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'''वर्धन''' [[उदयपुर ज़िला]], [[राजस्थान]] का ऐतिहासिक स्थान है। प्राचीन काल में यहाँ मेरों का [[दुर्ग]] था, जिसे [[मेवाड़]] नरेश [[महाराणा लाखा]] ने उनसे छीन लिया था।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=ऐतिहासिक स्थानावली|लेखक=विजयेन्द्र कुमार माथुर|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर|संकलन= भारतकोश पुस्तकालय|संपादन= |पृष्ठ संख्या=835|url=}}</ref> | '''वर्धन''' [[उदयपुर ज़िला]], [[राजस्थान]] का ऐतिहासिक स्थान है। प्राचीन काल में यहाँ मेरों का [[दुर्ग]] था, जिसे [[मेवाड़]] नरेश [[महाराणा लाखा]] ने उनसे छीन लिया था।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=ऐतिहासिक स्थानावली|लेखक=विजयेन्द्र कुमार माथुर|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर|संकलन= भारतकोश पुस्तकालय|संपादन= |पृष्ठ संख्या=835|url=}}</ref> | ||
06:39, 7 अप्रैल 2016 के समय का अवतरण
वर्धन | एक बहुविकल्पी शब्द है अन्य अर्थों के लिए देखें:- वर्धन (बहुविकल्पी) |
वर्धन उदयपुर ज़िला, राजस्थान का ऐतिहासिक स्थान है। प्राचीन काल में यहाँ मेरों का दुर्ग था, जिसे मेवाड़ नरेश महाराणा लाखा ने उनसे छीन लिया था।[1]
इन्हें भी देखें: राजस्थान का इतिहास, मेवाड़ का इतिहास एवं राजस्थान पर्यटन
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ ऐतिहासिक स्थानावली |लेखक: विजयेन्द्र कुमार माथुर |प्रकाशक: राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर |संकलन: भारतकोश पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 835 |