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[[चित्र:Prarthana.jpg|right|thumb|250px|[[अनासक्ति आश्रम]] में आयोजित दैनिक सामूहिक प्रार्थना सभा]]  
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'''प्रार्थना''' एक धार्मिक [[क्रिया]] है जो [[ब्रह्माण्ड]] के किसी 'महान शक्ति' से सम्बन्ध जोड़ने की कोशिश करती है। प्रार्थना व्यक्तिगत हो सकती है और सामूहिक भी। इसमें शब्दों ([[मंत्र]], [[गीत]] आदि) का प्रयोग हो सकता है या प्रार्थना मौन भी हो सकती है।
'''प्रार्थना''' एक धार्मिक [[क्रिया]] है जो [[ब्रह्माण्ड]] के किसी 'महान शक्ति' से सम्बन्ध जोड़ने की कोशिश करती है। प्रार्थना व्यक्तिगत हो सकती है और सामूहिक भी। इसमें शब्दों ([[मंत्र]], [[गीत]] आदि) का प्रयोग हो सकता है या प्रार्थना मौन भी हो सकती है।
;एल. क्राफार्ड ने कहा था- ‘‘प्रार्थना परिष्कार एवं परिमार्जन की उत्तम प्रक्रिया है।’’
;एल. क्राफार्ड ने कहा था- ‘‘प्रार्थना परिष्कार एवं परिमार्जन की उत्तम प्रक्रिया है।’’
==प्रार्थना संकलन==
==प्रार्थना संकलन==
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*[[सरस्वती प्रार्थना]]
*[[सरस्वती प्रार्थना]]
*[[वृक्षों का प्रार्थना गीत -राजेश जोशी]]
*[[नमाज़]]
*[[नमाज़]]
*[[पंडित श्रद्धाराम शर्मा|नित्यप्रार्थना]]
*[[लोहड़ी|अग्नि को समर्पित प्रार्थना ]]
*[[अक्षय तृतीया|क्षमा-प्रार्थना का दिन]]
*[[गुड फ़्राइडे|यीशु की प्रार्थना का दिन]]
*[[वृक्षों का प्रार्थना गीत -राजेश जोशी|वृक्षों का प्रार्थना गीत]]
*[[छठपूजा|उदयमान सूर्य की प्रार्थना उपासना]]
*[[ओणम|विष्णु भगवान की पूजा के गीत]]
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मैंने यह अनुभव किया है कि जब हम सारी आशा छोड़कर बैठ जाते हैं, हमारे दोनों हाथ टिक जाते हैं, तब कहीं न कहीं से मदद आ पहुंचती है। स्तुति, उपासना, प्रार्थना वहम नहीं है, बल्कि हमारा खाना पीना, चलना बैठना जितना सच है, उससे भी अधिक सच यह चीज है। यह कहने में अतिशयोक्ति नहीं है कि यही सच है और सब झूठ है। ऐसी उपासना, ऐसी प्रार्थना निरा वाणी विलास नहीं होती उसका मूल कंठ नहीं हृदय है।<ref>महात्मा गांधी जीवनी से संग्रहित</ref>---[[महात्मा गाँधी]]
मैंने यह अनुभव किया है कि जब हम सारी आशा छोड़कर बैठ जाते हैं, हमारे दोनों हाथ टिक जाते हैं, तब कहीं न कहीं से मदद आ पहुंचती है। स्तुति, उपासना, प्रार्थना वहम नहीं है, बल्कि हमारा खाना पीना, चलना बैठना जितना सच है, उससे भी अधिक सच यह चीज है। यह कहने में अतिशयोक्ति नहीं है कि यही सच है और सब झूठ है। ऐसी उपासना, ऐसी प्रार्थना निरा वाणी विलास नहीं होती उसका मूल कंठ नहीं हृदय है।<ref>महात्मा गांधी जीवनी पृष्ट 92 से संग्रहित</ref>---[[महात्मा गाँधी]]
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प्रार्थना निवेदन करके उर्जा प्राप्त करने की शक्ति है और अपने इष्ट अथवा विद्या के प्रधान देव से सीधा संवाद है। प्रार्थना लौकिक व अलौकिक समस्या का समाधान है।<ref> आदि शक्ति से संग्रहित</ref>---आदि शक्ति
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मुझे इस विषय में कोई शंका नहीं है कि विकार रूपी मलों की शुद्धि के लिए हार्दिक उपासना एक रामबाण औषधि है।<ref>सत्य के प्रयोग पृष्ट 69</ref>---[[महात्मा गाँधी]]
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हेनरी डेविड थोरो की इस प्रार्थना को गांधी जी '''प्रार्थनाओं की प्रार्थना''' कहते थे-
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" हे प्रभो ! मुझे इतनी शक्ति दे दो कि मैं अपने को अपनी करनी से कभी निराश न करूँ । मेरे हस्त, मेरी द्रढ़ता, श्रद्धा का कभी अनादर न करें । मेरा प्रेम मेरे मित्रों के प्रेम से घटिया न रहे । मेरी वाणी जितना कहे-- जीवन उससे ज्यादा करता चले । तेरी मंगलमय स्रष्टि का हर अमंगल पचा सकूँ, इतनी शक्ति मुझ में बनी रहे । "<ref>महात्मा गांधी जीवनी पृष्ट 143 से संग्रहित</ref>---हेनरी डेविड थोरो
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08:14, 30 दिसम्बर 2015 के समय का अवतरण

