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कैसे भीतर जाऊं मैं?
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द्बारपाल भय दिखलाते हैं,
द्वारपाल भय दिखलाते हैं,
कुछ ही जन जाने पाते हैं,
कुछ ही जन जाने पाते हैं,
शेष सभी धक्के खाते हैं,
शेष सभी धक्के खाते हैं,
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किसमें हो कर आऊं मैं?
किसमें हो कर आऊं मैं?


कुटी खोल भीतर जाता हूँ
कुटी खोल भीतर जाता हूँ,
तो वैसा ही रह जाता हूँ
तो वैसा ही रह जाता हूँ,
तुझको यह कहते पाता हूँ-
तुझको यह कहते पाता हूँ-
'अतिथि, कहो क्या लाउं मैं?'
'अतिथि, कहो क्या लाऊं मैं?'
तेरे घर के द्वार बहुत हैं,
तेरे घर के द्वार बहुत हैं,
किसमें हो कर आऊं मैं?  
किसमें हो कर आऊं मैं?  
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गुणगान -मैथिलीशरण गुप्त
मैथिलीशरण गुप्त
मैथिलीशरण गुप्त
कवि मैथिलीशरण गुप्त
जन्म 3 अगस्त, 1886
मृत्यु 12 दिसंबर, 1964
मृत्यु स्थान चिरगाँव, झाँसी
मुख्य रचनाएँ पंचवटी, साकेत, यशोधरा, द्वापर, झंकार, जयभारत
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची
मैथिलीशरण गुप्त की रचनाएँ

तेरे घर के द्वार बहुत हैं,
किसमें हो कर आऊं मैं?
सब द्वारों पर भीड़ मची है,
कैसे भीतर जाऊं मैं?

द्वारपाल भय दिखलाते हैं,
कुछ ही जन जाने पाते हैं,
शेष सभी धक्के खाते हैं,
क्यों कर घुसने पाऊं मैं?
तेरे घर के द्वार बहुत हैं,
किसमें हो कर आऊं मैं?

तेरी विभव कल्पना कर के,
उसके वर्णन से मन भर के,
भूल रहे हैं जन बाहर के
कैसे तुझे भुलाऊं मैं?
तेरे घर के द्वार बहुत हैं,
किसमें हो कर आऊं मैं?

बीत चुकी है बेला सारी,
किंतु न आयी मेरी बारी,
करूँ कुटी की अब तैयारी,
वहीं बैठ गुन गाऊं मैं।
तेरे घर के द्वार बहुत हैं,
किसमें हो कर आऊं मैं?

कुटी खोल भीतर जाता हूँ,
तो वैसा ही रह जाता हूँ,
तुझको यह कहते पाता हूँ-
'अतिथि, कहो क्या लाऊं मैं?'
तेरे घर के द्वार बहुत हैं,
किसमें हो कर आऊं मैं?

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