"शिवाजी का राज्याभिषेक": अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें
('सन 1674 तक शिवाजी ने उन सारे प्रदेशों पर अधिकार कर लि...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
No edit summary
 
(इसी सदस्य द्वारा किए गए बीच के 3 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
{{शिवाजी विषय सूची}}
{{सूचना बक्सा ऐतिहासिक शासक
|चित्र=Shivaji-1.jpg
|चित्र का नाम=शिवाजी
|पूरा नाम=शिवाजी राजे भोंसले
|अन्य नाम=
|जन्म=[[19 फ़रवरी]], 1630 ई.
|जन्म भूमि=[[शिवनेरी]], [[महाराष्ट्र]]
|मृत्यु तिथि=[[3 अप्रैल]], 1680 ई.
|मृत्यु स्थान=[[रायगढ़ महाराष्ट्र|रायगढ़]]
|पिता/माता=[[शाहजी भोंसले]], [[जीजाबाई]]
||पति/पत्नी=साइबाईं निम्बालकर
|संतान=[[सम्भाजी]]
|उपाधि=छत्रपति
|शासन काल=1642 - 1680 ई.
|शासन अवधि=38 वर्ष
|धार्मिक मान्यता=
|राज्याभिषेक=[[6 जून]], 1674 ई.
|युद्ध=
|प्रसिद्धि=
|निर्माण=
|सुधार-परिवर्तन=
|राजधानी=
|पूर्वाधिकारी=[[शाहजी भोंसले]]
|उत्तराधिकारी=[[सम्भाजी]]
|राजघराना=[[मराठा]]
|वंश=भोंसले
|स्मारक=
|मक़बरा=
|संबंधित लेख=[[महाराष्ट्र]], [[मराठा]], [[मराठा साम्राज्य]], [[ताना जी]], [[रायगढ़ महाराष्ट्र|रायगढ़]], [[समर्थ रामदास|समर्थ गुरु रामदास]], [[दादोजी कोंडदेव]], [[राजाराम शिवाजी|राजाराम]], [[ताराबाई]]।
|शीर्षक 1=
|पाठ 1=
|शीर्षक 2=
|पाठ 2=
|अन्य जानकारी=
|बाहरी कड़ियाँ=
|अद्यतन=
}}
सन 1674 तक [[शिवाजी]] ने उन सारे प्रदेशों पर अधिकार कर लिया था, जो [[पुरन्दर की संधि]] के अन्तर्गत उन्हें [[मुग़ल|मुग़लों]] को देने पड़े थे। पश्चिमी [[महाराष्ट्र]] में स्वतंत्र [[हिन्दू]] राष्ट्र की स्थापना के बाद शिवाजी ने अपना राज्याभिषेक करना चाहा, परन्तु [[ब्राह्मण|ब्राह्मणों]] ने उनका घोर विरोध किया।
सन 1674 तक [[शिवाजी]] ने उन सारे प्रदेशों पर अधिकार कर लिया था, जो [[पुरन्दर की संधि]] के अन्तर्गत उन्हें [[मुग़ल|मुग़लों]] को देने पड़े थे। पश्चिमी [[महाराष्ट्र]] में स्वतंत्र [[हिन्दू]] राष्ट्र की स्थापना के बाद शिवाजी ने अपना राज्याभिषेक करना चाहा, परन्तु [[ब्राह्मण|ब्राह्मणों]] ने उनका घोर विरोध किया।
 
==बालाजी आवजी का योगदान==
शिवाजी के निजी सचिव बालाजी आव जी ने इसे एक चुनौती के रूप में लिया और उन्होंने ने [[काशी]] में गंगाभ नामक एक ब्राह्मण के पास तीन दूतों को भेजा, किन्तु गंगाभ ने प्रस्ताव ठुकरा दिया, क्योंकि शिवाजी [[क्षत्रिय]] नहीं थे। उसने कहा कि क्षत्रियता का प्रमाण लाओ तभी वह राज्याभिषेक करेगा। बालाजी आव जी ने शिवाजी का सम्बन्ध [[मेवाड़]] के [[सिसोदिया वंश]] से समबंद्ध के प्रमाण भेजे, जिससे संतुष्ट होकर वह [[रायगढ़ महाराष्ट्र|रायगढ़]] आया ओर उसने राज्याभिषेक किया। राज्याभिषेक के बाद भी [[पूना]] के ब्राह्मणों ने शिवाजी को राजा मानने से मना कर दिया। विवश होकर शिवाजी को '[[अष्टप्रधान|अष्टप्रधान मंडल]]' की स्थापना करनी पड़ी।
शिवाजी के निजी सचिव बालाजी आवजी ने इसे एक चुनौती के रूप में लिया और उन्होंने [[काशी]] में गंगाभ नामक एक ब्राह्मण के पास तीन दूतों को भेजा, किन्तु गंगाभ ने प्रस्ताव ठुकरा दिया, क्योंकि शिवाजी [[क्षत्रिय]] नहीं थे। उसने कहा कि क्षत्रियता का प्रमाण लाओ तभी वह राज्याभिषेक करेगा। बालाजी आव जी ने शिवाजी का सम्बन्ध [[मेवाड़]] के [[सिसोदिया वंश]] से समबंद्ध के प्रमाण भेजे, जिससे संतुष्ट होकर वह [[रायगढ़ महाराष्ट्र|रायगढ़]] आया ओर उसने राज्याभिषेक किया। राज्याभिषेक के बाद भी [[पूना]] के ब्राह्मणों ने शिवाजी को राजा मानने से मना कर दिया। विवश होकर शिवाजी को '[[अष्टप्रधान|अष्टप्रधान मंडल]]' की स्थापना करनी पड़ी।
 
