"कुशस्थली, द्वारका": अवतरणों में अंतर

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==कुशस्थली==
'''कुशस्थली''' प्रसिद्ध नगरी [[द्वारका]] का प्राचीन नाम है। पौराणिक कथाओं के अनुसार महाराजा रैवतक के [[समुद्र]] में कुश बिछाकर [[यज्ञ]] करने के कारण ही इस नगरी का नाम 'कुशस्थली' हुआ था। बाद में [[त्रिविक्रम|त्रिविक्रम भगवान]] ने 'कुश' नामक दानव का वध भी यहीं किया था। त्रिविक्रम का मंदिर द्वारका में [[रणछोड़ जी मंदिर, द्वारका|रणछोड़जी के मंदिर]] के निकट है।
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*द्वारका का प्राचीन नाम है। पौराणिक कथाओं के अनुसार महाराजा रैवतक के समुद्र में कुश बिछाकर [[यज्ञ]] करने के कारण ही इस नगरी का नाम कुशस्थली हुआ था। बाद में त्रिविकम भगवान ने कुश नामक दानव का वध भी यहीं किया था। त्रिविक्रम का मंदिर द्वारका में रणछोड़जी के मंदिर के निकट है। ऐसा जान पड़ता है कि महाराज रैवतक (बलराम की पत्नी [[रेवती]] के पिता) ने प्रथम बार, समुद्र में से कुछ भूमि बाहर निकाल कर यह नगरी बसाई होगी। 
*[[हरिवंश पुराण]] <ref>हरिवंश पुराण 1,11,4</ref> के अनुसार कुशस्थली उस प्रदेश का नाम था जहां यादवों ने द्वारका बसाई थी। 
*[[विष्णु पुराण]] के अनुसार,<ref>'आनर्तस्यापि रेवतनामा पुत्रोजज्ञे योऽसावानर्तविषयं बुभुजे पुरीं च कुशस्थलीमध्युवास' विष्णु पुराण 4,1,64.</ref> अर्थात् आनर्त के रेवत नामक पुत्र हुआ जिसने कुशस्थली नामक पुरी में रह कर [[आनर्त]] पर राज्य किया। विष्णु पुराण <ref>विष्णु पुराण 4,1,91</ref> से सूचित होता है कि प्राचीन कुशावती के स्थान पर ही श्रीकृष्ण ने द्वारका बसाई थी-'कुशस्थली या तव भूप रम्या पुरी पुराभूदमरावतीव, सा द्वारका संप्रति तत्र चास्ते स केशवांशो बलदेवनामा'।
*कुशावती का अन्य नाम कुशावर्त भी है। एक प्राचीन किंवदंती में द्वारका का संबंध 'पुण्यजनों' से बताया गया है। ये 'पुण्यजन' वैदिक 'पणिक' या 'पणि' हो सकते हैं। अनेक विद्वानों का मत है कि पणिक या पणि प्राचीन ग्रीस के फिनीशियनों का ही भारतीय नाम था। ये लोग अपने को कुश की संतान मानते थे <ref>वेडल-मेकर्स आव सिविलीजेशन, पृ0 80</ref>।  इस प्रकार कुशस्थली या कुशावर्त नाम बहुत प्राचीन सिद्ध होता है। [[पुराण|पुराणों]] के वंशवृत्त में शार्यातों के मूल पुरुष शर्याति की राजधानी भी कुशस्थली बताई गई है।
*महाभारत, <ref>महाभारत सभा पर्व 14,50</ref> के अनुसार कुशस्थली रैवतक पर्वत से घिरी हुई थी-'कुशस्थली पुरी रम्या रैवतेनोपशोभितम्'।  [[जरासंध]] के आक्रमण से बचने के लिए श्रीकृष्ण मथुरा से कुशस्थली आ गए थे और यहीं उन्होंने नई नगरी द्वारका बसाई थी। पुरी की रक्षा के लिए उन्होंने अभेद्य दुर्ग की रचना की थी जहां रह कर स्त्रियां भी युद्ध कर सकती थीं-'तथैव दुर्गसंस्कारं देवैरपि दुरासदम्, स्त्रियोऽपियस्यां युध्येयु: किमु वृष्णिमहारथा:'।<ref>महाभारत, सभा पर्व 14,51</ref>