कौसानी के अनासक्ति आश्रम में आयोजित दैनिक प्रार्थना सभा

प्रार्थना एक धार्मिक क्रिया है जो ब्रह्माण्ड के किसी 'महान शक्ति' से सम्बन्ध जोड़ने की कोशिश करती है। प्रार्थना व्यक्तिगत हो सकती है और सामूहिक भी। इसमें शब्दों (मंत्र, गीत आदि) का प्रयोग हो सकता है या प्रार्थना मौन भी हो सकती है।

एल. क्राफार्ड ने कहा था- ‘‘प्रार्थना परिष्कार एवं परिमार्जन की उत्तम प्रक्रिया है।’’

प्रार्थना संकलन

हरदोई के गांधी भवन परिसर में प्रार्थना

गिरजों में घुसते ही बाहर की अशान्ति भूल जाती है। लोगों का व्यवहार बदल जाता है। लोग अदब से पेश आते हैं। वहाँ कोलाहल नहीं होता। कुमारी मरियम की मूर्ति के सम्मुख कोई न कोई प्रार्थना करता ही रहता है। यह सब वहम नहीं है, बल्कि हृदय की भावना है, ऐसा प्रभाव मुझ पर पड़ा था और बढ़ता ही गया है। कुमारिका की मूर्ति के सम्मुख घुटनों के बल बैठकर प्रार्थना करने वाले उपासक संगमरमर के पत्थर को नहीं पूजते थे, बल्कि उसमें मानी हुई अपनी कल्पित शक्ति को पूजते थे। ऐसा करके वे ईश्वर की महिमा को घटाते नहीं बल्कि बढ़ाते थे।[1]

मैंने यह अनुभव किया है कि जब हम सारी आशा छोड़कर बैठ जाते हैं, हमारे दोनों हाथ टिक जाते हैं, तब कहीं न कहीं से मदद आ पहुंचती है। स्तुति, उपासना, प्रार्थना वहम नहीं है, बल्कि हमारा खाना पीना, चलना बैठना जितना सच है, उससे भी अधिक सच यह चीज है। यह कहने में अतिशयोक्ति नहीं है कि यही सच है और सब झूठ है। ऐसी उपासना, ऐसी प्रार्थना निरा वाणी विलास नहीं होती उसका मूल कंठ नहीं हृदय है।[2]---महात्मा गाँधी

प्रार्थना निवेदन करके उर्जा प्राप्त करने की शक्ति है और अपने इष्ट अथवा विद्या के प्रधान देव से सीधा संवाद है। प्रार्थना लौकिक व अलौकिक समस्या का समाधान है।[3]---आदि शक्ति

मुझे इस विषय में कोई शंका नहीं है कि विकार रूपी मलों की शुद्धि के लिए हार्दिक उपासना एक रामबाण औषधि है।[4]---महात्मा गाँधी

प्रार्थनाओं की प्रार्थना

हेनरी डेविड थोरो की इस प्रार्थना को गांधी जी प्रार्थनाओं की प्रार्थना कहते थे-

" हे प्रभो ! मुझे इतनी शक्ति दे दो कि मैं अपने को अपनी करनी से कभी निराश न करूँ । मेरे हस्त, मेरी द्रढ़ता, श्रद्धा का कभी अनादर न करें । मेरा प्रेम मेरे मित्रों के प्रेम से घटिया न रहे । मेरी वाणी जितना कहे-- जीवन उससे ज्यादा करता चले । तेरी मंगलमय स्रष्टि का हर अमंगल पचा सकूँ, इतनी शक्ति मुझ में बनी रहे । "[5]---हेनरी डेविड थोरो

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. महात्मा गांधी जीवनी सत्य के प्रयोग से संग्रहित
  2. महात्मा गांधी जीवनी पृष्ट 92 से संग्रहित
  3. आदि शक्ति से संग्रहित
  4. सत्य के प्रयोग पृष्ट 69
  5. महात्मा गांधी जीवनी पृष्ट 143 से संग्रहित

बाहरी कड़ियाँ

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