"शिवाजी द्वारा दुर्गों पर नियंत्रण": अवतरणों में अंतर
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{{शिवाजी विषय सूची}} | |||
{{सूचना बक्सा ऐतिहासिक शासक | |||
|चित्र=Shivaji-1.jpg | |||
|चित्र का नाम=शिवाजी | |||
|पूरा नाम=शिवाजी राजे भोंसले | |||
|अन्य नाम= | |||
|जन्म=[[19 फ़रवरी]], 1630 ई. | |||
|जन्म भूमि=[[शिवनेरी]], [[महाराष्ट्र]] | |||
|मृत्यु तिथि=[[3 अप्रैल]], 1680 ई. | |||
|मृत्यु स्थान=[[रायगढ़ महाराष्ट्र|रायगढ़]] | |||
|पिता/माता=[[शाहजी भोंसले]], [[जीजाबाई]] | |||
||पति/पत्नी=साइबाईं निम्बालकर | |||
|संतान=[[सम्भाजी]] | |||
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|शासन काल=1642 - 1680 ई. | |||
|शासन अवधि=38 वर्ष | |||
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|राज्याभिषेक=[[6 जून]], 1674 ई. | |||
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|प्रसिद्धि= | |||
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[[शिवाजी]] ने कई दुर्गों पर अधिकार किया था, जिनमें से एक था [[सिंहगढ़ दुर्ग]], जिसे जीतने के लिए उन्होंने ताना जी को भेजा था। और वे वहाँ से विजयी हुए। ताना जी शिवाजी के बहुत विश्वासपात्र सेनापति थे, जिन्होंने सिंहगढ़ की लड़ाई में वीरगति पाई थी। ताना जी के पास बहुत अच्छी तरह से सधाई हुई गोह थी, जिसका नाम यशवन्ती था। शिवाजी ने [[ताना जी]] की मृत्यु पर कहा था- <blockquote>'''गढ़ आला पण सिंह गेला''' (गढ़ तो हमने जीत लिया पर सिंह हमें छोड़ कर चला गया)।</blockquote> | [[शिवाजी]] ने कई दुर्गों पर अधिकार किया था, जिनमें से एक था [[सिंहगढ़ दुर्ग]], जिसे जीतने के लिए उन्होंने ताना जी को भेजा था। और वे वहाँ से विजयी हुए। ताना जी शिवाजी के बहुत विश्वासपात्र सेनापति थे, जिन्होंने सिंहगढ़ की लड़ाई में वीरगति पाई थी। ताना जी के पास बहुत अच्छी तरह से सधाई हुई गोह थी, जिसका नाम यशवन्ती था। शिवाजी ने [[ताना जी]] की मृत्यु पर कहा था- <blockquote>'''गढ़ आला पण सिंह गेला''' (गढ़ तो हमने जीत लिया पर सिंह हमें छोड़ कर चला गया)।</blockquote> | ||
==राज्य विस्तार की नीति== | |||
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[[बीजापुर]] के सुल्तान की राज्य सीमाओं के अंतर्गत [[रायगढ़ महाराष्ट्र|रायगढ़]] (1646 ई.) में [[चाकन]], [[सिंहगढ़ दुर्ग|सिंहगढ़]] और [[पुरन्दर क़िला|पुरन्दर]] सरीखे [[दुर्ग]] भी शीघ्र शिवाजी के अधिकारों में आ गये। 