"करवीर शक्तिपीठ": अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें
No edit summary
छो (Text replacement - "उत्तरार्द्ध" to "उत्तरार्ध")
 
(3 सदस्यों द्वारा किए गए बीच के 5 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
{{पुनरीक्षण}}
{{बहुविकल्प|बहुविकल्पी शब्द=करवीर |लेख का नाम=करवीर (बहुविकल्पी)}}
{{बहुविकल्प|बहुविकल्पी शब्द=करवीर |लेख का नाम=करवीर (बहुविकल्पी)}}
[[चित्र:Mahalaxmi-Temple-In-Kolhapur.jpg|thumb|250px|महालक्ष्मी मंदिर, [[करवीर]]]]
{{सूचना बक्सा मन्दिर
[[हिन्दू धर्म]] के [[पुराण|पुराणों]] के अनुसार जहां-जहां [[सती]] के अंग के टुकड़े, धारण किए [[वस्त्र]] या [[आभूषण]] गिरे, वहां-वहां शक्तिपीठ अस्तित्व में आया। ये अत्यंत पावन तीर्थ कहलाये। ये तीर्थ पूरे भारतीय उपमहाद्वीप पर फैले हुए हैं। देवी पुराण में [[शक्तिपीठ|51 शक्तिपीठों]] का वर्णन है। करवीर, 51 शक्तिपीठों में से एक शक्तिपीठ है।  
|चित्र=Mahalaxmi-Temple-In-Kolhapur.jpg
|चित्र का नाम=महालक्ष्मी मंदिर, करवीर
|वर्णन=[[महाराष्ट्र]] स्थित 'करवीर शक्तिपीठ' [[भारतवर्ष]] के अज्ञात 108 एवं ज्ञात [[शक्तिपीठ|51 पीठों]] में से एक है। इसका [[हिन्दू धर्म]] में बड़ा ही महत्त्व है।
|स्थान=[[कोल्हापुर]], [[महाराष्ट्र]]
|निर्माता=
|जीर्णोद्धारक=
|निर्माण काल=
|देवी-देवता=देवी 'महिषासुरमर्दनी' तथा भैरव 'क्रोधशिश'।
|वास्तुकला=करवीर में स्थित महालक्ष्मी का यह मंदिर अति प्राचीन है। इसकी वास्तु रचना श्रीयंत्र पर है। यह पाँच शिखरों, तीन मण्डपों से शोभित है। तीन मण्डप हैं- 'गर्भगृह मण्डप', 'मध्य मण्डप', 'गरुड़ मण्डप'।
|भौगोलिक स्थिति=
|संबंधित लेख=[[शक्तिपीठ]], [[सती]]
|शीर्षक 1=पौराणिक मान्यता
|पाठ 1=मान्यतानुसार यह माना जाता है कि इस स्थान पर [[सती|देवी सती]] का 'त्रिनेत्र' गिरा था।
|शीर्षक 2=
|पाठ 2=
|अन्य जानकारी=इस [[शक्तिपीठ]] में सुबह 'काकड़ आरती' से लेकर मध्यरात्रि की शय्या आरती तक अखण्ड रूप से पूजार्चना, शहनाई वादन, [[भजन कीर्तन]], पाठ चलता रहता है।  
|बाहरी कड़ियाँ=
|अद्यतन=
}}


