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[[जवाहरलाल नेहरू|पंडित जवाहरलाल नेहरू]] स्वतंत्र भारत के प्रथम प्रधानमंत्री के पद पर आसीन हुए। एक समारोह में शिरकत करने के लिए जब वे [[लंदन]] गए तो वहां कई नेताओं से भेंट के दौरान एक क्षण ऐसा आया, जब चर्चिल और नेहरू आमने-सामने हुए। हालांकि चर्चिल नेहरूजी की सदैव ही आलोचना किया करते थे किंतु उस समारोह में दोनों नेता खुलकर मिले और कई बातें कीं। दोनों ने परस्पर पुरानी यादें भी ताजा कीं।


बातों ही बातों में चर्चिल ने नेहरूजी से पूछा- यदि आप बुरा न मानें तो एक प्रश्न पूछना चाहता हूं। नेहरूजी की स्वीकृति पाकर चर्चिल बोले- आप अंग्रेजों की जेल में कितने वर्ष तक रहे। नेहरूजी ने उत्तर दिया- यही कोई दस वर्ष। यह सुनकर चर्चिल बोले- हमने आपके प्रति एक घृणित व्यवहार किया, उसकी एवज में आपको हमसे नफरत करनी चाहिए। नेहरूजी ने प्रत्युत्तर में कहा- ऐसी कोई खास बात नहीं है। दरअसल हमने ऐसे नेता के अधीन रहकर कार्य किया है जिससे हमें दो बातें सीखने को मिली हैं।
बातों ही बातों में चर्चिल ने नेहरूजी से पूछा- यदि आप बुरा न मानें तो एक प्रश्न पूछना चाहता हूं। नेहरूजी की स्वीकृति पाकर चर्चिल बोले- आप अंग्रेजों की जेल में कितने वर्ष तक रहे। नेहरूजी ने उत्तर दिया- यही कोई दस वर्ष। यह सुनकर चर्चिल बोले- हमने आपके प्रति एक घृणित व्यवहार किया, उसकी एवज में आपको हमसे नफरत करनी चाहिए। नेहरूजी ने प्रत्युत्तर में कहा- ऐसी कोई ख़ास बात नहीं है। दरअसल हमने ऐसे नेता के अधीन रहकर कार्य किया है जिससे हमें दो बातें सीखने को मिली हैं।


चर्चिल ने पूछा- वह बातें क्या हैं। नेहरूजी बोले- पहली बात तो यह है कि आत्मनिर्भर रहो। किसी से मत डरो। दूसरी बात यह है कि किसी को नफरत की निगाह से मत देखो। यही कारण है कि तब न तो हम आपसे डरते थे और न अब आपसे नफरत करते हैं।
चर्चिल ने पूछा- वह बातें क्या हैं। नेहरूजी बोले- पहली बात तो यह है कि आत्मनिर्भर रहो। किसी से मत डरो। दूसरी बात यह है कि किसी को नफरत की निगाह से मत देखो। यही कारण है कि तब न तो हम आपसे डरते थे और न अब आपसे नफरत करते हैं।
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10:54, 13 जनवरी 2015 के समय का अवतरण

सकारात्मक ऊर्जा -जवाहरलाल नेहरू
जवाहरलाल नेहरू
जवाहरलाल नेहरू
विवरण जवाहरलाल नेहरू
भाषा हिंदी
देश भारत
मूल शीर्षक प्रेरक प्रसंग
उप शीर्षक जवाहरलाल नेहरू के प्रेरक प्रसंग
संकलनकर्ता अशोक कुमार शुक्ला

पंडित जवाहरलाल नेहरू स्वतंत्र भारत के प्रथम प्रधानमंत्री के पद पर आसीन हुए। एक समारोह में शिरकत करने के लिए जब वे लंदन गए तो वहां कई नेताओं से भेंट के दौरान एक क्षण ऐसा आया, जब चर्चिल और नेहरू आमने-सामने हुए। हालांकि चर्चिल नेहरूजी की सदैव ही आलोचना किया करते थे किंतु उस समारोह में दोनों नेता खुलकर मिले और कई बातें कीं। दोनों ने परस्पर पुरानी यादें भी ताजा कीं।

बातों ही बातों में चर्चिल ने नेहरूजी से पूछा- यदि आप बुरा न मानें तो एक प्रश्न पूछना चाहता हूं। नेहरूजी की स्वीकृति पाकर चर्चिल बोले- आप अंग्रेजों की जेल में कितने वर्ष तक रहे। नेहरूजी ने उत्तर दिया- यही कोई दस वर्ष। यह सुनकर चर्चिल बोले- हमने आपके प्रति एक घृणित व्यवहार किया, उसकी एवज में आपको हमसे नफरत करनी चाहिए। नेहरूजी ने प्रत्युत्तर में कहा- ऐसी कोई ख़ास बात नहीं है। दरअसल हमने ऐसे नेता के अधीन रहकर कार्य किया है जिससे हमें दो बातें सीखने को मिली हैं।

चर्चिल ने पूछा- वह बातें क्या हैं। नेहरूजी बोले- पहली बात तो यह है कि आत्मनिर्भर रहो। किसी से मत डरो। दूसरी बात यह है कि किसी को नफरत की निगाह से मत देखो। यही कारण है कि तब न तो हम आपसे डरते थे और न अब आपसे नफरत करते हैं।

वस्तुत: भय और घृणा ऐसे दुर्भाव हैं, जो व्यक्ति की कार्यक्षमता को कम कर उसे नकारात्मकता से भर देते हैं और नकारात्मकता सदैव बुरे परिणाम देती है। इसलिए इन दुर्भावनाओं से परे सकारात्मक ऊर्जा से आविष्ट होकर कर्म करें, वही लाभदायी होता है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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