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मधुकलश -हरिवंशराय बच्चन
पुस्तक 'मधुकलश' का आवरण पृष्ठ
पुस्तक 'मधुकलश' का आवरण पृष्ठ
लेखक हरिवंशराय बच्चन
मूल शीर्षक 'मधुकलश'
प्रकाशक राजपाल एण्ड संस
प्रकाशन तिथि 1 जनवरी, 2010
ISBN 978-81-7028-426
देश भारत
पृष्ठ: 125
भाषा हिन्दी
शैली रुबाईयाँ
विषय कविता
सम्बंधित लेख हरिवंशराय बच्चन, मधुशाला, निशा निमंत्रण

मधुकलश हरिवंशराय बच्चन की कृति है। बच्चन जी की यह कृति 'राजपाल एण्ड संस प्रकाशन' द्वारा प्रकाशित हुई थी।

  • अग्रणी कवि हरिवंशराय बच्चन की कविता का आरंभ तीसरे दशक के मध्य ‘मधु’ अथवा मदिरा के इर्द-गिर्द हुआ और ‘मधुशाला’ से आरंभ कर ‘मधुबाला’ और ‘मधुकलश’ एक-एक वर्ष के अंतर से प्रकाशित हुए। ये बहुत लोकप्रिय हुए और प्रथम ‘मधुशाला’ ने तो धूम ही मचा दी। यह दरअसल हिन्दी साहित्य की आत्मा का ही अंग बन गई है और कालजयी रचनाओं की श्रेणी में खड़ी हुई है।[1]
  • इन कविताओं की रचना के समय कवि की आयु 27-28 वर्ष की थी, अतः स्वाभाविक है कि ये संग्रह यौवन के रस और ज्वार से भरपूर हैं। स्वयं बच्चन ने इन सबको एक साथ पढ़ने का आग्रह किया है। कवि ने कहा है-

"आज मदिरा लाया हूँ, जिसे पीकर भविष्यत के भय भाग जाते हैं और भूतकाल के दु:ख दूर हो जाते हैं..., आज जीवन की मदिरा, जो हमें विवश होकर पीनी पड़ी है, कितनी कड़वी है। ले, पान कर और इस मद के उन्माद में अपने को, अपने दु:ख को, भूल जा।"


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. मधुकलश (हिन्दी) भारतीय साहित्य संग्रह। अभिगमन तिथि: 15 जून, 2015।

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