"सारंगधर दास": अवतरणों में अंतर
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11:36, 21 जनवरी 2017 के समय का अवतरण
सारंगधर दास
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पूरा नाम | सारंगधर दास |
जन्म | 19 अक्टूबर, 1887 |
जन्म भूमि | धेनकनाल रियासत ब्रिटिश भारत |
मृत्यु | 18 सितंबर, 1957 |
स्मारक | बी.ए. |
नागरिकता | भारतीय |
धर्म | हिन्दू |
आंदोलन | भारत छोड़ो आंदोलन |
शिक्षा | रसायन और कृषि में उच्च डिग्री |
पार्टी | समाजवादी |
अन्य जानकारी | 1948 में वे समाजवादी पार्टी में सम्मिलित हो गए और लोकसभा के लिए चुन कर वहाँ अपने पार्टी के नेता रहे थे। |
अद्यतन | 04:31, 6 जनवरी-2017 (IST) |
सारंगधर दास (अंग्रेज़ी: Sarangadhar Das, जन्म- 19 अक्टूबर, 1887, धेनकनाल रियासत ब्रिटिश भारत; मृत्यु- 18 सितंबर, 1957) स्वतंत्रता सेनानी थे। इन्होंने उड़ीसा में उद्योग स्थापित किया था। सारंगधर दास 'भारत छोड़ो आन्दोलन' में गिरफ्तार हुए थे और 1946 तक जेल में बंद रहे। सारंगधर दास उड़ीसा असेम्बली के सदस्य चुने गए थे। 1948 में वे समाजवादी पार्टी में सम्मिलित हो गए और लोकसभा के सदस्य रहे थे। उन्होंने केंद्र सरकार के कर्मचारियों के संघ की अध्यक्षता भी की।[1]
जन्म एवं शिक्षा
सारंगधर दास का उड़ीसा की देशी रियासत धेनकनाल में 19 अक्टूबर, 1887 को जन्म हुआ था। इनका जीवन शिक्षा, उद्योग और राजनीति तीनों क्षेत्रों में बड़ा संघर्ष पूर्ण था। कटक से बी.ए. पास करने के बाद आगे के अध्ययन के लिए छात्रवृत्ति लेकर सारंगधर दास जापान गए। वे वर्ष भर टोक्यो के टेकनिकल इंस्टीट्यूट में रह कर अमरीका पहुँचे और कैलिफॉर्निया यूनिवर्सिटी से रसायन और कृषि में उच्च डिग्री प्राप्त की। कुछ वर्षों तक अमेरिका और बर्मा की चीनी मिलों में काम करने के बाद सारंगधर दास भारत वापस आ गए।
चीनी मिल की स्थापना
भारत आकर सारंगधर दास ने अपने गाँव हरिकृष्णपुर के निकट एक चीनी मिल की स्थापना की। उस आदिवासी क्षेत्र की उन्नति के लिए यह वरदान सिद्ध हुई। इससे आदिवासियों की आर्थिक हालत सुधरी और उसके बीच सारंगधर दास का प्रभाव भी बढ़ा। उनके बढ़ते प्रभाव से रियासत धेनकलाल का शासक संकित हो उठा।
ब्रिटिश अत्याचारों के ख़िलाफ आवाज़
1928 में जब सारंगधर दास इलाज के लिए कलकत्ता गए थे, रियासत के शासक ने झूठे अभियोग लगाकर उनकी चीनी मिल के गन्ने के खेतों को जब्त कर के नीलाम करा दिया। लौटने पर इस अन्याय की शिकायत जब उन्होंने रियासत के ब्रिटिश पॉलिटिकल एजेंट और बिहार-उड़ीसा के गवर्नर से की तो वहाँ भी कोई सुनवाई नहीं हुई थी। इस पर सारंगधर दास ने जनता को संगठित करके रियासत के अत्याचारों का सामना करने का निश्चय किया।
उन्होंने उड़ीसा राज्य में 'प्रजामंडल' बनाया जिस का पहला सम्मेलन 1931 ई. में पट्टाभि सीतारामय्या की अध्यक्षता में हुआ था। इसके बाद प्रांत की अन्य रियासतों पर भी इसका प्रभाव पड़ा और लोग अपने अधिकारों के लिए संगठित होने लगे। कई जगह खुला संघर्ष हुआ और लोगों को पुलिस की गोलियाँ झेलनी पड़ीं। इस प्रकार सारंगधर दास जिन्होंने उड़ीसा में उद्योग स्थापित करने का काम आरंभ किया था, विदेशी सरकार और उसके समर्थक देशी रजवाड़ों के विरुद्ध स्वतंत्रता संग्राम में सम्मिलित हो गए। 'भारत छोड़ो आन्दोलन' में वे गिरफ्तार हुए और 1946 तक जेल में बंद रहे थे।
राजनैतिक जीवन
जेल से छूटने पर सारंगधर दास उड़ीसा असेम्बली के सदस्य चुने गए। 1948 में वे समाजवादी पार्टी में सम्मिलित हो गए और लोकसभा के लिए चुन कर वहाँ अपने पार्टी के नेता रहे। सारंगधर दास ने केंद्र सरकार के कर्मचारियों के संघ की अध्यक्षता भी की थी।
निधन
18 सितंबर, 1957 को सारंगधर दास का देहांत हो गया।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ भारतीय चरित कोश |लेखक: लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय' |प्रकाशक: शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली |संकलन: भारतकोश पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 916 |
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