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*'''शिलप्पादिकारम''' को 'तमिल साहित्य' के प्रथम महाकाव्य के रूप में जाना जाता है।
*'''शिलप्पादिकारम''' को '[[तमिल साहित्य]]' के प्रथम [[महाकाव्य]] के रूप में जाना जाता है। इसका शाब्दिक अर्थ है- "नूपुर की कहानी"। इस महाकाव्य की रचना [[चेर वंश]] के शासक सेन गुट्टुवन के भाई इलांगो आदिगल ने लगभग ईसा की दूसरी-तीसरी [[शताब्दी]] में की थी।
*इसका शाब्दिक अर्थ है - "नूपुर की कहानी"।
 
*इस महाकाव्य की रचना [[चेर वंश]] के शासक 'सेन गुट्टुवन' के भाई 'इलांगो आदिगल' ने लगभग ईसा की दूसरी-तीसरी शताब्दी में की थी।
*'शिलप्पादिकारम' की सम्पूर्ण [[कथा]] नुपूर के चारों ओर घूमती है।
*'शिलप्पादिकारम' की सम्पूर्ण कथा नुपूर के चारों ओर घूमती है।
*इस [[महाकाव्य]] के नायक और नायिका 'कोवलन' और 'कण्णगी' हैं।
*इस महाकाव्य के नायक और नायिका 'कोवलन' और 'कण्णगी' हैं।
*यह महाकाव्य ‘पुहारक्कांडम’, 'मदरैक्कांडम' और 'वंजिक्कांडम' तीन भागों में विभाजित है। इन तीनों भागों में क्रमशः [[चोल]], [[पाण्ड्य साम्राज्य|पाण्ड्य]], और [[चेर वंश|चेर]] राज्यों का वर्णन है।
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12:33, 26 दिसम्बर 2014 के समय का अवतरण

  • शिलप्पादिकारम को 'तमिल साहित्य' के प्रथम महाकाव्य के रूप में जाना जाता है। इसका शाब्दिक अर्थ है- "नूपुर की कहानी"। इस महाकाव्य की रचना चेर वंश के शासक सेन गुट्टुवन के भाई इलांगो आदिगल ने लगभग ईसा की दूसरी-तीसरी शताब्दी में की थी।
  • 'शिलप्पादिकारम' की सम्पूर्ण कथा नुपूर के चारों ओर घूमती है।
  • इस महाकाव्य के नायक और नायिका 'कोवलन' और 'कण्णगी' हैं।
  • यह महाकाव्य ‘पुहारक्कांडम’, 'मदरैक्कांडम' और 'वंजिक्कांडम' तीन भागों में विभाजित है। इन तीनों भागों में क्रमशः चोल, पाण्ड्य, और चेर राज्यों का वर्णन है।
  • महाकाव्य में कवि ने तत्कालीन तमिल समाज का सजीव चित्र प्रस्तुत करने के साथ-साथ समाज में प्रचलित नृत्यों, व्यवसायों आदि का भी परिचय दिया है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख