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||{{seealso|ऐतिहासिक कृतियाँ (सल्तनत काल)}} | ||{{seealso|ऐतिहासिक कृतियाँ (सल्तनत काल)}} | ||
{[[नंद वंश]] के | {[[नंद वंश]] के पश्चात् [[मगध]] पर किस राजवंश ने शासन किया? | ||
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+[[मौर्य वंश|मौर्य]] | +[[मौर्य वंश|मौर्य]] | ||
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-महासंख्यक | -महासंख्यक | ||
-बाहुल्य | -बाहुल्य | ||
{[[विद्यापति]] की वह प्रमुख रचना कौन-सी है, जिसमें [[अवहट्ट भाषा]] का बहुतायत से प्रयोग हुआ है? | |||
|type="()"} | |||
+[[कीर्तिलता]] | |||
-[[गोरक्ष विजय]] | |||
-[[भूपरिक्रमा]] | |||
-[[पुरुष परीक्षा]] | |||
|| महाकवि विद्यापति कई भाषाओं के ज्ञाता थे। इनकी अधिकांश रचना [[संस्कृत]] एवं [[अवहट्ट भाषा|अवहट्ट]] में है। '[[कीर्तिलता]]' और '[[कीर्तिपताका]]' इनकी अवहट्ट रचनाएँ हैं, जिनमें इनके आश्रयदाता कीर्ति सिंह की वीरता, उदारता और गुण ग्राहकता का वर्णन है। {{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:- [[कीर्तिलता]] | |||
{'अखिल भारतीय ट्रेड यूनियन कांग्रेस' के प्रथम अध्यक्ष कौन थे? | {'अखिल भारतीय ट्रेड यूनियन कांग्रेस' के प्रथम अध्यक्ष कौन थे? | ||
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-जेड. ए. अहमद | -जेड. ए. अहमद | ||
-[[एन. एम. जोशी]] | -[[एन. एम. जोशी]] | ||
||[[चित्र:Lala-Lajpat-Rai.jpg|right|100px|लाला लाजपत राय]]'लाला लाजपत राय' को [[भारत]] के | ||[[चित्र:Lala-Lajpat-Rai.jpg|right|100px|लाला लाजपत राय]]'लाला लाजपत राय' को [[भारत]] के महान् क्रांतिकारियों में गिना जाता है। आजीवन ब्रिटिश राजशक्ति का सामना करते हुए अपने प्राणों की परवाह न करने वाले [[लाला लाजपत राय]] 'पंजाब केसरी' भी कहे जाते हैं। ये '[[भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस]]' के 'गरम दल' के प्रमुख नेता तथा पूरे [[पंजाब]] के प्रतिनिधि थे। लालाजी को 'पंजाब के शेर' की उपाधि भी मिली थी। उन्होंने देशभर में स्वदेशी वस्तुएँ अपनाने के लिए अभियान चलाया। [[अंग्रेज़|अंग्रेज़ों]] ने जब [[1905]]] में '[[बंगाल का विभाजन]]' कर दिया तो लालाजी ने [[सुरेंद्रनाथ बैनर्जी]] और [[विपिनचंद्र पाल]] जैसे आंदोलनकारियों से हाथ मिला लिया और अंग्रेज़ों के इस फैसले का जमकर विरोध किया।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[लाला लाजपत राय]] | ||
{[[बुद्ध]] का अंकन किसके सिक्कों पर हुआ है? | |||
|type="()"} | |||
-[[विम कडफ़ाइसिस]] | |||
+[[कनिष्क]] | |||
-[[नहपान]] | |||
-[[बुद्धगुप्त]] | |||
||[[चित्र:Kanishka-Coin.jpg|right|100px|कनिष्क का सिक्का]]'कनिष्क' के बहुत से सिक्के वर्तमान समय में उपलब्ध होते हैं। इन पर [[यवन]], जरथुस्त्री और भारतीय सभी तरह के देवी-देवताओं की प्रतिमाएँ अंकित हैं। [[ईरान]] के 'अग्नि' (आतश), 'चन्द्र' (माह) और 'सूर्य' (मिहिर), ग्रीक [[देवता]] हेलिय, प्राचीन एलम की देवी नाना, [[भारत]] के [[शिव]], [[स्कन्द]], [[वायु देव|वायु]] और [[बुद्ध]]- ये सब देवता उसके सिक्कों पर नाम या चित्र के द्वारा विद्यमान हैं। इससे यह सूचित है, कि [[कनिष्क]] सब धर्मों का समान आदर करता था और सबके देवी-देवताओं को सम्मान की दृष्टि से देखता था। इसका यह कारण भी हो सकता है, कि कनिष्क के विशाल साम्राज्य में विविध धर्मों के अनुयायी विभिन्न लोगों का निवास था।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[कनिष्क]] | |||
