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==रथयात्रा==
वृन्दावन में रंग नाथ जी मन्दिर से थोड़ी दूर एक छत से ढका हुआ निर्मित भवन है, जिसमें भगवान का रथ रखा जाता है। यह लकड़ी का बना हुआ है और विशालकाय है। यह रथ वर्ष में केवल एक बार ब्रह्मोत्सव के समय चैत्र में बाहर निकाला जाता है।
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यह ब्रह्मोत्सव-मेला दस दिन तक लगता है। प्रतिदिन मन्दिर से भगवान रथ में जाते हैं। सड़क से चल कर रथ 690 गज़ रंगजी के बाग़ तक जाता है जहाँ स्वागत के लिए मंच बना हुआ है। इस जलूस के साथ संगीत, सुगन्ध सामग्री और मशालें रहती हैं। जिस दिन रथ प्रयोग में लाया जाता है, उस दिन अष्टधातु की मूर्ति रथ के मध्य स्थापित की जाती है। इसके दोनों ओर चौरधारी ब्राह्मण खड़े रहते हैं।
 
भीड़ के साथ सेठ लोग भी जब-तब रथ के रस्से को पकड़ कर खींचते हैं। लगभग ढाई घन्टे के अन्तराल में काफ़ी ज़ोर लगाकर यह दूरी पार कर ली जाती है। आगामी दिन शाम की बेला में आतिशबाज़ी का शानदार प्रदर्शन किया जाता है। आस-पास के दर्शनार्थियों की भीड़ भी इस अवसर पर एकत्र होती है। अन्य दिनों जब रथ प्रयोग में नहीं आता तो भगवान की यात्रा के लिए कई वाहन रहते हैं। कभी जड़ाऊ पालकी तो कभी पुण्य कोठी, तो कभी सिंहासन होता है। कभी [[कदम्ब]] तो कभी [[कल्पवृक्ष]] रहता है।


वृन्दावन में रंग नाथ जी मन्दिर से थोड़ी दूर एक छत से ढका हुआ निर्मित भवन है, जिसमें भगवान का रथ रखा जाता है। यह लकड़ी का बना हुआ है और विशालकाय है। यह रथ वर्ष में केवल एक बार ब्रह्मोत्सव के समय चैत्र में बाहर निकाला जाता है।
कभी-कभी किसी उपदेवता को भी वाहन के रूप में प्रयोग किया जाता है। जैसे- [[सूर्य देवता|सूरज]], [[गरुड़]], [[हनुमान]] या [[शेषनाग]]। कभी घोड़ा, हाथी, सिंह, राजहंस या पौराणिक शरभ जैसे चतुष्पद भी प्रयोग में लाये जाते हैं।
[[चित्र:Rath Yatra Rang Nath Ji Temple Vrindavan Mathura 3 .jpg|thumb|left|250px|रथ का मेला [[वृन्दावन]]]]
यह ब्रह्मोत्सव-मेला दस दिन तक लगता है। प्रतिदिन मन्दिर से भगवान रथ में जाते हैं। सड़क से चल कर रथ 690 गज़ रंगजी के बाग़ तक जाता है जहाँ स्वागत के लिए मंच बना हुआ है। इस जलूस के साथ संगीत, सुगन्ध सामग्री और मशालें रहती हैं। जिस दिन रथ प्रयोग में लाया जाता है, उस दिन अष्टधातु की मूर्ति रथ के मध्य स्थापित की जाती है। इसके दोनों ओर चौरधारी ब्राह्मण खड़े रहते हैं। भीड़ के साथ सेठ लोग भी जब-तब रथ के रस्से को पकड कर खींचतें हैं। लगभग ढ़ाई घन्टे के अन्तराल में काफ़ी ज़ोर लगाकर यह दूरी पार कर ली जाती है। अगामी दिन शाम की बेला में आतिशबाज़ी का शानदार प्रदर्शन किया जाता है। आसपास के दर्शनार्थियों की भीड़ भी इस अवसर पर एकत्र होती है। अन्य दिनों जब रथ प्रयोग में नहीं आता तो भगवान की यात्रा के लिए कई वाहन रहते हैं- कभी जड़ाऊ पालकी तो कभी पुण्य कोठी, तो कभी सिंहासन होता है। कभी [[कदम्ब]] तो कभी कल्पवृक्ष रहता है। कभी-कभी किसी उपदेवता को भी वाहन के रूप में प्रयोग किया जाता है। जैसे- [[सूर्य देवता|सूरज]], [[गरुड़]], [[हनुमान]] या [[शेषनाग]]। कभी घोड़ा, हाथी, सिंह, राजहंस या पौराणिक शरभ जैसे चतुष्पद भी प्रयोग में लाये जाते हैं।
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चित्र:Rath Yatra Rang Nath Ji Temple Vrindavan Mathura 7 .jpg|रथ यात्रा, रंग नाथ जी मन्दिर, [[वृन्दावन]]<br /> Rath Yatra, Rang Nath Ji Temple, Vrindavan
चित्र:Rath Yatra Rang Nath Ji Temple Vrindavan Mathura 7 .jpg|रथ यात्रा, रंग नाथ जी मन्दिर, [[वृन्दावन]]<br /> Rath Yatra, Rang Nath Ji Temple, Vrindavan
चित्र:Ratha-Yatra.jpg|रथ यात्रा, [[वृन्दावन]]
चित्र:Ratha-Yatra.jpg|रथ यात्रा, [[वृन्दावन]]
चित्र:Kallina-Ratha.jpg|रथ विटला मंदिर
चित्र:Rath Yatra Rang Nath Ji Temple Vrindavan Mathura 3 .jpg|रथ का मेला, [[वृन्दावन]]
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==संबंधित लेख==
==संबंधित लेख==
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05:20, 9 मार्च 2018 के समय का अवतरण

