"चंद्रसेन राजा": अवतरणों में अंतर

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*गुप्त रूप से [[शिवाजी तृतीय|शिवाजी]] की माता [[ताराबाई]] का पक्ष करने से [[साहू|साहूजी]] ने [[बालाजी विश्वनाथ]] को चंद्रसेन पर दृष्टि रखने के लिये नियुक्त किया।
*गुप्त रूप से [[शिवाजी तृतीय|शिवाजी]] की माता [[ताराबाई]] का पक्ष करने से [[साहू|साहूजी]] ने [[बालाजी विश्वनाथ]] को चंद्रसेन पर दृष्टि रखने के लिये नियुक्त किया।
*संयोग से एक दिन शिकार खेलते समय चंद्रसेन और बालाजी विश्वनाथ में लड़ाई हो गई। चंद्रसेन भागकर ताराबाई के पास पहुँचा।
*संयोग से एक दिन शिकार खेलते समय चंद्रसेन और बालाजी विश्वनाथ में लड़ाई हो गई। चंद्रसेन भागकर ताराबाई के पास पहुँचा।
*सन 1712 ई. में जब ताराबाई और शिवाजी कारागार में डाले गए और महारानी राजसबाई [[कोल्हापुर]] में प्रधान नियुक्त हुई, तब चंद्रसेन इस डर से कि कहीं वह पकड़कर साहूजी के पास न भेज दिया जाय, भागकर [[आसफ़जाह|निज़ामुल्मुल्क आसफ़जाह]] के पास पहुँचा और उसकी सलाह से वह [[फ़र्रुख़सियर|बादशाह फ़र्रुख़सियर]] की सेवा में चला आया।<ref>{{cite web |url= http://khoj.bharatdiscovery.org/india/%E0%A4%9A%E0%A4%82%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%B8%E0%A5%87%E0%A4%A8_%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%9C%E0%A4%BE|title= चंद्रसेन राजा|accessmonthday=20 मार्च|accessyear= 2015|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= भारतखोज|language= हिन्दी}}</ref>
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*बादशाह फ़र्रुख़सियर ने उसे सातहज़ारी [[मनसब]] प्रदान किया और [[बीदर]] प्रांत की कई जागीरें दे दीं।
*बादशाह फ़र्रुख़सियर ने उसे सातहज़ारी [[मनसब]] प्रदान किया और [[बीदर]] प्रांत की कई जागीरें दे दीं।
*चंद्रसेन ने पंचमहल ताल्लुके में [[कृष्णा नदी]] के पास एक पहाड़ी पर छोटा-सा [[दुर्ग]] बनवाया, जिसका नाम 'चंद्रगढ़' रखा।
*चंद्रसेन ने पंचमहल ताल्लुके में [[कृष्णा नदी]] के पास एक पहाड़ी पर छोटा-सा [[दुर्ग]] बनवाया, जिसका नाम 'चंद्रगढ़' रखा।

12:22, 25 अक्टूबर 2017 के समय का अवतरण

चंद्रसेन संभाजी भोंसले के विश्वासपात्र सरदार धनाजी जादव का पुत्र। पिता के बाद चंद्रसेन प्रधान सेनापति बना था।

  • गुप्त रूप से शिवाजी की माता ताराबाई का पक्ष करने से साहूजी ने बालाजी विश्वनाथ को चंद्रसेन पर दृष्टि रखने के लिये नियुक्त किया।
  • संयोग से एक दिन शिकार खेलते समय चंद्रसेन और बालाजी विश्वनाथ में लड़ाई हो गई। चंद्रसेन भागकर ताराबाई के पास पहुँचा।
  • सन 1712 ई. में जब ताराबाई और शिवाजी कारागार में डाले गए और महारानी राजसबाई कोल्हापुर में प्रधान नियुक्त हुई, तब चंद्रसेन इस डर से कि कहीं वह पकड़कर साहूजी के पास न भेज दिया जाय, भागकर निज़ामुल्मुल्क आसफ़जाह के पास पहुँचा और उसकी सलाह से वह बादशाह फ़र्रुख़सियर की सेवा में चला आया।[1]
  • बादशाह फ़र्रुख़सियर ने उसे सातहज़ारी मनसब प्रदान किया और बीदर प्रांत की कई जागीरें दे दीं।
  • चंद्रसेन ने पंचमहल ताल्लुके में कृष्णा नदी के पास एक पहाड़ी पर छोटा-सा दुर्ग बनवाया, जिसका नाम 'चंद्रगढ़' रखा।
  • सन 1726 ई. में निज़ामुल्मुल्क आसफ़जाह की साहूजी पर चढ़ाई के समय चंद्रसेन ने आसफ़जाह की सहायता की।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. चंद्रसेन राजा (हिन्दी) भारतखोज। अभिगमन तिथि: 20 मार्च, 2015।

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