{'[[इण्डियन एसोसिएशन]]' की स्थापना किसने की थी? | |||
|type="()"} | |||
-[[बाल गंगाधर तिलक]] | |||
-[[बिपिन चन्द्र पाल]] | |||
+[[सुरेन्द्रनाथ बनर्जी]] | |||
-[[मदनमोहन मालवीय]] | |||
||[[चित्र:Surendranath-Banerjee.jpg|right|100px|सुरेन्द्रनाथ बनर्जी]]'सुरेन्द्रनाथ बनर्जी' प्रसिद्ध स्वाधीनता सेनानी थे, जो [[कांग्रेस]] के दो बार अध्यक्ष चुने गए। उन्हें [[1905]] का 'बंगाल का निर्माता' भी जाता है। एक अध्यापक के रूप में उन्होंने अपने छात्रों को देशभक्ति और सार्वजनिक सेवा की भावना से अनुप्राणित किया। मेजिनी के जीवन और भारतीय एकता सदृश विषयों पर [[सुरेन्द्रनाथ बनर्जी]] के भाषणों ने छात्रों में बहुत उत्साह पैदा किया। वे राजनीति में भी भाग लेते रहे और [[1876]] में '[[इण्डियन एसोसिएशन]]' की स्थापना तथा [[1883]] में [[कलकत्ता]] में 'प्रथम अखिल भारतीय राष्ट्रीय सम्मेलन' आयोजित करने में प्रमुख योगदान दिया।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[सुरेन्द्रनाथ बनर्जी]] | |||
{[[मुअन जो दड़ो|मोहनजोदाड़ो]] के प्राचीन टीलों को खोजने का श्रेय किसे प्राप्त है? | |||
|type="()"} | |||
+[[राखालदास बंद्योपाध्याय|राखालदास बनर्जी]] | |||
-[[हेमचंद्र रायचौधरी]] | |||
-माधोस्वरूप वत्स | |||
-जॉन मार्शल एवं ईश्वरी प्रसाद | |||
||[[चित्र:Rakhaldas-Bandyopadhyay.jpg|right|100px|राखालदास बंद्योपाध्याय]]'मुअन जो दड़ो' / 'मोहनजोदाड़ो' जिसका अर्थ 'मुर्दों का टीला है', 2600 ईसा पूर्व की एक सुव्यवस्थित नगरीय सभ्यता थी। इस सभ्यता के ध्वंसावशेष [[पाकिस्तान]] के सिन्ध प्रान्त के 'लरकाना ज़िले' में [[सिंधु नदी]] के दाहिने किनारे पर प्राप्त हुए हैं। यह नगर क़रीब 5 कि.मी. के क्षेत्र में फैला हुआ है। [[मुअन जो दड़ो|मोहनजोदाड़ो]] के टीलों को [[1922]] ई. में खोजने का श्रेय '[[राखालदास बंद्योपाध्याय|राखालदास बनर्जी]]' को प्राप्त हुआ। यहाँ पूर्व और पश्चिम (नगर के) दिशा में प्राप्त दो टीलों के अतिरिक्त सार्वजनिक स्थलों में एक 'विशाल स्नागार' एवं महत्त्वपूर्ण भवनों में एक विशाल 'अन्नागार' के [[अवशेष]] मिले हैं।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[राखालदास बंद्योपाध्याय]] | |||
{[[राजस्थान]] का राज्य पक्षी कौन-सा है? | |||
|type="()"} | |||
-[[सारस]] | |||
-[[नीलकंठ]] | |||
+[[गोडावण]] | |||
-[[पहाड़ी मैना]] | |||
||[[चित्र:Sonchiriya.jpg|right|100px|गोडावण पक्षी]]'गोडावण' एक ऐसा पक्षी है, जो आकार में काफ़ी बड़ा तथा वजन में भारी होता है। यह [[राजस्थान]] का राज्य पक्षी है। [[गोडावण]] राजस्थान तथा सीमावर्ती [[पाकिस्तान]] के क्षेत्रों में पाया जाता है। यह एक दुर्लभतम पक्षी है। राजस्थान सरकार के वन विभाग ने गोडावण की रक्षार्थ 'गोडावण संरक्षण प्रोजेक्ट' की शुरुआत भी की है, जिससे इस पक्षी को लुप्त होने से बचाया जा सके और इसकी संख्या भी बढ़ सके।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[गोडावण]] | |||
{प्रसिद्ध भारतीय वैज्ञानिक [[चंद्रशेखर वेंकट रामन|सी. वी. रमन]] को '[[नोबेल पुरस्कार]]' कब मिला था? | |||
