"राजकुमारी अमृत कौर": अवतरणों में अंतर
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'''राजकुमारी अमृत कौर''' ([[अंग्रेज़ी]]: Rajkumari Amrit Kaur; जन्म- [[2 फ़रवरी]], [[1889]], [[उत्तर प्रदेश]]; मृत्यु- [[2 अक्टूबर]], [[1964]]) [[भारत]] की एक प्रख्यात गांधीवादी, स्वतंत्रता सेनानी और एक सामाजिक कार्यकर्ता थीं। वह देश की स्वतंत्रता के बाद भारतीय मंत्रिमण्डल में दस साल तक | {{सूचना बक्सा स्वतन्त्रता सेनानी | ||
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'''राजकुमारी अमृत कौर''' ([[अंग्रेज़ी]]: Rajkumari Amrit Kaur; जन्म- [[2 फ़रवरी]], [[1889]], [[उत्तर प्रदेश]]; मृत्यु- [[2 अक्टूबर]], [[1964]]) [[भारत]] की एक प्रख्यात गांधीवादी, स्वतंत्रता सेनानी और एक सामाजिक कार्यकर्ता थीं। वह देश की स्वतंत्रता के बाद भारतीय मंत्रिमण्डल में दस साल तक स्वास्थ्य मंत्री रहीं। देश की पहली महिला कैबिनेट मंत्री होने का सम्मान उन्हें प्राप्त है। राजकुमारी अमृत कौर [[कपूरथला ज़िला|कपूरथला]] के शाही परिवार से ताल्लुक रखती थीं। राष्ट्रपिता [[महात्मा गाँधी]] के प्रभाव में आने के बाद ही उन्होंने भौतिक जीवन की सभी सुख-सुविधाओं को छोड़ दिया और तपस्वी का जीवन अपना लिया। वे सन [[1957]] से [[1964]] में अपने निधन तक [[राज्य सभा]] की सदस्य भी रही थीं। | |||
==जन्म तथा परिवार== | ==जन्म तथा परिवार== | ||
राजकुमारी अमृत कौर का जन्म 2 फ़रवरी, 1889 को [[लखनऊ]], [[उत्तर प्रदेश]] में हुआ था। उनके [[पिता]] राजा हरनाम सिंह कपूरथला, [[पंजाब]] के राजा थे और [[माता]] रानी हरनाम सिंह थीं। राजा हरनाम सिंह की आठ संतानें थीं, जिनमें राजकुमारी अमृत कौर अपने सात भाईयों में अकेली बहिन थीं। अमृत कौर के पिता ने [[ईसाई धर्म]] स्वीकार कर लिया था। सरकार ने उन्हें [[अवध]] की रियासतों का मैनेजर बनाकर अवध भेजा था।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=भारतीय चरित कोश|लेखक=लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय'|अनुवादक=|आलोचक=|प्रकाशक=शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली|संकलन= |संपादन=|पृष्ठ संख्या=702|url=}}</ref> | राजकुमारी अमृत कौर का जन्म 2 फ़रवरी, 1889 को [[लखनऊ]], [[उत्तर प्रदेश]] में हुआ था। उनके [[पिता]] राजा हरनाम सिंह [[कपूरथला]], [[पंजाब]] के राजा थे और [[माता]] रानी हरनाम सिंह थीं। राजा हरनाम सिंह की आठ संतानें थीं, जिनमें राजकुमारी अमृत कौर अपने सात भाईयों में अकेली बहिन थीं। अमृत कौर के पिता ने [[ईसाई धर्म]] स्वीकार कर लिया था। सरकार ने उन्हें [[अवध]] की रियासतों का मैनेजर बनाकर अवध भेजा था।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=भारतीय चरित कोश|लेखक=लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय'|अनुवादक=|आलोचक=|प्रकाशक=शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली|संकलन= |संपादन=|पृष्ठ संख्या=702|url=}}</ref> | ||
====शिक्षा==== | ====शिक्षा==== | ||
