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{{सूचना बक्सा कलाकार
वर्तमान निवास स्थान: चितरंजन पार्क, नई दिल्ली (भारत)
|चित्र=Rishi-Kapoor.jpg
 
|पूरा नाम=ऋषि कपूर
कार्यक्षेत्र: सितार वादक और संगीत शिक्षक
|अन्य नाम=चिंटू
 
|जन्म=[[ 4 सितंबर]], [[1952]]
==जीवन परिचय==
|जन्म भूमि=चेंबूर, [[मुंबई]]
'''पंडित देवब्रत चौधरी''' ([[अंग्रेजी]]: Pandit Debu Chaudhary, जन्म: 1935, मायमेंसिंग, वर्तमान बांग्लादेश) को भारतीय [[संगीत]] के क्षेत्र में ‘देबू’ के नाम से भी जाना जाता है। पंडित देवब्रत (देबू) चौधरी [[भारत]] के प्रमुख सितार वादक, [[भारतीय शास्त्रीय संगीत]] के क्षेत्र में एक ख्याति प्राप्त [[संगीतकार]] और [[दिल्ली विश्वविद्यालय]] में संगीत के शिक्षक रह चुके हैं। इन्होंने ‘सेनिआ संगीत घराना’ के श्री पंचू गोपाल दत्ता और संगीत आचार्य उस्ताद मुश्ताक अली खान से संगीत की शिक्षा ग्रहण की। इन्हें ‘[[पद्मभूषण]]और [[पद्मश्री]]’ जैसे प्रतिष्ठित सर्वोच्च नागरिक सम्मानों से भी अलंकृत किया जा चुका है।
|मृत्यु=मृत्यु स्थान=
 
|अभिभावक=[[राज कपूर]] और कृष्णा कपूर
ये संगीत से संबंधित कई पुस्तकों के लेखक, आठ नए संगीत रागों के जन्मदाता और बहुत से नए संगीत के धुनों के निर्माता भी हैं। इन्होंने वर्ष [[1963]] से देश-विदेश में बहुत से स्टेज शो, रेडियो और टीवी कार्यक्रमों में अपने संगीत की प्रस्तुति दी है। ये ‘सेनिया संगीत घराना’ मैहर (मध्य प्रदेश) के शास्त्रीय संगीत के ध्वज वाहक हैं। ये संगीत का शिक्षण कार्य करते हुए [[दिल्ली विश्वविद्यालय]] के संगीत संकाय के डीन और विभागाध्यक्ष भी रह चुके हैं। इनकी संगीत के मधुर धुनों की एक अपनी अलग ही विशेषता है। इन्होंने बहुत से राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार भी प्राप्त किए हैं। ये इस्कॉन मंदिर के इंडिया इंटरनेशनल सेंटर के आजीवन सदस्य भी हैं।
|पति/पत्नी=नीतू सिंह
==पारिवारिक जीवन==
|संतान=[[रनबीर कपूर]], रिधिमा कपूर
पंडित देवब्रत (चौधरी) का जन्म वर्ष [[1935]] में मायमेंसिंग (तत्कालीन भारत) वर्तमान [[बांग्लादेश]] में हुआ था। इन्होंने मात्र चार वर्ष की उम्र से ही सितार के साथ खेलना प्रारम्भ कर दिया था। उन्होंने अपने पहले सार्वजनिक संगीत कार्यक्रम का प्रदर्शन मात्र 12 वर्ष की अवस्था में ही कर दिया था। इनके संगीत के कार्यक्रम का आल इंडिया रेडिओ पर प्रथम प्रसारण 18 वर्ष की अवस्था में वर्ष [[1953]] में हुआ था।
|कर्म भूमि=[[मुंबई]]
जीवन के 38 वर्ष बिताने के बाद इन्होंने सितार का प्रशिक्षण ‘सेनिआ घराने’ के महान संगीत आचार्य उस्ताद मुश्ताक अली खान से लेना प्रारम्भ किया। इन्होंने कलकत्ता विश्वविद्यालय से अपनी शिक्षा प्राप्त की।
|कर्म-क्षेत्र=[[अभिनेता]], निर्माता व निर्देशक
[[दिल्ली विश्वविद्यालय]] से अवकाश प्राप्त करने के बाद ये वर्तमान में अपने पुत्र, पुत्री, दामाद और भतीजा-भतिजिओं के साथ चितरंजन पार्क, नई दिल्ली में रहते हैं।
|मुख्य रचनाएँ=
==शिक्षण एवं प्रशिक्षण कार्य==
|मुख्य फ़िल्में=बॉबी, प्रेम रोग, चाँदनी, फना, नसीब अपना अपना, खानदान, नसीब आदि।
इन्होंने वर्ष [[1971]] से वर्ष [[1982]] तक [[दिल्ली विश्वविद्यालय]] में [[संगीत]] विभाग के रीडर के रूप में अध्यापन का कार्य किया और वर्ष 1985 से वर्ष 1988 तक ये इसी विभाग में डीन और विभागाध्यक्ष भी रहे. इन्होंने महर्षि इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी (अब महर्षि यूनिवर्सिटी ऑफ मनेजमेंट), अमेरिका में भी वर्ष 1991 से वर्ष 1994 तक भारतीय शास्त्रीय संगीत को पाश्चात्य देशों में प्रचार-प्रसार में अपनी विशेष सेवाएं दी हैं.
|विषय=
 