|type="()"} | |||
+[[1930]] | |||
-[[1940]] | |||
-[[1950]] | |||
-[[1970]] | |||
||[[चित्र:C.V Raman.jpg|right|100px|सी. वी. रमन]]'सी. वी. रमन' पहले व्यक्ति थे, जिन्होंने वैज्ञानिक संसार में [[भारत]] को ख्याति दिलाई। उन्होंने 'रमन प्रभाव' की खोज की थी। 'रमन प्रभाव' की लोकप्रियता और उपयोगिता का अनुमान इसी से लगा सकते हैं कि खोज के दस वर्ष के भीतर ही सारे विश्व में इस पर क़रीब 2,000 शोध पत्र प्रकाशित हुए। इसका अधिक उपयोग [[ठोस]], [[द्रव]] और गैसों की आंतरिक अणु संरचना का पता लगाने में हुआ। [[चंद्रशेखर वेंकट रामन|सी. वी. रमन]] को पूरा विश्वास था कि उन्हें अपनी खोज के लिए '[[नोबेल पुरस्कार]]' मिलेगा। इसलिए पुरस्कारों की घोषणा से छह [[महीने]] पहले ही उन्होंने स्टॉकहोम के लिए टिकट का आरक्षण करवा लिया था। उन्हें [[1930]] में 'भौतिकी का नोबेल पुरस्कार' प्रदान किया गया और सी. वी. रमन [[भौतिक विज्ञान]] में नोबेल पाने वाले [[एशिया]] के पहले व्यक्ति बने।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[चंद्रशेखर वेंकट रामन|सी. वी. रमन]] | |||
{'[[कच्छी घोड़ी नृत्य]]' [[भारत]] के किस राज्य का प्रसिद्ध [[लोकनृत्य]] है? | |||
|type="()"} | |||
-[[उत्तर प्रदेश]] | |||
-[[कर्नाटक]] | |||
+[[राजस्थान]] | |||
-[[छत्तीसगढ़]] | |||
||[[चित्र:Kachhi-Ghodi-Dance-Rajasthan.JPG |right|100px|कच्छी घोड़ी नृत्य]]'कच्छी घोड़ी नृत्य' [[राजस्थान]] के प्रसिद्ध लोकनृत्यों में से एक है। इस [[नृत्य]] में ढाल और लम्बी तलवारों से युक्त नर्तकों का ऊपरी भाग दूल्हे की पारम्परिक वेशभूषा में रहता है। नर्तकों के निचले भाग में [[बाँस]] के ढाँचे पर [[काग़ज़]] की लुगदी से बने घोड़े का ढाँचा होता है। इससे ऐसा प्रतीत होता है कि जैसे नर्तक घोड़े पर बैठा है। '[[कच्छी घोड़ी नृत्य]]' शादियों और उत्सवों पर विशेष रूप से किया जाता है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[कच्छी घोड़ी नृत्य]] | |||
{[[बुद्ध|महात्मा बुद्ध]] ने किस स्थान पर 'महापरिनिर्वाण' प्राप्त किया था? | |||
|type="()"} | |||
-[[तक्षशिला]] | |||
-[[विदिशा]] | |||
-[[पाटलिपुत्र]] | |||
+[[कुशीनगर]] | |||
||[[चित्र:Buddha-Head-Kushinagar.jpg|right|100px|बुद्ध मस्तक]]'कुशीनगर' [[प्राचीन भारत]] के तत्कालीन [[महाजनपद|महाजनपदों]] में से एक एवं [[मल्ल महाजनपद|मल्ल राज्य]] की राजधानी था। यह [[बुद्ध]] के महापरिनिर्वाण का स्थान है। [[कनिंघम]] ने [[कुशीनगर]] को वर्तमान [[देवरिया|देवरिया ज़िले]] में स्थित 'कसिया' से समीकृत किया है। अपने समीकरण की पुष्टि में उन्होंने 'परिनिर्वाण मंदिर' के पीछे स्थित [[स्तूप]] में मिले ताम्रपत्र का उल्लेख किया है, जिस पर 'परिनिर्वाणचैत्य ताम्रपत्र इति' उल्लिखित है। भगवान बुद्ध से सम्बंधित कई ऐतिहासिक स्थानों के लिए कुशीनगर संसार भर में प्रसिद्ध है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[कुशीनगर]] | |||
{[[राजेन्द्र प्रसाद]] की [[महात्मा गाँधी]] से प्रथम भेंट किस स्थान पर हुई थी? | |||
|type="()"} | |||
-[[भावनगर]] | |||
+चम्पारन | |||
-[[अहमदाबाद]] | |||
-[[अमृतसर]] | |||
