"जरा मरन दुख रहित": अवतरणों में अंतर
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जरा मरन | जरा मरन दु:ख रहित तनु समर जितै जनि कोउ। | ||
एकछत्र रिपुहीन महि राज कलप सत होउ॥ 164॥ | एकछत्र रिपुहीन महि राज कलप सत होउ॥ 164॥ | ||
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14:04, 2 जून 2017 के समय का अवतरण
जरा मरन दुख रहित
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कवि | गोस्वामी तुलसीदास |
मूल शीर्षक | रामचरितमानस |
मुख्य पात्र | राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि |
प्रकाशक | गीता प्रेस गोरखपुर |
भाषा | अवधी भाषा |
शैली | सोरठा, चौपाई, छंद और दोहा |
संबंधित लेख | दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा |
काण्ड | बालकाण्ड |
जरा मरन दु:ख रहित तनु समर जितै जनि कोउ। |
- भावार्थ-
मेरा शरीर वृद्धावस्था, मृत्यु और दुःख से रहित हो जाए, मुझे युद्ध में कोई जीत न सके और पृथ्वी पर मेरा सौ कल्प तक एकछत्र अकंटक राज्य हो॥ 164॥
जरा मरन दुख रहित |
दोहा- मात्रिक अर्द्धसम छंद है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) में 13-13 मात्राएँ और सम चरणों (द्वितीय तथा चतुर्थ) में 11-11 मात्राएँ होती हैं।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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