"गोपीनाथ पुरोहित": अवतरणों में अंतर
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'''गोपीनाथ पुरोहित''' (जन्म- [[1863]] ई. [[जयपुर]], [[राजस्थान]]) प्रसिद्ध साहित्यकार थे। इन्हें [[संस्कृत|संस्कृत भाषा]] का भी अच्छा ज्ञान था। गोपीनाथ ने 'भर्तृहरि शतकत्रयम्'<ref>1896 ई.</ref> का [[अंग्रेजी]] अनुवाद और [[हिन्दी]] भाषांतर<ref>टिप्पणी और व्याख्या सहित</ref>भी प्रस्तुत की थी। पुरोहित जी का [[युग]] के अनुवादकों में श्रेष्ठ स्थान है। | '''गोपीनाथ पुरोहित''' (जन्म- [[1863]] ई. [[जयपुर]], [[राजस्थान]]) प्रसिद्ध साहित्यकार थे। इन्हें [[संस्कृत|संस्कृत भाषा]] का भी अच्छा ज्ञान था। गोपीनाथ ने 'भर्तृहरि शतकत्रयम्'<ref>1896 ई.</ref> का [[अंग्रेजी]] अनुवाद और [[हिन्दी]] भाषांतर<ref>टिप्पणी और व्याख्या सहित</ref>भी प्रस्तुत की थी। पुरोहित जी का [[युग]] के अनुवादकों में श्रेष्ठ स्थान है। | ||
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गोपीनाथ पुरोहित जन्म 1863 ई.को [[जयपुर]], [[राजस्थान]] में हुआ था। इन्होंने [[भारतेन्दु युग|भारतेन्दु-युग]] में ही अंग्रेज़ी-साहित्य की विश्वप्रसिद्ध कृतियों के अनुवाद की ओर हिन्दी-लेखकों ने ध्यान दिया था। स्वंय [[भारतेंदु हरिश्चंद्र|भारतेंदु]] ने शेक्सपियर के नाटकों का अनुवाद किया था। [[1896]] ई. में [[जयपुर]] के पुरोहित गोपीनाथ एम.ए. एक अच्छे अनुवादक के रूप में सामने आये। | गोपीनाथ पुरोहित जन्म [[1863]] ई. को [[जयपुर]], [[राजस्थान]] में हुआ था। इन्होंने [[भारतेन्दु युग|भारतेन्दु-युग]] में ही अंग्रेज़ी-साहित्य की विश्वप्रसिद्ध कृतियों के अनुवाद की ओर हिन्दी-लेखकों ने ध्यान दिया था। स्वंय [[भारतेंदु हरिश्चंद्र|भारतेंदु]] ने शेक्सपियर के नाटकों का अनुवाद किया था। [[1896]] ई. में [[जयपुर]] के पुरोहित गोपीनाथ एम.ए. एक अच्छे अनुवादक के रूप में सामने आये। | ||
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पुरोहित जी ने शेक्सपियर के तीन [[नाटक|नाटकों]]- 'मरचेष्ट ऑफ़ वेनिस' 'ऐज यू लाइक इट' और 'रोमियों ऐण्ड जूलियट' का अनुवाद क्रमश: 'वेनिस का बैपारी', 'मनभावन'<ref>1896 ई.</ref>और प्रेमलीला <ref>1897 ई.</ref>नाम से किया। इन्होंने पद्याशों में भी गद्य में ही अनूदित किया है। आपने सिसरों के [[निबन्ध]] का 'मित्रता' शीर्षक और 'ग्रेज एलजी' का 'शोकोक्ति' भाषा [[छ्न्द|छ्न्दों]] में अनुवाद किया। 'शोकोक्ति' भाषा में अनुदित है। आपने 'वीरेंद्र'<ref>1897</ref>नामक वीर और श्रृंगार रस- प्रधान उपन्यास की छाया पर लिखा गया है। | पुरोहित जी ने शेक्सपियर के तीन [[नाटक|नाटकों]]- 'मरचेष्ट ऑफ़ वेनिस' 'ऐज यू लाइक इट' और 'रोमियों ऐण्ड जूलियट' का अनुवाद क्रमश: 'वेनिस का बैपारी', 'मनभावन'<ref>1896 ई.</ref>और प्रेमलीला <ref>1897 ई.</ref>नाम से किया। इन्होंने पद्याशों में भी गद्य में ही अनूदित किया है। आपने सिसरों के [[निबन्ध]] का 'मित्रता' शीर्षक और 'ग्रेज एलजी' का 'शोकोक्ति' भाषा [[छ्न्द|छ्न्दों]] में अनुवाद किया। 'शोकोक्ति' भाषा में अनुदित है। आपने 'वीरेंद्र'<ref>1897</ref>नामक वीर और श्रृंगार रस- प्रधान उपन्यास की छाया पर लिखा गया है। | ||
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गोपीनाथ पुरोहित
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जन्म | 1863 ई. |
जन्म भूमि | जयपुर, राजस्थान |
मुख्य रचनाएँ | 'वेनिस का बैपारी', 'मनभावन'[1]और प्रेमलीला[2] |
भाषा | हिन्दी, संस्कृत |
प्रसिद्धि | लेखक |
नागरिकता | भारतीय |
अन्य जानकारी | गोपीनाथ पुरोहित अविकल अनुवाद के पक्ष में थे और कवि के आशय को कवि के ही शब्दों, वाक्यों और मुहावरों में प्रकट करना चाहते थे। |
गोपीनाथ पुरोहित (जन्म- 1863 ई. जयपुर, राजस्थान) प्रसिद्ध साहित्यकार थे। इन्हें संस्कृत भाषा का भी अच्छा ज्ञान था। गोपीनाथ ने 'भर्तृहरि शतकत्रयम्'[3] का अंग्रेजी अनुवाद और हिन्दी भाषांतर[4]भी प्रस्तुत की थी। पुरोहित जी का युग के अनुवादकों में श्रेष्ठ स्थान है।
परिचय
गोपीनाथ पुरोहित जन्म 1863 ई. को जयपुर, राजस्थान में हुआ था। इन्होंने भारतेन्दु-युग में ही अंग्रेज़ी-साहित्य की विश्वप्रसिद्ध कृतियों के अनुवाद की ओर हिन्दी-लेखकों ने ध्यान दिया था। स्वंय भारतेंदु ने शेक्सपियर के नाटकों का अनुवाद किया था। 1896 ई. में जयपुर के पुरोहित गोपीनाथ एम.ए. एक अच्छे अनुवादक के रूप में सामने आये।
रचनाएँ
पुरोहित जी ने शेक्सपियर के तीन नाटकों- 'मरचेष्ट ऑफ़ वेनिस' 'ऐज यू लाइक इट' और 'रोमियों ऐण्ड जूलियट' का अनुवाद क्रमश: 'वेनिस का बैपारी', 'मनभावन'[5]और प्रेमलीला [6]नाम से किया। इन्होंने पद्याशों में भी गद्य में ही अनूदित किया है। आपने सिसरों के निबन्ध का 'मित्रता' शीर्षक और 'ग्रेज एलजी' का 'शोकोक्ति' भाषा छ्न्दों में अनुवाद किया। 'शोकोक्ति' भाषा में अनुदित है। आपने 'वीरेंद्र'[7]नामक वीर और श्रृंगार रस- प्रधान उपन्यास की छाया पर लिखा गया है।
- उपन्यास
इसमें एक ऐतिहासिक उपन्यास की छाया पर लिखा प्रस्तुत किया गया है और भाषा पात्रों के अनुसार कहीं शुद्ध उर्दू और कहीं शुद्ध हिन्दी है। पुरोहित जी को संस्कृत का भी अच्छा ज्ञान था और इन्होंने 'भर्तृहरि शतकत्रयम्' [8] का अंग्रेजी अनुवाद और हिन्दी भाषांतर[9] भी प्रस्तुत किया था। 'सतीचरित-चमत्कार' [10] नामक आपकी एक मौलिक कृति भी प्राप्त होती है।
श्रेष्ठ स्थान
ये अविकल अनुवाद के पक्ष में थे और कवि के आशय को कवि के ही शब्दों, वाक्यों और मुहावरों में प्रकट करना चाहते थे। इस प्रयत्न में कहीं-कहीं आपके अनुवादों में अंग्रेज़ी के मुहावरे ज्यों के त्यों भाषांतरित होकर आ गये हैं। आपकी भाषा परमार्जित और प्रवाहमयी है। इनका युग के अनुवादकों में श्रेष्ठ स्थान है।[11]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
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