||[[चित्र:Dr.Rajendra-Prasad.jpg|right|100px|राजेन्द्र प्रसाद]]'राजेन्द्र प्रसाद' [[भारत]] के प्रथम [[राष्ट्रपति]] थे। वे बेहद प्रतिभाशाली और विद्वान् व्यक्ति थे। भारत के वे एकमात्र राष्ट्रपति थे, जिन्होंने दो कार्यकालों तक राष्ट्रपति पद पर कार्य किया। बाबू राजेन्द्र प्रसाद की ख़्याति कि वह बहुत समर्पित कार्यकर्ता हैं, [[महात्मा गाँधी]] के पास पहुँच चुकी थी। गाँधी जी ने राजेन्द्र प्रसाद को चम्पारन की स्थिति बताते हुए एक तार भेजा और कहा कि वह तुरन्त कुछ स्वयंसेवकों को साथ लेकर वहाँ आ जायें। बाबू राजेन्द्र प्रसाद का गाँधी जी के साथ यह पहला सम्पर्क था। वह उनके अपने जीवन में ही नहीं बल्कि भारत की राष्ट्रीयता के इतिहास में भी एक नया मोड़ था।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[राजेन्द्र प्रसाद]] | |||
{'[[गुरु घासीदास विश्वविद्यालय]]' को केन्द्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा कब मिला? | |||
|type="()"} | |||
+[[जनवरी]], [[2009]] | |||
-[[फ़रवरी]], [[2009]] | |||
-[[मार्च]], [[2009]] | |||
-[[अप्रैल]], [[2009]] | |||
||'गुरु घासीदास विश्वविद्यालय' (जी.जी.यू.) [[भारत]] का एक केन्द्रीय विश्वविद्यालय है, जो [[बिलासपुर छत्तीसगढ़|बिलासपुर]], [[छत्तीसगढ़|छत्तीसगढ़ राज्य]] में है। [[जनवरी]], [[2009]] में केंद्र सरकार द्वारा [[संसद]] में पेश 'केंद्रीय विश्वविद्यालय अधिनियम-2009' के माध्यम से इसे केंद्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा दिया गया। औपचारिक रूप से [[गुरु घासीदास विश्वविद्यालय]] राज्य विधानसभा के अधिनियम द्वारा स्थापित किया गया था।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[गुरु घासीदास विश्वविद्यालय]] | |||
{'लिसान-उल-सिद' नामक [[पत्रिका]] किसने प्रारम्भ की थी? | |||
|type="()"} | |||
-[[ख़ान अब्दुल ग़फ़्फ़ार ख़ान|अब्दुल ग़फ़्फ़ार ख़ान]] | |||
-[[सूफ़ी अम्बा प्रसाद]] | |||
+[[अबुलकलाम आज़ाद]] | |||
-[[अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ]] | |||
||[[चित्र:Abul-Kalam-Azad.gif|100px|right|अबुलकलाम आज़ाद]]'अबुलकलाम आज़ाद' एक [[मुस्लिम]] विद्वान् थे, जिन्होंने [[भारतीय स्वतंत्रता संग्राम]] में भाग लिया। वह वरिष्ठ राजनीतिक नेता थे। उन्होंने [[हिन्दू]]-[[मुस्लिम]] एकता का समर्थन किया और सांप्रदायिकता पर आधारित देश के विभाजन का विरोध किया। 17 वर्ष की अल्प आयु में ही [[अबुलकलाम आज़ाद]] इस्लामी दुनिया के धर्मविज्ञान में शिक्षित हो गये थे। काहिरा के 'अल अज़हर विश्वविद्यालय' में उन्होंने शिक्षा प्राप्त की, जो उनके गम्भीर और गहन ज्ञान का आधार बनी। [[परिवार]] के [[कोलकाता]] में बसने पर उन्होंने 'लिसान-उल-सिद' नामक पत्रिका प्रारम्भ की। उन पर [[उर्दू]] के दो महान् आलोचकों 'मौलाना शिबली नाओमनी' और 'अल्ताफ हुसैन हाली' का बहुत प्रभाव था।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[अबुलकलाम आज़ाद]] | |||
{[[एलोरा]] स्थित [[कैलाश मन्दिर, एलोरा|कैलाश मन्दिर]] का निर्माण किसने करवाया था? | |||
|type="()"} | |||
-[[गोविन्द तृतीय]] | |||
-[[ध्रुव धारावर्ष]] | |||
-[[दन्तिदुर्ग]] | |||
+[[कृष्ण प्रथम]] | |||