पाँच नदियों के संगम-[[पंचगंगा नदी]] [[तट]] पर स्थित [[कोल्हापुर]] प्राचीन मंदिरों की नगरी है। महालक्ष्मी मंदिर यहाँ का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण मंदिर है, जहाँ त्रिशक्तियों की भी मूर्तियाँ हैं। [[महालक्ष्मी]] के निजमंदिर के शिरोभाग पर [[शिवलिंग]] तथा [[नंदी]] का मंदिर है तथा व्यंकटेश, कात्यायिनी और गौरीशंकर भी देवकोष्ठ में हैं। परिसर में अनेक मूर्तियाँ हैं। प्रांगण में मणिकर्णिका कुण्ड है, जिसके किनारे विश्वेश्वर महादेव का मंदिर है। उल्लेख है कि वर्तमान कोल्हापुर ही [[पुराण]] प्रसिद्ध करवीर क्षेत्र है। ऐसा उल्लेख देवीगीता में मिलता है-  
'''करवीर शक्तिपीठ''' [[शक्तिपीठ|51 शक्तिपीठों]] में से एक है। [[हिन्दू धर्म]] के [[पुराण|पुराणों]] के अनुसार जहां-जहां [[सती]] के अंग के टुकड़े, धारण किए [[वस्त्र]] या [[आभूषण]] गिरे, वहां-वहां शक्तिपीठ अस्तित्व में आये। ये अत्यंत पावन [[तीर्थ स्थान|तीर्थस्थान]] कहलाये। ये तीर्थ पूरे भारतीय उपमहाद्वीप पर फैले हुए हैं। देवीपुराण में [[शक्तिपीठ|51 शक्तिपीठों]] का वर्णन है।
==स्थिति==
यह शक्तिपीठ [[महाराष्ट्र]] के [[कोल्हापुर]] में स्थित है। यहाँ माता सती का 'त्रिनेत्र' गिरा था। यहाँ की शक्ति महिषासुरमर्दनी तथा भैरव क्रोधशिश हैं। यहाँ महालक्ष्मी का निज निवास माना जाता है।
 
