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07:55, 7 नवम्बर 2017 के समय का अवतरण
कहत सुनत सुमिरत सुठि नीके
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कवि | गोस्वामी तुलसीदास |
मूल शीर्षक | रामचरितमानस |
मुख्य पात्र | राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि |
प्रकाशक | गीता प्रेस गोरखपुर |
भाषा | अवधी भाषा |
शैली | सोरठा, चौपाई, छंद और दोहा |
संबंधित लेख | दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा |
काण्ड | बालकाण्ड |
कहत सुनत सुमिरत सुठि नीके। राम लखन सम प्रिय तुलसी के॥ |
- भावार्थ-
ये कहने, सुनने और स्मरण करने में बहुत ही अच्छे हैं, तुलसीदास को तो राम-लक्ष्मण के समान प्यारे हैं। इनका ('र' और 'म' का) अलग-अलग वर्णन करने में प्रीति बिलगाती है (अर्थात् बीज मंत्र की दृष्टि से इनके उच्चारण, अर्थ और फल में भिन्नता दिख पड़ती है), परंतु हैं ये जीव और ब्रह्म के समान स्वभाव से ही साथ रहने वाले।
कहत सुनत सुमिरत सुठि नीके |
चौपाई- मात्रिक सम छन्द का भेद है। प्राकृत तथा अपभ्रंश के 16 मात्रा के वर्णनात्मक छन्दों के आधार पर विकसित हिन्दी का सर्वप्रिय और अपना छन्द है। गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस में चौपाई छन्द का बहुत अच्छा निर्वाह किया है। चौपाई में चार चरण होते हैं, प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राएँ होती हैं तथा अन्त में गुरु होता है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख