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'''आमुंसन''', रोअल्ड (1872-1928) नारवे का एक साहसी समन्वेषक (अनजान देशों की खोज करनेवाला) था। उसका जन्म देहात में हुआ था, परंतु उसने शिक्षा क्रिस्चियाना में, जिसका नाम अब ओसलो है, पाई थी। सन्‌ 1890 में उसने बी.ए. पास किया और आयुर्विज्ञान (मेडिसिन) पढ़ना आरंभ किया, परंतु मन न लगने से उसे छोड़ उसने जहाज पर नौकरी कर ली। सन्‌ 1903-में वह ग्योआ नामक नाव या छोटे जहाज में अपने छह साथियों के साथ उत्तर ध्रुव की खोज करता रहा और उत्तर चुंबकीय ध्रुव का पता लगाया। 1910-12 में वह दक्षिण ध्रुव की खोज करता रहा और वही पहला व्यक्ति था जो दक्षिण ध्रुव तक पहुँच सका। प्रथम विश्वयुद्ध के कारण उसे कई वर्षो तक चुपचाप बैठना पड़ा। 1918 में उसने फिर उत्तर ध्रुव पहुँचने की चेष्टा की, परंतु सफलता न मिली। तब उसने नॉर्ज नामक नियंत्रित गुब्बारे (डिरिजिबिल) में उड़कर दो बार उत्तर ध्रुव की प्रदक्षिणा की और 71 घंटे में 2,700 मील की यात्रा करके सफलापूर्वक फिर भूमि पर उतरा। जब जेनरल नोबिल का हवाई जहाज उत्तर ध्रुव से लौटते समय मार्ग में दुर्घटनाग्रस्त हो गया तो आमुंसन ने बड़ी बहादुरी से उसको खोजने का बीड़ा उठाया। 17 जून, 1928 को उसने इस काम के लिए हवाई जहाज में प्रस्थान किया, परंतु फिर उसका कोई समाचार संसार को प्राप्त न हो सका।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=हिन्दी विश्वकोश, खण्ड 1|लेखक= |अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक= नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी|संकलन= भारत डिस्कवरी पुस्तकालय|संपादन= |पृष्ठ संख्या=394 |url=}}</ref>
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==यात्राएँ==
सन्‌ 1903-6 में वह ग्योआ नामक नाव या छोटे जहाज में अपने छह साथियों के साथ [[उत्तरी ध्रुव|उत्तर ध्रुव]] की खोज करता रहा और उत्तर चुंबकीय ध्रुव का पता लगाया। 1910-12 में वह [[दक्षिणी ध्रुव|दक्षिण ध्रुव]] की खोज करता रहा और वही पहला व्यक्ति था जो दक्षिण ध्रुव तक पहुँच सका। प्रथम विश्वयुद्ध के कारण उसे कई वर्षो तक चुपचाप बैठना पड़ा। 1918 में उसने फिर उत्तर ध्रुव पहुँचने की चेष्टा की, परंतु सफलता न मिली। तब उसने नॉर्ज नामक नियंत्रित गुब्बारे (डिरिजिबिल) में उड़कर दो बार उत्तर ध्रुव की प्रदक्षिणा की और 71 घंटे में 2,700 मील की यात्रा करके सफलतापूर्वक फिर भूमि पर उतरा।  


जब जेनरल नोबिल का हवाई जहाज उत्तर ध्रुव से लौटते समय मार्ग में दुर्घटनाग्रस्त हो गया तो आमुंसन ने बड़ी बहादुरी से उसको खोजने का बीड़ा उठाया। 17 जून, 1928 को उसने इस काम के लिए हवाई जहाज में प्रस्थान किया, परंतु फिर उसका कोई समाचार संसार को प्राप्त न हो सका।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=हिन्दी विश्वकोश, खण्ड 1|लेखक= |अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक= नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी|संकलन= भारत डिस्कवरी पुस्तकालय|संपादन= |पृष्ठ संख्या=394 |url=}}</ref>


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आमुंसन, रोअल्ड (1872-1928) नार्वे का एक साहसी समन्वेषक[1] था। उसका जन्म देहात में हुआ था, परंतु उसने शिक्षा क्रिस्चियाना में, जिसका नाम अब ओसलो है, पाई थी। सन्‌ 1890 में उसने बी.ए. पास किया और आयुर्विज्ञान[2] पढ़ना आरंभ किया, परंतु मन न लगने से उसे छोड़ उसने जहाज पर नौकरी कर ली।

यात्राएँ

सन्‌ 1903-6 में वह ग्योआ नामक नाव या छोटे जहाज में अपने छह साथियों के साथ उत्तर ध्रुव की खोज करता रहा और उत्तर चुंबकीय ध्रुव का पता लगाया। 1910-12 में वह दक्षिण ध्रुव की खोज करता रहा और वही पहला व्यक्ति था जो दक्षिण ध्रुव तक पहुँच सका। प्रथम विश्वयुद्ध के कारण उसे कई वर्षो तक चुपचाप बैठना पड़ा। 1918 में उसने फिर उत्तर ध्रुव पहुँचने की चेष्टा की, परंतु सफलता न मिली। तब उसने नॉर्ज नामक नियंत्रित गुब्बारे (डिरिजिबिल) में उड़कर दो बार उत्तर ध्रुव की प्रदक्षिणा की और 71 घंटे में 2,700 मील की यात्रा करके सफलतापूर्वक फिर भूमि पर उतरा।

जब जेनरल नोबिल का हवाई जहाज उत्तर ध्रुव से लौटते समय मार्ग में दुर्घटनाग्रस्त हो गया तो आमुंसन ने बड़ी बहादुरी से उसको खोजने का बीड़ा उठाया। 17 जून, 1928 को उसने इस काम के लिए हवाई जहाज में प्रस्थान किया, परंतु फिर उसका कोई समाचार संसार को प्राप्त न हो सका।[3]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. अनजान देशों की खोज करनेवाला
  2. मेडिसिन
  3. हिन्दी विश्वकोश, खण्ड 1 |प्रकाशक: नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 394 |

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