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'''सिर्गेय इवानविच चुप्रीनिन''' ([[अंग्रेज़ी]]:''Sergei Chuprinin'', रूसी: Сергей Иванович Чупринин) रूसी साहित्यविद, आलोचक, टीकाकार और उन्नीसवीं-बीसवीं शताब्दी के लेखकों की रचनाओं के संकलनकर्ता और संस्कृति के वाहक | [[चित्र:Sergei-Chuprinin.jpg|thumb|सिर्गेय इवानविच चुप्रीनिन]] | ||
'''सिर्गेय इवानविच चुप्रीनिन''' ([[अंग्रेज़ी]]:''Sergei Chuprinin'', रूसी: Сергей Иванович Чупринин) रूसी साहित्यविद, आलोचक, टीकाकार और उन्नीसवीं-बीसवीं शताब्दी के लेखकों की रचनाओं के संकलनकर्ता और संस्कृति के वाहक हैं। इनकी अनेक रचनाओं और लेखों का [[हिन्दी]] में [[अनुवाद]] हो चुका है, जो ’साक्षात्कार’, ’वागर्थ’ और ’दस्तावेज़’ जैसी पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए हैं। | |||
==जीवन परिचय== | ==जीवन परिचय== | ||
सिर्गेय चुप्रीनिन का जन्म [[1947]] में अर्ख़ांगेल्स्क प्रदेश के वेल्स्क नगर में हुआ। 1971 में रस्तोफ़ विश्वविद्यालय के भाषा संकाय से एम.ए. करने के बाद इन्होंने सोवियत विज्ञान अकादमी के विश्व साहित्य संस्थान से 1976 में पीएचडी की और फिर 1993 में भाषाशास्त्र में डाक्टरेट की उपाधि प्राप्त की। 1999 से सिर्गेय चुप्रीनिन प्रोफ़ेसर हैं। दिसम्बर 1993 से चुप्रीनिन ' ज़्नाम्या' ( परचम) नामक साहित्यिक पत्रिका के सम्पादक हैं। इसके साथ-साथ वे गोर्की साहित्य संस्थान में तत्याना बेक के साथ मिलकर सन 2005 तक नए कवियों के लिए [[कविता]] के सेमिनार आयोजित करते रहे। | सिर्गेय चुप्रीनिन का जन्म [[1947]] में अर्ख़ांगेल्स्क प्रदेश के वेल्स्क नगर में हुआ। 1971 में रस्तोफ़ विश्वविद्यालय के भाषा संकाय से एम.ए. करने के बाद इन्होंने सोवियत विज्ञान अकादमी के विश्व साहित्य संस्थान से 1976 में पीएचडी की और फिर 1993 में भाषाशास्त्र में डाक्टरेट की उपाधि प्राप्त की। 1999 से सिर्गेय चुप्रीनिन प्रोफ़ेसर हैं। दिसम्बर 1993 से चुप्रीनिन ' ज़्नाम्या' ( परचम) नामक साहित्यिक पत्रिका के सम्पादक हैं। इसके साथ-साथ वे गोर्की साहित्य संस्थान में तत्याना बेक के साथ मिलकर सन 2005 तक नए कवियों के लिए [[कविता]] के सेमिनार आयोजित करते रहे। | ||
==साहित्यिक परिचय== | ==साहित्यिक परिचय== | ||
1969 से चुप्रीनिन के आलोचनात्मक लेख केन्द्रीय पत्र-पत्रिकाओं और साहित्यिक पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहे हैं। अलिक्सान्द्र कुप्रीन, निकलाय उस्पेन्स्की, प्योतर बबरीकिन, व्लास दरशेविच और निकलाय गुमिल्योफ़ जैसे लेखकों की रचनावलियों के टीकाकार और संकलनकर्ता के रूप में भी सिर्गेय चुप्रीनिन ने काफ़ी नाम कमाया है। 'सुनो , साथियों , वारिसों !...रूसी सोवियत जनकविता ' (1987), 'बीसवीं शताब्दी के शुरू का मास्को, रूसी लेखकों की रचनाओं में' (1988), '1953-1956 के बीच सोवियत रूसी साहित्य की रचनाएँ ' (1989) भी इनकी उल्लेखनीय पुस्तकें हैं। इनकी अन्य पुस्तकें हैं-- 'आलोचना तो आलोचना है ' (1988) | 1969 से चुप्रीनिन के आलोचनात्मक लेख केन्द्रीय पत्र-पत्रिकाओं और साहित्यिक पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहे हैं। अलिक्सान्द्र कुप्रीन, निकलाय उस्पेन्स्की, प्योतर बबरीकिन, व्लास दरशेविच और निकलाय गुमिल्योफ़ जैसे लेखकों की रचनावलियों के टीकाकार और संकलनकर्ता के रूप में भी सिर्गेय चुप्रीनिन ने काफ़ी नाम कमाया है। 'सुनो , साथियों , वारिसों !...रूसी सोवियत जनकविता ' (1987), 'बीसवीं शताब्दी के शुरू का मास्को, रूसी लेखकों की रचनाओं में' (1988), '1953-1956 के बीच सोवियत रूसी साहित्य की रचनाएँ ' (1989) भी इनकी उल्लेखनीय पुस्तकें हैं। इनकी अन्य पुस्तकें हैं-- | ||
