"मालवा का मैदान": अवतरणों में अंतर

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==नामकरण==
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[[मालवा]] मैदान का नामकरण चौथी शताब्दी ई.पू. में पंजाब में शासन करने वाले मल्लोई ([[मालव]]) लोगों के नाम पर किया गया। इन लोगों ने [[सिकंदर]] महान का प्रतिरोध किया था।  
[[मालवा]] मैदान का नामकरण चौथी शताब्दी ई.पू. में पंजाब में शासन करने वाले मल्लोई ([[मालव]]) लोगों के नाम पर किया गया। इन लोगों ने [[सिकंदर]] महान् का प्रतिरोध किया था।  
==इतिहास==
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10वीं शताब्दी में यह क्षेत्र [[मुस्लिम]] शासन के अधीन हो गया और [[राजपूत]] शासन (लगभग 1032-1192) के संक्षिप्त काल को छोड़कर [[मुग़ल]] शक्ति के पतन तक मुस्लिम शासन में ही रहा।  
10वीं शताब्दी में यह क्षेत्र [[मुस्लिम]] शासन के अधीन हो गया और [[राजपूत]] शासन (लगभग 1032-1192) के संक्षिप्त काल को छोड़कर [[मुग़ल]] शक्ति के पतन तक मुस्लिम शासन में ही रहा।  
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मालवा के मैदान में सतलुज तथा घग्घर के बाढ़ के मैदान और इन दोनो के बीच का ऊँचा मैदान शामिल है। इस मैदान के पूर्वोत्तर में [[शिवालिक पहाड़ियाँ|शिवालिक पहाड़ियाँ]] हैं। पूर्वोत्तर में समुद्र तल से इन पहाड़ियों की ऊँचाई लगभग 300 मीटर तक और दक्षिण पश्चिम में 200 मीटर से कम है। हालांकि यह मैदान पानी द्वारा लाए जलोढ़ निक्षेप के कारण बना है, लेकिन पश्चिमी और दक्षिण पश्चिम मालवा में वायु की गति भी महत्त्वपूर्ण रही है, जिसके कारण रेत के टीलों की स्थलाकृति बन गयी है। लेकिन आज़ादी के बाद नहरों तथा नलकूपों के ज़रिये सिंचाई के विस्तार के साथ ही यह भूमि समतल कर दी गई है और यहाँ बड़े पैमाने पर खेती की जाती है। वर्तमान समय में घग्घर एक मौसमी नदी है। इसका थाला काफ़ी चौड़ा है, लेकिन इसमें पानी की धारा बहुत पतली है। कहा जाता है कि अपनी धारा के ऊपरी हिस्से में यह नदी दूसरी नदियों द्वारा शामिल कर लिए जाने के कारण अपनी कई सहायक धाराएं खो चुकी है। माना जाता है कि एक समय में सतलुज और [[यमुना]] नदियाँ घग्घर की सहायक नदियाँ थीं। यमुना सतलुज विभाजन में थोड़े से विवर्तनिक उत्थान के कारण सतलुज पश्चिम की ओर और यमुना पूर्व की ओर स्थानांतरित हो गई और घग्घर एक अलग-थलग, कटी हुई धारा बन गई। पटियाला नदी, डांगरी तथा मार्कंड जैसी मौसमी धाराएं घग्घर में मिलती हैं और यह नदी अंततः [[हनुमानगढ़]] के पास [[थार मरुस्थल|थार रेगिस्तान]] में खो जाती है।  
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==कृषि और उद्योग==
==कृषि और उद्योग==
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11:06, 1 अगस्त 2017 के समय का अवतरण

मालवा का मैदान मध्य पंजाब राज्य का जलोढ़ मैदान, उत्तरी भारत, सतलुज और घग्घर नदी के बीच में, बिस्त दोराब के दक्षिण में स्थित है। सड़कों, रेल लाइनों, नहरों और बंजर ज़मीन पर बड़ी संख्या में यूकॉलिप्टस या पॉल्पर के वृक्ष लगाए गए हैं। इस पूरे क्षेत्र में सड़कों और रेलमार्गों का सघन जाल है।

नामकरण

मालवा मैदान का नामकरण चौथी शताब्दी ई.पू. में पंजाब में शासन करने वाले मल्लोई (मालव) लोगों के नाम पर किया गया। इन लोगों ने सिकंदर महान् का प्रतिरोध किया था।

इतिहास

10वीं शताब्दी में यह क्षेत्र मुस्लिम शासन के अधीन हो गया और राजपूत शासन (लगभग 1032-1192) के संक्षिप्त काल को छोड़कर मुग़ल शक्ति के पतन तक मुस्लिम शासन में ही रहा।

भूगोल

मालवा के मैदान में सतलुज तथा घग्घर के बाढ़ के मैदान और इन दोनो के बीच का ऊँचा मैदान शामिल है। इस मैदान के पूर्वोत्तर में शिवालिक पहाड़ियाँ हैं। पूर्वोत्तर में समुद्र तल से इन पहाड़ियों की ऊँचाई लगभग 300 मीटर तक और दक्षिण पश्चिम में 200 मीटर से कम है। हालांकि यह मैदान पानी द्वारा लाए जलोढ़ निक्षेप के कारण बना है, लेकिन पश्चिमी और दक्षिण पश्चिम मालवा में वायु की गति भी महत्त्वपूर्ण रही है, जिसके कारण रेत के टीलों की स्थलाकृति बन गयी है। लेकिन आज़ादी के बाद नहरों तथा नलकूपों के ज़रिये सिंचाई के विस्तार के साथ ही यह भूमि समतल कर दी गई है और यहाँ बड़े पैमाने पर खेती की जाती है। वर्तमान समय में घग्घर एक मौसमी नदी है। इसका थाला काफ़ी चौड़ा है, लेकिन इसमें पानी की धारा बहुत पतली है। कहा जाता है कि अपनी धारा के ऊपरी हिस्से में यह नदी दूसरी नदियों द्वारा शामिल कर लिए जाने के कारण अपनी कई सहायक धाराएं खो चुकी है। माना जाता है कि एक समय में सतलुज और यमुना नदियाँ घग्घर की सहायक नदियाँ थीं। यमुना सतलुज विभाजन में थोड़े से विवर्तनिक उत्थान के कारण सतलुज पश्चिम की ओर और यमुना पूर्व की ओर स्थानांतरित हो गई और घग्घर एक अलग-थलग, कटी हुई धारा बन गई। पटियाला नदी, डांगरी तथा मार्कंड जैसी मौसमी धाराएं घग्घर में मिलती हैं और यह नदी अंततः हनुमानगढ़ के पास थार रेगिस्तान में खो जाती है।

कृषि और उद्योग

इस क्षेत्र का 80 प्रतिशत से अधिक इलाक़ा कृषि कार्य में लगा हुआ है। चावल और गेहूँ प्रमुख फ़सलें हैं। अन्य फ़सलों में मक्का (पूर्वी मालवा), गन्ना, कपास (पश्चिम मालवा में), दलहन और तिलहन शामिल हैं। मालवा गेहूँ और चावल के केंद्रीय भंडार में भारी मात्रा में योग देता है। इस क्षेत्र में छोटे और मध्यम पैमाने के उद्योग हैं, जिनमें मशीनी औज़ार, सिलाई मशीन व पुर्ज़े, साइकिल, पानी के पाइप तथा अन्य फ़िटिंग, होजरी, प्लास्टिक के सामान और वाहनों के पुर्ज़ों का उत्पादन महत्त्वपूर्ण है। कृषि आधारित उद्योग काफ़ी संख्या में हैं।


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