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सुनत नीक आगें दुःख पावा। सचिवन अस मत प्रभुहि सुनावा॥ | सुनत नीक आगें दुःख पावा। सचिवन अस मत प्रभुहि सुनावा॥ | ||
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07:51, 26 मई 2016 के समय का अवतरण
छुधा न रही तुम्हहि तब काहू
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कवि | गोस्वामी तुलसीदास |
मूल शीर्षक | 'रामचरितमानस' |
मुख्य पात्र | राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि। |
प्रकाशक | गीता प्रेस गोरखपुर |
शैली | दोहा, चौपाई और सोरठा |
संबंधित लेख | दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा |
काण्ड | लंकाकाण्ड |
छुधा न रही तुम्हहि तब काहू। जारत नगरु कस न धरि खाहू॥ |
- भावार्थ
उस समय तुम लोगों में से किसी को भूख न थी? (बंदर तो तुम्हारा भोजन ही हैं, फिर) नगर जलाते समय उसे पकड़कर क्यों नहीं खा लिया? इन मंत्रियों ने स्वामी (आप) को ऐसी सम्मति सुनाई है जो सुनने में अच्छी है पर जिससे आगे चलकर दुःख पाना होगा।
छुधा न रही तुम्हहि तब काहू |
चौपाई- मात्रिक सम छन्द का भेद है। प्राकृत तथा अपभ्रंश के 16 मात्रा के वर्णनात्मक छन्दों के आधार पर विकसित हिन्दी का सर्वप्रिय और अपना छन्द है। गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस में चौपाई छन्द का बहुत अच्छा निर्वाह किया है। चौपाई में चार चरण होते हैं, प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राएँ होती हैं तथा अन्त में गुरु होता है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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