* 'आलोचना तो आलोचना है ' (1988) | |||
* 'नया रूस साहित्य की दुनिया ' (2003) | |||
* 'आज का रूसी साहित्य — एक मार्गदर्शिका ' (2007)। | |||
सिर्गेय चुप्रीनिन की रचनाओं का अंग्रेज़ी, बल्गारी, डच, चीनी, जर्मन, पोलिश, फ़्रांसीसी और चेक भाषाओं में अनुवाद हो चुका है। सिर्गेय चुप्रीनिन रूसी पेन सेन्टर के सदस्य हैं और बहुत से पुरस्कार प्राप्त कर चुके हैं। इसके अलावा वे स्वयं भी कई पुरस्कारों के संयोजक और उनके निर्णायक मंडलों में शामिल हैं। | |||
"सिर्गेय चुप्रीनिन की रचनाएँ रूसी आलोचना की रीढ़ हैं। उनकी बात पर मैं हमेशा विश्वास करता हूँ। उनके लेख उस बैरोमीटर की तरह हैं जो हमारे साहित्य के मौसम की ठीक-ठीक जानकारी देता है।'' -अन्द्रेय वज़्निसेंस्की | "सिर्गेय चुप्रीनिन की रचनाएँ रूसी आलोचना की रीढ़ हैं। उनकी बात पर मैं हमेशा विश्वास करता हूँ। उनके लेख उस बैरोमीटर की तरह हैं जो हमारे साहित्य के मौसम की ठीक-ठीक जानकारी देता है।'' -अन्द्रेय वज़्निसेंस्की | ||
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सिर्गेय इवानविच चुप्रीनिन (अंग्रेज़ी:Sergei Chuprinin, रूसी: Сергей Иванович Чупринин) रूसी साहित्यविद, आलोचक, टीकाकार और उन्नीसवीं-बीसवीं शताब्दी के लेखकों की रचनाओं के संकलनकर्ता और संस्कृति के वाहक हैं। इनकी अनेक रचनाओं और लेखों का हिन्दी में अनुवाद हो चुका है, जो ’साक्षात्कार’, ’वागर्थ’ और ’दस्तावेज़’ जैसी पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए हैं।
जीवन परिचय
सिर्गेय चुप्रीनिन का जन्म 1947 में अर्ख़ांगेल्स्क प्रदेश के वेल्स्क नगर में हुआ। 1971 में रस्तोफ़ विश्वविद्यालय के भाषा संकाय से एम.ए. करने के बाद इन्होंने सोवियत विज्ञान अकादमी के विश्व साहित्य संस्थान से 1976 में पीएचडी की और फिर 1993 में भाषाशास्त्र में डाक्टरेट की उपाधि प्राप्त की। 1999 से सिर्गेय चुप्रीनिन प्रोफ़ेसर हैं। दिसम्बर 1993 से चुप्रीनिन ' ज़्नाम्या' ( परचम) नामक साहित्यिक पत्रिका के सम्पादक हैं। इसके साथ-साथ वे गोर्की साहित्य संस्थान में तत्याना बेक के साथ मिलकर सन 2005 तक नए कवियों के लिए कविता के सेमिनार आयोजित करते रहे।
साहित्यिक परिचय
1969 से चुप्रीनिन के आलोचनात्मक लेख केन्द्रीय पत्र-पत्रिकाओं और साहित्यिक पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहे हैं। अलिक्सान्द्र कुप्रीन, निकलाय उस्पेन्स्की, प्योतर बबरीकिन, व्लास दरशेविच और निकलाय गुमिल्योफ़ जैसे लेखकों की रचनावलियों के टीकाकार और संकलनकर्ता के रूप में भी सिर्गेय चुप्रीनिन ने काफ़ी नाम कमाया है। 'सुनो , साथियों , वारिसों !...रूसी सोवियत जनकविता ' (1987), 'बीसवीं शताब्दी के शुरू का मास्को, रूसी लेखकों की रचनाओं में' (1988), '1953-1956 के बीच सोवियत रूसी साहित्य की रचनाएँ ' (1989) भी इनकी उल्लेखनीय पुस्तकें हैं। इनकी अन्य पुस्तकें हैं--
- 'आलोचना तो आलोचना है ' (1988)
- 'नया रूस साहित्य की दुनिया ' (2003)
- 'आज का रूसी साहित्य — एक मार्गदर्शिका ' (2007)।
सिर्गेय चुप्रीनिन की रचनाओं का अंग्रेज़ी, बल्गारी, डच, चीनी, जर्मन, पोलिश, फ़्रांसीसी और चेक भाषाओं में अनुवाद हो चुका है। सिर्गेय चुप्रीनिन रूसी पेन सेन्टर के सदस्य हैं और बहुत से पुरस्कार प्राप्त कर चुके हैं। इसके अलावा वे स्वयं भी कई पुरस्कारों के संयोजक और उनके निर्णायक मंडलों में शामिल हैं।
"सिर्गेय चुप्रीनिन की रचनाएँ रूसी आलोचना की रीढ़ हैं। उनकी बात पर मैं हमेशा विश्वास करता हूँ। उनके लेख उस बैरोमीटर की तरह हैं जो हमारे साहित्य के मौसम की ठीक-ठीक जानकारी देता है। -अन्द्रेय वज़्निसेंस्की