|
|
(2 सदस्यों द्वारा किए गए बीच के 8 अवतरण नहीं दर्शाए गए) |
पंक्ति 1: |
पंक्ति 1: |
| ===={{PAGENAME}}====
| |
| {| style="background:transparent; font-size:larger; color:#990099" | | {| style="background:transparent; font-size:larger; color:#990099" |
| | | | | |
| <poem>दूर दूर तक फैली | | <noinclude>[[Category:तकनीकी साँचे]]</noinclude> |
| खेतो में हरियाली
| |
| कितनी सुंदर वसुधा लगती
| |
| रंग बिरंगी डाली डाली
| |
| | |
| रँग रँग के फूल खिले है -
| |
| मडरायें भवरें उन पर
| |
| रस प्रेम सुधा वे पान करें
| |
| इस वृंतों से उस वृंतों पर
| |
| | |
| मधुरम मधुरम पवन बह रही
| |
| भीनी भीनी गंध लिए
| |
| बज रही घंटियाँ बैलो की
| |
| गा रही कोकिला मतवाली
| |
| | |
| वर्षा ऋतू बीती-ऋतू शरद गयी
| |
| ऋतू बसन्त है मुसकायी
| |
| चहक रहीं चिड़ियाँ तरु पर
| |
| भ्रू-भंग अंग-चंचल कलियाँ हरषाई
| |
| | |
| लहलाते खेतो को देख कृषक
| |
| यु नाच उठे मन मोर द्रंग
| |
| बादल को देख मोरनी ज्यो
| |
| हर्षित उर कर-करती है म्रदंग
| |
| | |
| आ गयी आम्र तरु पर बौरें
| |
| आ रही है गेहूँ पर बाली
| |
| सीना ताने-तरु चना खड़ा है
| |
| इठलाती अरहर रानी
| |
| | |
| फूली पीली सरसों के बिच
| |
| यु झाँके धरती अम्बर को
| |
| प्रथम द्रश्य ज्यो दुलहिन देखे
| |
| अपने प्रियवर प्रियतम को
| |
| | |
| मीठे मीठे बेर पक गये
| |
| इस डाली के उन गुच्छे पर
| |
| सुमनों से रस पी पी कर
| |
| मधुमक्खी जाती छत्तो पर
| |
| | |
| उर छील-छील,लील-लील,सुषमा अति
| |
| स्वरमयी दिशा स्वर्गिक सौंदर्य सर्ग
| |
| उदघोषित करता प्रणय-गान
| |
| आ गया सुनहरा ऋतू बसंत</poem>
| |