1655 ई. तक शिवाजी ने [[कोंकण]] में कल्याण और जाबली के दुर्ग पर भी अधिकार कर लिया। उन्होंने जाबली के राजा चंद्रदेव का बलपूर्वक वध करवा दिया। शिवाजी की राज्य विस्तार की नीति से क्रुद्ध होकर बीजापुर के सुल्तान ने 1659 ई. में [[अफ़ज़ल ख़ाँ]] नामक अपने एक वरिष्ठ सेनानायक को विशाल सैन्य बल सहित शिवाजी का दमन करने के लिए भेजा था। दोनों की भेंट के अवसर पर अफ़ज़ल ख़ाँ ने शिवाजी को दबोच कर मार डालने का प्रयत्न किया। परन्तु वे इसके प्रति पहले से ही सजग थे। उन्होंने अपने गुप्त शस्त्र बघनखा का प्रयोग करके मुसलमान सेनानी का पेट फाड़ डाला, जिससे उसकी तत्काल मृत्यु हो गई। तदुपरान्त [[शिवाजी]] ने एक विकट युद्ध में बीजापुर की सेनाओं को परास्त कर दिया। इसके बाद बीजापुर के सुल्तान ने शिवाजी का सामना करने का साहस नहीं किया। | [[बीजापुर]] के सुल्तान की राज्य सीमाओं के अंतर्गत [[रायगढ़ महाराष्ट्र|रायगढ़]] (1646 ई.) में [[चाकन]], [[सिंहगढ़ दुर्ग|सिंहगढ़]] और [[पुरन्दर क़िला|पुरन्दर]] सरीखे [[दुर्ग]] भी शीघ्र शिवाजी के अधिकारों में आ गये। 1655 ई. तक शिवाजी ने [[कोंकण]] में कल्याण और जाबली के दुर्ग पर भी अधिकार कर लिया। उन्होंने जाबली के राजा चंद्रदेव का बलपूर्वक वध करवा दिया। शिवाजी की राज्य विस्तार की नीति से क्रुद्ध होकर बीजापुर के सुल्तान ने 1659 ई. में [[अफ़ज़ल ख़ाँ]] नामक अपने एक वरिष्ठ सेनानायक को विशाल सैन्य बल सहित शिवाजी का दमन करने के लिए भेजा था। दोनों की भेंट के अवसर पर अफ़ज़ल ख़ाँ ने शिवाजी को दबोच कर मार डालने का प्रयत्न किया। परन्तु वे इसके प्रति पहले से ही सजग थे। उन्होंने अपने गुप्त शस्त्र बघनखा का प्रयोग करके मुसलमान सेनानी का पेट फाड़ डाला, जिससे उसकी तत्काल मृत्यु हो गई। तदुपरान्त [[शिवाजी]] ने एक विकट युद्ध में बीजापुर की सेनाओं को परास्त कर दिया। इसके बाद बीजापुर के सुल्तान ने शिवाजी का सामना करने का साहस नहीं किया। | ||
अब उन्हें एक और प्रबल शत्रु [[मुग़ल]] सम्राट [[औरंगज़ेब]] का सामना करना पड़ा। 1660 ई. में औरंगजेब ने अपने मामा [[शाइस्ता ख़ाँ]] नामक सेनाध्यक्ष शिवाजी के विरुद्ध भेजा। शाइस्ता ख़ाँ ने शिवाजी के कुछ दुर्गों पर अधिकार करके उनके केन्द्र-स्थल [[पूना]] पर भी अधिकार कर लिया। किन्तु शीघ्र ही शिवाजी ने अचानक रात्रि में शाइस्ता ख़ाँ पर आक्रमण कर दिया, जिससे उसको अपना एक पुत्र अपने हाथ की तीन अँगुलियाँ गँवाकर अपने प्राण बचाने पड़े। शाइस्ता ख़ाँ को वापस बुला लिया गया। फिर भी औरंगज़ेब ने शिवाजी के विरुद्ध नये सेनाध्यक्षों की संरक्षा में नवीन सैन्यदल भेजकर युद्ध जारी रखा। शिवाजी ने 1664 ई. में मुग़लों के अधीनस्थ [[सूरत]] को लूट लिया, किन्तु मुग़ल सेनाध्यक्ष मिर्जा राजा जयसिंह ने उनके अधिकांश दुर्गों पर अधिकार कर लिया, जिससे शिवाजी को 1665 ई. में [[पुरन्दर की संधि]] करनी पड़ी। उसके अनुसार उन्होंने केवल 12 दुर्ग अपने अधिकार में रखकर 23 दुर्ग मुग़लों को दे दिये और राजा जयसिंह द्वारा अपनी सुरक्षा के प्रति आश्वस्त होकर [[आगरा]] में मुग़ल दरबार में उपस्थित होने के लिए प्रस्थान किया। | अब उन्हें एक और प्रबल शत्रु [[मुग़ल]] सम्राट [[औरंगज़ेब]] का सामना करना पड़ा। 