"संकोच-भार को सह न सका -भगवतीचरण वर्मा": अवतरणों में अंतर
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हो बाँध रही प्यासा जीवन । | हो बाँध रही प्यासा जीवन । | ||
तुम | तुम करुणा की जयमाल बनो, | ||
मैं बनूँ विजय का आलिंगन | मैं बनूँ विजय का आलिंगन | ||
हम मदमातों की दुनिया में, | हम मदमातों की दुनिया में, | ||
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तुम सुषमा की मुस्कान बनो | तुम सुषमा की मुस्कान बनो | ||
अनुभूति बनूँ मैं अति | अनुभूति बनूँ मैं अति उज्ज्वल | ||
तुम मुझ में अपनी छवि देखो, | तुम मुझ में अपनी छवि देखो, | ||
मैं तुममें निज साधना अचल । | मैं तुममें निज साधना अचल । |
13:39, 1 अगस्त 2017 के समय का अवतरण
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संकोच-भार को सह न सका |
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