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==अकबर से भेंट==
==अकबर से भेंट==
सूरदास की पद-रचना और गान-विद्या की ख्याति सुनकर देशाधिपति [[अकबर]] ने उनसे मिलने की इच्छा की थी। गोस्वामी हरिराय के अनुसार प्रसिद्ध संगीतकार [[तानसेन]] के माध्यम से अकबर और सूरदास की भेंट [[मथुरा]] में हुई। सूरदास का भक्तिपूर्ण पद-गान सुनकर अकबर बहुत प्रसन्न हुए, किन्तु उन्होंने सूरदास से प्रार्थना की कि वे उनका यशगान करें, परन्तु सूरदास ने 'नार्हिन रहयो मन में ठौर' से प्रारम्भ होने वाला पद गाकर यह सूचित कर दिया कि वे केवल [[कृष्ण]] के यश का वर्णन कर सकते हैं, किसी अन्य का नहीं। इसी प्रसंग में 'वार्ता' में पहली बार बताया गया है कि सूरदास अन्धे थे। उपर्युक्त पर के अन्त में 'सूर से दर्श को एक मरत लोचन प्यास' शब्द सुनकर अकबर ने पूछा कि तुम्हारे लोचन तो दिखाई नहीं देते, प्यासे कैसे मरते हैं।
सूरदास की पद-रचना और गान-विद्या की ख्याति सुनकर देशाधिपति [[अकबर]] ने उनसे मिलने की इच्छा की थी। गोस्वामी हरिराय के अनुसार प्रसिद्ध संगीतकार [[तानसेन]] के माध्यम से अकबर और सूरदास की भेंट [[मथुरा]] में हुई। [[चित्र:Surdas Surkuti Sur Sarovar Agra-23.jpg|[[सूरदास]], सूरकुटी, सूर सरोवर, [[आगरा]]|thumb|left|200px]]सूरदास का भक्तिपूर्ण पद-गान सुनकर अकबर बहुत प्रसन्न हुए, किन्तु उन्होंने सूरदास से प्रार्थना की कि वे उनका यशगान करें, परन्तु सूरदास ने 'नार्हिन रहयो मन में ठौर' से प्रारम्भ होने वाला पद गाकर यह सूचित कर दिया कि वे केवल [[कृष्ण]] के यश का वर्णन कर सकते हैं, किसी अन्य का नहीं। इसी प्रसंग में 'वार्ता' में पहली बार बताया गया है कि सूरदास अन्धे थे। उपर्युक्त पर के अन्त में 'सूर से दर्श को एक मरत लोचन प्यास' शब्द सुनकर अकबर ने पूछा कि तुम्हारे लोचन तो दिखाई नहीं देते, प्यासे कैसे मरते हैं।
==श्रीनाथ जी की सेवा==
==श्रीनाथ जी की सेवा==
'वार्ता' में [[सूरदास]] के जीवन की किसी अन्य घटना का उल्लेख नहीं है, केवल इतना बताया गया है कि वे भगवद्भक्तों को अपने पदों के द्वारा [[भक्ति]] का भावपूर्ण सन्देश देते रहते थे। कभी-कभी वे [[श्रीनाथजी मन्दिर मथुरा|श्रीनाथ जी]] के मन्दिर से [[नवनीत प्रिया जी मन्दिर गोकुल|नवनीत प्रिय जी]] के मन्दिर भी चले जाते थे, किन्तु हरिराय ने कुछ अन्य चमत्कारपूर्ण रोचक प्रसंगों का उल्लेख किया है, जिनसे केवल यह प्रकट होता है कि सूरदास परम भगवदीय थे और उनके समसामयिक भक्त [[कुम्भनदास]], [[परमानन्ददास]] आदि उनका बहुत आदर करते थे। 'वार्ता' में सूरदास के गोलोकवास का प्रसंग अत्यन्त रोचक है। श्रीनाथ जी की बहुत दिनों तक सेवा करने के उपरान्त जब सूरदास को ज्ञात हुआ कि भगवान की इच्छा उन्हें उठा लेने की है तो वे श्रीनाथ जी के मन्दिर में [[पारसौली]] के 'चन्द्र सरोवर' पर आकर लेट गये और दूर से सामने ही फहराने वाली श्रीनाथ जी की ध्वजा का ध्यान करने लगे।
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08:54, 17 जुलाई 2017 के समय का अवतरण

