"ज्योतिबा फुले": अवतरणों में अंतर
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[[महाराष्ट्र]] में सर्वप्रथम अछूतोद्धार और महिला शिक्षा का काम आरंभ करने वाले | |चित्र=Jyotirao-phule.jpg | ||
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'''ज्योतिराव गोविंदराव फुले''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Jyotirao Govindrao Phule'' प्रसिद्ध नाम: 'ज्योतिबा फुले', जन्म: [[11 अप्रॅल]], 1827 ई. - मृत्यु: [[28 नवम्बर]], [[1890]] ई.) [[महाराष्ट्र]] में सर्वप्रथम अछूतोद्धार और महिला शिक्षा का काम आरंभ करने वाले महान् भारतीय विचारक, समाज सेवी, लेखक, दार्शनिक तथा क्रान्तिकारी कार्यकर्ता थे। | |||
==जीवन परिचय== | |||
ज्योतिबा फुले का जन्म 11 अप्रॅल, 1827 ई. में [[पुणे]] में हुआ था। उनका [[परिवार]] कई पीढ़ी पहले [[सतारा]] से पुणे फूलों के गजरे आदि बनाने का काम करने लगा था। इसलिए माली के काम में लगे ये लोग 'फुले' के नाम से जाने जाते थे। ज्योतिबा ने कुछ समय पहले तक [[मराठी]] में अध्ययन किया। परंतु लोगों के यह कहने पर कि पढ़ने से तुम्हारा पुत्र किसी काम का नहीं रह जाएगा, पिता गोविंद राम ने उन्हें स्कूल से छुड़ा दिया। जब लोगों ने उन्हें समझाया तो तीव्र बुद्धि के बालक को फिर स्कूल जाने का अवसर मिला और 21 वर्ष की उम्र में उन्होंने [[अंग्रेज़ी]] की सातवीं कक्षा की पढ़ाई पूरी की। | |||
==विवाह== | ==विवाह== | ||
ज्योतिबा फुले का विवाह 1840 में [[सावित्रीबाई फुले|सावित्री बाई]] से हुआ था। | ज्योतिबा फुले का विवाह 1840 में [[सावित्रीबाई फुले|सावित्री बाई]] से हुआ था।[[चित्र:Mahatma-phule.jpg|thumb|left|ज्योतिबा फुले]] | ||
==विद्यालय की स्थापना== | ==विद्यालय की स्थापना== | ||
ज्योतिबा की संत-महत्माओं की जीवनियाँ पढ़ने में बड़ी रुचि थी। उन्हें ज्ञान हुआ कि जब भगवान के सामने सब नर-नारी समान हैं तो उनमें ऊँच-नीच का भेद क्यों होना | ज्योतिबा की संत-महत्माओं की जीवनियाँ पढ़ने में बड़ी रुचि थी। उन्हें ज्ञान हुआ कि जब भगवान के सामने सब नर-नारी समान हैं तो उनमें ऊँच-नीच का भेद क्यों होना चाहिए। स्त्रियों की दशा सुधारने और उनकी शिक्षा के लिए ज्योतिबा ने 1854 में एक स्कूल खोला। यह इस काम के लिए देश में पहला विद्यालय था। लड़कियों को पढ़ाने के लिए अध्यापिका नहीं मिली तो उन्होंने कुछ दिन स्वयं यह काम करके अपनी पत्नी सावित्री को इस योग्य बना दिया। उच्च वर्ग के लोगों ने आरंभ से ही उनके काम में बाधा डालने की चेष्टा की, किंतु जब फुले आगे बढ़ते ही गए तो उनके पिता पर दबाब डालकर पति-पत्नी को घर से निकालवा दिया इससे कुछ समय के लिए उनका काम रुका अवश्य, पर शीघ्र ही उन्होंने एक के बाद एक बालिकाओं के तीन स्कूल खोल दिए। | ||
==जाति से बहिष्कृत== | ==जाति से बहिष्कृत== | ||
