनों में से एक है, जो विशेष शैलीगत पत्तियों और [[फूल|फूलों]] वाली कोमल टहनियों से बनाया जाता है।  
'''बूटा''' [[मुग़लकालीन स्थापत्य एवं वास्तुकला|मुग़ल-भारतीय कला]] के सबसे महत्त्वपूर्ण सजावटी कला रूपांकनों में से एक, जो विशेष शैलीगत पत्तियों और [[फूल|फूलों]] वाली कोमल टहनियों से बनाया जाता है।  
*इसका उपयोग [[वास्तुकला]] और चित्रकारी, [[वस्त्र|वस्त्रों]], मीनाकारी और अन्य दूसरी सज्जा-कलाओं में किया जाता है।
*इसका उपयोग [[वास्तुकला]] और चित्रकारी, [[वस्त्र|वस्त्रों]], मीनाकारी और अन्य दूसरी सज्जा-कलाओं में किया जाता है।
*मुग़ल बादशाह [[जहाँगीर]] (1605-27) के शासनकाल में यह कला महत्त्व पाने लगी और [[शाहजहाँ]] (1628-58) के समय तक इसका निरंतर उपयोग किया गया।  
*मुग़ल बादशाह [[जहाँगीर]] (1605-27) के शासनकाल में यह कला महत्त्व पाने लगी और [[शाहजहाँ]] (1628-58) के समय तक इसका निरंतर उपयोग किया गया।  
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*[[आगरा]] में स्थित [[ताजमहल]] (लगभग 1632-49) में इसकी नफ़ासत और [[रंग]]-सौंदर्य के उत्कृष्ट उदहारण देखे जा सकते हैं।  
*यह [[कला]] रूपांकन 18वीं शताब्दी के आसपास कुछ स्थिर और जड़ होने लगा, किंतु इसकी लोकप्रियता कभी कम नहीं हुई।
*यह [[कला]] रूपांकन 18वीं शताब्दी के आसपास कुछ स्थिर और जड़ होने लगा, किंतु इसकी लोकप्रियता कभी कम नहीं हुई।


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14:27, 21 सितम्बर 2014 के समय का अवतरण

बूटा मुग़ल-भारतीय कला के सबसे महत्त्वपूर्ण सजावटी कला रूपांकनों में से एक है, जो विशेष शैलीगत पत्तियों और फूलों वाली कोमल टहनियों से बनाया जाता है।

  • इसका उपयोग वास्तुकला और चित्रकारी, वस्त्रों, मीनाकारी और अन्य दूसरी सज्जा-कलाओं में किया जाता है।
  • मुग़ल बादशाह जहाँगीर (1605-27) के शासनकाल में यह कला महत्त्व पाने लगी और शाहजहाँ (1628-58) के समय तक इसका निरंतर उपयोग किया गया।
  • आगरा में स्थित ताजमहल (लगभग 1632-49) में इसकी नफ़ासत और रंग-सौंदर्य के उत्कृष्ट उदहारण देखे जा सकते हैं।
  • यह कला रूपांकन 18वीं शताब्दी के आसपास कुछ स्थिर और जड़ होने लगा, किंतु इसकी लोकप्रियता कभी कम नहीं हुई।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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