|शिक्षा=स्नातक
[[दिल्ली विश्वविद्यालय]] से अवकाश ग्रहण के बाद इन्होंने एक विशेष [[संगीत]] प्रोजेक्ट पर कार्य करना प्रारम्भ किया, जो दुर्लभ संगीत वाद्य यंत्रों के द्वारा प्रस्तुत धुनों को परम्परागत ‘ध्रुपद’ और ‘ख्याल’ राग द्वारा नए राग में प्रस्तुत करने का है. यह प्रोजेक्ट आने वाली युवा पीढ़ी को [[संगीत]] के क्षेत्र में बहुत ही दुर्लभ अनुभव प्रदान करेगा.
|विद्यालय=[[मेयो कॉलेज अजमेर]]
 
|पुरस्कार-उपाधि=दो बार फ़िल्म फ़ेयर पुरस्कार, राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार
==संगीत पर आधारित नई धुनों, पुस्तकों और सीडी का निर्माण==
|प्रसिद्धि=
इन्होंने आठ नए संगीत के रागों की रचना की है, ये राग हैं- बिस्वेस्वरी, पलास-सारंग, अनुरंजनी, आशिकी ललित, स्वनान्देस्वरी, कल्याणी बिलावल, शिवमंजरी और प्रभाती मंजरी (अपनी पत्नी मंजू की स्मृति में बनाया). इसके अतिरिक्त इन्होंने संगीत पर आधारित तीन पुस्तकों की भी रचना की है, ये हैं- ‘सितार एंड इट्स टेक्निक्स’, ‘म्यूजिक ऑफ इंडिया’ और ‘ऑन इंडियन म्यूजिक’. अपने अमेरिका प्रवास के दौरान इन्होंने ‘महर्षि गन्धर्व वेद’ नाम से 24 सीडी को 24 घंटों के संगीत के लिए रिकॉर्ड कराया।
|विशेष योगदान=
इन्होंने बहुत से एल्बम और कैसेट्स का भी निर्माण EMI, HMV, ABK (USA), टीवी सीरीज, रिदम हाउस, आर्काइव म्यूजिक यूएसए, ‘टी’ सीरीज और संसार की अन्य कम्पनियों के साथ मिलकर किया है।
|नागरिकता=भारतीय
==संगीत के प्रति इनका लगाव==
|संबंधित लेख=
पंडित देबू चौधरी को दुर्लभ संगीत और वाद्य यंत्रों पर आधारित रचनाओं का संग्रह करने में  विशेष लगाव है, जिसके परिणामस्वरुप इन्होने इस अनूठी परियोजना को प्रारंभ किया। पंडित जी का यह ड्रीम प्रोजेक्ट जब पूर्ण हो जाएगा तो यह भारतीय वाद्य संगीत के इतिहास में एक मील के पत्थर से कम नहीं होगा। इनकी अन्य उपलब्धियों में वर्ष 1984 में स्वीडन में 67 दिनों में 87 व्याख्यान हैं, जो 70 से अधिक कार्यक्रमों में दिए गए थे। विश्व स्तर पर आयोजित इन कार्यक्रमों में भारत सरकार ने इनको अपना पूर्ण सहयोग दिया था।
|शीर्षक 1=
ये महान सितार वादकों के उस युग से सम्बन्ध रखते हैं, जिनमें प्रमुख हैं- उस्ताद विलायत खान, पंडित रवि शंकर और निखिल बनर्जी आदि, ये 17 फ्रेट के विशेषज्ञ हैं, जबकि अधिकांशतः सितार वादक 19 फ्रेट का सितार बजाते हैं।
|पाठ 1=
==पुरस्कार एवं सम्मान==
|शीर्षक 2=
इन्हें भारत सरकार की तरफ से ‘पद्मभूषण’ और ‘पद्मश्री’ जैसे प्रतिष्ठित सर्वोच्च नागरिक सम्मानों से भी अलंकृत किया जा चुका है। भारतीय संगीत नाटक अकादमी द्वारा इन्हें संगीत के क्षेत्र में विशेष योगदान के लिए पुरस्कृत किया जा चुका है। इन्हें कुछ समय पूर्व एशिया के एकमात्र संगीत विश्वविद्यालय ‘इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय’ खैरागढ़ (छत्तीसगढ़) द्वारा डी. लिट. की उपाधि से नवाजा जा चुका है।
|पाठ 2=
भारत सरकार के सार्वजनिक प्रसारण माध्यम ‘ऑल इंडिया रेडियो’ के 54वीं वर्षगांठ के अवसर पर वर्ष 2002 में देबू चौधरी के जीवन के इतिहास को प्रसारित किया गया।
|अन्य जानकारी=[[1998]] में अक्षय खन्ना और [[ऐश्वर्या राय बच्चन]] अभिनीत फ़िल्म 'आ अब लौट चले' का निर्देशन किया।