अछूतोद्धार के लिए ज्योतिबा ने उनके अछूत बच्चों को अपने घर पर पाला और अपने घर की पानी की टंकी उनके लिए खोल दी। परिणामस्वरूप उन्हें जाति से बहिष्कृत कर दिया गया। कुछ समय तक एक मिशन स्कूल में अध्यापक का काम मिलने से ज्योतिबा का परिचय पश्चिम के विचारों से भी हुआ, पर [[ईसाई धर्म]] ने उन्हें कभी आकृष्ट नहीं किया। 1853 में पति-पत्नी ने अपने मकान में प्रौढ़ों के लिए रात्रि पाठशाला खोली। इन सब कामों से उनकी बढ़ती ख्याति देखकर प्रतिक्रियावादियों ने एक बार दो हत्यारों को उन्हें मारने के लिए तैयार किया था, पर वे ज्योतिबा की समाजसेवा देखकर उनके शिष्य बन गए। | अछूतोद्धार के लिए ज्योतिबा ने उनके अछूत बच्चों को अपने घर पर पाला और अपने घर की पानी की टंकी उनके लिए खोल दी। परिणामस्वरूप उन्हें जाति से बहिष्कृत कर दिया गया। कुछ समय तक एक मिशन स्कूल में अध्यापक का काम मिलने से ज्योतिबा का परिचय पश्चिम के विचारों से भी हुआ, पर [[ईसाई धर्म]] ने उन्हें कभी आकृष्ट नहीं किया। 1853 में पति-पत्नी ने अपने मकान में प्रौढ़ों के लिए रात्रि पाठशाला खोली। इन सब कामों से उनकी बढ़ती ख्याति देखकर प्रतिक्रियावादियों ने एक बार दो हत्यारों को उन्हें मारने के लिए तैयार किया था, पर वे ज्योतिबा की [[समाजसेवा]] देखकर उनके शिष्य बन गए। | ||
==महात्मा की उपाधि== | ==महात्मा की उपाधि== | ||
दलितों और निर्बल वर्ग को न्याय दिलाने के लिए ज्योतिबा ने 'सत्यशोधक समाज' स्थापित किया। उनकी समाजसेवा देखकर 1888 ई. में [[मुंबई]] की एक विशाल सभा में उन्हें 'महात्मा' की उपाधि दी। ज्योतिबा ने [[ब्राह्मण]]-[[पुरोहित]] के बिना ही [[विवाह संस्कार|विवाह-संस्कार]] आरंभ कराया और इसे मुंबई हाईकोर्ट से भी मान्यता मिली। वे [[बाल विवाह|बाल-विवाह]] विरोधी और [[विधवा विवाह|विधवा-विवाह]] के समर्थक थे। वे [[लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक|लोकमान्य]] के प्रशंसकों में थे। | दलितों और निर्बल वर्ग को न्याय दिलाने के लिए ज्योतिबा ने 'सत्यशोधक समाज' स्थापित किया। उनकी समाजसेवा देखकर 1888 ई. में [[मुंबई]] की एक विशाल सभा में उन्हें 'महात्मा' की उपाधि दी। ज्योतिबा ने [[ब्राह्मण]]-[[पुरोहित]] के बिना ही [[विवाह संस्कार|विवाह-संस्कार]] आरंभ कराया और इसे मुंबई हाईकोर्ट से भी मान्यता मिली। वे [[बाल विवाह|बाल-विवाह]] विरोधी और [[विधवा विवाह|विधवा-विवाह]] के समर्थक थे। वे [[लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक|लोकमान्य]] के प्रशंसकों में थे। | ||
==पुस्तक 'गुलामगिरी'== | |||
