"यह न रहीम सराहिये -रहीम": अवतरणों में अंतर

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ऐसे प्रेम को कौन सराहेगा, जिसमें लेन-देन का नाता जुड़ा हो। प्रेम क्या कोई खरीद-फरोख्त की चीज है? उसमें तो लगा दिया जाय प्राणों का दांव, परवा नहीं कि हार हो या जीत।
ऐसे प्रेम को कौन सराहेगा, जिसमें लेन-देन का नाता जुड़ा हो। प्रेम क्या कोई ख़रीद-फरोख्त की चीज है? उसमें तो लगा दिया जाय प्राणों का दांव, परवा नहीं कि हार हो या जीत।


{{लेख क्रम3| पिछला=टूटे सुजन मनाइए -रहीम|मुख्य शीर्षक=रहीम के दोहे |अगला=रहिमन मैन-तुरंग चढ़ि -रहीम}}
{{लेख क्रम3| पिछला=टूटे सुजन मनाइए -रहीम|मुख्य शीर्षक=रहीम के दोहे |अगला=रहिमन मैन-तुरंग चढ़ि -रहीम}}

13:21, 15 नवम्बर 2016 के समय का अवतरण

यह न ‘रहीम’ सराहिये, देन-लेन की प्रीति।
प्रानन बाजी राखिये, हार होय कै जीत॥

अर्थ

ऐसे प्रेम को कौन सराहेगा, जिसमें लेन-देन का नाता जुड़ा हो। प्रेम क्या कोई ख़रीद-फरोख्त की चीज है? उसमें तो लगा दिया जाय प्राणों का दांव, परवा नहीं कि हार हो या जीत।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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