सूरदास विषय सूची
सूरदास और अकबर
पूरा नाम महाकवि सूरदास
जन्म संवत् 1540 विक्रमी (सन् 1483 ई.) अथवा संवत 1535 विक्रमी (सन् 1478 ई.)
जन्म भूमि रुनकता, आगरा
मृत्यु संवत् 1642 विक्रमी (सन् 1585 ई.) अथवा संवत् 1620 विक्रमी (सन् 1563 ई.)
मृत्यु स्थान पारसौली
अभिभावक रामदास (पिता)
कर्म भूमि ब्रज (मथुरा-आगरा)
कर्म-क्षेत्र सगुण भक्ति काव्य
मुख्य रचनाएँ सूरसागर, सूरसारावली, साहित्य-लहरी, नल-दमयन्ती, ब्याहलो आदि
विषय भक्ति
भाषा ब्रज भाषा
पुरस्कार-उपाधि महाकवि
नागरिकता भारतीय
अन्य जानकारी सूरदास जी वात्सल्य रस के सम्राट माने जाते हैं। उन्होंने श्रृंगार और शान्त रसों का भी बड़ा मर्मस्पर्शी वर्णन किया है।
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची

गोस्वामी हरिराय के 'भाव प्रकाश' के अनुसार सूरदास का जन्म दिल्ली के पास सीही नाम के गाँव में एक अत्यन्त निर्धन सारस्वत ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके तीन बड़े भाई थे। सूरदास जन्म से ही अन्धे थे, किन्तु सगुन बताने की उनमें अद्भुत शक्ति थी। 6 वर्ष की अवस्था में ही उन्होंने अपनी सगुन बताने की विद्या से माता-पिता को चकित कर दिया था। किन्तु इसी के बाद वे घर छोड़कर चार कोस दूर एक गाँव में तालाब के किनारे रहने लगे थे। सगुन बताने की विद्या के कारण शीघ्र ही उनकी ख्याति चारों और फैल गई। गान विद्या में भी वे प्रारम्भ से ही प्रवीण थे। शीघ्र ही उनके अनेक सेवक हो गये और वे 'स्वामी' के रूप में पूजे जाने लगे। 18 वर्ष की अवस्था में उन्हें पुन: विरक्ति हो गयी और वे यह स्थान छोड़कर आगरा और मथुरा के बीच यमुना के किनारे गऊघाट पर आकर रहने लगे।

अकबर से भेंट

सूरदास की पद-रचना और गान-विद्या की ख्याति सुनकर देशाधिपति अकबर ने उनसे मिलने की इच्छा की थी। गोस्वामी हरिराय के अनुसार प्रसिद्ध संगीतकार तानसेन के माध्यम से अकबर और सूरदास की भेंट मथुरा में हुई।

सूरदास, सूरकुटी, सूर सरोवर, आगरा

सूरदास का भक्तिपूर्ण पद-गान सुनकर अकबर बहुत प्रसन्न हुए, किन्तु उन्होंने सूरदास से प्रार्थना की कि वे उनका यशगान करें, परन्तु सूरदास ने 'नार्हिन रहयो मन में ठौर' से प्रारम्भ होने वाला पद गाकर यह सूचित कर दिया कि वे केवल कृष्ण के यश का वर्णन कर सकते हैं, किसी अन्य का नहीं। इसी प्रसंग में 'वार्ता' में पहली बार बताया गया है कि सूरदास अन्धे थे। उपर्युक्त पर के अन्त में 'सूर से दर्श को एक मरत लोचन प्यास' शब्द सुनकर अकबर ने पूछा कि तुम्हारे लोचन तो दिखाई नहीं देते, प्यासे कैसे मरते हैं।

श्रीनाथ जी की सेवा

'वार्ता' में सूरदास के जीवन की किसी अन्य घटना का उल्लेख नहीं है, केवल इतना बताया गया है कि वे भगवद्भक्तों को अपने पदों के द्वारा भक्ति का भावपूर्ण सन्देश देते रहते थे। कभी-कभी वे श्रीनाथ जी के मन्दिर से नवनीत प्रिय जी के मन्दिर भी चले जाते थे, किन्तु हरिराय ने कुछ अन्य चमत्कारपूर्ण रोचक प्रसंगों का उल्लेख किया है, जिनसे केवल यह प्रकट होता है कि सूरदास परम भगवदीय थे और उनके समसामयिक भक्त कुम्भनदास, परमानन्ददास आदि उनका बहुत आदर करते थे। 'वार्ता' में सूरदास के गोलोकवास का प्रसंग अत्यन्त रोचक है। श्रीनाथ जी की बहुत दिनों तक सेवा करने के उपरान्त जब सूरदास को ज्ञात हुआ कि भगवान की इच्छा उन्हें उठा लेने की है तो वे श्रीनाथ जी के मन्दिर में पारसौली के 'चन्द्र सरोवर' पर आकर लेट गये और दूर से सामने ही फहराने वाली श्रीनाथ जी की ध्वजा का ध्यान करने लगे।


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