सन [[1873]] में महात्मा फुले ने '[[सत्यशोधक समाज]]' की स्थापना की थी और इसी साल उनकी पुस्तक "गुलामगिरी" का प्रकाशन भी हुआ। दोनों ही घटनाओं ने पश्चिमी और [[दक्षिण भारत]] के भावी [[इतिहास]] और चिंतन को बहुत प्रभावित किया। महात्मा फुले की किताब 'गुलामगिरी' बहुत कम पृष्ठों की एक किताब है, लेकिन इसमें बताये गये विचारों के आधार पर पश्चिमी और [[दक्षिणी भारत]] में बहुत सारे आंदोलन चले। [[उत्तर प्रदेश]] में चल रही दलित अस्मिता की लड़ाई के बहुत सारे सूत्र 'गुलामगिरी' में ढूंढ़े जा सकते हैं। [[आधुनिक भारत]] महात्मा फुले जैसी क्रांतिकारी विचारक का आभारी है।<ref>{{cite web |url=http://mohallalive.com/2009/11/03/first-book-of-dalit-identity-is-ghulamgiri/ |title= गुलामगिरी, दलित अस्मिता पर सबसे पहले बात करने वाली किताब|accessmonthday= 07 अप्रैल|accessyear= 2017|last= |first= |authorlink= |format= |publisher=mohallalive.com |language= हिन्दी}}</ref> | |||
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1890 ई. | [[1890]] ई. महान् समाज सेवी ज्योतिबा फुले का देहांत हो गया था। | ||
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05:16, 11 अप्रैल 2018 के समय का अवतरण
ज्योतिबा फुले
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पूरा नाम | ज्योतिराव गोविंदराव फुले |
अन्य नाम | महात्मा फुले |
जन्म | 11 अप्रॅल, 1827 ई. |
जन्म भूमि | पुणे, महाराष्ट्र |
मृत्यु | 28 नवम्बर, 1890 ई. |
मृत्यु स्थान | पुणे, महाराष्ट्र |
अभिभावक | पिता- गोविंदराव फुले |
पति/पत्नी | सावित्रीबाई फुले |
कर्म भूमि | महाराष्ट्र |
कर्म-क्षेत्र | समाजसेवा, दार्शनिक |
भाषा | मराठी |
पुरस्कार-उपाधि | महात्मा |
विशेष योगदान | 'सत्यशोधक समाज' की स्थापना |
नागरिकता | भारतीय |
अन्य जानकारी | ज्योतिबा फुले ने ब्राह्मण-पुरोहित के बिना ही विवाह-संस्कार आरंभ कराया और इसे मुंबई हाईकोर्ट से भी मान्यता मिली। |
बाहरी कड़ियाँ | महात्मा फुले वेबसाइट |
ज्योतिराव गोविंदराव फुले (अंग्रेज़ी: Jyotirao Govindrao Phule प्रसिद्ध नाम: 'ज्योतिबा फुले', जन्म: 11 अप्रॅल, 1827 ई. - मृत्यु: 28 नवम्बर, 1890 ई.) महाराष्ट्र में सर्वप्रथम अछूतोद्धार और महिला शिक्षा का काम आरंभ करने वाले महान् भारतीय विचारक, समाज सेवी, लेखक, दार्शनिक तथा क्रान्तिकारी कार्यकर्ता थे।
जीवन परिचय
ज्योतिबा फुले का जन्म 11 अप्रॅल, 1827 ई. में पुणे में हुआ था। उनका परिवार कई पीढ़ी पहले सतारा से पुणे फूलों के गजरे आदि बनाने का काम करने लगा था। इसलिए माली के काम में लगे ये लोग 'फुले' के नाम से जाने जाते थे। ज्योतिबा ने कुछ समय पहले तक मराठी में अध्ययन किया। परंतु लोगों के यह कहने पर कि पढ़ने से तुम्हारा पुत्र किसी काम का नहीं रह जाएगा, पिता गोविंद राम ने उन्हें स्कूल से छुड़ा दिया। जब लोगों ने उन्हें समझाया तो तीव्र बुद्धि के बालक को फिर स्कूल जाने का अवसर मिला और 21 वर्ष की उम्र में उन्होंने अंग्रेज़ी की सातवीं कक्षा की पढ़ाई पूरी की।
विवाह
ज्योतिबा फुले का विवाह 1840 में सावित्री बाई से हुआ था।
विद्यालय की स्थापना
