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देखो कहीं बरबाद न होवे ये बगीचा  
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इसको हृदय के खून से बापू ने है सींचा
इसको हृदय के ख़ून से बापू ने है सींचा
रक्खा है ये चिराग शहीदों ने बाल के
रक्खा है ये चिराग शहीदों ने बाल के
इस देश को रखना मेरे बच्चो संभाल के
इस देश को रखना मेरे बच्चो संभाल के
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दुनिया के दांव पेंच से रखना न वास्ता  
दुनिया के दांव पेंच से रखना न वास्ता  
मंजिल तुम्हारी दूर है लंबा है रास्ता  
मंजिल तुम्हारी दूर है लंबा है रास्ता  
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भटका न दे कोई तुम्हें धोके में डाल के
इस देश को रखना मेरे बच्चो संभाल के
इस देश को रखना मेरे बच्चो संभाल के
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आराम की तुम भूल भुलय्या में न भूलो  
आराम की तुम भूल भुलय्या में न भूलो  
सपनों के हिंडोलों मे मगन हो के न झुलो
सपनों के हिंडोलों में मगन हो के न झूलो
अब वक़्त आ गया मेरे हंसते हुए फूलो
अब वक़्त आ गया मेरे हंसते हुए फूलो
उठो छलांग मार के आकाश को छू लो
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* फ़िल्म : जागृति
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* रचनाकार : प्रदीप
 
 
 
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
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07:38, 7 नवम्बर 2017 के समय का अवतरण

हम लाये हैं तूफ़ान से
कवि प्रदीप
कवि प्रदीप
विवरण हम लाये हैं तूफ़ान से एक प्रसिद्ध फ़िल्मी गीत है।
रचनाकार कवि प्रदीप
फ़िल्म जाग्रति (1954)
संगीतकार हेमंत कुमार
गायक/गायिका मुहम्मद रफ़ी
अन्य जानकारी कवि प्रदीप का मूल नाम 'रामचंद्र नारायणजी द्विवेदी' था। प्रदीप हिंदी साहित्य जगत और हिंदी फ़िल्म जगत के एक अति सुदृढ़ रचनाकार रहे। कवि प्रदीप 'ऐ मेरे वतन के लोगों' सरीखे देशभक्ति गीतों के लिए जाने जाते हैं।

हम लाए हैं तूफ़ान से कश्ती निकाल के प्रसिद्ध कवि और गायक प्रदीप का लिखा हुआ देशभक्ति की भावना से ओतप्रेत गीत है। यह गीत अपने समय के मशहूर गायक मोहम्मद रफ़ी ने गाया था।

रचना

‘नास्तिक’ फ़िल्म की अपूर्व सफलता के बाद 'फ़िल्मिस्तान स्टूडियो' ने अपनी दूसरी फ़िल्म ‘जागृति’ (1954) के गीत भी लिखने के लिए प्रदीप को सौंप दी थी। उन्होंने फ़िल्म की कहानी पढ़ी, जो स्कूल में पढ़ने वाले शैतान बच्चों की थी। स्थिति-परिस्थिति को देखते हुए उन्होंने अपने स्वभाव और प्रकृति के अनुकूल एक नई परिस्थिति पैदा कर दी, जिससे की फ़िल्म की, विषय के अनुरूप आवश्यकता पूर्ति हो गई।

मोहम्मद रफ़ी द्वारा गायन

आज़ादी मिलना ही काफ़ी नहीं होता, उसे सुरक्षित रखना भी देशवासियों का कर्तव्य होता है। इस कर्तव्य को मधुर आवाज़ देते हुए मोहम्मद रफ़ी ने 'फ़िल्म जागृति' के इस गीत को गाया। इस गीत के साथ ही फ़िल्म 'जागृति' के अन्य गीत भी प्रसिद्ध हुए थे। शोक और हर्ष के एक ही मुखड़े के दो गीत कवि प्रदीप ने लिखे- ‘चलो चलें माँ, सपनों के गाँव में' सरल, लचीली और सामान्य भाषा का प्रयोग करते हुए प्रसाद गुण से सम्पन्न, शांत रस प्रधान एक अन्य गीत भी प्रदीप ने लिखा और गाया- ‘आओ बच्चों तुम्हें दिखाएँ झाँकी हिंदुस्तान की‘। इस प्रकार प्रदीप ने शिक्षाप्रद एवं देशभक्ति प्रधान गीत लिखकर ने केवल फ़िल्म को ही ऊँची दिशा दी वरन् देशभक्ति के अपने गीतों की पताका को और ऊँचा फहरा दिया।

पासे सभी उलट गए दुश्मन की चाल के
अक्षर सभी पलट गए भारत के भाल के
मंजिल पे आया मुल्क हर बला को टाल के
सदियों के बाद फिर उड़े बादल गुलाल के

हम लाये हैं तूफ़ान से किश्ती निकाल के
इस देश को रखना मेरे बच्चो संभाल के
तुम ही भविष्य हो मेरे भारत विशाल के
इस देश को रखना मेरे बच्चो संभाल के ...

देखो कहीं बरबाद न होवे ये बगीचा
इसको हृदय के ख़ून से बापू ने है सींचा
रक्खा है ये चिराग शहीदों ने बाल के
इस देश को रखना मेरे बच्चो संभाल के
हम लाये हैं तूफ़ान से किश्ती निकाल के...

दुनिया के दांव पेंच से रखना न वास्ता
मंजिल तुम्हारी दूर है लंबा है रास्ता
भटका न दे कोई तुम्हें धोके में डाल के
इस देश को रखना मेरे बच्चो संभाल के
हम लाये हैं तूफ़ान से किश्ती निकाल के...

एटम बमों के ज़ोर पे ऐंठी है ये दुनिया
बारूद के इक ढेर पे बैठी है ये दुनिया
तुम हर क़दम उठाना जरा देखभाल के
इस देश को रखना मेरे बच्चो संभाल के
हम लाये हैं तूफ़ान से किश्ती निकाल के...

आराम की तुम भूल भुलय्या में न भूलो
सपनों के हिंडोलों में मगन हो के न झूलो
अब वक़्त आ गया मेरे हंसते हुए फूलो
उठो छलांग मार के आकाश को छू लो
तुम गाड़ दो गगन में तिरंगा उछाल के
इस देश को रखना मेरे बच्चो संभाल के
हम लाये हैं तूफ़ान से किश्ती निकाल के...


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