"हिन्दी सामान्य ज्ञान": अवतरणों में अंतर

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{संविधान की [[आठवीं अनुसूची]] में शामिल की गई चार नई भाषाएँ हैं?
|type="()"}
-[[सिन्धी भाषा|सिन्धी]], [[मणिपुरी भाषा|मणिपुरी]], [[नेपाली भाषा|नेपाली]] और [[कोंकणी भाषा|कोंकणी]]
-[[सिन्धी भाषा|सिन्धी]], [[मणिपुरी भाषा|मणिपुरी]], [[बोडो भाषा|बोडो]] और [[डोगरी भाषा|डोगरी]]
-[[संथाली भाषा|संथाली]], [[मैथिली भाषा|मैथिली]], [[सिन्धी भाषा|सिन्धी]] और [[डोगरी भाषा|डोगरी]]
+[[संथाली भाषा|संथाली]], [[मैथिली भाषा|मैथिली]],[[बोडो भाषा|बोडो]] और [[डोगरी भाषा|डोगरी]]
{भारतीय भाषाओं को कितने प्रमुख वर्गों में बाँटा गया है?
|type="()"}
-3
+4
-6
-8
{[[भारत]] में सबसे अधिक बोला जाने वाला भाषायी समूह है?
|type="()"}
+इण्डो-आर्यन
-द्रविड़
-ऑस्ट्रिक
-चीनी-तिब्बती
{[[भारत]] में सबसे कम बोला जाने वाला भाषायी समूह है?
|type="()"}
-इण्डो-आर्यन
-द्रविड़
-ऑस्ट्रिक
+चीनी-तिब्बती
{ऑस्ट्रिक भाषा समूह की भाषाओं को बोलने वालों को कहा जाता है?
|type="()"}
+किरात
-निषाद
-द्रविड़
-इनमें कोई नहीं
{'जो जिण सासण भाषियउ सो मई कहियउ सारु। जो पालइ सइ भाउ करि सो तरि पावइ पारु॥' इस दोहे के रचनाकार का नाम है?
|type="()"}
- स्वयंभू
+ [[देवसेन]]
- पुष्यदन्त
- कनकामर
{चीनी-तिब्बती भाषा समूह की भाषाओं के बोलने वालों को कहा जाता है?
|type="()"}
-किरात
+निषाद
-द्रविड़
-[[आर्य]]
{अपभ्रंश के योग से [[राजस्थानी भाषा]] का जो साहित्यिक रूप बना, उसे कहा जाता है?
|type="()"}
- पिंगल भाषा
+ डिंगल भाषा
- मेवाड़ी भाषा
- बाँगरु भाषा
{'एक नार पिया को भानी। तन वाको सगरा ज्यों पानी।' यह पंक्ति किस भाषा की है?
|type="()"}
+ [[ब्रजभाषा]]
- खड़ीबोली भाषा
- [[अपभ्रंश भाषा]]
- कन्नौजी भाषा
||[[ब्रजभाषा]] मूलत: ब्रजक्षेत्र की बोली है। विक्रम की 13वीं शताब्दी से लेकर 20वीं शताब्दी तक [[भारत]] में साहित्यिक भाषा रहने के कारण [[ब्रज]] की इस जनपदीय बोली ने अपने विकास के साथ भाषा नाम प्राप्त किया और ब्रजभाषा नाम से जानी जाने लगी। शुद्ध रूप में यह आज भी [[मथुरा]], [[आगरा]], [[धौलपुर]] और अलीगढ़ ज़िलों में बोली जाती है। इसे हम केंद्रीय ब्रजभाषा भी कह सकते हैं। आधुनिक ब्रजभाषा 1 करोड़ 23 लाख जनता के द्वारा बोली जाती है और लगभग 38,000 वर्गमील के क्षेत्र में फैली हुई है। {{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:- [[ब्रजभाषा]]
{[[अमीर ख़ुसरो]] ने जिन मुकरियों, पहेलियों और दो सुखनों की रचना की है, उसकी मुख्य भाषा है?
|type="()"}
- दक्खिनी
+ खड़ीबोली
- बुन्देली
- बघेली


{[[देवनागरी लिपि]] को राष्ट्रलिपि के रूप में कब स्वीकार किया गया था?
{[[देवनागरी लिपि]] को राष्ट्रलिपि के रूप में कब स्वीकार किया गया था?
|type="()"}
|type="()"}
+ [[14 सितम्बर]], [[1949]]
+[[14 सितम्बर]], [[1949]]
- [[21 सितम्बर]], 1949
-[[21 सितम्बर]], 1949
- [[23 सितम्बर]], 1949
-[[23 सितम्बर]], 1949
- [[25 सितम्बर]], 1949
-[[25 सितम्बर]], 1949
||'देवनागरी' [[भारत]] में सर्वाधिक प्रचलित [[लिपि]] है, जिसमें [[संस्कृत भाषा|संस्कृत]], [[हिन्दी]] और [[मराठी भाषा|मराठी]] भाषाएँ लिखी जाती हैं। इस शब्द का सबसे पहला उल्लेख 453 ई. में [[जैन]] ग्रंथों में मिलता है। 'नागरी' नाम के संबंध में मतैक्य नहीं है। यह अपने आरंभिक रूप में [[ब्राह्मी लिपि]] के नाम से जानी जाती थी। इसका वर्तमान रूप नवी-दसवीं शताब्दी से मिलने लगता है। [[8 अप्रैल]], [[1900]] ई. को तत्कालीन गवर्नर ने [[फ़ारसी भाषा|फ़ारसी]] के साथ नागरी को भी अदालतों और कचहरियों में समान अधिकार दे दिया गया। सरकार का यह प्रस्ताव हिन्दी के स्वाभिमान के लिए संतोषप्रद नहीं था। इससे हिन्दी को अधिकारपूर्ण सम्मान नहीं दिया गया था, बल्कि [[हिन्दी]] के प्रति दया दिखलाई गई थी। फिर भी इसे इतना श्रेय तो है ही कि कचहरियों में स्थान दिला सका और यह मज़बूत आधार प्रदान किया, जिसके बल पर देवनागरी 20वीं सदी में 'राष्ट्रलिपि' के रूप में उभरकर सामने आ सकी।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[देवनागरी लिपि]]


{'रानी केतकी की कहानी' की [[भाषा]] को कहा जाता है?
{'रानी केतकी की कहानी' की [[भाषा]] को कहा जाता है-
|type="()"}
|type="()"}
- हिन्दुस्तानी
-हिन्दुस्तानी
+ खड़ीबोली
+[[खड़ी बोली]]
- [[उर्दू भाषा|उर्दू]]
-[[उर्दू भाषा|उर्दू]]
- अपभ्रंश
-[[अपभ्रंश भाषा|अपभ्रंश]]
||'खड़ी बोली' नाम को कुछ विद्वान [[ब्रजभाषा]] के सापेक्ष्य मानते हैं और यह प्रतिपादन करते हैं कि [[लल्लू लालजी]] (1803 ई.) से बहुत पूर्व यह नाम ब्रजभाषा की मधुर मिठास की तुलना में उस बोली को दिया गया था, जिससे कालांतर में मानक [[हिन्दी]] और [[उर्दू]] का विकास हुआ। ये विद्वान 'खड़ी' शब्द से 'कर्कशता', 'कटुता', 'खरापन', 'खड़ापन' आदि अर्थ लेते हैं। वास्तव में '[[खड़ी बोली]]' में प्रयुक्त 'खड़ी' शब्द गुणबोधक विशेषण है और किसी [[भाषा]] के नामकरण में गुण-अवगुण-प्रधान दृष्टिकोण अधिकांश: अन्य भाषा-सापेक्ष्य होती है। [[अपभ्रंश]] और उर्दू आदि इसी श्रेणी के नाम हैं, अत: 'खड़ी' शब्द अन्य भाषा सापेक्ष्य अवश्य है, किंतु इसका मूल खड़ी है अथवा खरी? और इसका प्रथम मूल अर्थ क्या है? इसके लिए शब्द के [[इतिहास]] की खोज आवश्यक है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[खड़ी बोली]]


{प्रादेशिक बोलियों के साथ [[ब्रज]] या मध्य देश की भाषा का आश्रय लेकर एक सामान्य साहित्यिक भाषा स्वीकृत हुई, जिसे चारणों ने नाम दिया?
{प्रादेशिक बोलियों के साथ [[ब्रज]] या मध्य देश की [[भाषा]] का आश्रय लेकर एक सामान्य साहित्यिक भाषा स्वीकृत हुई, जिसे चारणों ने नाम दिया-
|type="()"}
|type="()"}
- डिंगल भाषा  
-[[डिंगल|डिंगल भाषा]]
- मेवाड़ी भाषा  
-[[मेवाड़ी बोली|मेवाड़ी भाषा]]
- मारवाड़ी भाषा
-[[मारवाड़ी भाषा]]
+ पिंगल भाषा
+[[पिंगल|पिंगल भाषा]]