||[[चित्र:Kailash-Temple-Ellora.jpg|100px|right|कैलाश मन्दिर, एलोरा]][[एलोरा]] का 'कैलाश मन्दिर' [[महाराष्ट्र]] के औरंगाबाद ज़िले में प्रसिद्ध '[[एलोरा की गुफ़ाएं|एलोरा की गुफ़ाओं]]' में स्थित है। यह मंदिर दुनिया भर में एक ही पत्थर की शिला से बनी हुई सबसे बड़ी मूर्ति के लिए प्रसिद्ध है। मंदिर का निर्माण [[राष्ट्रकूट वंश|राष्ट्रकूट]] शासक [[कृष्ण प्रथम]] ने करवाया था। इस मंदिर को तैयार करने में क़रीब 150 [[वर्ष]] लगे और लगभग 7000 मज़दूरों ने लगातार इस पर काम किया। पच्चीकारी की दृष्टि से कैलाश मन्दिर अद्भुत है। मंदिर एलोरा की गुफ़ा संख्या 16 में स्थित है। इस मन्दिर में [[कैलास पर्वत]] की अनुकृति निर्मित की गई है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[कैलाश मन्दिर, एलोरा]] | |||
{'''[[काकोरी काण्ड]]''' की घटना कब घटी थी? | |||
|type="()"} | |||
-[[8 अगस्त]], [[1924]] | |||
+[[9 अगस्त]], [[1925]] | |||
-[[10 अगस्त]], [[1926]] | |||
-[[11 अगस्त]], [[1927]] | |||
||[[उत्तर प्रदेश]] में [[लखनऊ]] के पास स्थित काकोरी नामक स्थान [[आधुनिक भारत]] में चर्चा का विषय बना। [[रामप्रसाद बिस्मिल]] और [[चन्द्रशेखर आज़ाद]] के नेतृत्व में [[8 अगस्त]], [[1925]] को [[शाहजहाँपुर]] में क्रांतिकारियों की एक अहम बैठक हुई, जिसमें हथियारों के लिए ट्रेन में ले जाए जाने वाले सरकारी ख़ज़ाने को लूटने की योजना बनी। क्रांतिकारी जिस धन को लूटना चाहते थे, दरअसल वह धन [[अंग्रेज़|अंग्रेज़ों]] ने भारतीयों से ही हड़पा था। [[9 अगस्त]], [[1925]] को [[अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ]], [[रामप्रसाद बिस्मिल]], [[चन्द्रशेखर आज़ाद]], [[राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी]], [[ठाकुर रोशन सिंह]] आदि ने अपनी योजना को अंजाम देते हुए [[लखनऊ]] के नजदीक काकोरी में ट्रेन द्वारा ले जाए जा रहे सरकारी ख़ज़ाने को लूट लिया। 'भारतीय इतिहास' में यह घटना '[[काकोरी काण्ड]]' के नाम से जानी जाती है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[काकोरी काण्ड]] | |||
{'''भारतीय राजनीति के अपराजित नायक''' के रूप में किसे जाना जाता है? | |||
|type="()"} | |||
-[[सरदार पटेल|सरदार वल्लभ भाई पटेल]] | |||
-[[जीवराज मेहता]] | |||
+[[चौधरी देवी लाल]] | |||
-[[बंसीलाल]] | |||
||[[चित्र:Devilal.jpg|100px|right|चौधरी देवी लाल]]'चौधरी देवी लाल' [[भारत]] के पूर्व उप-प्रधानमंत्री एवं भारतीय राजनीति के पुरोधा, किसानों के मसीहा, महान् स्वतंत्रता सेनानी, हरियाणा के जन्मदाता, राष्ट्रीय राजनीति के भीष्म-पितामह, करोड़ों भारतीयों के जननायक थे। आज भी [[चौधरी देवी लाल]] का महज नाम-मात्र लेने से ही हज़ारों की संख्या में बुजुर्ग एवं नौजवान उद्वेलित हो उठते हैं। उन्होंने आजीवन किसान, मुजारों, मज़दूरों, ग़रीब एवं सर्वहारा वर्ग के लोगों के लिए लड़ाई लड़ी और कभी भी पराजित नहीं हुए। उन्हें लोग "भारतीय राजनीति के अपराजित नायक" के रूप में जानते हैं। उन्होंने भारतीय राजनीतिज्ञों के सामने अपना जो चरित्र रखा, वह वर्तमान दौर में बहुत प्रासंगिक है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[चौधरी देवी लाल]] | |||
{प्रसिद्ध पुस्तक '[[अग्नि की उड़ान -अब्दुल कलाम|विंग्स ऑफ़ फायर]]' के लेखक कौन थे? | |||
|type="()"} | |||
+[[अब्दुल कलाम]] | |||
-[[महात्मा गाँधी]] | |||
-[[जवाहरलाल नेहरू]] | |||
-[[अटल बिहारी वाजपेयी]] | |||
