"एक क्षत्रिय, नाई और भिखारी की कहानी": अवतरणों में अंतर
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'''एक क्षत्रिय, नाई और भिखारी की कहानी''' [[हितोपदेश]] की प्रसिद्ध कहानियों में से एक है जिसके रचयिता [[नारायण पंडित]] हैं। | |||
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अयोध्या में चूड़ामणि नामक एक क्षत्रिय रहता था। उसे धन की बहुत तंगी थी। उसने भगवान महादेवजी की बहुत समय तक आराधना की। फिर जब वह क्षीणपाप हो गया, तब महादेवजी की आज्ञा से कुबेर ने स्वप्न में दर्शन दे कर आज्ञा दी कि जो तुम आज प्रातःकाल और क्षौर कराके लाठी हाथ में लेकर घर में एकांत में छुप कर बैठोगे, तो उसी आँगन में एक भिखारी को आया हुआ देखोगे। जब तुम उसे निर्दय हो कर लाठी की प्रहारों से मारोगे तब वह सुवर्ण का कलश हो जाएगा। उससे तुम जीवनपर्यन्त सुख से रहोगे। फिर वैसा करने पर वही बात हुई। वहाँ से गुजरते हुए नाई ने यह सब देख लिया। नाई सोचने लगा-- अरे, धन पाने का यही उपाय है, मैं भी ऐसा | [[अयोध्या]] में चूड़ामणि नामक एक [[क्षत्रिय]] रहता था। उसे धन की बहुत तंगी थी। उसने भगवान [[महादेव|महादेवजी]] की बहुत समय तक आराधना की। फिर जब वह क्षीणपाप हो गया, तब महादेवजी की आज्ञा से [[कुबेर]] ने स्वप्न में दर्शन दे कर आज्ञा दी कि जो तुम आज प्रातःकाल और क्षौर कराके लाठी हाथ में लेकर घर में एकांत में छुप कर बैठोगे, तो उसी आँगन में एक भिखारी को आया हुआ देखोगे। जब तुम उसे निर्दय हो कर लाठी की प्रहारों से मारोगे तब वह सुवर्ण का कलश हो जाएगा। उससे तुम जीवनपर्यन्त सुख से रहोगे। फिर वैसा करने पर वही बात हुई। वहाँ से गुजरते हुए नाई ने यह सब देख लिया। नाई सोचने लगा-- अरे, धन पाने का यही उपाय है, मैं भी ऐसा क्यों न करूँ? | ||
फिर उस दिन से नाई वैसे ही लाठी हाथ में लिए हमेशा छिप कर भिखारी के आने की राह देखता रहता था। एक दिन उसने भिखारी को पा लिया और लाठी से मार डाला। अपराध से उस नाई को भी राजा के पुरुषों ने मार डाला। | फिर उस दिन से नाई वैसे ही लाठी हाथ में लिए हमेशा छिप कर भिखारी के आने की राह देखता रहता था। एक दिन उसने भिखारी को पा लिया और लाठी से मार डाला। अपराध से उस नाई को भी राजा के पुरुषों ने मार डाला। | ||
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13:12, 9 अक्टूबर 2014 के समय का अवतरण
एक क्षत्रिय, नाई और भिखारी की कहानी हितोपदेश की प्रसिद्ध कहानियों में से एक है जिसके रचयिता नारायण पंडित हैं।
कहानी
अयोध्या में चूड़ामणि नामक एक क्षत्रिय रहता था। उसे धन की बहुत तंगी थी। उसने भगवान महादेवजी की बहुत समय तक आराधना की। फिर जब वह क्षीणपाप हो गया, तब महादेवजी की आज्ञा से कुबेर ने स्वप्न में दर्शन दे कर आज्ञा दी कि जो तुम आज प्रातःकाल और क्षौर कराके लाठी हाथ में लेकर घर में एकांत में छुप कर बैठोगे, तो उसी आँगन में एक भिखारी को आया हुआ देखोगे। जब तुम उसे निर्दय हो कर लाठी की प्रहारों से मारोगे तब वह सुवर्ण का कलश हो जाएगा। उससे तुम जीवनपर्यन्त सुख से रहोगे। फिर वैसा करने पर वही बात हुई। वहाँ से गुजरते हुए नाई ने यह सब देख लिया। नाई सोचने लगा-- अरे, धन पाने का यही उपाय है, मैं भी ऐसा क्यों न करूँ?
फिर उस दिन से नाई वैसे ही लाठी हाथ में लिए हमेशा छिप कर भिखारी के आने की राह देखता रहता था। एक दिन उसने भिखारी को पा लिया और लाठी से मार डाला। अपराध से उस नाई को भी राजा के पुरुषों ने मार डाला।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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