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[[गीता]] शास्त्रों का दोहन है। मैंने कहीं पढ़ा था कि सारे [[उपनिषद|उपनिषदों]] का निचोड़ उसके सात सौ [[श्लोक|श्लोकों]] में आ जाता है। इसलिए मैने निश्चय किया कि कुछ न हो सके तो भी गीता का ज्ञान प्राप्त कर लें। आज गीता मेरे लिए केवल '[[बाइबिल]]' नहीं है, केवल '[[कुरान]]' नहीं है, मेरे लिए वह [[माता]] हो गई है। मुझे जन्म देनेवाली माता तो चली गई, पर संकट के समय गीता-माता के पास जाना मैं सीख गया हूँ। मैने देखा है, जो कोई इस माता की शरण जाता है, उसे ज्ञानामृत से वह तृप्त करती है।  
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कुछ लोग कहते हैं कि गीता तो महागूढ़-ग्रंथ है। [[लोकमान्य तिलक|स्व० लोकमान्य तिलक]] ने अनेक [[ग्रंथ|ग्रंथों]] का मनन करके पंडित की दृष्टि से उसका अभ्यास किया और उसके गूढ़ अर्थों को वह प्रकाश मे लाए। उस पर एक महाभाष्य की रचना भी की। तिलक महाराज के लिए यह गूढ़ ग्रंथ था; पर हमारे जैसे साधारण मनुष्य के लिए यह गूढ़ नहीं है। सारी गीता का वाचन आपको कठिन मालूम हो तो आप केवल पहले तीन अध्याय पढ़ लें। गीता का सार इन तीनों अध्यायों में आ जाता है। बाकी के अध्यायों में वहीं बात अधिक विस्तार से और अनेक दृष्टियों से सिद्ध की गई है। यह भी किसी को कठिन मालूम हो, तो इन तीन अध्यायों में से कुछ श्लोक छाँटे जा सकते हैं, जिनमें गीता का निचोड़ आ जाता है।  
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गीता माता -महात्मा गाँधी
'गीता माता' रचना का आवरण पृष्ठ
'गीता माता' रचना का आवरण पृष्ठ
लेखक महात्मा गाँधी
मूल शीर्षक गीता माता
प्रकाशक सस्ता साहित्य मण्डल
प्रकाशन तिथि 2010
ISBN 8173091579
देश भारत
पृष्ठ: 336
भाषा हिंदी
विधा गद्य
मुखपृष्ठ रचना पेपरबैक
विशेष श्रीमद्भगवद्गीता का मूल संस्कृत पाठ, तात्पर्य हिन्दी-टीका, सरल और भक्ति प्रधान श्लोकों का संग्रह, गीता-पदार्थ कोष तथा गीता-संबंधी लेख

गीता माता पुस्तक के लेखक गाँधी जी हैं जिसका प्रकाशन 'सस्ता साहित्य मंडल' ने किया है।

भूमिका

इस पुस्तक की भूमिका में महात्मा गाँधी ने लिखा है - गीता शास्त्रों का दोहन है। मैंने कहीं पढ़ा था कि सारे उपनिषदों का निचोड़ उसके सात सौ श्लोकों में आ जाता है। इसलिए मैने निश्चय किया कि कुछ न हो सके तो भी गीता का ज्ञान प्राप्त कर लें। आज गीता मेरे लिए केवल 'बाइबिल' नहीं है, केवल 'क़ुरआन' नहीं है, मेरे लिए वह माता हो गई है। मुझे जन्म देनेवाली माता तो चली गई, पर संकट के समय गीता-माता के पास जाना मैं सीख गया हूँ। मैने देखा है, जो कोई इस माता की शरण जाता है, उसे ज्ञानामृत से वह तृप्त करती है।

कुछ लोग कहते हैं कि गीता तो महागूढ़-ग्रंथ है। स्व० लोकमान्य तिलक ने अनेक ग्रंथों का मनन करके पंडित की दृष्टि से उसका अभ्यास किया और उसके गूढ़ अर्थों को वह प्रकाश मे लाए। उस पर एक महाभाष्य की रचना भी की। तिलक महाराज के लिए यह गूढ़ ग्रंथ था; पर हमारे जैसे साधारण मनुष्य के लिए यह गूढ़ नहीं है। सारी गीता का वाचन आपको कठिन मालूम हो तो आप केवल पहले तीन अध्याय पढ़ लें। गीता का सार इन तीनों अध्यायों में आ जाता है। बाकी के अध्यायों में वहीं बात अधिक विस्तार से और अनेक दृष्टियों से सिद्ध की गई है। यह भी किसी को कठिन मालूम हो, तो इन तीन अध्यायों में से कुछ श्लोक छाँटे जा सकते हैं, जिनमें गीता का निचोड़ आ जाता है।

तीन जगहों पर तो गीता में यह भी आता है कि सब धर्मों को छोड़कर तू केवल मेरी शरण ले। इससे अधिक सरल और सागा उपदेश औऱ क्या हो सकता है ? जो मनुष्य गीता में से अपने लिए आश्वासन प्राप्त करना चाहे तो उसे उसमें से वह पूरा-पूरा मिल जाता है, जो मनुष्य गीता का भक्त होता है, उसके लिए निराश की कोई जगह नहीं है, वह हमेशा आनंद में रहता है।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. गाँधी, मोहनदास कर्मचंद। गीता माता (हिंदी) भारतीय साहित्य संग्रह। अभिगमन तिथि: 15 मई, 2016।

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख

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