पाँच नदियों के संगम-[[पंचगंगा नदी]] [[तट]] पर स्थित कोल्हापुर प्राचीन मंदिरों की नगरी है। महालक्ष्मी मंदिर यहाँ का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण मंदिर है, जहाँ त्रिशक्तियों की भी मूर्तियाँ हैं। [[महालक्ष्मी]] के निज मंदिर के शिरोभाग पर [[शिवलिंग]] तथा [[नंदी]] का मंदिर है तथा व्यंकटेश, कात्यायिनी और गौरीशंकर भी देवकोष्ठ में हैं। परिसर में अनेक मूर्तियाँ हैं। प्रांगण में मणिकर्णिका कुण्ड है, जिसके किनारे विश्वेश्वर महादेव का मंदिर है। उल्लेख है कि वर्तमान कोल्हापुर ही [[पुराण]] प्रसिद्ध करवीर क्षेत्र है। ऐसा उल्लेख देवीगीता में मिलता है-  
:"कोलापुरे महास्थानं यत्र लक्ष्मीः सदा स्थिता।"  
:"कोलापुरे महास्थानं यत्र लक्ष्मीः सदा स्थिता।"  
==पौराणिक संदर्भ==
==पौराणिक संदर्भ==
'करवीर क्षेत्र माहात्म्य' तथा 'लक्ष्मी विजय' के अनुसार कौलासुर दैत्य को वर प्राप्त था कि वह स्त्री द्वारा ही मारा जा सकेगा, अतः [[विष्णु]] स्वयं [[महालक्ष्मी]] रूप में प्रकटे और सिंहारूढ़ होकर करवीर में ही उसको युद्ध में परास्त कर संहार किया। मृत्युपूर्व उसने देवी से वर याचना की कि उस क्षेत्र को उसका नाम मिले। देवी ने वर दे दिया और वहीं स्वयं भी स्थित हो गईं, तब इसे 'करवीर क्षेत्र' कहा जाने लगा, जो कालांतर में 'कोल्हापुर' हो गया। माँ को कोलासुरा मर्दिनी कहा जाने लगा। पद्मपुराणानुसार यह क्षेत्र 108 कल्प प्राचीन है एवं इसे महामातृका कहा गया है, क्योंकि यह आद्याशक्ति का मुख्य पीठस्थान है।  
'करवीर क्षेत्र माहात्म्य' तथा 'लक्ष्मी विजय' के अनुसार कौलासुर दैत्य को वर प्राप्त था कि वह स्त्री द्वारा ही मारा जा सकेगा, अतः [[विष्णु]] स्वयं [[महालक्ष्मी]] रूप में प्रकटे और सिंहारूढ़ होकर करवीर में ही उसको युद्ध में परास्त कर संहार किया। मृत्युपूर्व उसने देवी से वर याचना की कि उस क्षेत्र को उसका नाम मिले। देवी ने वर दे दिया और वहीं स्वयं भी स्थित हो गईं, तब इसे 'करवीर क्षेत्र' कहा जाने लगा, जो कालांतर में 'कोल्हापुर' हो गया। माँ को कोलासुरा मर्दिनी कहा जाने लगा। पद्मपुराणानुसार यह क्षेत्र 108 कल्प प्राचीन है एवं इसे महामातृका कहा गया है, क्योंकि यह आद्याशक्ति का मुख्य पीठस्थान है।  
==महालक्ष्मी मंदिर==
==महालक्ष्मी मंदिर==
करवीर में स्थित महालक्ष्मी का यह मंदिर अति प्राचीन है। इसकी वास्तुरचना श्रीयंत्र पर है। यह पाँच शिखरों, तीन मण्डपों से शोभित है। तीन मण्डप हैं- गर्भ गृह मण्डप, मध्य मण्डप, गरुड़ मण्डप। प्रमुख एवं विशाल मध्य मण्डप में बड़े-बड़े ऊँचे, स्वतंत्र 16x128 स्तंभ हैं। हज़ारो मूर्तियाँ शिल्प आकृति में हैं। यहाँ सुबह 'काकड़ आरती' से लेकर मध्यरात्रि की शय्या आरती तक अखण्ड रूप से पूजार्चना, शहनाई वादन, भजना कीर्तन, पाठ चलता रहता है।  
करवीर में स्थित महालक्ष्मी का यह मंदिर अति प्राचीन है। इसकी वास्तुरचना श्रीयंत्र पर है। यह पाँच शिखरों, तीन मण्डपों से शोभित है। तीन मण्डप हैं- गर्भ गृह मण्डप, मध्य मण्डप, गरुड़ मण्डप। प्रमुख एवं विशाल मध्य मण्डप में बड़े-बड़े ऊँचे, स्वतंत्र 16x128 स्तंभ हैं। हज़ारो मूर्तियाँ शिल्प आकृति में हैं। यहाँ सुबह 'काकड़ आरती' से लेकर मध्यरात्रि की शय्या आरती तक अखण्ड रूप से पूजार्चना, शहनाई वादन, [[भजन कीर्तन]], पाठ चलता रहता है।  


