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भाजपा और उसके सहयोगियों का झगड़ा एक तरफ़ था और [[कांग्रेस]] तथा उसके सहयोगियों का झगड़ा दूसरी तरफ़। भाजपा ने राजग के सदस्य के रूप में चुनाव लड़ा। हालांकि उसके सीटों के बंटवारे को लेकर इसके समझौते राजग के बाहर कुछ मजबूत क्षेत्रीय दलों के साथ भी थे, जैसे- [[आंध्र प्रदेश]] में तेलुगू देशम पार्टी और [[तमिलनाडु]] में अखिल भारतीय अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम पार्टी। आगे के चुनावों में कांग्रेस के नेतृत्व में राष्ट्रीय स्तर का विपक्षी मोर्चा बनाने की कोशिश हुई। अंत में किसी भी प्रकार का समझौता नहीं हो पाया, लेकिन क्षेत्रीय स्तर पर कई राज्यों में कांग्रेस और क्षेत्रीय पार्टियों में गठबंधन हो गया। ऐसा प्रथम बार हुआ था कि कांग्रेस ने संसदीय चुनावों में इस तरह के गठबंधन के साथ चुनाव लड़ा।
भाजपा और उसके सहयोगियों का झगड़ा एक तरफ़ था और [[कांग्रेस]] तथा उसके सहयोगियों का झगड़ा दूसरी तरफ़। भाजपा ने राजग के सदस्य के रूप में चुनाव लड़ा। हालांकि उसके सीटों के बंटवारे को लेकर इसके समझौते राजग के बाहर कुछ मजबूत क्षेत्रीय दलों के साथ भी थे, जैसे- [[आंध्र प्रदेश]] में तेलुगू देशम पार्टी और [[तमिलनाडु]] में अखिल भारतीय अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम पार्टी। आगे के चुनावों में कांग्रेस के नेतृत्व में राष्ट्रीय स्तर का विपक्षी मोर्चा बनाने की कोशिश हुई। अंत में किसी भी प्रकार का समझौता नहीं हो पाया, लेकिन क्षेत्रीय स्तर पर कई राज्यों में कांग्रेस और क्षेत्रीय पार्टियों में गठबंधन हो गया। ऐसा प्रथम बार हुआ था कि कांग्रेस ने संसदीय चुनावों में इस तरह के गठबंधन के साथ चुनाव लड़ा।
==कांग्रेस की बड़ी जीत==
==कांग्रेस की बड़ी जीत==
वामपंथी दलों ने अपने मजबूत क्षेत्रों, [[पश्चिम बंगाल]], [[त्रिपुरा]] और [[केरल]] में अपने दम पर चुनाव लड़ा और कांग्रेस और राजग दोनों का सामना किया। जबकि अन्य राज्यों, [[पंजाब]] और आंध्र प्रदेश में उन्होंने कांग्रेस के साथ सीटें साझा कीं। तमिलनाडु में वे द्रमुक के नेतृत्व वाले जनतांत्रिक प्रगतिशील गठबंधन का हिस्सा थे। '[[बहुजन समाज पार्टी]]' और '[[समाजवादी पार्टी]]' ने कांग्रेस या भाजपा दोनों में से किसी के साथ भी जाने से इंकार कर दिया। ये दोनों प्रमुख पार्टियाँ [[भारत]] के सर्वाधिक आबादी वाले राज्य [[उत्तर प्रदेश]] में आधारित हैं। चुनाव पूर्व होने वाली भविष्यवाणियों में [[भाजपा]] के लिए भारी बहुमत की बात कही गई थी, लेकिन एग्जिट पॉल में त्रिशंकु संसद की बात की जाने लगी। यह भी आम धारणा है कि जैसे ही भाजपा ने यह मानना आरंभ किया की चुनाव पूरी तरह से उसके पक्ष में नहीं हुए हैं, इसने भाजपा के अभियान का ध्यान 'इंडिया शाइनिंग' से हटाकर स्थिरता के मुद्दों पर केंद्रित कर दिया। जिस [[कांग्रेस]] को भाजपा ने "पुराने ढ़ंग वाली" का नाम दिया था, उसे मुख्यतः गरीबों, ग्रामीणों, निचली जातियों और अल्पसंख्यक मतदाताओं का भारी समर्थन मिला, जिससे कांग्रेस ने बड़ी जीत हासिल की।