1660 ई. में औरंगजेब ने अपने मामा [[शाइस्ता ख़ाँ]] नामक सेनाध्यक्ष शिवाजी के विरुद्ध भेजा। शाइस्ता ख़ाँ ने शिवाजी के कुछ दुर्गों पर अधिकार करके उनके केन्द्र-स्थल [[पूना]] पर भी अधिकार कर लिया। किन्तु शीघ्र ही शिवाजी ने अचानक रात्रि में शाइस्ता ख़ाँ पर आक्रमण कर दिया, जिससे उसको अपना एक पुत्र अपने हाथ की तीन अँगुलियाँ गँवाकर अपने प्राण बचाने पड़े। शाइस्ता ख़ाँ को वापस बुला लिया गया। फिर भी औरंगज़ेब ने शिवाजी के विरुद्ध नये सेनाध्यक्षों की संरक्षा में नवीन सैन्यदल भेजकर युद्ध जारी रखा। शिवाजी ने 1664 ई. में मुग़लों के अधीनस्थ [[सूरत]] को लूट लिया, किन्तु मुग़ल सेनाध्यक्ष मिर्जा राजा जयसिंह ने उनके अधिकांश दुर्गों पर अधिकार कर लिया, जिससे शिवाजी को 1665 ई. में [[पुरन्दर की संधि]] करनी पड़ी। उसके अनुसार उन्होंने केवल 12 दुर्ग अपने अधिकार में रखकर 23 दुर्ग मुग़लों को दे दिये और राजा जयसिंह द्वारा अपनी सुरक्षा के प्रति आश्वस्त होकर [[आगरा]] में मुग़ल दरबार में उपस्थित होने के लिए प्रस्थान किया। | ||
==सेना का पुनर्गठन== | |||
[[चित्र:Shivaji-Maharaj.jpg|thumb|250px|left|[[शिवाजी|शिवाजी महाराज]] का सिक्का]] | |||
शिवाजी नहीं हारे और अपनी बीमारी का बहाना बनाया। उन्होंने मिठाई के बड़े-बड़े टोकरे ग़रीबों में बाँटने के लिए भिजवाने शुरू किए। [[17 अगस्त]], 1666 ई. को वह अपने पुत्र के साथ टोकरे में बैठकर पहरेदारों के सामने से छिप कर निकल गए। उनका बच निकलना, जो शायद उनके नाटकीय जीवन का सबसे रोमांचक कारनामा था, [[भारतीय इतिहास]] की दिशा बदलने में निर्णायक साबित हुआ। उनके अनुगामियों ने उनका अपने नेता के रूप में स्वागत किया और दो वर्ष के समय में उन्होंने न सिर्फ़ अपना पुराना क्षेत्र हासिल कर लिया, बल्कि उसका विस्तार भी किया। वह मुग़ल ज़िलों से धन वसूलते थे और उनकी समृद्ध मंडियों को भी लूटते थे। उन्होंने अपनी सेना का पुनर्गठन किया और प्रजा की भलाई के लिए अपेक्षित सुधार किए। अब तक [[भारत]] में पाँव जमा चुके [[पुर्तग़ाली]] और [[अंग्रेज़]] व्यापारियों से सीख लेकर उन्होंने नौसेना का गठन शुरू किया। इस प्रकार [[आधुनिक भारत]] में वह पहले शासक थे, जिन्होंने व्यापार और सुरक्षा के लिए नौसेना की आवश्यकता के महत्त्व को स्वीकार किया। [[शिवाजी]] के उत्कर्ष से क्षुब्ध होकर [[औरंगज़ेब]] ने [[हिन्दू|हिन्दुओं]] पर अत्याचार करना शुरू कर दिया, उन पर कर लगाना, ज़बरदस्ती धर्म परिवर्तन कराए और मंदिरों को गिरा कर उनकी जगह पर मस्जिदें बनवाई। | शिवाजी नहीं हारे और अपनी बीमारी का बहाना बनाया। उन्होंने मिठाई के बड़े-बड़े टोकरे ग़रीबों में बाँटने के लिए भिजवाने शुरू किए। [[17 अगस्त]], 1666 ई. को वह अपने पुत्र के साथ टोकरे में बैठकर पहरेदारों के सामने से छिप कर निकल गए। उनका बच निकलना, जो शायद उनके नाटकीय जीवन का सबसे रोमांचक कारनामा था, [[भारतीय इतिहास]] की दिशा बदलने में निर्णायक साबित हुआ। उनके अनुगामियों ने उनका