कोल्हापुर में पुराने राजमहल के पास खजानाघर के पीछे महालक्ष्मी का विशाल मंदिर स्थित है, जिसे 'अम्बाजी मंदिर' भी कहते हैं। इस मंदिर के घेरे में महालक्ष्मी का निजमंदिर है। मंदिर का प्रधान भाग नीले पत्थरों से निर्मित है। पास ही में पद्म सरोवर, काशी तीर्थ, मणिकर्णिका- तीर्थ, काशी विश्वनाथ मंदिर, जगन्नाथ जी के मंदिर आदि भी हैं। यहाँ का महालक्ष्मी मंदिर ही शक्तिपीठ है, जहाँ, तंत्र चूड़ामणि के अनुसार, सती के तीनों [[नेत्र|नेत्रों]] का निपात हुआ था। यहाँ की शक्ति महिषासुरमर्दिनी तथा भैरव क्रोधीश हैं। यहाँ महालक्ष्मी का निज निवास माना जाता है। [[मत्स्यपुराण]] के अनुसार काराष्ट्र देश के बीच में [[लक्ष्मी|श्री लक्ष्मी]] निर्मित पाँच कोस का करवीर क्षेत्र है, जिसके दर्शन से ही सारे पाप धुल जाते हैं-
कोल्हापुर में पुराने राजमहल के पास ख़ज़ानाघर के पीछे महालक्ष्मी का विशाल मंदिर स्थित है, जिसे 'अम्बाजी मंदिर' भी कहते हैं। इस मंदिर के घेरे में महालक्ष्मी का निजमंदिर है। मंदिर का प्रधान भाग नीले पत्थरों से निर्मित है। पास ही में पद्म सरोवर, काशी तीर्थ, मणिकर्णिका- तीर्थ, काशी विश्वनाथ मंदिर, जगन्नाथ जी के मंदिर आदि भी हैं। यहाँ का महालक्ष्मी मंदिर ही शक्तिपीठ है, जहाँ, तंत्र चूड़ामणि के अनुसार, सती के तीनों [[नेत्र|नेत्रों]] का निपात हुआ था। यहाँ की शक्ति महिषासुरमर्दिनी तथा भैरव क्रोधीश हैं। यहाँ महालक्ष्मी का निज निवास माना जाता है। [[मत्स्यपुराण]] के अनुसार काराष्ट्र देश के बीच में [[लक्ष्मी|श्री लक्ष्मी]] निर्मित पाँच कोस का करवीर क्षेत्र है, जिसके दर्शन से ही सारे पाप धुल जाते हैं-
:"योजनं दश हे पुत्र काराष्ट्रो देश दुर्धटः॥ तन्मद्ये पंचकोशं च काश्याद्यादधिकं मुनि। क्षेत्रं वे करवीरारण्यं क्षेत्रं लक्ष्मी विनिर्मितः॥ तत्क्षेत्रं हि महत्पुण्यं दर्शनात् पाप नाशनम्।"<ref>[[स्कंद पुराण]] सह्याद्रिखण्ड, उत्तरार्द्ध- 2/24-26</ref>
:"योजनं दश हे पुत्र काराष्ट्रो देश दुर्धटः॥ तन्मद्ये पंचकोशं च काश्याद्यादधिकं मुनि। क्षेत्रं वे करवीरारण्यं क्षेत्रं लक्ष्मी विनिर्मितः॥ तत्क्षेत्रं हि महत्पुण्यं दर्शनात् पाप नाशनम्।"<ref>[[स्कंद पुराण]] सह्याद्रिखण्ड, उत्तरार्ध- 2/24-26</ref>
इसी से इसका माहात्म्य [[काशी]] से भी अधिक है-
इसी से इसका माहात्म्य [[काशी]] से भी अधिक है-
:"वाराणस्याधिकं क्षेत्रं करवीरपुरं महत्। भुक्ति मुक्तिप्रदं नृणां वाराणस्या यवाधिकम्॥"<ref>[[पद्मपुराण]], करवीर माहात्म्य</ref>
:"वाराणस्याधिकं क्षेत्रं करवीरपुरं महत्। भुक्ति मुक्तिप्रदं नृणां वाराणस्या यवाधिकम्॥"<ref>[[पद्मपुराण]], करवीर माहात्म्य</ref>
पंक्ति 18: पंक्ति 39:
देवी का श्रीविग्रह हीरा मिश्रित<ref>वज्र मिश्रित</ref> रत्नशिला का स्वयंभू तथा चमकीला है। उसके मध्य स्थित पद्मरागमणि भी स्वयंभू है- ऐसा विशेषज्ञ कहते हैं। प्रतिमा अति प्राचीन होने से घिस गई थी। अतः [[1954]] में कल्पोक्त विधि से मूर्ति में व्रजलेप-अष्ट वन्धादि संस्कार करने से विग्रह स्पष्ट दिखने लगी। चतुर्भुजी माँ के हाथ में मातुलुंग, गदा, ढाल, पानपात्र तथा मस्तक पर [[नाग]], लिंग, योनि है- ऐसा उल्लेख [[मार्कण्डेय पुराण]] के देवी माहात्म्य में है-  
देवी का श्रीविग्रह हीरा मिश्रित<ref>वज्र मिश्रित</ref> रत्नशिला का स्वयंभू तथा चमकीला है। उसके मध्य स्थित पद्मरागमणि भी स्वयंभू है- ऐसा विशेषज्ञ कहते हैं। प्रतिमा अति प्राचीन होने से घिस गई थी। अतः [[1954]] में कल्पोक्त विधि से मूर्ति में व्रजलेप-अष्ट वन्धादि संस्कार करने से विग्रह स्पष्ट दिखने लगी। चतुर्भुजी माँ के हाथ में मातुलुंग, गदा, ढाल, पानपात्र तथा मस्तक पर [[नाग]], लिंग, योनि है- ऐसा उल्लेख [[मार्कण्डेय पुराण]] के देवी माहात्म्य में है-  
:"मातुलुंगं गदा खेटं पान पात्रं च विभ्रती। नागंलिंगं च योनि च विभ्रती नृप मूर्धनि॥  
:"मातुलुंगं गदा खेटं पान पात्रं च विभ्रती। नागंलिंगं च योनि च विभ्रती नृप मूर्धनि॥  
स्वयंभू मूर्ति में ही सिर पर किरीट उत्कीर्ण है, जिस पर शेषफण की छाया है। 31/2 फुट ऊँची यह प्रतिमा अति सुंदर है। देवी के चरणों के पास सिंह भी विराजमान है।  
स्वयंभू मूर्ति में ही सिर पर [[किरीट]] उत्कीर्ण है, जिस पर शेषफण की छाया है। 31/2 फुट ऊँची यह प्रतिमा अति सुंदर है। देवी के चरणों के पास सिंह भी विराजमान है।  
==मार्ग स्थिति==
==मार्ग स्थिति==
[[मुंबई]] से कोल्हापुर सीधे रेल मार्ग नहीं है, जबकि यह [[महाराष्ट्र]] का मुख्य नगर है। यह मुंबई से 472 किलोमीटर दक्षिण पूर्व में निराज स्टेशन से 48 किलोमीटर आगे पश्चिम में स्थित है। [[पुणे]] से यह 280 किलोमीटर दक्षिण पड़ता है।  
[[मुंबई]] से कोल्हापुर सीधे रेल मार्ग नहीं है, जबकि यह [[महाराष्ट्र]] का मुख्य नगर है। यह मुंबई से 472 किलोमीटर दक्षिण पूर्व में निराज स्टेशन से 48 किलोमीटर आगे पश्चिम में स्थित है। [[पुणे]] से यह 280 किलोमीटर दक्षिण पड़ता है।  
पंक्ति 25: पंक्ति 46:
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
<references/>
<references/>
==बाहरी कड़ियाँ==
==संबंधित लेख==
==संबंधित लेख==
{{शक्तिपीठ}}
{{शक्तिपीठ}}

11:15, 1 जून 2017 के समय का अवतरण

करवीर एक बहुविकल्पी शब्द है अन्य अर्थों के लिए देखें:- करवीर (बहुविकल्पी)
करवीर शक्तिपीठ
महालक्ष्मी मंदिर, करवीर
महालक्ष्मी मंदिर, करवीर
वर्णन महाराष्ट्र स्थित 'करवीर शक्तिपीठ' भारतवर्ष के अज्ञात 108 एवं ज्ञात 51 पीठों में से एक है। इसका हिन्दू धर्म में बड़ा ही महत्त्व है।
स्थान कोल्हापुर, महाराष्ट्र
देवी-देवता देवी 'महिषासुरमर्दनी' तथा भैरव 'क्रोधशिश'।
वास्तुकला करवीर में स्थित महालक्ष्मी का यह मंदिर अति प्राचीन है। इसकी वास्तु रचना श्रीयंत्र पर है। यह पाँच शिखरों, तीन मण्डपों से शोभित है। तीन मण्डप हैं- 'गर्भगृह मण्डप', 'मध्य मण्डप', 'गरुड़ मण्डप'।
संबंधित लेख शक्तिपीठ, सती
पौराणिक मान्यता मान्यतानुसार यह माना जाता है कि इस स्थान पर देवी सती का 'त्रिनेत्र' गिरा था।
अन्य जानकारी इस शक्तिपीठ में सुबह 'काकड़ आरती' से लेकर मध्यरात्रि की शय्या आरती तक अखण्ड रूप से पूजार्चना, शहनाई वादन, भजन कीर्तन, पाठ चलता रहता है।