वामपंथी दलों ने अपने मजबूत क्षेत्रों, [[पश्चिम बंगाल]], [[त्रिपुरा]] और [[केरल]] में अपने दम पर चुनाव लड़ा और कांग्रेस और राजग दोनों का सामना किया। जबकि अन्य राज्यों, [[पंजाब]] और आंध्र प्रदेश में उन्होंने कांग्रेस के साथ सीटें साझा कीं। तमिलनाडु में वे द्रमुक के नेतृत्व वाले जनतांत्रिक प्रगतिशील गठबंधन का हिस्सा थे। '[[बहुजन समाज पार्टी]]' और '[[समाजवादी पार्टी]]' ने कांग्रेस या भाजपा दोनों में से किसी के साथ भी जाने से इंकार कर दिया। ये दोनों प्रमुख पार्टियाँ [[भारत]] के सर्वाधिक आबादी वाले राज्य [[उत्तर प्रदेश]] में आधारित हैं। चुनाव पूर्व होने वाली भविष्यवाणियों में [[भाजपा]] के लिए भारी बहुमत की बात कही गई थी, लेकिन एग्जिट पॉल में त्रिशंकु संसद की बात की जाने लगी। यह भी आम धारणा है कि जैसे ही भाजपा ने यह मानना आरंभ किया की चुनाव पूरी तरह से उसके पक्ष में नहीं हुए हैं, इसने भाजपा के अभियान का ध्यान 'इंडिया शाइनिंग' से हटाकर स्थिरता के मुद्दों पर केंद्रित कर दिया। जिस [[कांग्रेस]] को भाजपा ने "पुराने ढ़ंग वाली" का नाम दिया था, उसे मुख्यतः ग़रीबों, ग्रामीणों, निचली जातियों और अल्पसंख्यक मतदाताओं का भारी समर्थन मिला, जिससे कांग्रेस ने बड़ी जीत हासिल की।
==मनमोहन सिंह का प्रधानमंत्री बनना==
==मनमोहन सिंह का प्रधानमंत्री बनना==
भारतीय जनता पार्टी ने [[13 मई]] को अपनी हार को स्वीकार किया। कांग्रेस अपने सहयोगियों की मदद और [[सोनिया गांधी]] के मार्गदर्शन में 543 में से 335 सदस्यों <ref>बसपा, सपा, एमडीएमके और वाम मोर्चा के बाहरी समर्थन सहित</ref> का बहुमत प्राप्त करने में सफल रही। चुनाव के बाद हुए इस गठबंधन को "[[संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन]]" कहा गया। सोनिया गांधी ने [[प्रधानमंत्री]] बनने से इनकार कर दिया। उनके इस फैसले ने लगभग सभी पार्टियों को अचम्भित कर दिया था। उन्होंने पूर्व वित्तमंत्री [[डॉ. मनमोहन सिंह]] को प्रधानमंत्री बनाने की बात कही। मनमोहन सिंह इससे पहले [[पी. वी. नरसिंह राव]] की सरकार में वर्ष [[1990]] के दशक की शुरुआत में पार्टी के लिए अपनी सेवाएँ दे चुके थे।
भारतीय जनता पार्टी ने [[13 मई]] को अपनी हार को स्वीकार किया। कांग्रेस अपने सहयोगियों की मदद और [[सोनिया गांधी]] के मार्गदर्शन में 543 में से 335 सदस्यों <ref>बसपा, सपा, एमडीएमके और वाम मोर्चा के बाहरी समर्थन सहित</ref> का बहुमत प्राप्त करने में सफल रही। चुनाव के बाद हुए इस गठबंधन को "[[संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन]]" कहा गया। सोनिया गांधी ने [[प्रधानमंत्री]] बनने से इनकार कर दिया। उनके इस फैसले ने लगभग सभी पार्टियों को अचम्भित कर दिया था। उन्होंने पूर्व वित्तमंत्री [[डॉ. मनमोहन सिंह]] को प्रधानमंत्री बनाने की बात कही। मनमोहन सिंह इससे पहले [[पी. वी. नरसिंह राव]] की सरकार में वर्ष [[1990]] के दशक की शुरुआत में पार्टी के लिए अपनी सेवाएँ दे चुके थे।
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प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की देखरेख में भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली राजग सरकार ने अपने कार्यकाल के पांच वर्ष पूरे किये और 20 अप्रैल से 10 मई, 2004 के मध्य चार चरणों के लोकसभा चुनाव सम्पन्न हुए। 1990 के दशक के अन्य चुनावों की तुलना में इस लोकसभा चुनाव में दो व्यक्तियों का टकराव, अटल बिहारी वाजपेयी और सोनिया गांधी, ही मुख्य रूप से देखा गया।