*ऐसा जान पड़ता है कि महाराज रैवतक<ref>[[बलराम]] की पत्नी [[रेवती (बलराम की पत्नी)|रेवती]] के [[पिता]]</ref> ने प्रथम बार [[समुद्र]] में से कुछ भूमि बाहर निकाल कर यह नगरी बसाई होगी।
*'[[हरिवंश पुराण]]'<ref>हरिवंश पुराण 1,11,4</ref> के अनुसार कुशस्थली उस प्रदेश का नाम था, जहां [[यादव वंश|यादवों]] ने [[द्वारका]] बसाई थी।
*'[[विष्णु पुराण]]' के अनुसार-
<blockquote>'आनर्तस्यापि रेवतनामा पुत्रोजज्ञे योऽसावानर्तविषयं बुभुजे पुरीं च कुशस्थलीमध्युवास।'<ref>[[विष्णुपुराण]] 4,1,64</ref></blockquote>
अर्थात् "आनर्त के रैवत नामक पुत्र हुआ, जिसने कुशस्थली नामक पुरी में रह कर आनर्त पर राज्य किया।
*विष्णुपुराण<ref>विष्णुपुराण 4,1,91</ref> से सूचित होता है कि प्राचीन 'कुशावती' के स्थान पर ही [[श्रीकृष्ण]] ने द्वारका बसाई थी-
<blockquote>'कुशस्थली या तव भूप रम्या पुरी पुराभूदमरावतीव, सा द्वारका संप्रति तत्र चास्ते स केशवांशो बलदेवनामा'।</blockquote>
*कुशावती का अन्य नाम 'कुशावर्त' भी था। एक प्राचीन किंवदंती में द्वारका का संबंध 'पुण्यजनों' से बताया गया है। ये 'पुण्यजन' वैदिक 'पणिक' या 'पणि' हो सकते हैं। अनेक विद्वानों का मत है कि पणिक या पणि प्राचीन ग्रीस के फिनीशियनों का ही भारतीय नाम था। ये लोग अपने को कुश की संतान मानते थे।<ref>वेडल-मेकर्स आव सिविलीजेशन, पृ. 80</ref> इस प्रकार कुशस्थली या कुशावर्त नाम बहुत प्राचीन सिद्ध होता है।
*[[पुराण|पुराणों]] के वंशवृत्त में शार्यातों के मूल पुरुष [[शर्याति]] की राजधानी भी कुशस्थली बताई गई है।
*[[महाभारत]]<ref>[[महाभारत सभापर्व]] 14,50</ref> के अनुसार कुशस्थली [[रैवतक|रैवतक पर्वत]] से घिरी हुई थी-
<blockquote>'कुशस्थली पुरी रम्या रैवतेनोपशोभितम्।'</blockquote>
*[[जरासंध]] के आक्रमण से बचने के लिए [[श्रीकृष्ण]] [[मथुरा]] से कुशस्थली आ गए थे और यहीं उन्होंने नई नगरी [[द्वारका]] बसाई थी। पुरी की रक्षा के लिए उन्होंने अभेद्य [[दुर्ग]] की रचना की थी, जहां रहकर स्त्रियां भी युद्ध कर सकती थीं-
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14:01, 28 दिसम्बर 2014 के समय का अवतरण

कुशस्थली प्रसिद्ध नगरी द्वारका का प्राचीन नाम है। पौराणिक कथाओं के अनुसार महाराजा रैवतक के समुद्र में कुश बिछाकर यज्ञ करने के कारण ही इस नगरी का नाम 'कुशस्थली' हुआ था। बाद में त्रिविक्रम भगवान ने 'कुश' नामक दानव का वध भी यहीं किया था। त्रिविक्रम का मंदिर द्वारका में रणछोड़जी के मंदिर के निकट है।

'आनर्तस्यापि रेवतनामा पुत्रोजज्ञे योऽसावानर्तविषयं बुभुजे पुरीं च कुशस्थलीमध्युवास।'[3]

अर्थात् "आनर्त के रैवत नामक पुत्र हुआ, जिसने कुशस्थली नामक पुरी में रह कर आनर्त पर राज्य किया।

  • विष्णुपुराण[4] से सूचित होता है कि प्राचीन 'कुशावती' के स्थान पर ही श्रीकृष्ण ने द्वारका बसाई थी-

'कुशस्थली या तव भूप रम्या पुरी पुराभूदमरावतीव, सा द्वारका संप्रति तत्र चास्ते स केशवांशो बलदेवनामा'।

  • कुशावती का अन्य नाम 'कुशावर्त' भी था। एक प्राचीन किंवदंती में द्वारका का संबंध 'पुण्यजनों' से बताया गया है। ये 'पुण्यजन' वैदिक 'पणिक' या 'पणि' हो सकते हैं। अनेक विद्वानों का मत है कि पणिक या पणि प्राचीन ग्रीस के फिनीशियनों का ही भारतीय नाम था। ये लोग अपने को कुश की संतान मानते थे।[5] इस प्रकार कुशस्थली या कुशावर्त नाम बहुत प्राचीन सिद्ध होता है।
  • पुराणों के वंशवृत्त में शार्यातों के मूल पुरुष शर्याति की राजधानी भी कुशस्थली बताई गई है।
  • महाभारत[6] के अनुसार कुशस्थली रैवतक पर्वत से घिरी हुई थी-

'कुशस्थली पुरी रम्या रैवतेनोपशोभितम्।'

  • जरासंध के आक्रमण से बचने के लिए श्रीकृष्ण मथुरा से कुशस्थली आ गए थे और यहीं उन्होंने नई नगरी द्वारका बसाई थी। पुरी की रक्षा के लिए उन्होंने अभेद्य दुर्ग की रचना की थी, जहां रहकर स्त्रियां भी युद्ध कर सकती थीं-

'तथैव दुर्गसंस्कारं देवैरपि दुरासदम्, स्त्रियोऽपियस्यां युध्येयु: किमु वृष्णिमहारथा:'।[7]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. बलराम की पत्नी रेवती के पिता
  2. हरिवंश पुराण 1,11,4
  3. विष्णुपुराण 4,1,64
  4. विष्णुपुराण 4,1,91
  5. वेडल-मेकर्स आव सिविलीजेशन, पृ. 80
  6. महाभारत सभापर्व 14,50
  7. महाभारत, सभापर्व 14,51

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