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07:51, 7 नवम्बर 2017 के समय का अवतरण
कर्म अर्थात् वह जो किया जाये। काम या करनी। वे कार्य जो नैतिक या धार्मिक दृष्टि से कर्तव्य समझकर करने होते हैं। जैसे- विद्वानों का अध्यापन।
- वे धार्मिक कार्य जो शास्त्रीय विधि-विधान से करने होते हैं अर्थात् शास्त्रविहित कर्म। जैसे- विवाह कर्म, अंत्येष्टि कर्म आदि।
- 'ब्रह्मवैवर्त पुराण' के अनुसार कर्म दो प्रकार के होते हैं-
- शुभ
- अशुभ
- वेदोक्त कर्म शुभ हैं। इनके प्रभाव से प्राणी कल्याण के भागी होते हैं। वेद में जिसका स्थान नहीं है, वह अशुभ कर्म नरकप्रद है।[1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ ब्रह्म वैवर्त पुराण पृ. 253