राजकुमारी अमृत कौर की आरम्भ से लेकर आगे तक की शिक्षा [[इंग्लैण्ड]] में हुई थी। उनके पिता के [[गोपाल कृष्ण गोखले]] से बहुत ही अच्छे मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध थे। इस परिचय का प्रभाव राजकुमारी अमृत कौर पर भी पड़ा था। वे देश के सामाजिक और | राजकुमारी अमृत कौर की आरम्भ से लेकर आगे तक की शिक्षा [[इंग्लैण्ड]] में हुई थी। उनके पिता के [[गोपाल कृष्ण गोखले]] से बहुत ही अच्छे मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध थे। इस परिचय का प्रभाव राजकुमारी अमृत कौर पर भी पड़ा था। वे देश के सामाजिक और राजनीतिक जीवन में सक्रिय रूप से भाग लेने लगी थीं। | ||
==स्वतंत्रता आंदोलन में योगदान== | ==स्वतंत्रता आंदोलन में योगदान== | ||
शीघ्र ही अमृत कौर का सम्पर्क राष्ट्रपिता [[महात्मा गाँधी]] से हुआ। यह सम्पर्क अंत तक बना रहा। उन्होंने 16 वर्षों तक गाँधीजी के सचिव का भी काम किया। गाँधीजी के नेतृत्व में सन [[1930]] में जब '[[दांडी मार्च]]' की शुरआत हुई, तब राजकुमारी अमृतकौर ने उनके साथ यात्रा की और जेल की सजा भी काटी। वर्ष [[1934]] से वह गाँधीजी के आश्रम में ही रहने लगीं। उन्हें 'भारत छोड़ो आन्दोलन' के दौरान भी जेल हुई। | |||
अमृत कौर '[[भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस]]' की प्रतिनिधि के तौर पर सन [[1937]] में पश्चिमोत्तर सीमांत प्रांत के [[बन्नू]] गई। ब्रिटिश सरकार को यह बात नागवार गुजरी और उसने राजद्रोह का आरोप लगाकर उन्हें जेल में बंद कर दिया। उन्होंने सभी को मताधिकार दिए जाने की भी वकालत की और भारतीय मताधिकार और संवैधानिक सुधार के लिए गठित 'लोथियन समिति' तथा ब्रिटिश पार्लियामेंट की संवैधानिक सुधारों के लिए बनी संयुक्त चयन समिति के सामने भी अपना पक्ष रखा। | |||
==पहली महिला कैबिनेट मंत्री== | ==पहली महिला कैबिनेट मंत्री== | ||
राजकुमारी अमृत कौर पहली भारतीय महिला थीं जिन्हें केंद्रीय मंत्री बनने का मौका | राजकुमारी अमृत कौर पहली भारतीय महिला थीं, जिन्हें केंद्रीय मंत्री बनने का मौका मिला था। [[पंडित जवाहरलाल नेहरू]] के नेतृत्व में गठित पहले मंत्रिमंडल में वे शामिल थीं। उन्होंने स्वास्थ्य मंत्रालय का कार्यभार [[1957]] तक सँभाला। 'अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान' की स्थापना में उनकी प्रमुख भूमिका रही थी।<ref>{{cite web |url=http://hindi.webdunia.com/miscellaneous/kidsworld/gk/0906/27/1090627092_1.htm|title=भारत की पहली महिला केंद्रीय मंत्री!|accessmonthday= |accessyear= |last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language= }}</ref> | ||
====राजनीतिक सफर==== | |||
