दक्षिणी ध्रुव
दक्षिणी ध्रुव (अंग्रेज़ी:South Pole) को 'अंटार्कटिका' के नाम से भी जाना जाता है। यह हमारी पृथ्वी का सबसे दक्षिणी छोर है। दक्षिणी ध्रुव पर पहुँचना काफ़ी कठिन है। उत्तरी ध्रुव के विपरीत, जो कि समुद्र और समतल समुद्री बर्फ से ढका रहता है, दक्षिणी ध्रुव एक पर्वतीय महाद्वीप पर स्थित है। यह महाद्वीप है- 'अंटार्कटिका'। यह बर्फ की मोटी चादर से ढका है। अपने केंद्र पर तो यह 1.5 कि.मी. से भी मोटी बर्फ से आच्छादित है। दक्षिणी ध्रुव बहुत ऊँचे स्थान पर है। यहाँ अधिकतर बर्फीले तूफ़ान आते रहते हैं। यह उन स्थानों से बहुत दूर है, जहाँ वैज्ञानिकों की बस्तियाँ हैं और यहाँ जाने वाले जहाज़ों को प्रायः बर्फ़ीले समुद्री रास्ते से होकर जाना पड़ता है।
खोज
1820 में ही धरती पर अंटार्कटिका का पता लगा लिया गया था, लेकिन बीसवीं शती के प्रारंभ तक उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव की खोज नहीं हो सकी थी। हालांकि इसे खोजने के प्रयत्न जारी थे। ब्रिटिश नौसेना अधिकारी विलियम एडवर्ड पैरी ने 1827 में और 1871 में एक अमेरिकी दल ने चार्ल्स फ़्रांसिस हॉल के नेतृत्व में उत्तरी ध्रुव तक पहुँचने के असफल प्रयत्न किए। इसके बाद भी प्रयत्न जारी रहे। लेकिन इस बर्फीली जमीन पर मानव के पैर 1890 में ही पड़े। 1901 में अमेरिकी नागरिक रॉबर्ट पियरे और उनका दल विश्व के पहले अन्वेषक थे, जो उत्तरी ध्रुव तक पहुँचे थे। प्रारंभिक अन्वेषक फ़र और पशुओं की खाल से बने वस्त्र पहनते थे जिससे शरीर तो गर्म रहता ही था, इसमें त्वचा भी ठीक से साँस ले सकती थी। आधुनिक खोज यात्री अनेक अस्तरों वाले कपड़े पहनते हैं जिसकी अनेक परतों में रुकी हुई हवा शरीर को गर्म रखती है। 1911 में नार्वे के रोअल्ड अमंडसन दक्षिणी ध्रुव पर पहली बार पहुँचे। इसके एक ही महीने बाद रॉबर्ट फ़ैल्कन के नेतृत्व में ब्रिटिश टीम ने जनवरी 1912 में यहाँ अपना झंडा गाड़ा। नार्वे के अन्वेषकों द्वारा खोज यात्राओं में सामान ढोने के लिए कुत्तों द्वारा खींची जाने वाली स्लेड गाड़ियों का प्रयोग किया जाता था।[1]
भौगोलिक तथ्य
चुम्बकीय उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव वहाँ होते है, जहाँ पर कम्पास संकेत करता है। ये ध्रुव वर्ष प्रतिवर्ष घूमते रहते हैं। केवल कम्पास को देखकर ही लोग यह बता सकते हैं की वे इन ध्रुवों के निकट हैं। दक्षिणी ध्रुव से सारी दिशाएँ उत्तर में होती हैं, किंतु ध्रुवों के बिल्कुल निकट कम्पास भरोसेमंद साबित नहीं होता है। भौगोलिक उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव वे ध्रुव हैं, जिन पर पृथ्वी घूमती है। वहीं जिन्हें लोग एक ग्लोब पर देखते हैं। ये ध्रुव एक ही स्थान पर रहते हैं। इन्हें 'उत्तरी ध्रुव' या 'दक्षिणी ध्रुव' कहते हैं। कुछ लोग विशेष तारों को देखकर ही ये बता सकते हैं कि वे इन ध्रुवों पर हैं। ध्रुवों पर एक तारा समान ऊँचाई पर चक्कर लगाता है और क्षितिज पर कभी भी अस्त नहीं होता।
भारतीय दल की कामयाबी
'नेशनल सेंटर फॉर अंटार्टिक एंड ओशन रिसर्च' के निदेशक रसिक रविंद्र के नेतृत्व में भारतीय दल ने दक्षिणी ध्रुव पर पहुँचने के लिए अपनी यात्रा शुरू की थी। पूर्वी अंटार्टिका में स्थित भारत के 'मैत्री रिसर्च स्टेशन' से भारतीय दल ने अपने अभियान की शुरुआत की। दल को दक्षिणी ध्रुव तक की 2,360 किलोमीटर की यात्रा करने में 9 दिन का समय लगा। इस बीच दल को पांच बार रुकना भी पड़ा। वैज्ञानिक दल ने वहां कई प्रयोग किए। वातावरण से डाटा संकलित किया और जम चुके महाद्वीप से बर्फ के अंश भी लिए। इसके जरिए वैज्ञानिक पिछले 1,000 सालों में पर्यावरण में आए बदलावों का अध्ययन करना चाहते हैं। दक्षिणी ध्रुव पर कामयाबी पाने वाले भारतीय दल में रसिक रविंद्र के अलावा अजय धर, जावेद बेग, थम्बन मेलोथ, असित स्वेन, प्रदीप मल्होत्रा, कृष्णामूर्ति और सूरत सिंह शामिल थे। भारतीय वैज्ञानिकों ने अपनी मंजिल तक पहुंचने के लिए एसयूवी गाड़ी (स्पोर्ट्स युटिलिटी व्हीकल) का इस्तेमाल किया थ।[2]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव की खोज (हिंदी) अभिव्यक्ति। अभिगमन तिथि: 17 नवम्बर, 2013।
- ↑ दक्षिणी ध्रुव पर लहराया तिरंगा (हिंदी)। । अभिगमन तिथि: 17 नवम्बर, 2013।