अपने नेता के रूप में स्वागत किया और दो वर्ष के समय में उन्होंने न सिर्फ़ अपना पुराना क्षेत्र हासिल कर लिया, बल्कि उसका विस्तार भी किया। वह मुग़ल ज़िलों से धन वसूलते थे और उनकी समृद्ध मंडियों को भी लूटते थे। उन्होंने अपनी सेना का पुनर्गठन किया और प्रजा की भलाई के लिए अपेक्षित सुधार किए। अब तक [[भारत]] में पाँव जमा चुके [[पुर्तग़ाली]] और [[अंग्रेज़]] व्यापारियों से सीख लेकर उन्होंने नौसेना का गठन शुरू किया। इस प्रकार [[आधुनिक भारत]] में वह पहले शासक थे, जिन्होंने व्यापार और सुरक्षा के लिए नौसेना की आवश्यकता के महत्त्व को स्वीकार किया। [[शिवाजी]] के उत्कर्ष से क्षुब्ध होकर [[औरंगज़ेब]] ने [[हिन्दू|हिन्दुओं]] पर अत्याचार करना शुरू कर दिया, उन पर कर लगाना, ज़बरदस्ती धर्म परिवर्तन कराए और मंदिरों को गिरा कर उनकी जगह पर मस्जिदें बनवाई। | ||
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14:05, 16 सितम्बर 2016 के समय का अवतरण
शिवाजी द्वारा दुर्गों पर नियंत्रण
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पूरा नाम | शिवाजी राजे भोंसले |
जन्म | 19 फ़रवरी, 1630 ई. |
जन्म भूमि | शिवनेरी, महाराष्ट्र |
मृत्यु तिथि | 3 अप्रैल, 1680 ई. |
मृत्यु स्थान | रायगढ़ |
पिता/माता | शाहजी भोंसले, जीजाबाई |
पति/पत्नी | साइबाईं निम्बालकर |
संतान | सम्भाजी |
उपाधि | छत्रपति |
शासन काल | 1642 - 1680 ई. |
शा. अवधि | 38 वर्ष |
राज्याभिषेक | 6 जून, 1674 ई. |
पूर्वाधिकारी | शाहजी भोंसले |
उत्तराधिकारी | सम्भाजी |
राजघराना | मराठा |
वंश | भोंसले |
संबंधित लेख | महाराष्ट्र, मराठा, मराठा साम्राज्य, ताना जी, रायगढ़, समर्थ गुरु रामदास, दादोजी कोंडदेव, राजाराम, ताराबाई। |
शिवाजी ने कई दुर्गों पर अधिकार किया था, जिनमें से एक था सिंहगढ़ दुर्ग, जिसे जीतने के लिए उन्होंने ताना जी को भेजा था। और वे वहाँ से विजयी हुए। ताना जी शिवाजी के बहुत विश्वासपात्र सेनापति थे, जिन्होंने सिंहगढ़ की लड़ाई में वीरगति पाई थी। ताना जी के पास बहुत अच्छी तरह से सधाई हुई गोह थी, जिसका नाम यशवन्ती था। शिवाजी ने ताना जी की मृत्यु पर कहा था-
गढ़ आला पण सिंह गेला (गढ़ तो हमने जीत लिया पर सिंह हमें छोड़ कर चला गया)।
राज्य विस्तार की नीति
बीजापुर के सुल्तान की राज्य सीमाओं के अंतर्गत रायगढ़ (1646 ई.) में चाकन, सिंहगढ़ और पुरन्दर सरीखे दुर्ग भी शीघ्र शिवाजी के अधिकारों में आ गये। 1655 ई. तक शिवाजी ने कोंकण में कल्याण और जाबली के दुर्ग पर भी अधिकार कर लिया। उन्होंने जाबली के राजा चंद्रदेव का बलपूर्वक वध करवा दिया। शिवाजी की राज्य विस्तार की नीति से क्रुद्ध होकर बीजापुर के सुल्तान ने 1659 ई. में अफ़ज़ल ख़ाँ नामक अपने एक वरिष्ठ सेनानायक को विशाल सैन्य बल सहित शिवाजी का दमन करने के लिए भेजा था। दोनों की भेंट के अवसर पर अफ़ज़ल ख़ाँ ने शिवाजी को दबोच कर मार डालने का प्रयत्न किया। परन्तु वे इसके प्रति पहले से ही सजग थे। उन्होंने अपने गुप्त शस्त्र बघनखा का प्रयोग करके मुसलमान सेनानी का पेट फाड़ डाला, जिससे उसकी तत्काल मृत्यु हो गई। तदुपरान्त शिवाजी ने एक विकट युद्ध में बीजापुर की सेनाओं को परास्त कर दिया। इसके बाद बीजापुर के सुल्तान ने शिवाजी का सामना करने का साहस नहीं किया।