ज्योतिबा की संत-महत्माओं की जीवनियाँ पढ़ने में बड़ी रुचि थी। उन्हें ज्ञान हुआ कि जब भगवान के सामने सब नर-नारी समान हैं तो उनमें ऊँच-नीच का भेद क्यों होना चाहिए। स्त्रियों की दशा सुधारने और उनकी शिक्षा के लिए ज्योतिबा ने 1854 में एक स्कूल खोला। यह इस काम के लिए देश में पहला विद्यालय था। लड़कियों को पढ़ाने के लिए अध्यापिका नहीं मिली तो उन्होंने कुछ दिन स्वयं यह काम करके अपनी पत्नी सावित्री को इस योग्य बना दिया। उच्च वर्ग के लोगों ने आरंभ से ही उनके काम में बाधा डालने की चेष्टा की, किंतु जब फुले आगे बढ़ते ही गए तो उनके पिता पर दबाब डालकर पति-पत्नी को घर से निकालवा दिया इससे कुछ समय के लिए उनका काम रुका अवश्य, पर शीघ्र ही उन्होंने एक के बाद एक बालिकाओं के तीन स्कूल खोल दिए।
जाति से बहिष्कृत
अछूतोद्धार के लिए ज्योतिबा ने उनके अछूत बच्चों को अपने घर पर पाला और अपने घर की पानी की टंकी उनके लिए खोल दी। परिणामस्वरूप उन्हें जाति से बहिष्कृत कर दिया गया। कुछ समय तक एक मिशन स्कूल में अध्यापक का काम मिलने से ज्योतिबा का परिचय पश्चिम के विचारों से भी हुआ, पर ईसाई धर्म ने उन्हें कभी आकृष्ट नहीं किया। 1853 में पति-पत्नी ने अपने मकान में प्रौढ़ों के लिए रात्रि पाठशाला खोली। इन सब कामों से उनकी बढ़ती ख्याति देखकर प्रतिक्रियावादियों ने एक बार दो हत्यारों को उन्हें मारने के लिए तैयार किया था, पर वे ज्योतिबा की समाजसेवा देखकर उनके शिष्य बन गए।
महात्मा की उपाधि
दलितों और निर्बल वर्ग को न्याय दिलाने के लिए ज्योतिबा ने 'सत्यशोधक समाज' स्थापित किया। उनकी समाजसेवा देखकर 1888 ई. में मुंबई की एक विशाल सभा में उन्हें 'महात्मा' की उपाधि दी। ज्योतिबा ने ब्राह्मण-पुरोहित के बिना ही विवाह-संस्कार आरंभ कराया और इसे मुंबई हाईकोर्ट से भी मान्यता मिली। वे बाल-विवाह विरोधी और विधवा-विवाह के समर्थक थे। वे लोकमान्य के प्रशंसकों में थे।
पुस्तक 'गुलामगिरी'
सन 1873 में महात्मा फुले ने 'सत्यशोधक समाज' की स्थापना की थी और इसी साल उनकी पुस्तक "गुलामगिरी" का प्रकाशन भी हुआ। दोनों ही घटनाओं ने पश्चिमी और दक्षिण भारत के भावी इतिहास और चिंतन को बहुत प्रभावित किया। महात्मा फुले की किताब 'गुलामगिरी' बहुत कम पृष्ठों की एक किताब है, लेकिन इसमें बताये गये विचारों के आधार पर पश्चिमी और दक्षिणी भारत में बहुत सारे आंदोलन चले। उत्तर प्रदेश में चल रही दलित अस्मिता की लड़ाई के बहुत सारे सूत्र 'गुलामगिरी' में ढूंढ़े जा सकते हैं। आधुनिक भारत महात्मा फुले जैसी क्रांतिकारी विचारक का आभारी है।[1]
निधन
1890 ई. महान् समाज सेवी ज्योतिबा फुले का देहांत हो गया था।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ गुलामगिरी, दलित अस्मिता पर सबसे पहले बात करने वाली किताब (हिन्दी) mohallalive.com। अभिगमन तिथि: 07 अप्रैल, 2017।
बाहरी कड़ियाँ
संबंधित लेख
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