अपने राजनीतिक कैरियर के दौरान राजकुमारी अमृता कौर ने कई बड़े पदों को सुशोभित किया। स्वास्थ्य के क्षेत्र में उनकी उपलब्धियाँ उल्लेखनीय रहीं। [[1950]] में उन्हें '[[विश्व स्वास्थ्य संगठन]]' का अध्यक्ष बनाया गया। यह सम्मान हासिल करने वाली वह पहली महिला और एशियायी थीं। डब्ल्यूएचओ के पहले पच्चीस वर्षों में सिर्फ दो महिलाएँ इस पद पर नियुक्त की गई थीं। [[नई दिल्ली]] में 'अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान' की स्थापना में भी उनकी महत्त्वपूर्ण भूमिका रही। वह इसकी पहली अध्यक्ष भी बनायी गयीं। इस संस्थान की स्थापना के लिए उन्होंने न्यूजीलैंड, [[ऑस्ट्रेलिया]], पश्चिम जर्मनी, स्वीडन और अमरीका से मदद हासिल की थी। उन्होंने और उनके एक भाई ने [[शिमला]] में अपनी पैतृक सम्पत्ति और मकान को संस्थान के कर्मचारियों और नर्सों के लिए "होलिडे होम" के रूप में दान कर दिया था। | |||
==राजनीतिक | ==कल्याणकारी कार्य== | ||
अपने राजनीतिक कैरियर के दौरान राजकुमारी अमृता कौर | राजकुमारी अमृत कौर ने महिलाओं और हरिजनों के उद्धार के लिए भी कई कल्याणकारी कार्य किए। वह [[बाल विवाह]] और [[पर्दा प्रथा]] के सख्त ख़िलाफ़ थीं और इन्हें लड़कियों की शिक्षा में बडी बाधा मानती थीं। उनका कहना था कि शिक्षा को नि:शुल्क और अनिवार्य बनाया जाना चाहिए। राजकुमारी अमृत कौर ने महिलाओं की दयनीय स्थिति को देखकर ही [[1927]] में 'अखिल भारतीय महिला सम्मेलन' की स्थापना की। वह [[1930]] में इसकी सचिव और [[1933]] में अध्यक्ष बनीं। उन्होंने 'ऑल इंडिया वूमेन्स एजुकेशन फंड एसोसिएशन' के अध्यक्ष के रूप में भी काम किया और नई दिल्ली के 'लेडी इर्विन कॉलेज' की कार्यकारी समिति की सदस्य रहीं। ब्रिटिश सरकार ने उन्हें 'शिक्षा सलाहकार बोर्ड' का सदस्य भी बनाया, जिससे उन्होंने 'भारत छोडो आंदोलन' के दौरान इस्तीफा दे दिया था। उन्हें [[1945]] में लंदन और [[1946]] में पेरिस के यूनेस्को सम्मेलन में भारतीय सदस्य के रूप में भेजा गया था। वह 'अखिल भारतीय बुनकर संघ' के न्यासी बोर्ड की सदस्य भी रहीं। | ||
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राजकुमारी अमृत कौर ने महिलाओं और हरिजनों के | [[2 अक्टूबर]], [[1964]] को राजकुमारी अमृत कौर का निधन हुआ। अमृत कौर बाल विवाह और महिलाओं की अशिक्षा को दूर करने पर निरंतर ज़ोर देती रही थीं। उन्होंने [[विवाह]] नहीं किया था। अपनी सोच और संकल्प से उन्होंने विभिन्न क्षेत्रों में जो बुनियाद रखी, उन्हीं पर आज़ाद [[भारत]] के सपनों की ताबीर हुई थी। | ||
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08:37, 14 जून 2016 के समय का अवतरण
राजकुमारी अमृत कौर
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पूरा नाम | राजकुमारी अमृत कौर |
जन्म | 2 फ़रवरी, 1889 |
जन्म भूमि | लखनऊ, उत्तर प्रदेश |
मृत्यु | 2 अक्टूबर, 1964 |
अभिभावक | राजा हरनाम सिंह और रानी हरनाम |
पति/पत्नी | अविवाहित |
नागरिकता | भारतीय |
प्रसिद्धि | स्वतंत्रता सेनानी और सामाजिक कार्यकर्ता |
जेल यात्रा | वर्ष 1930 में 'दांडी मार्च' के समय राजकुमारी अमृतकौर ने गाँधीजी के साथ यात्रा की और जेल की सजा भी काटी। |
विशेष योगदान | 1927 में 'अखिल भारतीय महिला सम्मेलन' की स्थापना की। नई दिल्ली में 'अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान' की स्थापना में भी इनका प्रमुख योगदान था। |