=='छत्रपति' की उपाधि==
विभिन्न राज्यों के दूतों, प्रतिनिधियों के अलावा विदेशी व्यापारियों को भी इस समारोह में आमंत्रित किया गया। शिवाजी ने छत्रपति की उपाधि ग्रहण की। [[काशी]] के पण्डित विशेश्वर जी भट्ट को इसमें विशेष रूप से आमंत्रित किया गया था, पर उनके राज्याभिषेक के 12 दिन बाद ही उनकी माता का देहांत हो गया। इस कारण से [[4 अक्टूबर]], 1674 ई. को दूसरी बार उनका राज्याभिषेक हुआ। दो बार हुए इस समारोह में लगभग 50 लाख रुपये खर्च हुए। इस समारोह में [[हिन्दू]] स्वराज की स्थापना का उद्घोष किया गया था। [[विजयनगर साम्राज्य|विजयनगर]] के पतन के बाद दक्षिण में यह पहला हिन्दू साम्राज्य था। एक स्वतंत्र शासक की तरह उन्होंने अपने नाम का सिक्का चलवाया। इसके बाद [[बीजापुर]] के सुल्तान ने [[कोंकण]] की विजय के लिए अपने दो सेनाधीशों को [[शिवाजी]] के विरुद्ध भेजा, पर वे असफल रहे।
विभिन्न राज्यों के दूतों, प्रतिनिधियों के अलावा विदेशी व्यापारियों को भी इस समारोह में आमंत्रित किया गया। शिवाजी ने छत्रपति की उपाधि ग्रहण की। [[काशी]] के पण्डित विशेश्वर जी भट्ट को इसमें विशेष रूप से आमंत्रित किया गया था, पर उनके राज्याभिषेक के 12 दिन बाद ही उनकी माता का देहांत हो गया। इस कारण से [[4 अक्टूबर]], 1674 ई. को दूसरी बार उनका राज्याभिषेक हुआ। दो बार हुए इस समारोह में लगभग 50 लाख रुपये खर्च हुए। इस समारोह में [[हिन्दू]] स्वराज की स्थापना का उद्घोष किया गया था। [[विजयनगर साम्राज्य|विजयनगर]] के पतन के बाद दक्षिण में यह पहला हिन्दू साम्राज्य था। एक स्वतंत्र शासक की तरह उन्होंने अपने नाम का सिक्का चलवाया। इसके बाद [[बीजापुर]] के सुल्तान ने [[कोंकण]] की विजय के लिए अपने दो सेनाधीशों को [[शिवाजी]] के विरुद्ध भेजा, पर वे असफल रहे।
 
{|style="width:100%"
 
|-
|
|}
{{लेख क्रम2 |पिछला=शिवाजी की आगरा यात्रा|पिछला शीर्षक=शिवाजी की आगरा यात्रा|अगला शीर्षक=शिवाजी की राजनीतिक स्थिति|अगला=शिवाजी की राजनीतिक स्थिति}}
{{लेख क्रम2 |पिछला=शिवाजी की आगरा यात्रा|पिछला शीर्षक=शिवाजी की आगरा यात्रा|अगला शीर्षक=शिवाजी की राजनीतिक स्थिति|अगला=शिवाजी की राजनीतिक स्थिति}}