हाल ही के वर्षों में इन्हें [[संगीत]] के क्षेत्र में आजीवन उपलब्धियों के लिए [[दिल्ली]], [[मुंबई]] और [[कोलकाता]] के विभिन्न सांस्कृतिक केन्द्रों द्वारा विशेष सम्मान समारोहों में कई ख्यातियों एवं उपाधियों से विभूषित किया गया है।
|बाहरी कड़ियाँ=
|अद्यतन={{अद्यतन|17:06, 1 जून 2017 (IST)}}
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'''ऋषि कपूर''' ([[अंग्रेजी]]: ''Rishi Kapoor'', जन्म- [[14 सितंबर]], [[1952]], चेंबूर, [[मुंबई]]), [[हिन्दी]] फ़िल्म [[अभिनेता]], निर्माता व निर्देशक हैं। वह एक बाल कलाकार के रूप में काम कर चुके हैं। उन्हें फ़िल्म 'बॉबी' के लिए [[1974]] में सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के लिए फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार और साथ ही [[2008]] में फ़िल्मफेयर लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार सहित अन्य पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चूका हैं। उन्होंने अपनी पहली फ़िल्म 'मेरा नाम जोकर' में शानदार भूमिका के लिए [[1971]] में राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार प्राप्त किया।<ref name="aa"/>
===जीवन परिचय===
ऋषि कपूर का जन्म [[4 सितम्बर]] [[1952]] को [[मुंबई]] के चेंबूर में हुआ। ऋषि कपूर बॉलीवुड के शो मैन यानी [[राज कपूर]] के मंझले बेटे हैं। उनकी माँ का नाम कृष्णा राज कपूर था। इनका निक नेम चिंटू हैं।  इनके दो भाई हैं- रणधीर कपूर और राजीव कपूर। ऋषि के दोनों भाई उन्हीं के तरह बॉलीवुड अभिनेता हैं। इनका विवाह बॉलीवुड अभिनेत्री नीतू सिंह से हुआ है। इनके दो बच्चे हैं-  रणबीर कपूर और रिधिमा कपूर। रणबीर कपूर अपने पिता ऋषि कपूर की तरह बॉलीवुड के चॉकलेटी हीरो हैं। ऋषि कपूर की बेटी रिधिमा का विवाह बिजनेस मैन भारत साहनी से हुआ हैं। बॉलीवुड की जानी-मानी अभिनेत्री करीना कपूर और करिश्मा कपूर ऋषि कपूर की भतीजी है।<ref name="aa"/> 
===शिक्षा===
ऋषि कपूर ने अपनी प्रारम्भिक पढ़ाई अपने भाईयों के साथ कैंपियन स्कूल, मुंबई और उसके बाद आगे की पढ़ाई [[मेयो कॉलेज अजमेर]] से पूरी की। <ref name="aa">{{cite web |url=http://hindi.filmibeat.com/celebs/rishi-kapoor/biography.html|title=ऋषि  कपूर |accessmonthday=[[28 मई]] |accessyear=[[2017]] |last|first=|authorlink=|format=|publisher=hindi.filmibeat.com|language=[[हिन्दी]] }}</ref>
===अभिनय की शुरुआत===
फ़िल्मी परिवार से होने के कारण ऋषि कपूर हमेशा से ही फ़िल्मों में अभिनय करने की रूचि रखते थे। ऋषि कपूर ने बॉलीवुड में [[1970]] में अपने पिता की फ़िल्म 'मेरा नाम जोकर' से अभिनय की शुरुआत की थी। इस फ़िल्म में ऋषि ने अपने पिता के बचपन का किरदार निभाया था। उन्होंने बॉलीवुड में बतौर अभिनेता के रूप में कार्य [[1973]] में फ़िल्म 'बॉबी' से किया था। इस फ़िल्म में उनके साथ डिंपल कपाड़िया थीं। 
ऋषि कपूर ने अपने करियर में [[1973]] से [[2000]] तक 92 फ़िल्मों में रोमांटिक हीरो का किरदार निभाया है। उन्होंने बतौर सोलो लीड अभिनेता 51 फ़िल्मों में अभिनय किया है। ऋषि कपूर अपने जमाने के चॉकलेटी हीरोज में से एक थे। उन्होने बॉलीवुड कई रोमांटिक हिट फ़िल्में दी। ऋषि ने अपनी पत्नी के साथ 12 फ़िल्मों में अभिनय किया हैं।<br />
