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| <quiz display=simple> | | <quiz display=simple> |
| {[[महाभारत]] में [[कौरव]] तथा [[पाण्डव]] सेनाओं का सम्मिलित संख्याबल कितने [[अक्षौहिणी]] था?
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| |type="()"}
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| +18 [[अक्षौहिणी]]
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| -21 अक्षौहिणी
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| -11 अक्षौहिणी
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| -16 अक्षौहिणी
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| ||[[चित्र:Krishna-arjun1.jpg|right|140px|श्रीकृष्ण रथ हाँकते हुए]][[महाभारत]] के युद्घ में 'अठारह अक्षौहिणी' सेना नष्ट हो गई थी। एक [[अक्षौहिणी]] में 21,870 [[हाथी]]; 21,870 रथ; 65,610 घोड़े और 1,09,350 पैदल सैनिक होते थे। [[कुरुक्षेत्र]] के युद्ध में इस प्रकार की 18 अक्षौहिणी सेना ने भाग लिया था। [[प्राचीन भारत]] में सेना के चार अंग होते थे- हाथी, घोड़े, रथ और पैदल सैनिक। जिस सेना में ये चारों अंग होते थे, वह '[[चतुरंगिणी सेना]]' कहलाती थी।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[अक्षौहिणी]]
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| {[[अश्वत्थामा]] के [[ब्रह्मास्त्र]] से [[श्रीकृष्ण]] ने [[उत्तरा]] के गर्भ में जिस बालक की रक्षा की, उसका नाम क्या था?
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| -[[इरावत]]
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| -वभ्रुवाहन
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| +[[परीक्षित]]
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| -श्रुतकर्मा
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| ||[[उत्तरा]] को शोक करते हुए देखकर [[श्रीकृष्ण]] ने कहा- 'बेटी! शोक न करो। तुम्हारा यह पुत्र अभी जीवित होता है। मैंने जीवन में कभी झूठ नहीं बोला है। सबके सामने मैंने प्रतिज्ञा की है, वह अवश्य पूर्ण होगी। मैंने तुम्हारे इस बालक की रक्षा गर्भ में की है, तो भला अब कैसे मरने दूँगा।' इतना कहकर भगवान श्रीकृष्ण ने उस बालक पर अपनी अमृतमयी दृष्टि डाली और बोले- 'यदि मैंने कभी झूठ नहीं बोला है, सदा ब्रह्मचर्य व्रत का नियम से पालन किया है, युद्ध में कभी पीठ नहीं दिखाई है, कभी भूल से भी अधर्म नहीं किया है, तो [[अभिमन्यु]] का यह मृत बालक जीवित हो जाये।'{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[परीक्षित]]
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| {[[धृतराष्ट्र]] का जन्म किसके गर्भ से हुआ था?
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| |type="()"}
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| -[[अम्बालिका |अम्बालिका]]
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| +[[अम्बिका]]
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| -[[अम्बा]]
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| -[[देवयानी]]
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| ||[[चित्र:Sanjaya-Dhritarashtra.jpg|right|100px|धृतराष्ट्र और संजय]][[वेदव्यास]] अपनी [[माता]] [[सत्यवती]] की आज्ञा मानकर बोले, 'माता! आप दोनों रानियों से कह दें कि वे एक वर्ष तक नियम व्रत का पालन करती रहें, तभी उनको गर्भ धारण होगा।' एक वर्ष व्यतीत हो जाने पर वेदव्यास सबसे पहले रानी [[अम्बिका]] के पास गये। अम्बिका ने उनके तेज़ से डरकर अपने नेत्र बन्द कर लिये। वेदव्यास लौटकर [[माता]] से बोले, 'माता! अम्बिका का बड़ा ही तेजस्वी पुत्र होगा, किन्तु नेत्र बन्द करने के दोष के कारण वह अंधा होगा। सत्यवती को यह सुनकर अत्यन्त दुःख हुआ। अत: अब उन्होंने वेदव्यास को रानी [[अम्बालिका]] के पास भेजा।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[धृतराष्ट्र]]
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| {निम्नलिखित में से कौन [[पाण्डव|पाण्डवों]] के महाप्रयाण के बाद राजगद्दी पर बैठा?
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| -[[जनमेजय]]
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| +[[परीक्षित]]
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| -[[इरावत]]
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| -[[प्रद्युम्न]]
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| ||ज्योतिषियों ने [[युधिष्ठिर]] को बताया कि बालक [[परीक्षित]] अति प्रतापी, यशस्वी तथा [[इक्ष्वाकु वंश|इक्ष्वाकु]] समान प्रजापालक, दानी, धर्मी, पराक्रमी और भगवान [[श्रीकृष्ण]] का [[भक्त]] होगा। एक [[ऋषि]] के शाप से [[तक्षक नाग|तक्षक]] द्वारा मृत्यु से पहले संसार के माया-मोह को त्यागकर [[गंगा]] के तट पर [[शुकदेव|शुकदेव जी]] से आत्मज्ञान प्राप्त करेगा। [[पाण्डव|पाण्डवों]] के महाप्रयाण के बाद भगवान के परम भक्त महाराज परीक्षित श्रेष्ठ [[ब्राह्मण|ब्राह्मणों]] की शिक्षा के अनुसार [[पृथ्वी]] का शासन करने लगे।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[परीक्षित]]
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| {निम्न में से कौन [[निषाद]] जाति से सम्बन्धित था?
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| +[[एकलव्य]]
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| -[[युयुत्सु]]
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| -[[अंजनपर्वा]]
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| -[[सुषेण]]
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| ||[[चित्र:Ekalavya.jpg|right|100px|एकलव्य और द्रोणाचार्य]]हिरण्यधनु नामक [[निषाद|निषादों]] के राजा का पुत्र [[एकलव्य]] भी धनुर्विद्या सीखने के उद्देश्य से [[कौरव|कौरवों]] और [[पाण्डव|पाण्डवों]] के गुरु [[द्रोणाचार्य]] के आश्रम में आया था, किन्तु निम्न वर्ण का होने के कारण द्रोणाचार्य ने उसे अपना शिष्य बनाना स्वीकार नहीं किया। निराश होकर एकलव्य वन में चला गया। उसने द्रोणाचार्य की एक मूर्ति बनाई और उस मूर्ति को ही गुरु मानकर धनुर्विद्या का अभ्यास करने लगा। एकाग्रचित्त से साधना करते हुये अल्पकाल में ही वह धनुर्विद्या में अत्यन्त निपुण हो गया। धनुर्विद्या में वह [[अर्जुन]] से आगे न निकल जाये, इसीलिए द्रोणाचार्य ने गुरु दक्षिणा में एकलव्य से उसका दाहिने हाथ का अंगूठा माँग लिया।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[एकलव्य]]
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| {राजा [[परीक्षित]] के पुत्र का नाम क्या था? | | {राजा [[परीक्षित]] के पुत्र का नाम क्या था? |
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| -[[संवरण]] | | -[[संवरण]] |
| +[[जनमेजय]] | | +[[जनमेजय]] |
| ||राजा [[परीक्षित]] के पुत्र का नाम [[जनमेजय]] था। जनमेजय की पत्नी का 'वपुष्टमा' थी, जो [[काशी]] के राजा की पुत्री थी। बड़े होने पर जब जनमेजय ने [[पिता]] परीक्षित की मृत्यु का कारण सर्पदंश जाना तो उसने [[तक्षक]] से बदला लेने का उपाय सोचा। जनमेजय ने सर्पों के संहार के लिए 'सर्पसत्र' नामक महान [[यज्ञ]] का आयोजन किया। [[नाग|नागों]] को इस यज्ञ में भस्म होने का शाप उनकी मां कद्रू ने दिया था।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[जनमेजय]] | | ||राजा [[परीक्षित]] के पुत्र का नाम [[जनमेजय]] था। जनमेजय की पत्नी का 'वपुष्टमा' थी, जो [[काशी]] के राजा की पुत्री थी। बड़े होने पर जब जनमेजय ने [[पिता]] परीक्षित की मृत्यु का कारण सर्पदंश जाना तो उसने [[तक्षक]] से बदला लेने का उपाय सोचा। जनमेजय ने सर्पों के संहार के लिए 'सर्पसत्र' नामक महान् [[यज्ञ]] का आयोजन किया। [[नाग|नागों]] को इस यज्ञ में भस्म होने का शाप उनकी माँ कद्रू ने दिया था।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[जनमेजय]] |
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| {[[लाक्षागृह]] से जीवित बच निकलने के बाद [[पाण्डव]] किस नगरी में जाकर रहे? | | {[[लाक्षागृह]] से जीवित बच निकलने के बाद [[पाण्डव]] किस नगरी में जाकर रहे? |