पंक्ति 16: पंक्ति 56:
*[http://www.chhatrapatishivajimaharaj.com Chhatrapati Shivaji Maharaj]
*[http://www.chhatrapatishivajimaharaj.com Chhatrapati Shivaji Maharaj]
==संबंधित लेख==
==संबंधित लेख==
{{मराठा साम्राज्य}}{{शिवाजी}}
{{शिवाजी}}{{मराठा साम्राज्य}}
[[Category:मराठा साम्राज्य]][[Category:जाट-मराठा काल]]
[[Category:मराठा साम्राज्य]][[Category:जाट-मराठा काल]]
[[Category:प्रसिद्ध व्यक्तित्व]][[Category:इतिहास कोश]][[Category:प्रसिद्ध व्यक्तित्व कोश]][[Category:चरित कोश]]
[[Category:प्रसिद्ध व्यक्तित्व]][[Category:इतिहास कोश]][[Category:प्रसिद्ध व्यक्तित्व कोश]][[Category:चरित कोश]]

13:12, 16 सितम्बर 2016 के समय का अवतरण

शिवाजी विषय सूची
शिवाजी का राज्याभिषेक
शिवाजी
शिवाजी
पूरा नाम शिवाजी राजे भोंसले
जन्म 19 फ़रवरी, 1630 ई.
जन्म भूमि शिवनेरी, महाराष्ट्र
मृत्यु तिथि 3 अप्रैल, 1680 ई.
मृत्यु स्थान रायगढ़
पिता/माता शाहजी भोंसले, जीजाबाई
पति/पत्नी साइबाईं निम्बालकर
संतान सम्भाजी
उपाधि छत्रपति
शासन काल 1642 - 1680 ई.
शा. अवधि 38 वर्ष
राज्याभिषेक 6 जून, 1674 ई.
पूर्वाधिकारी शाहजी भोंसले
उत्तराधिकारी सम्भाजी
राजघराना मराठा
वंश भोंसले
संबंधित लेख महाराष्ट्र, मराठा, मराठा साम्राज्य, ताना जी, रायगढ़, समर्थ गुरु रामदास, दादोजी कोंडदेव, राजाराम, ताराबाई

सन 1674 तक शिवाजी ने उन सारे प्रदेशों पर अधिकार कर लिया था, जो पुरन्दर की संधि के अन्तर्गत उन्हें मुग़लों को देने पड़े थे। पश्चिमी महाराष्ट्र में स्वतंत्र हिन्दू राष्ट्र की स्थापना के बाद शिवाजी ने अपना राज्याभिषेक करना चाहा, परन्तु ब्राह्मणों ने उनका घोर विरोध किया।

बालाजी आवजी का योगदान

शिवाजी के निजी सचिव बालाजी आवजी ने इसे एक चुनौती के रूप में लिया और उन्होंने काशी में गंगाभ नामक एक ब्राह्मण के पास तीन दूतों को भेजा, किन्तु गंगाभ ने प्रस्ताव ठुकरा दिया, क्योंकि शिवाजी क्षत्रिय नहीं थे। उसने कहा कि क्षत्रियता का प्रमाण लाओ तभी वह राज्याभिषेक करेगा। बालाजी आव जी ने शिवाजी का सम्बन्ध मेवाड़ के सिसोदिया वंश से समबंद्ध के प्रमाण भेजे, जिससे संतुष्ट होकर वह रायगढ़ आया ओर उसने राज्याभिषेक किया। राज्याभिषेक के बाद भी पूना के ब्राह्मणों ने शिवाजी को राजा मानने से मना कर दिया। विवश होकर शिवाजी को 'अष्टप्रधान मंडल' की स्थापना करनी पड़ी।

'छत्रपति' की उपाधि

विभिन्न राज्यों के दूतों, प्रतिनिधियों के अलावा विदेशी व्यापारियों को भी इस समारोह में आमंत्रित किया गया। शिवाजी ने छत्रपति की उपाधि ग्रहण की। काशी के पण्डित विशेश्वर जी भट्ट को इसमें विशेष रूप से आमंत्रित किया गया था, पर उनके राज्याभिषेक के 12 दिन बाद ही उनकी माता का देहांत हो गया। इस कारण से 4 अक्टूबर, 1674 ई. को दूसरी बार उनका राज्याभिषेक हुआ। दो बार हुए इस समारोह में लगभग 50 लाख रुपये खर्च हुए। इस समारोह में हिन्दू स्वराज की स्थापना का उद्घोष किया गया था। विजयनगर के पतन के बाद दक्षिण में यह पहला हिन्दू साम्राज्य था। एक स्वतंत्र शासक की तरह उन्होंने अपने नाम का सिक्का चलवाया। इसके बाद बीजापुर के सुल्तान ने कोंकण की विजय के लिए अपने दो सेनाधीशों को शिवाजी के विरुद्ध भेजा, पर वे असफल रहे।


पीछे जाएँ
पीछे जाएँ
शिवाजी का राज्याभिषेक
आगे जाएँ
आगे जाएँ


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख