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'''ढाई सीढ़ी की मस्जिद''' [[भोपाल]], [[मध्य प्रदेश]] के 'गाँधी मेडिकल कॉलेज' के समीप फतेहगढ़ क़िले के बुर्ज के ऊपरी हिस्से में है। इस मस्जिद का निर्माण दोस्त मोहम्मद ख़ान द्वारा करवाया गया था। सादे और साधारण स्थापत्य में निर्मित इस मस्जिद में इबादत स्थल तक जाने के लिये केवल ढाई सीढ़ियाँ ही है, इसलिये इसे 'ढाई सीढ़ी की मस्जिद' कहा जाता है। माना जाता है कि यह मस्जिद भोपाल की प्रथम मस्जिद है। | '''ढाई सीढ़ी की मस्जिद''' [[भोपाल]], [[मध्य प्रदेश]] के 'गाँधी मेडिकल कॉलेज' के समीप फतेहगढ़ क़िले के बुर्ज के ऊपरी हिस्से में है। इस मस्जिद का निर्माण दोस्त मोहम्मद ख़ान द्वारा करवाया गया था। सादे और साधारण स्थापत्य में निर्मित इस मस्जिद में इबादत स्थल तक जाने के लिये केवल ढाई सीढ़ियाँ ही है, इसलिये इसे 'ढाई सीढ़ी की मस्जिद' कहा जाता है। माना जाता है कि यह मस्जिद भोपाल की प्रथम मस्जिद है। | ||
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'ढाई सीढ़ी की मस्जिद' को भोपाल की पहली मस्जिद होने का श्रेय प्राप्त है। इसके अतिरिक्त यह [[एशिया]] की सबसे छोटी मस्जिद भी है। मस्जिद के नामकरण की अपनी एक कहानी है। इसके निर्माण के वक्त हर चीज़ यहाँ ढाई बनाई गई हैं- सीढ़ियाँ ढाई हैं, जिस जगह यह मस्जिद स्थित है, वहाँ कमरों की संख्या भी ढाई है। इसके अलावा पहले जिस रास्ते से यहाँ आया जाता था, वहाँ भी सीढ़ियों की संख्या ढाई ही है। | 'ढाई सीढ़ी की मस्जिद' को भोपाल की पहली मस्जिद होने का श्रेय प्राप्त है। इसके अतिरिक्त यह [[एशिया]] की सबसे छोटी मस्जिद भी है। मस्जिद के नामकरण की अपनी एक कहानी है। इसके निर्माण के वक्त हर चीज़ यहाँ ढाई बनाई गई हैं- सीढ़ियाँ ढाई हैं, जिस जगह यह मस्जिद स्थित है, वहाँ कमरों की संख्या भी ढाई है। इसके अलावा पहले जिस रास्ते से यहाँ आया जाता था, वहाँ भी सीढ़ियों की संख्या ढाई ही है। | ||
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फतेहगढ़ क़िले में पहले पहरा देने वाले सैनिक नमाज अदा किया करते थे। इस मस्जिद का इतिहास भी तीन सौ साल पुराना है। कहा जाता है कि जब [[अफ़ग़ानिस्तान]] के तराह शहर से नूर मोहम्मद ख़ान और उनके साहबजादे दोस्त मोहम्मद ख़ान [[भारत]] आए, तब [[भोपाल]] में रानी कमलावति का राज था। कमलावति के पति को उनके भतीजों ने जहर देकर मार दिया था। रानी इस बात से बहुत परेशान थी और बदला लेना चाहती थी। उसने बदला लेने वाले व्यक्ति के लिए एक लाख इनाम की घोषणा कर दी। दोस्त मोहम्मद ख़ान ने इस कार्य को पूर्ण किया था। इसके फलस्वरूप रानी ने पचास हज़ार रुपये नगद और बाकी पचास हज़ार के लिए तत्कालीन फतेहगढ़, वार्षिक लगान दस हज़ार रुपए था, दोस्त मोहम्मद ख़ान को दे दिया। बाद के समय में दोस्त मोहम्मद ख़ान ने इस जगह पर फतेहगढ़ क़िले का निर्माण कराया। इस क़िले की नींव का पत्थर | फतेहगढ़ क़िले में पहले पहरा देने वाले सैनिक नमाज अदा किया करते थे। इस मस्जिद का इतिहास भी तीन सौ साल पुराना है। कहा जाता है कि जब [[अफ़ग़ानिस्तान]] के तराह शहर से नूर मोहम्मद ख़ान और उनके साहबजादे दोस्त मोहम्मद ख़ान [[भारत]] आए, तब [[भोपाल]] में रानी कमलावति का राज था। कमलावति के पति को उनके भतीजों ने जहर देकर मार दिया था। रानी इस बात से बहुत परेशान थी और बदला लेना चाहती थी। उसने बदला लेने वाले व्यक्ति के लिए एक लाख इनाम की घोषणा कर दी। दोस्त मोहम्मद ख़ान ने इस कार्य को पूर्ण किया था। इसके फलस्वरूप रानी ने पचास हज़ार रुपये नगद और बाकी पचास हज़ार के लिए तत्कालीन फतेहगढ़, वार्षिक लगान दस हज़ार रुपए था, दोस्त मोहम्मद ख़ान को दे दिया। बाद के समय में दोस्त मोहम्मद ख़ान ने इस जगह पर फतेहगढ़ क़िले का निर्माण कराया। इस क़िले की नींव का पत्थर क़ाज़ीमोहम्मद मोअज्जम साहब ने रखा था। क़िले की पश्चिमी दिशा में स्थित बुर्ज को मस्जिद की शक्ल दी गई थी। इस तरह वर्ष 1716 में 'ढाई सीढ़ी की मस्जिद' भोपाल की पहली मस्जिद बनी।<ref>{{cite web |url=http://aapkamaneesh.blogspot.in/2010/08/blog-post.html |title= भोपाल की ढाई सीढ़ी की मस्जिद|accessmonthday=26 फ़रवरी|accessyear=2013|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language= हिन्दी}}</ref> | ||
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12:21, 25 अक्टूबर 2017 के समय का अवतरण
ढाई सीढ़ी की मस्जिद भोपाल, मध्य प्रदेश के 'गाँधी मेडिकल कॉलेज' के समीप फतेहगढ़ क़िले के बुर्ज के ऊपरी हिस्से में है। इस मस्जिद का निर्माण दोस्त मोहम्मद ख़ान द्वारा करवाया गया था। सादे और साधारण स्थापत्य में निर्मित इस मस्जिद में इबादत स्थल तक जाने के लिये केवल ढाई सीढ़ियाँ ही है, इसलिये इसे 'ढाई सीढ़ी की मस्जिद' कहा जाता है। माना जाता है कि यह मस्जिद भोपाल की प्रथम मस्जिद है।
नामकरण
'ढाई सीढ़ी की मस्जिद' को भोपाल की पहली मस्जिद होने का श्रेय प्राप्त है। इसके अतिरिक्त यह एशिया की सबसे छोटी मस्जिद भी है। मस्जिद के नामकरण की अपनी एक कहानी है। इसके निर्माण के वक्त हर चीज़ यहाँ ढाई बनाई गई हैं- सीढ़ियाँ ढाई हैं, जिस जगह यह मस्जिद स्थित है, वहाँ कमरों की संख्या भी ढाई है। इसके अलावा पहले जिस रास्ते से यहाँ आया जाता था, वहाँ भी सीढ़ियों की संख्या ढाई ही है।
इतिहास
फतेहगढ़ क़िले में पहले पहरा देने वाले सैनिक नमाज अदा किया करते थे। इस मस्जिद का इतिहास भी तीन सौ साल पुराना है। कहा जाता है कि जब अफ़ग़ानिस्तान के तराह शहर से नूर मोहम्मद ख़ान और उनके साहबजादे दोस्त मोहम्मद ख़ान भारत आए, तब भोपाल में रानी कमलावति का राज था। कमलावति के पति को उनके भतीजों ने जहर देकर मार दिया था। रानी इस बात से बहुत परेशान थी और बदला लेना चाहती थी। उसने बदला लेने वाले व्यक्ति के लिए एक लाख इनाम की घोषणा कर दी। दोस्त मोहम्मद ख़ान ने इस कार्य को पूर्ण किया था। इसके फलस्वरूप रानी ने पचास हज़ार रुपये नगद और बाकी पचास हज़ार के लिए तत्कालीन फतेहगढ़, वार्षिक लगान दस हज़ार रुपए था, दोस्त मोहम्मद ख़ान को दे दिया। बाद के समय में दोस्त मोहम्मद ख़ान ने इस जगह पर फतेहगढ़ क़िले का निर्माण कराया। इस क़िले की नींव का पत्थर क़ाज़ीमोहम्मद मोअज्जम साहब ने रखा था। क़िले की पश्चिमी दिशा में स्थित बुर्ज को मस्जिद की शक्ल दी गई थी। इस तरह वर्ष 1716 में 'ढाई सीढ़ी की मस्जिद' भोपाल की पहली मस्जिद बनी।[1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ भोपाल की ढाई सीढ़ी की मस्जिद (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 26 फ़रवरी, 2013।