{निम्नलिखित में से कौन [[प्रेमचंद]] की एक रचना है?
{निम्नलिखित में से कौन-सी [[प्रेमचंद]] की एक रचना है?
|type="()"}
|type="()"}
+पंच-परमेश्वर  
+[[पंच-परमेश्‍वर -प्रेमचंद|पंच-परमेश्वर]]
-उसने कहा था
-उसने कहा था
-ताई  
-ताई  
-खड़ी बोली  
-खड़ी बोली
||[[चित्र:Premchand.jpg|right|100px|प्रेमचंद]]'मुंशी प्रेमचंद' का वास्तविक नाम '''धनपत राय श्रीवास्तव''' था। वे एक सफल लेखक, देशभक्त नागरिक, कुशल वक्ता, ज़िम्मेदार संपादक और संवेदनशील रचनाकार थे। बीसवीं शती के पूर्वार्द्ध में जब [[हिन्दी]] में काम करने की तकनीकी सुविधाएँ उपलब्ध नहीं थीं, फिर भी इतना काम करने वाला लेखक [[मुंशी प्रेमचन्द]] के अतिरिक्त कोई दूसरा नहीं हुआ था। उन्होंने हिन्दी में शेख़ सादी पर एक छोटी-सी पुस्तक लिखी थी, टॉल्सटॉय की कुछ कहानियों का हिन्दी में [[अनुवाद]] किया और ‘प्रेम-पचीसी’ की कुछ कहानियों का रूपान्तर भी हिन्दी में कर रहे थे। ये कहानियाँ ‘सप्त-सरोज’ शीर्षक से [[हिन्दी]] संसार के सामने सर्वप्रथम सन् [[1917]] में आयी थीं।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[प्रेमचंद]]


{'बाँगरू' बोली का किस बोली से निकट सम्बन्ध है?
{[[वीर रस]] का स्थायी भाव क्या होता है?
|type="()"}
|type="()"}
- कन्नौजी
-रति
- बुन्देली
+उत्साह
- [[ब्रजभाषा]]
-[[हास्य रस|हास्य]]
+खड़ीबोली
-परिहास
||[[श्रृंगार रस|श्रृंगार]] के साथ स्पर्धा करने वाला [[वीर रस]] है। [[श्रृंगार रस|श्रृंगार]], [[रौद्र रस|रौद्र]] तथा [[वीभत्स रस|वीभत्स]] के साथ वीर को भी [[भरत मुनि]] ने मूल रसों में परिगणित किया है। वीर रस से ही [[अदभुत रस]] की उत्पत्ति बतलाई गई है। वीर रस का 'वर्ण' 'स्वर्ण' अथवा 'गौर' तथा [[देवता]] [[इन्द्र]] कहे गये हैं। यह उत्तम प्रकृति वालों से सम्बद्ध है तथा इसका स्थायी भाव ‘उत्साह’ है। [[अभिनवगुप्त]] ने तो उत्साह को [[शान्त रस]] का भी स्थायी माना है। कुछ लोग उत्साह को वीर रस का स्थायी भाव नहीं मानते हैं।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[वीर रस]]
</quiz>
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{{हिन्दी सामान्य ज्ञान}}
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1 देवनागरी लिपि को राष्ट्रलिपि के रूप में कब स्वीकार किया गया था?

14 सितम्बर, 1949
21 सितम्बर, 1949
23 सितम्बर, 1949
25 सितम्बर, 1949

2 'रानी केतकी की कहानी' की भाषा को कहा जाता है-

हिन्दुस्तानी
खड़ी बोली
उर्दू
अपभ्रंश

3 प्रादेशिक बोलियों के साथ ब्रज या मध्य देश की भाषा का आश्रय लेकर एक सामान्य साहित्यिक भाषा स्वीकृत हुई, जिसे चारणों ने नाम दिया-

डिंगल भाषा
मेवाड़ी भाषा
मारवाड़ी भाषा
पिंगल भाषा

4 निम्नलिखित में से कौन-सी प्रेमचंद की एक रचना है?

पंच-परमेश्वर
उसने कहा था
ताई
खड़ी बोली

5 वीर रस का स्थायी भाव क्या होता है?

रति
उत्साह
हास्य
परिहास

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