करवीर शक्तिपीठ 51 शक्तिपीठों में से एक है। हिन्दू धर्म के पुराणों के अनुसार जहां-जहां सती के अंग के टुकड़े, धारण किए वस्त्र या आभूषण गिरे, वहां-वहां शक्तिपीठ अस्तित्व में आये। ये अत्यंत पावन तीर्थस्थान कहलाये। ये तीर्थ पूरे भारतीय उपमहाद्वीप पर फैले हुए हैं। देवीपुराण में 51 शक्तिपीठों का वर्णन है।

स्थिति

यह शक्तिपीठ महाराष्ट्र के कोल्हापुर में स्थित है। यहाँ माता सती का 'त्रिनेत्र' गिरा था। यहाँ की शक्ति महिषासुरमर्दनी तथा भैरव क्रोधशिश हैं। यहाँ महालक्ष्मी का निज निवास माना जाता है।

पाँच नदियों के संगम-पंचगंगा नदी तट पर स्थित कोल्हापुर प्राचीन मंदिरों की नगरी है। महालक्ष्मी मंदिर यहाँ का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण मंदिर है, जहाँ त्रिशक्तियों की भी मूर्तियाँ हैं। महालक्ष्मी के निज मंदिर के शिरोभाग पर शिवलिंग तथा नंदी का मंदिर है तथा व्यंकटेश, कात्यायिनी और गौरीशंकर भी देवकोष्ठ में हैं। परिसर में अनेक मूर्तियाँ हैं। प्रांगण में मणिकर्णिका कुण्ड है, जिसके किनारे विश्वेश्वर महादेव का मंदिर है। उल्लेख है कि वर्तमान कोल्हापुर ही पुराण प्रसिद्ध करवीर क्षेत्र है। ऐसा उल्लेख देवीगीता में मिलता है-

"कोलापुरे महास्थानं यत्र लक्ष्मीः सदा स्थिता।"

पौराणिक संदर्भ

'करवीर क्षेत्र माहात्म्य' तथा 'लक्ष्मी विजय' के अनुसार कौलासुर दैत्य को वर प्राप्त था कि वह स्त्री द्वारा ही मारा जा सकेगा, अतः विष्णु स्वयं महालक्ष्मी रूप में प्रकटे और सिंहारूढ़ होकर करवीर में ही उसको युद्ध में परास्त कर संहार किया। मृत्युपूर्व उसने देवी से वर याचना की कि उस क्षेत्र को उसका नाम मिले। देवी ने वर दे दिया और वहीं स्वयं भी स्थित हो गईं, तब इसे 'करवीर क्षेत्र' कहा जाने लगा, जो कालांतर में 'कोल्हापुर' हो गया। माँ को कोलासुरा मर्दिनी कहा जाने लगा। पद्मपुराणानुसार यह क्षेत्र 108 कल्प प्राचीन है एवं इसे महामातृका कहा गया है, क्योंकि यह आद्याशक्ति का मुख्य पीठस्थान है।

महालक्ष्मी मंदिर

करवीर में स्थित महालक्ष्मी का यह मंदिर अति प्राचीन है। इसकी वास्तुरचना श्रीयंत्र पर है। यह पाँच शिखरों, तीन मण्डपों से शोभित है। तीन मण्डप हैं- गर्भ गृह मण्डप, मध्य मण्डप, गरुड़ मण्डप। प्रमुख एवं विशाल मध्य मण्डप में बड़े-बड़े ऊँचे, स्वतंत्र 16x128 स्तंभ हैं। हज़ारो मूर्तियाँ शिल्प आकृति में हैं। यहाँ सुबह 'काकड़ आरती' से लेकर मध्यरात्रि की शय्या आरती तक अखण्ड रूप से पूजार्चना, शहनाई वादन, भजन कीर्तन, पाठ चलता रहता है।