अन्य जानकारी | आप भारत की प्रथम महिला थीं, जो केंद्रीय मंत्री बनी थीं। 1950 में इन्हें 'विश्व स्वास्थ्य संगठन' का अध्यक्ष बनाया गया था। यह सम्मान हासिल करने वाली वह पहली एशियायी महिला थीं। |
राजकुमारी अमृत कौर (अंग्रेज़ी: Rajkumari Amrit Kaur; जन्म- 2 फ़रवरी, 1889, उत्तर प्रदेश; मृत्यु- 2 अक्टूबर, 1964) भारत की एक प्रख्यात गांधीवादी, स्वतंत्रता सेनानी और एक सामाजिक कार्यकर्ता थीं। वह देश की स्वतंत्रता के बाद भारतीय मंत्रिमण्डल में दस साल तक स्वास्थ्य मंत्री रहीं। देश की पहली महिला कैबिनेट मंत्री होने का सम्मान उन्हें प्राप्त है। राजकुमारी अमृत कौर कपूरथला के शाही परिवार से ताल्लुक रखती थीं। राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी के प्रभाव में आने के बाद ही उन्होंने भौतिक जीवन की सभी सुख-सुविधाओं को छोड़ दिया और तपस्वी का जीवन अपना लिया। वे सन 1957 से 1964 में अपने निधन तक राज्य सभा की सदस्य भी रही थीं।
जन्म तथा परिवार
राजकुमारी अमृत कौर का जन्म 2 फ़रवरी, 1889 को लखनऊ, उत्तर प्रदेश में हुआ था। उनके पिता राजा हरनाम सिंह कपूरथला, पंजाब के राजा थे और माता रानी हरनाम सिंह थीं। राजा हरनाम सिंह की आठ संतानें थीं, जिनमें राजकुमारी अमृत कौर अपने सात भाईयों में अकेली बहिन थीं। अमृत कौर के पिता ने ईसाई धर्म स्वीकार कर लिया था। सरकार ने उन्हें अवध की रियासतों का मैनेजर बनाकर अवध भेजा था।[1]
शिक्षा
राजकुमारी अमृत कौर की आरम्भ से लेकर आगे तक की शिक्षा इंग्लैण्ड में हुई थी। उनके पिता के गोपाल कृष्ण गोखले से बहुत ही अच्छे मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध थे। इस परिचय का प्रभाव राजकुमारी अमृत कौर पर भी पड़ा था। वे देश के सामाजिक और राजनीतिक जीवन में सक्रिय रूप से भाग लेने लगी थीं।
स्वतंत्रता आंदोलन में योगदान
शीघ्र ही अमृत कौर का सम्पर्क राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी से हुआ। यह सम्पर्क अंत तक बना रहा। उन्होंने 16 वर्षों तक गाँधीजी के सचिव का भी काम किया। गाँधीजी के नेतृत्व में सन 1930 में जब 'दांडी मार्च' की शुरआत हुई, तब राजकुमारी अमृतकौर ने उनके साथ यात्रा की और जेल की सजा भी काटी। वर्ष 1934 से वह गाँधीजी के आश्रम में ही रहने लगीं। उन्हें 'भारत छोड़ो आन्दोलन' के दौरान भी जेल हुई।
अमृत कौर 'भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस' की प्रतिनिधि के तौर पर सन 1937 में पश्चिमोत्तर सीमांत प्रांत के बन्नू गई। ब्रिटिश सरकार को यह बात नागवार गुजरी और उसने राजद्रोह का आरोप लगाकर उन्हें जेल में बंद कर दिया। उन्होंने सभी को मताधिकार दिए जाने की भी वकालत की और भारतीय मताधिकार और संवैधानिक सुधार के लिए गठित 'लोथियन समिति' तथा ब्रिटिश पार्लियामेंट की संवैधानिक सुधारों के लिए बनी संयुक्त चयन समिति के सामने भी अपना पक्ष रखा।
पहली महिला कैबिनेट मंत्री
