"पंडाजी का अखाड़ा, वाराणसी": अवतरणों में अंतर
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बाँसफाटक की ढलान के बाई तरफ पंडाजी का [[अखाड़ा]] है। यह आधुनिक अखाड़ों की दुनिया में महत्वपूर्ण स्थान रखता है। अखाड़े के वर्तमान संचालक भवानी शंकर पाण्डेय के अनुज श्री गणेश शंकर पाण्डेय हैं। पं. महादेव पाण्डेय इसके संस्थापक थे। उन्हें पण्डा जी कहा जाता था। पहले यहाँ अखाड़ा नहीं था। तलवार भाँजना, बरछी चलाना आदि सिखाया जाता था। पण्डा जी [[राम कुण्ड, वाराणसी|रामकुण्ड]] के अखाड़े में कुश्तियों के लिए जाते थे। कुश्ती के प्रेमी होने से उन्होंने निजी व्यय पर इसका निर्माण किया। इस अखाड़े में मंगलाराय, गुँगई, नत्था, श्रीपत, रामबालक आदि प्रसिद्ध नाम पैदा हुए। इन्हें राष्ट्रीय स्तर पर सफलता मिली। मंगलाराय को इलाहाबाद के एक दंगल में गुँगई पहलवान ने पलक झपकते दे मारा था। महाराष्ट्र केशरी प्राप्त श्रीपत ने ‘खचनाले’ से दो [[महीने]] तक काँटे की लड़ाई मोल ली। मामला बराबरी पर तय हुआ। गुँगई अपने आप में दाँव प्रसिद्ध माने जाते थे। श्रीपत को ‘करइत साँप’ कहा जाता था। मंगलाराय ने [[भारत]] तथा [[बर्मा]] के पहलवानों को पछाड़ा था। [[पाकिस्तान]] के | बाँसफाटक की ढलान के बाई तरफ पंडाजी का [[अखाड़ा]] है। यह आधुनिक अखाड़ों की दुनिया में महत्वपूर्ण स्थान रखता है। अखाड़े के वर्तमान संचालक भवानी शंकर पाण्डेय के अनुज श्री गणेश शंकर पाण्डेय हैं। पं. महादेव पाण्डेय इसके संस्थापक थे। उन्हें पण्डा जी कहा जाता था। पहले यहाँ अखाड़ा नहीं था। तलवार भाँजना, बरछी चलाना आदि सिखाया जाता था। पण्डा जी [[राम कुण्ड, वाराणसी|रामकुण्ड]] के अखाड़े में कुश्तियों के लिए जाते थे। कुश्ती के प्रेमी होने से उन्होंने निजी व्यय पर इसका निर्माण किया। इस अखाड़े में मंगलाराय, गुँगई, नत्था, श्रीपत, रामबालक आदि प्रसिद्ध नाम पैदा हुए। इन्हें राष्ट्रीय स्तर पर सफलता मिली। मंगलाराय को इलाहाबाद के एक दंगल में गुँगई पहलवान ने पलक झपकते दे मारा था। महाराष्ट्र केशरी प्राप्त श्रीपत ने ‘खचनाले’ से दो [[महीने]] तक काँटे की लड़ाई मोल ली। मामला बराबरी पर तय हुआ। गुँगई अपने आप में दाँव प्रसिद्ध माने जाते थे। श्रीपत को ‘करइत साँप’ कहा जाता था। मंगलाराय ने [[भारत]] तथा [[बर्मा]] के पहलवानों को पछाड़ा था। [[पाकिस्तान]] के ग़ुलाम गौरा निजाम को इन्होंने ‘ढाँक’ पर चित्त कर दिया था।<ref>{{cite web |url=http://www.kashikatha.com/%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%B8%E0%A4%A4/%E0%A4%85%E0%A4%96%E0%A4%BE%E0%A4%A1%E0%A4%BC%E0%A5%87%E0%A4%B5%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%AE%E0%A4%B6%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A4%BE%E0%A4%8F%E0%A4%81/ |title= अखाड़े/व्यायामशालाएँ|accessmonthday=15 जनवरी |accessyear=2014 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=काशीकथा |language=हिंदी }}</ref> | ||
14:04, 6 अप्रैल 2015 के समय का अवतरण
बाँसफाटक की ढलान के बाई तरफ पंडाजी का अखाड़ा है। यह आधुनिक अखाड़ों की दुनिया में महत्वपूर्ण स्थान रखता है। अखाड़े के वर्तमान संचालक भवानी शंकर पाण्डेय के अनुज श्री गणेश शंकर पाण्डेय हैं। पं. महादेव पाण्डेय इसके संस्थापक थे। उन्हें पण्डा जी कहा जाता था। पहले यहाँ अखाड़ा नहीं था। तलवार भाँजना, बरछी चलाना आदि सिखाया जाता था। पण्डा जी रामकुण्ड के अखाड़े में कुश्तियों के लिए जाते थे। कुश्ती के प्रेमी होने से उन्होंने निजी व्यय पर इसका निर्माण किया। इस अखाड़े में मंगलाराय, गुँगई, नत्था, श्रीपत, रामबालक आदि प्रसिद्ध नाम पैदा हुए। इन्हें राष्ट्रीय स्तर पर सफलता मिली। मंगलाराय को इलाहाबाद के एक दंगल में गुँगई पहलवान ने पलक झपकते दे मारा था। महाराष्ट्र केशरी प्राप्त श्रीपत ने ‘खचनाले’ से दो महीने तक काँटे की लड़ाई मोल ली। मामला बराबरी पर तय हुआ। गुँगई अपने आप में दाँव प्रसिद्ध माने जाते थे। श्रीपत को ‘करइत साँप’ कहा जाता था। मंगलाराय ने भारत तथा बर्मा के पहलवानों को पछाड़ा था। पाकिस्तान के ग़ुलाम गौरा निजाम को इन्होंने ‘ढाँक’ पर चित्त कर दिया था।[1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ अखाड़े/व्यायामशालाएँ (हिंदी) काशीकथा। अभिगमन तिथि: 15 जनवरी, 2014।
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