अब उन्हें एक और प्रबल शत्रु मुग़ल सम्राट औरंगज़ेब का सामना करना पड़ा। 1660 ई. में औरंगजेब ने अपने मामा शाइस्ता ख़ाँ नामक सेनाध्यक्ष शिवाजी के विरुद्ध भेजा। शाइस्ता ख़ाँ ने शिवाजी के कुछ दुर्गों पर अधिकार करके उनके केन्द्र-स्थल पूना पर भी अधिकार कर लिया। किन्तु शीघ्र ही शिवाजी ने अचानक रात्रि में शाइस्ता ख़ाँ पर आक्रमण कर दिया, जिससे उसको अपना एक पुत्र अपने हाथ की तीन अँगुलियाँ गँवाकर अपने प्राण बचाने पड़े। शाइस्ता ख़ाँ को वापस बुला लिया गया। फिर भी औरंगज़ेब ने शिवाजी के विरुद्ध नये सेनाध्यक्षों की संरक्षा में नवीन सैन्यदल भेजकर युद्ध जारी रखा। शिवाजी ने 1664 ई. में मुग़लों के अधीनस्थ सूरत को लूट लिया, किन्तु मुग़ल सेनाध्यक्ष मिर्जा राजा जयसिंह ने उनके अधिकांश दुर्गों पर अधिकार कर लिया, जिससे शिवाजी को 1665 ई. में पुरन्दर की संधि करनी पड़ी। उसके अनुसार उन्होंने केवल 12 दुर्ग अपने अधिकार में रखकर 23 दुर्ग मुग़लों को दे दिये और राजा जयसिंह द्वारा अपनी सुरक्षा के प्रति आश्वस्त होकर आगरा में मुग़ल दरबार में उपस्थित होने के लिए प्रस्थान किया।
सेना का पुनर्गठन
शिवाजी नहीं हारे और अपनी बीमारी का बहाना बनाया। उन्होंने मिठाई के बड़े-बड़े टोकरे ग़रीबों में बाँटने के लिए भिजवाने शुरू किए। 17 अगस्त, 1666 ई. को वह अपने पुत्र के साथ टोकरे में बैठकर पहरेदारों के सामने से छिप कर निकल गए। उनका बच निकलना, जो शायद उनके नाटकीय जीवन का सबसे रोमांचक कारनामा था, भारतीय इतिहास की दिशा बदलने में निर्णायक साबित हुआ। उनके अनुगामियों ने उनका अपने नेता के रूप में स्वागत किया और दो वर्ष के समय में उन्होंने न सिर्फ़ अपना पुराना क्षेत्र हासिल कर लिया, बल्कि उसका विस्तार भी किया। वह मुग़ल ज़िलों से धन वसूलते थे और उनकी समृद्ध मंडियों को भी लूटते थे। उन्होंने अपनी सेना का पुनर्गठन किया और प्रजा की भलाई के लिए अपेक्षित सुधार किए। अब तक भारत में पाँव जमा चुके पुर्तग़ाली और अंग्रेज़ व्यापारियों से सीख लेकर उन्होंने नौसेना का गठन शुरू किया। इस प्रकार आधुनिक भारत में वह पहले शासक थे, जिन्होंने व्यापार और सुरक्षा के लिए नौसेना की आवश्यकता के महत्त्व को स्वीकार किया। शिवाजी के उत्कर्ष से क्षुब्ध होकर औरंगज़ेब ने हिन्दुओं पर अत्याचार करना शुरू कर दिया, उन पर कर लगाना, ज़बरदस्ती धर्म परिवर्तन कराए और मंदिरों को गिरा कर उनकी जगह पर मस्जिदें बनवाई।
शिवाजी द्वारा दुर्गों पर नियंत्रण |
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