राजकुमारी अमृत कौर पहली भारतीय महिला थीं, जिन्हें केंद्रीय मंत्री बनने का मौका मिला था। पंडित जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में गठित पहले मंत्रिमंडल में वे शामिल थीं। उन्होंने स्वास्थ्य मंत्रालय का कार्यभार 1957 तक सँभाला। 'अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान' की स्थापना में उनकी प्रमुख भूमिका रही थी।[2]
राजनीतिक सफर
अपने राजनीतिक कैरियर के दौरान राजकुमारी अमृता कौर ने कई बड़े पदों को सुशोभित किया। स्वास्थ्य के क्षेत्र में उनकी उपलब्धियाँ उल्लेखनीय रहीं। 1950 में उन्हें 'विश्व स्वास्थ्य संगठन' का अध्यक्ष बनाया गया। यह सम्मान हासिल करने वाली वह पहली महिला और एशियायी थीं। डब्ल्यूएचओ के पहले पच्चीस वर्षों में सिर्फ दो महिलाएँ इस पद पर नियुक्त की गई थीं। नई दिल्ली में 'अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान' की स्थापना में भी उनकी महत्त्वपूर्ण भूमिका रही। वह इसकी पहली अध्यक्ष भी बनायी गयीं। इस संस्थान की स्थापना के लिए उन्होंने न्यूजीलैंड, ऑस्ट्रेलिया, पश्चिम जर्मनी, स्वीडन और अमरीका से मदद हासिल की थी। उन्होंने और उनके एक भाई ने शिमला में अपनी पैतृक सम्पत्ति और मकान को संस्थान के कर्मचारियों और नर्सों के लिए "होलिडे होम" के रूप में दान कर दिया था।
कल्याणकारी कार्य
राजकुमारी अमृत कौर ने महिलाओं और हरिजनों के उद्धार के लिए भी कई कल्याणकारी कार्य किए। वह बाल विवाह और पर्दा प्रथा के सख्त ख़िलाफ़ थीं और इन्हें लड़कियों की शिक्षा में बडी बाधा मानती थीं। उनका कहना था कि शिक्षा को नि:शुल्क और अनिवार्य बनाया जाना चाहिए। राजकुमारी अमृत कौर ने महिलाओं की दयनीय स्थिति को देखकर ही 1927 में 'अखिल भारतीय महिला सम्मेलन' की स्थापना की। वह 1930 में इसकी सचिव और 1933 में अध्यक्ष बनीं। उन्होंने 'ऑल इंडिया वूमेन्स एजुकेशन फंड एसोसिएशन' के अध्यक्ष के रूप में भी काम किया और नई दिल्ली के 'लेडी इर्विन कॉलेज' की कार्यकारी समिति की सदस्य रहीं। ब्रिटिश सरकार ने उन्हें 'शिक्षा सलाहकार बोर्ड' का सदस्य भी बनाया, जिससे उन्होंने 'भारत छोडो आंदोलन' के दौरान इस्तीफा दे दिया था। उन्हें 1945 में लंदन और 1946 में पेरिस के यूनेस्को सम्मेलन में भारतीय सदस्य के रूप में भेजा गया था। वह 'अखिल भारतीय बुनकर संघ' के न्यासी बोर्ड की सदस्य भी रहीं।
निधन
2 अक्टूबर, 1964 को राजकुमारी अमृत कौर का निधन हुआ। अमृत कौर बाल विवाह और महिलाओं की अशिक्षा को दूर करने पर निरंतर ज़ोर देती रही थीं। उन्होंने विवाह नहीं किया था। अपनी सोच और संकल्प से उन्होंने विभिन्न क्षेत्रों में जो बुनियाद रखी, उन्हीं पर आज़ाद भारत के सपनों की ताबीर हुई थी।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ भारतीय चरित कोश |लेखक: लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय' |प्रकाशक: शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली |पृष्ठ संख्या: 702 |
- ↑ भारत की पहली महिला केंद्रीय मंत्री!। ।
बाहरी कड़ियाँ
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