पार्टी सहयोगियों का झगड़ा

भाजपा और उसके सहयोगियों का झगड़ा एक तरफ़ था और कांग्रेस तथा उसके सहयोगियों का झगड़ा दूसरी तरफ़। भाजपा ने राजग के सदस्य के रूप में चुनाव लड़ा। हालांकि उसके सीटों के बंटवारे को लेकर इसके समझौते राजग के बाहर कुछ मजबूत क्षेत्रीय दलों के साथ भी थे, जैसे- आंध्र प्रदेश में तेलुगू देशम पार्टी और तमिलनाडु में अखिल भारतीय अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम पार्टी। आगे के चुनावों में कांग्रेस के नेतृत्व में राष्ट्रीय स्तर का विपक्षी मोर्चा बनाने की कोशिश हुई। अंत में किसी भी प्रकार का समझौता नहीं हो पाया, लेकिन क्षेत्रीय स्तर पर कई राज्यों में कांग्रेस और क्षेत्रीय पार्टियों में गठबंधन हो गया। ऐसा प्रथम बार हुआ था कि कांग्रेस ने संसदीय चुनावों में इस तरह के गठबंधन के साथ चुनाव लड़ा।

कांग्रेस की बड़ी जीत

वामपंथी दलों ने अपने मजबूत क्षेत्रों, पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा और केरल में अपने दम पर चुनाव लड़ा और कांग्रेस और राजग दोनों का सामना किया। जबकि अन्य राज्यों, पंजाब और आंध्र प्रदेश में उन्होंने कांग्रेस के साथ सीटें साझा कीं। तमिलनाडु में वे द्रमुक के नेतृत्व वाले जनतांत्रिक प्रगतिशील गठबंधन का हिस्सा थे। 'बहुजन समाज पार्टी' और 'समाजवादी पार्टी' ने कांग्रेस या भाजपा दोनों में से किसी के साथ भी जाने से इंकार कर दिया। ये दोनों प्रमुख पार्टियाँ भारत के सर्वाधिक आबादी वाले राज्य उत्तर प्रदेश में आधारित हैं। चुनाव पूर्व होने वाली भविष्यवाणियों में भाजपा के लिए भारी बहुमत की बात कही गई थी, लेकिन एग्जिट पॉल में त्रिशंकु संसद की बात की जाने लगी। यह भी आम धारणा है कि जैसे ही भाजपा ने यह मानना आरंभ किया की चुनाव पूरी तरह से उसके पक्ष में नहीं हुए हैं, इसने भाजपा के अभियान का ध्यान 'इंडिया शाइनिंग' से हटाकर स्थिरता के मुद्दों पर केंद्रित कर दिया। जिस कांग्रेस को भाजपा ने "पुराने ढ़ंग वाली" का नाम दिया था, उसे मुख्यतः ग़रीबों, ग्रामीणों, निचली जातियों और अल्पसंख्यक मतदाताओं का भारी समर्थन मिला, जिससे कांग्रेस ने बड़ी जीत हासिल की।

मनमोहन सिंह का प्रधानमंत्री बनना

भारतीय जनता पार्टी ने 13 मई को अपनी हार को स्वीकार किया। कांग्रेस अपने सहयोगियों की मदद और सोनिया गांधी के मार्गदर्शन में 543 में से 335 सदस्यों [1] का बहुमत प्राप्त करने में सफल रही। चुनाव के बाद हुए इस गठबंधन को "संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन" कहा गया। सोनिया गांधी ने प्रधानमंत्री बनने से इनकार कर दिया। उनके इस फैसले ने लगभग सभी पार्टियों को अचम्भित कर दिया था। उन्होंने पूर्व वित्तमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री बनाने की बात कही। मनमोहन सिंह इससे पहले पी. वी. नरसिंह राव की सरकार में वर्ष 1990 के दशक की शुरुआत में पार्टी के लिए अपनी सेवाएँ दे चुके थे।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. बसपा, सपा, एमडीएमके और वाम मोर्चा के बाहरी समर्थन सहित

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