===निर्देशन कार्य===
अभिनय की दुनिया में तहलका मचाने के बाद ऋषि ने निर्देशन में भी हाथ आजमाया। उन्होंने [[1998]] में अक्षय खन्ना और [[ऐश्वर्या राय बच्चन]] अभिनीत फ़िल्म 'आ अब लौट चले' निर्देशित की।
ऋषि कपूर ने अपने करियर की शुरुआत से हमेशा ही रोमांटिक किरदार को निभाया था, लेकिन फ़िल्म 'अग्निपथ' में उनकी खलनायक के किरदार को देख सभी हतप्रभ रह गए। ऋषि को फ़िल्म अग्निपथ के लिए आईफ़ा बेस्ट नेगेटिव रोल के अवार्ड से भी नवाजा गया।
{{ऋषि कपूर का फ़िल्मी सफ़र}}
'''ऋषि कपूर के बारे में कुछ अनसुनी बातें-'''
#ऋषि कपूर बॉलीवुड के निर्माता निर्देशक-अभिनेता [[पृथ्वीराज कपूर]] के पोते है। वह कपूर खानदान की तीसरी पीढ़ी हैं।
#फ़िल्म 'बॉबी' जोकि 'मेरा नाम जोकर' का रीमेक थी, इसमें उनके पिता की पहली पसंद [[राजेश खन्ना]] थे, लेकिन पैसे ना होने के कारण उन्हें इस फ़िल्म में अपने बेटे यानि ऋषि कपूर को साइन करना पड़ा।
#ऋषि कपूर अपने जमाने के चॉकलेटी हीरो थे तो इस कारण उनका नाम कई अभिनेत्रियों के साथ जोड़ा गया।
#नीतू सिंह से विवाह होने से पहले ऋषि कपूर का नाम एक यास्मीन नाम की लड़की से भी जोड़ा गया था।
#ऋषि कपूर ने नीतू सिंह से 5 साल के लम्बे साथ के बाद शादी की थी।
#ऋषि कपूर ने अपने चालीस साल के फ़िल्मी करियर में पहली बार फ़िल्म 'अग्निपथ' के लिए ऑडिशन दिया था।  
#ऋषि कपूर ने चालीस साल के फ़िल्मी करियर में पहली बार 'अग्निपथ' में नकारत्मक भूमिका निभाई, जो उनके फैंस को बेहद पसंद आई थी।
#आपको हैरानी होगी, ऋषि कपूर और रणबीर कपूर दोनों नें ही अपनी पहली फ़िल्म में टॉवल सीन किया है।<ref name="aa"/>
===सम्मान और पुरस्कार===
#[[राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार]] द्वारा विशेष पुरस्कार - [[1970]] - फ़िल्म- 'मेरा नाम जोकर'
#फ़िल्मफेयर अवॉर्ड - [[1974]] - फ़िल्म 'बॉबी' के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेता।
#फ़िल्मफेयर लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड - [[2008]]
#[[2009]] - सिनेमा में योगदान के लिए रूसी सरकार द्वारा सम्मानित किया गया।  
#अप्सरा फ़िल्म एंड टेलीविजन प्रोड्यूसर्स गिल्ड पुरस्कार - [[2010]] - 'प्रेम आज काल' के लिए सहायक भूमिका में सर्वश्रेष्ठ अभिनेता।
# ज़ी सिने पुरस्कार - [[2011]] - नीतू सिंह के साथ सर्वश्रेष्ठ लाइफटाइम जोड़ी।
#द टाइम्स ऑफ इंडिया फ़िल्म अवॉर्ड्स (टोफ़ा) - [[2013]] - 'अग्निपथ' के लिए एक नकारात्मक भूमिका में सर्वश्रेष्ठ अभिनेता।
#[[2016]] - स्क्रीन लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड।
# स्क्रीन अवार्ड - [[2017]] - 'कपूर एंड संस' के लिए सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता।
#फ़िल्मफेयर अवॉर्ड - [[2017]] - 'कपूर एंड संस' के लिए सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता।
#ज़ी सिने पुरस्कार - [[2017]] - 'कपूर एंड संस' में सहायक भूमिका में सर्वश्रेष्ठ अभिनेता।
#ज़ी सिने पुरस्कार - [[2017]] - 'कपूर एंड संस' के लिए एक कॉमिक रोल में सर्वश्रेष्ठ अभिनेता।