कोल्हापुर में पुराने राजमहल के पास ख़ज़ानाघर के पीछे महालक्ष्मी का विशाल मंदिर स्थित है, जिसे 'अम्बाजी मंदिर' भी कहते हैं। इस मंदिर के घेरे में महालक्ष्मी का निजमंदिर है। मंदिर का प्रधान भाग नीले पत्थरों से निर्मित है। पास ही में पद्म सरोवर, काशी तीर्थ, मणिकर्णिका- तीर्थ, काशी विश्वनाथ मंदिर, जगन्नाथ जी के मंदिर आदि भी हैं। यहाँ का महालक्ष्मी मंदिर ही शक्तिपीठ है, जहाँ, तंत्र चूड़ामणि के अनुसार, सती के तीनों नेत्रों का निपात हुआ था। यहाँ की शक्ति महिषासुरमर्दिनी तथा भैरव क्रोधीश हैं। यहाँ महालक्ष्मी का निज निवास माना जाता है। मत्स्यपुराण के अनुसार काराष्ट्र देश के बीच में श्री लक्ष्मी निर्मित पाँच कोस का करवीर क्षेत्र है, जिसके दर्शन से ही सारे पाप धुल जाते हैं-

"योजनं दश हे पुत्र काराष्ट्रो देश दुर्धटः॥ तन्मद्ये पंचकोशं च काश्याद्यादधिकं मुनि। क्षेत्रं वे करवीरारण्यं क्षेत्रं लक्ष्मी विनिर्मितः॥ तत्क्षेत्रं हि महत्पुण्यं दर्शनात् पाप नाशनम्।"[1]

इसी से इसका माहात्म्य काशी से भी अधिक है-

"वाराणस्याधिकं क्षेत्रं करवीरपुरं महत्। भुक्ति मुक्तिप्रदं नृणां वाराणस्या यवाधिकम्॥"[2]

प्रतिमा

देवी का श्रीविग्रह हीरा मिश्रित[3] रत्नशिला का स्वयंभू तथा चमकीला है। उसके मध्य स्थित पद्मरागमणि भी स्वयंभू है- ऐसा विशेषज्ञ कहते हैं। प्रतिमा अति प्राचीन होने से घिस गई थी। अतः 1954 में कल्पोक्त विधि से मूर्ति में व्रजलेप-अष्ट वन्धादि संस्कार करने से विग्रह स्पष्ट दिखने लगी। चतुर्भुजी माँ के हाथ में मातुलुंग, गदा, ढाल, पानपात्र तथा मस्तक पर नाग, लिंग, योनि है- ऐसा उल्लेख मार्कण्डेय पुराण के देवी माहात्म्य में है-

"मातुलुंगं गदा खेटं पान पात्रं च विभ्रती। नागंलिंगं च योनि च विभ्रती नृप मूर्धनि॥

स्वयंभू मूर्ति में ही सिर पर किरीट उत्कीर्ण है, जिस पर शेषफण की छाया है। 31/2 फुट ऊँची यह प्रतिमा अति सुंदर है। देवी के चरणों के पास सिंह भी विराजमान है।

मार्ग स्थिति

मुंबई से कोल्हापुर सीधे रेल मार्ग नहीं है, जबकि यह महाराष्ट्र का मुख्य नगर है। यह मुंबई से 472 किलोमीटर दक्षिण पूर्व में निराज स्टेशन से 48 किलोमीटर आगे पश्चिम में स्थित है। पुणे से यह 280 किलोमीटर दक्षिण पड़ता है।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. स्कंद पुराण सह्याद्रिखण्ड, उत्तरार्ध- 2/24-26
  2. पद्मपुराण, करवीर माहात्म्य
  3. वज्र मिश्रित

संबंधित लेख