||[[चित्र:Wings-of-fire.jpg|100px|right|अब्दुल कलाम]]'अब्दुल कलाम', जिन्हें [[अब्दुल कलाम|डॉ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम]] के नाम से जाना जाता है, [[भारत]] के पूर्व [[राष्ट्रपति]], प्रसिद्ध वैज्ञानिक और अभियंता के रूप में विख्यात हैं। इन्हें 'मिसाइल मैन' के नाम से भी जाना जाता है। इनकी लिखी पुस्तकों का कई भारतीय तथा विदेशी भाषाओं में अनुवाद हो चुका है। इन्होंने अपनी जीवनी '[[अग्नि की उड़ान -अब्दुल कलाम|विंग्स ऑफ़ फायर]]' भारतीय युवाओं को मार्गदर्शन प्रदान करने वाले अंदाज़ में लिखी है। [[अब्दुल कलाम]] ने [[तमिल भाषा]] में कविताएँ भी लिखी हैं। दक्षिणी कोरिया में इनकी पुस्तकों की काफ़ी माँग है और वहाँ इन्हें बहुत अधिक पसंद किया जाता है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[अब्दुल कलाम]] | |||
{'''सत्यजित राय के बिना सिनेमा जगत् वैसा ही है, जैसे सूरज-चाँद के बिना आसमान।''' यह कथन किसका है? | |||
|type="()"} | |||
-[[ऋषिकेश मुखर्जी]] | |||
+अकीरा कुरोसावा | |||
-[[अशोक कुमार]] | |||
-[[पृथ्वीराज कपूर]] | |||
||[[चित्र:Satyajit-Ray.jpg|100px|right|सत्यजित राय]]'सत्यजित राय' बीसवीं [[शताब्दी]] की महानतम फ़िल्मी हस्तियों में से एक थे, जिन्होंने यथार्थवादी धारा की फ़िल्मों को नई दिशा देने के अलावा [[साहित्य]], [[चित्रकला]] जैसी अन्य विधाओं में भी अपनी प्रतिभा का परिचय दिया। [[सत्यजित राय]] प्रमुख रूप से फ़िल्मों में निर्देशक के रूप में जाने जाते हैं, लेकिन लेखक और साहित्यकार के रूप में भी उन्होंने उल्लेखनीय ख्याति अर्जित की। "विश्व सिनेमा के पितामह" माने जाने वाले महान् निर्देशक अकीरा कुरोसावा ने राय के लिए कहा था कि- "सत्यजित के बिना सिनेमा जगत् वैसा ही है जैसे सूरज-चाँद के बिना आसमान"। सत्यजित राय फ़िल्म निर्माण से संबंधित कई काम ख़ुद ही करते थे। इनमें निर्देशन, छायांकन, पटकथा, पार्श्व संगीत, कला निर्देशन, संपादन आदि शामिल हैं।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[सत्यजित राय]] | |||
{[[भारत]] के राष्ट्रीय गीत '[[वन्दे मातरम्]]' को किसने स्वरबद्ध किया? | |||
|type="()"} | |||
-[[अरबिंदो घोष]] | |||
+[[रबीन्द्रनाथ ठाकुर]] | |||
-[[बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय]] | |||
-आरिफ़ मोहम्मद ख़ान | |||
||[[चित्र:Vande-Mataram.jpg|100px|right|वन्दे मातरम्]]'वन्दे मातरम्' [[भारत]] का राष्ट्रीय गीत है, जिसकी रचना [[बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय]] द्वारा की गई थी। इन्होंने [[7 नवम्बर]], [[1876]] ई. में [[अखण्डित बंगाल|बंगाल]] के कांतल पाडा नामक गाँव में इस गीत की रचना की थी। [[वंदे मातरम्|वंदे मातरम् गीत]] के प्रथम दो पद [[संस्कृत]] में तथा शेष पद [[बांग्ला भाषा]] में थे। [[राष्ट्रकवि]] [[रबीन्द्रनाथ ठाकुर|रवींद्रनाथ टैगोर]] ने इस गीत को स्वरबद्ध किया और पहली बार [[1896]] में [[भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस|कांग्रेस]] के [[कांग्रेस अधिवेशन कलकत्ता|कलकत्ता अधिवेशन]] में यह गीत गाया गया। [[अरबिंदो घोष]] ने इस गीत का [[अंग्रेज़ी]] में और आरिफ़ मोहम्मद ख़ान ने इसका [[उर्दू]] में अनुवाद किया। 'वंदे मातरम्' का स्थान राष्ट्रीय गान '[[राष्ट्रगान|जन गण मन]]' के बराबर है। यह गीत स्वतंत्रता की लड़ाई में लोगों के लिए प्ररेणा का स्रोत था।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[वन्दे मातरम्]] | |||
