"कानन कुसुम": अवतरणों में अंतर

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'कानन कुसुम' का तृतीय संस्करण 1921 ई. में 'पुस्तक भंडार लहेरिया सराय' से प्रकाशित हुआ था। तब से यह उसी रूप में आज तक प्रकाशित हो रहा है।  
'कानन कुसुम' का तृतीय संस्करण 1921 ई. में 'पुस्तक भंडार लहेरिया सराय' से प्रकाशित हुआ था। तब से यह उसी रूप में आज तक प्रकाशित हो रहा है।  
==भाषा शैली==
==भाषा शैली==
प्रथम संस्करण में 'कानन कुसुम' में [[ब्रज भाषा]] और दूसरे संस्करण में परिनिष्ठित [[खड़ी बोली]] और ब्रज भाषा की रचनाएँ संकलित हैं। लेकिन 'कानन कुसुम' के तृतीय संस्करण में सिर्फ खड़ी बोली की रचनाएँ मिलती हैं। इसमें भी उस समय तक सभी खड़ी बोली में लिखी गयी कविताओं को नहीं रखा गया है। कुछ कविताएँ '''झरना''' और '''लहर''' में जोड़ दी गयी है। द्वितीय संस्करण की जिन कविताओं में ब्रजभाषा की पंक्तियाँ विद्यमान हैं उन्हें तृतीय संस्करण में हटा दिया गया। ब्रजभाषा की विकास यात्रा तय करने के पश्चात पुन: वे उस ओर नहीं मुड़े। ऐसा उनकी प्रारम्भिक रचनाओं को देखकर संकेत मिलता है। इन रचनाओं के संस्करणगत अध्ययनों से कवि के विकासशील व्यक्तित्व का आभास मिलता है।
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07:52, 23 जून 2017 के समय का अवतरण

जयशंकर प्रसाद कृत 'कानन कुसुम' के वर्तमान संस्करण में केवल खड़ी बोली ही रचनाएँ मिलती हैं।

प्रथम संस्करण

इसका प्रथम संस्करण सन् 1912 ई. में हुआ था। इसमें सन् 1909 से लेकर 1917 तक की स्फुट कविताएँ संकलित हैं। प्रथम संस्करण में चालीस कविताएँ विभिन्न शीर्षकों से स्वतंत्र रूप में संकलित हैं और पराग शीर्षक के अंतर्गत बीस रचनाएँ हैं। इसमें पृष्ठों की संख्या 66 है।

दूसरा संस्करण

दूसरे संस्करण में इसे 112 पृष्ठों तक पहुँचा दिया गया है। दूसरे संस्करण के 66 पृष्ठ पर 'शम' शब्द लिखकर प्रसाद जी ने उसके बाद की रचनाओं को जोड़ दिया है।

तृतीय संस्करण

'कानन कुसुम' का तृतीय संस्करण 1921 ई. में 'पुस्तक भंडार लहेरिया सराय' से प्रकाशित हुआ था। तब से यह उसी रूप में आज तक प्रकाशित हो रहा है।

भाषा शैली

प्रथम संस्करण में 'कानन कुसुम' में ब्रज भाषा और दूसरे संस्करण में परिनिष्ठित खड़ी बोली और ब्रज भाषा की रचनाएँ संकलित हैं। लेकिन 'कानन कुसुम' के तृतीय संस्करण में सिर्फ खड़ी बोली की रचनाएँ मिलती हैं। इसमें भी उस समय तक सभी खड़ी बोली में लिखी गयी कविताओं को नहीं रखा गया है। कुछ कविताएँ झरना और लहर में जोड़ दी गयी है। द्वितीय संस्करण की जिन कविताओं में ब्रजभाषा की पंक्तियाँ विद्यमान हैं उन्हें तृतीय संस्करण में हटा दिया गया। ब्रजभाषा की विकास यात्रा तय करने के पश्चात् पुन: वे उस ओर नहीं मुड़े। ऐसा उनकी प्रारम्भिक रचनाओं को देखकर संकेत मिलता है। इन रचनाओं के संस्करणगत अध्ययनों से कवि के विकासशील व्यक्तित्व का आभास मिलता है।

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शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ


अनूप, कुमार “पर आधारित”, प्रसाद की रचनाओं में संस्करणगत परिवर्तनों का अध्ययन (हिंदी)

धीरेंद्र, वर्मा “भाग- 2 पर आधारित”, हिंदी साहित्य कोश (हिंदी), 81।

बाहरी कड़ियाँ

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