12:25, 12 दिसम्बर 2017 के समय का अवतरण

वर्तमान निवास स्थान: चितरंजन पार्क, नई दिल्ली (भारत)

कार्यक्षेत्र: सितार वादक और संगीत शिक्षक

जीवन परिचय

पंडित देवब्रत चौधरी (अंग्रेजी: Pandit Debu Chaudhary, जन्म: 1935, मायमेंसिंग, वर्तमान बांग्लादेश) को भारतीय संगीत के क्षेत्र में ‘देबू’ के नाम से भी जाना जाता है। पंडित देवब्रत (देबू) चौधरी भारत के प्रमुख सितार वादक, भारतीय शास्त्रीय संगीत के क्षेत्र में एक ख्याति प्राप्त संगीतकार और दिल्ली विश्वविद्यालय में संगीत के शिक्षक रह चुके हैं। इन्होंने ‘सेनिआ संगीत घराना’ के श्री पंचू गोपाल दत्ता और संगीत आचार्य उस्ताद मुश्ताक अली खान से संगीत की शिक्षा ग्रहण की। इन्हें ‘पद्मभूषण’ और ‘पद्मश्री’ जैसे प्रतिष्ठित सर्वोच्च नागरिक सम्मानों से भी अलंकृत किया जा चुका है।

ये संगीत से संबंधित कई पुस्तकों के लेखक, आठ नए संगीत रागों के जन्मदाता और बहुत से नए संगीत के धुनों के निर्माता भी हैं। इन्होंने वर्ष 1963 से देश-विदेश में बहुत से स्टेज शो, रेडियो और टीवी कार्यक्रमों में अपने संगीत की प्रस्तुति दी है। ये ‘सेनिया संगीत घराना’ मैहर (मध्य प्रदेश) के शास्त्रीय संगीत के ध्वज वाहक हैं। ये संगीत का शिक्षण कार्य करते हुए दिल्ली विश्वविद्यालय के संगीत संकाय के डीन और विभागाध्यक्ष भी रह चुके हैं। इनकी संगीत के मधुर धुनों की एक अपनी अलग ही विशेषता है। इन्होंने बहुत से राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार भी प्राप्त किए हैं। ये इस्कॉन मंदिर के इंडिया इंटरनेशनल सेंटर के आजीवन सदस्य भी हैं।

पारिवारिक जीवन

पंडित देवब्रत (चौधरी) का जन्म वर्ष 1935 में मायमेंसिंग (तत्कालीन भारत) वर्तमान बांग्लादेश में हुआ था। इन्होंने मात्र चार वर्ष की उम्र से ही सितार के साथ खेलना प्रारम्भ कर दिया था। उन्होंने अपने पहले सार्वजनिक संगीत कार्यक्रम का प्रदर्शन मात्र 12 वर्ष की अवस्था में ही कर दिया था। इनके संगीत के कार्यक्रम का आल इंडिया रेडिओ पर प्रथम प्रसारण 18 वर्ष की अवस्था में वर्ष 1953 में हुआ था। जीवन के 38 वर्ष बिताने के बाद इन्होंने सितार का प्रशिक्षण ‘सेनिआ घराने’ के महान संगीत आचार्य उस्ताद मुश्ताक अली खान से लेना प्रारम्भ किया। इन्होंने कलकत्ता विश्वविद्यालय से अपनी शिक्षा प्राप्त की। दिल्ली विश्वविद्यालय से अवकाश प्राप्त करने के बाद ये वर्तमान में अपने पुत्र, पुत्री, दामाद और भतीजा-भतिजिओं के साथ चितरंजन पार्क, नई दिल्ली में रहते हैं।

शिक्षण एवं प्रशिक्षण कार्य

इन्होंने वर्ष 1971 से वर्ष 1982 तक दिल्ली विश्वविद्यालय में संगीत विभाग के रीडर के रूप में अध्यापन का कार्य किया और वर्ष 1985 से वर्ष 1988 तक ये इसी विभाग में डीन और विभागाध्यक्ष भी रहे. इन्होंने महर्षि इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी (अब महर्षि यूनिवर्सिटी ऑफ मनेजमेंट), अमेरिका में भी वर्ष 1991 से वर्ष 1994 तक भारतीय शास्त्रीय संगीत को पाश्चात्य देशों में प्रचार-प्रसार में अपनी विशेष सेवाएं दी हैं.

दिल्ली विश्वविद्यालय से अवकाश ग्रहण के बाद इन्होंने एक विशेष संगीत प्रोजेक्ट पर कार्य करना प्रारम्भ किया, जो दुर्लभ संगीत वाद्य यंत्रों के द्वारा प्रस्तुत धुनों को परम्परागत ‘ध्रुपद’ और ‘ख्याल’ राग द्वारा नए राग में प्रस्तुत करने का है. यह प्रोजेक्ट आने वाली युवा पीढ़ी को संगीत के क्षेत्र में बहुत ही दुर्लभ अनुभव प्रदान करेगा.

संगीत पर आधारित नई धुनों, पुस्तकों और सीडी का निर्माण

इन्होंने आठ नए संगीत के रागों की रचना की है, ये राग हैं- बिस्वेस्वरी, पलास-सारंग, अनुरंजनी, आशिकी ललित, स्वनान्देस्वरी, कल्याणी बिलावल, शिवमंजरी और प्रभाती मंजरी (अपनी पत्नी मंजू की स्मृति में बनाया). इसके अतिरिक्त इन्होंने संगीत पर आधारित तीन पुस्तकों की भी रचना की है, ये हैं- ‘सितार एंड इट्स टेक्निक्स’, ‘म्यूजिक ऑफ इंडिया’ और ‘ऑन इंडियन म्यूजिक’. अपने अमेरिका प्रवास के दौरान इन्होंने ‘महर्षि गन्धर्व वेद’ नाम से 24 सीडी को 24 घंटों के संगीत के लिए रिकॉर्ड कराया। इन्होंने बहुत से एल्बम और कैसेट्स का भी निर्माण EMI, HMV, ABK (USA), टीवी सीरीज, रिदम हाउस, आर्काइव म्यूजिक यूएसए, ‘टी’ सीरीज और संसार की अन्य कम्पनियों के साथ मिलकर किया है।

संगीत के प्रति इनका लगाव

पंडित देबू चौधरी को दुर्लभ संगीत और वाद्य यंत्रों पर आधारित रचनाओं का संग्रह करने में विशेष लगाव है, जिसके परिणामस्वरुप इन्होने इस अनूठी परियोजना को प्रारंभ किया। पंडित जी का यह ड्रीम प्रोजेक्ट जब पूर्ण हो जाएगा तो यह भारतीय वाद्य संगीत के इतिहास में एक मील के पत्थर से कम नहीं होगा। इनकी अन्य उपलब्धियों में वर्ष 1984 में स्वीडन में 67 दिनों में 87 व्याख्यान हैं, जो 70 से अधिक कार्यक्रमों में दिए गए थे। विश्व स्तर पर आयोजित इन कार्यक्रमों में भारत सरकार ने इनको अपना पूर्ण सहयोग दिया था। ये महान सितार वादकों के उस युग से सम्बन्ध रखते हैं, जिनमें प्रमुख हैं- उस्ताद विलायत खान, पंडित रवि शंकर और निखिल बनर्जी आदि, ये 17 फ्रेट के विशेषज्ञ हैं, जबकि अधिकांशतः सितार वादक 19 फ्रेट का सितार बजाते हैं।

पुरस्कार एवं सम्मान

इन्हें भारत सरकार की तरफ से ‘पद्मभूषण’ और ‘पद्मश्री’ जैसे प्रतिष्ठित सर्वोच्च नागरिक सम्मानों से भी अलंकृत किया जा चुका है। भारतीय संगीत नाटक अकादमी द्वारा इन्हें संगीत के क्षेत्र में विशेष योगदान के लिए पुरस्कृत किया जा चुका है। इन्हें कुछ समय पूर्व एशिया के एकमात्र संगीत विश्वविद्यालय ‘इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय’ खैरागढ़ (छत्तीसगढ़) द्वारा डी. लिट. की उपाधि से नवाजा जा चुका है। भारत सरकार के सार्वजनिक प्रसारण माध्यम ‘ऑल इंडिया रेडियो’ के 54वीं वर्षगांठ के अवसर पर वर्ष 2002 में देबू चौधरी के जीवन के इतिहास को प्रसारित किया गया। हाल ही के वर्षों में इन्हें संगीत के क्षेत्र में आजीवन उपलब्धियों के लिए दिल्ली, मुंबई और कोलकाता के विभिन्न सांस्कृतिक केन्द्रों द्वारा विशेष सम्मान समारोहों में कई ख्यातियों एवं उपाधियों से विभूषित किया गया है।