{[[भारत]] में बहने वाली किस नदी की धारा को '''रुद्र कन्या''' कहा जाता है? | |||
|type="()"} | |||
-[[गंगा]] | |||
+[[नर्मदा नदी|नर्मदा]] | |||
-[[कावेरी नदी|कावेरी]] | |||
-[[गोदावरी नदी|गोदावरी]] | |||
||[[चित्र:Narmada-river.jpg|100px|right|नर्मदा नदी]]'नर्मदा' [[भारत]] के मध्य भाग में पूरब से पश्चिम की ओर बहने वाली [[मध्य प्रदेश]] और [[गुजरात|गुजरात राज्य]] की प्रमुख नदी है। यह सर्वत्र पुण्यमयी नदी बताई गई है तथा इसके उद्भव से लेकर संगम तक दस करोड़ तीर्थ हैं। [[कालिदास]] के ‘[[मेघदूत|मेघदूतम्]]’ में [[नर्मदा नदी|नर्मदा]] को 'रेवा' का संबोधन मिला है, जिसका अर्थ है- "पहाड़ी चट्टानों से कूदने वाली"। वास्तव में नर्मदा की तेजधारा पहाड़ी चट्टानों पर और [[भेड़ाघाट]] में संगमरमर की चट्टानों के ऊपर से उछलती हुई बहती है। [[अमरकंटक]] में सुंदर सरोवर में स्थित [[शिवलिंग]] से निकलने वाली इस पावन धारा को "रुद्र कन्या" भी कहते हैं, जो आगे चलकर नर्मदा नदी का विशाल रूप धारण कर लेती हैं। पवित्र नदी नर्मदा के तट पर अनेक तीर्थ हैं, जहां श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[नर्मदा नदी]] | |||
{'चेतावनी रा चूंग्ट्या' नामक [[सोरठा|सोरठे]] किसने रचे थे? | |||
|type="()"} | |||
-[[जयनारायण व्यास]] | |||
-[[गोकुलभाई भट्ट]] | |||
+[[केसरी सिंह बारहट]] | |||
-[[नगेन्द्र बाला]] | |||
||[[चित्र:Kesari-Singh-Barahath.jpg|100px|right|केसरी सिंह बारहट]]'केसरी सिंह बारहट' प्रसिद्ध [[राजस्थानी भाषा|राजस्थानी]] [[कवि]] और स्वतंत्रता सेनानी थे। उन्होंने [[बांग्ला भाषा|बांग्ला]], [[मराठी भाषा|मराठी]], [[गुजराती भाषा|गुजराती]] आदि भाषाओं के साथ [[इतिहास]], [[दर्शन]]<ref>भारतीय और यूरोपीय</ref>, मनोविज्ञान, खगोलशास्त्र तथा ज्योतिष आदि का अध्ययन कर प्रमाणिक विद्वत्ता हासिल कर ली थी। केसरी जी के भाई जोरावर सिंह बारहट और पुत्र प्रताप सिंह बारहट ने [[रास बिहारी बोस]] के साथ [[लॉर्ड हार्डिंग द्वितीय]] की सवारी पर बम फेंकने के कार्य में भाग लिया था। [[केसरी सिंह बारहट]] ने प्रसिद्ध 'चेतावनी रा चुंग्ट्या' नामक [[सोरठा|सोरठे]] रचे थे, जिन्हें पढ़कर [[मेवाड़]] के महाराणा अत्यधिक प्रभावित हुए थे और वे [[1903]] ई. में [[लॉर्ड कर्ज़न]] द्वारा आयोजित '[[दिल्ली दरबार]]' में शामिल नहीं हुए थे। {{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[केसरी सिंह बारहट]] | |||
{प्रसिद्ध भारतीय वैज्ञानिक [[जगदीश चंद्र बोस]] को 'नाइट' की उपाधि किस [[वर्ष]] प्रदान की गई? | |||
|type="()"} | |||
-[[1914]] | |||
-[[1915]] | |||
-[[1916]] | |||
+[[1917]] | |||
||[[चित्र:Jagdish-Chandra-Bose.jpg|100px|right|जगदीश चंद्र बोस]]'जगदीश चंद्र बोस' [[भारत]] के प्रसिद्ध भौतिकविद तथा पादप क्रिया वैज्ञानिक थे। उन्होंने कई महान् [[ग्रंथ]] भी लिखे। आजकल प्रचलित बहुत सारे माइक्रोवेव उपकरण जैसे- वेव गाईड, ध्रुवक, परावैद्युत लैंस, विद्युत चुम्बकीय विकिरण के लिये अर्धचालक संसूचक, इन सभी उपकरणों का उन्नींसवी सदी के अंतिम दशक में [[जगदीश चंद्र बोस]] ने अविष्कार किया और उपयोग किया था। '[[1917]]' में जगदीश चंद्र बोस को '''नाइट''' की उपाधि प्रदान की गई तथा शीघ्र ही [[भौतिक विज्ञान|भौतिक]] तथा जीव विज्ञान के लिए 'रॉयल सोसायटी लंदन' के फैलो चुन लिए गए।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[जगदीश चंद्र बोस]] | |||