रथ का मेला वृन्दावन
रथ का मेला वृन्दावन, उत्तर प्रदेश
रथ का मेला वृन्दावन, उत्तर प्रदेश
अन्य नाम रथयात्रा वृन्दावन
अनुयायी हिन्दू
तिथि चैत्र कृष्ण द्वितीया से नवमी तक
उत्सव यह ब्रह्मोत्सव-मेला दस दिन तक लगता है। प्रतिदिन मन्दिर से भगवान रथ में जाते हैं। सड़क से चल कर रथ 690 गज़ रंगजी के बाग़ तक जाता है जहाँ स्वागत के लिए मंच बना हुआ है। इस जलूस के साथ संगीत, सुगन्ध सामग्री और मशालें रहती हैं।
संबंधित लेख कंस मेला, नौचन्दी मेला, लठ्ठा का मेला
अन्य जानकारी वृन्दावन में रंग नाथ जी मन्दिर से थोड़ी दूर एक छत से ढका हुआ निर्मित भवन है, जिसमें भगवान का रथ रखा जाता है। यह लकड़ी का बना हुआ है और विशालकाय है। यह रथ वर्ष में केवल एक बार ब्रह्मोत्सव के समय चैत्र में बाहर निकाला जाता है।

रथ का मेला वृन्दावन उत्तर प्रदेश में महत्त्वपूर्ण उत्सव है। होली समाप्त होते ही चैत्र कृष्ण पक्ष द्वितीया से रंग जी, वृन्दावन के मन्दिर का प्रसिद्ध रथ मेला प्रारम्भ हो जाता है। प्रतिदिन विभिन्न सोने–चांदी के वाहनों पर रंगजी की सवारी निकलती है। चैत्र कृष्ण नवमी को रथ का मेला तथा दसवीं को भव्य आतिशबाज़ी होती है। यह बहुत बड़ा मेला होता है।


इन्हें भी देखें: गोविन्द देव मन्दिर वृन्दावन एवं रंग नाथ जी मन्दिर वृन्दावन

रथयात्रा

वृन्दावन में रंग नाथ जी मन्दिर से थोड़ी दूर एक छत से ढका हुआ निर्मित भवन है, जिसमें भगवान का रथ रखा जाता है। यह लकड़ी का बना हुआ है और विशालकाय है। यह रथ वर्ष में केवल एक बार ब्रह्मोत्सव के समय चैत्र में बाहर निकाला जाता है।

रथ का मेला वृन्दावन

यह ब्रह्मोत्सव-मेला दस दिन तक लगता है। प्रतिदिन मन्दिर से भगवान रथ में जाते हैं। सड़क से चल कर रथ 690 गज़ रंगजी के बाग़ तक जाता है जहाँ स्वागत के लिए मंच बना हुआ है। इस जलूस के साथ संगीत, सुगन्ध सामग्री और मशालें रहती हैं। जिस दिन रथ प्रयोग में लाया जाता है, उस दिन अष्टधातु की मूर्ति रथ के मध्य स्थापित की जाती है। इसके दोनों ओर चौरधारी ब्राह्मण खड़े रहते हैं।

भीड़ के साथ सेठ लोग भी जब-तब रथ के रस्से को पकड़ कर खींचते हैं। लगभग ढाई घन्टे के अन्तराल में काफ़ी ज़ोर लगाकर यह दूरी पार कर ली जाती है। आगामी दिन शाम की बेला में आतिशबाज़ी का शानदार प्रदर्शन किया जाता है। आस-पास के दर्शनार्थियों की भीड़ भी इस अवसर पर एकत्र होती है। अन्य दिनों जब रथ प्रयोग में नहीं आता तो भगवान की यात्रा के लिए कई वाहन रहते हैं। कभी जड़ाऊ पालकी तो कभी पुण्य कोठी, तो कभी सिंहासन होता है। कभी कदम्ब तो कभी कल्पवृक्ष रहता है।

कभी-कभी किसी उपदेवता को भी वाहन के रूप में प्रयोग किया जाता है। जैसे- सूरज, गरुड़, हनुमान या शेषनाग। कभी घोड़ा, हाथी, सिंह, राजहंस या पौराणिक शरभ जैसे चतुष्पद भी प्रयोग में लाये जाते हैं।

वीथिका

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