{'''उत्तर भारत की अर्थव्यवस्था का मेरुदण्ड''' किस नदी को कहा जाता है? | |||
|type="()"} | |||
-[[यमुना]] | |||
-[[मेघना]] | |||
+[[गंगा]] | |||
-[[गोदावरी नदी|गोदावरी]] | |||
||[[चित्र:Ganga-River-Varanasi.jpg|100px|right|गंगा नदी, वाराणसी]]'गंगा' [[भारत]] की सबसे महत्त्वपूर्ण तथा [[उत्तर भारत]] के मैदानों की विशाल नदी है। [[गंगा]] भारत और [[बांग्लादेश]] में मिलकर 2,510 किलोमीटर की दूरी तय करती हुई [[उत्तरांचल]] में [[हिमालय]] से निकलकर [[बंगाल की खाड़ी]] में भारत के लगभग एक-चौथाई भू-क्षेत्र को अपवाहित करती है तथा अपने बेसिन में बसे विराट जनसमुदाय के जीवन का आधार बनती है। जिस गंगा के मैदान से होकर यह प्रवाहित होती है, वह इस क्षेत्र का हृदय स्थल है, जिसे 'हिन्दुस्तान' कहते हैं। गंगा नदी को "उत्तर भारत की अर्थव्यवस्था का मेरुदण्ड" भी कहा गया है। यहाँ तीसरी सदी में [[अशोक|अशोक महान]] के साम्राज्य से लेकर 16वीं सदी में स्थापित [[मुग़ल साम्राज्य]] तक सारी सभ्यताएँ विकसित हुईं।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[गंगा]] | |||
{भूतपूर्व [[प्रधानमंत्री]] [[अटल बिहारी वाजपेयी]] को '[[भारत रत्न]]' कब दिया गया? | |||
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+[[27 मार्च]], [[2015]] | |||
-[[28 मार्च]], [[2015]] | |||
-[[27 अप्रैल]], [[2015]] | |||
-[[28 अप्रैल]], [[2015]] | |||
||[[चित्र:Atal-Bihari-Vajpayee.jpg|100px|right|अटल बिहारी वाजपेयी]]'अटल बिहारी वाजपेयी' का नाम [[भारत]] के सर्वाधिक लोकप्रिय [[प्रधानमंत्री|प्रधानमंत्रियों]] में लिया जाता है। [[25 दिसंबर]], [[1925]] को [[ग्वालियर]] में उनका जन्म हुआ था। उन्होंने अंग्रेज़ी राज के ख़िलाफ़ '[[भारत छोड़ो आंदोलन]]' ([[1942]]-[[1945|45]]) के दौर से राजनीतिक सफर शुरू किया था। [[27 मार्च]], [[2015]] को [[अटल बिहारी वाजपेयी]] को [[प्रणब मुखर्जी|राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी]] ने उनके घर जाकर '[[भारत रत्न]]' से सम्मानित किया। वाजपेयी जी के स्वास्थ्य को देखते हुए [[राष्ट्रपति]] ने उनके घर जाकर यह सर्वोच्च सम्मान उन्हें दिया। देश की बात हो या क्रान्तिकारियों की, या फिर उनकी अपनी ही कविताओं की, अटल बिहारी वाजपेयी की बरारबरी कोई नहीं कर सकता। 'भारत रत्न' से उन्हें सम्मानित किए जाने की घोषणा [[भारत सरकार]] ने [[दिसम्बर]], [[2014]] में ही कर दी थी।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[अटल बिहारी वाजपेयी]] | |||
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{{पहेली क्रम |पिछली=[[पहेली | {{पहेली क्रम |पिछली=[[पहेली अक्टूबर 2015]] |अगली=[[पहेली दिसम्बर 2015]]}} | ||
==टीका-टिप्पणी और संदर्भ== | |||
<references/> | |||
==संबंधित लेख== | ==संबंधित लेख== | ||
{{सामान्य ज्ञान प्रश्नोत्तरी}} | {{सामान्य ज्ञान प्रश्नोत्तरी}} |
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टीका-टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख