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पोयमपल्ली [[तमिलनाडु]] के आर्कोट ज़िले में शेवोय पर्वत श्रृंखला की तलत्तपमलाई पर्वतमाला के नाम से जानी जाती है। इस पर्वतीय क्षेत्र की घाटी में महाश्मककालीन समाधियाँ तथा अन्य पुरातात्विक अवशेषों के प्रमाण मिले हैं।  
'''पोयमपल्ली''' [[तमिलनाडु]] के आर्कोट ज़िले में शेवोय पर्वत श्रृंखला की तलत्तपमलाई पर्वतमाला के नाम से जानी जाती है। इस पर्वतीय क्षेत्र की घाटी में महाश्मककालीन समाधियाँ तथा अन्य पुरातात्विक [[अवशेष|अवशेषों]] के प्रमाण मिले हैं।  
==उत्खनन==
==उत्खनन==
भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण विभाग के तत्वावधान में किये गये इस स्थल के उत्खनन से प्राप्त प्रमाणों के आधार पर नव-प्रस्तरकालीन तीन उप-चरण पहचाने गए हैं। इनमें से दो तो नव-प्रस्तर काल के प्रारम्भिक एवं परवर्ती चरण हैं तथा तीसरे चरण के अंतर्गत नव-प्रस्तर तथा महाश्मकालीन संस्कृतियों का मिश्रित स्वरूप मिला है। पोयमपल्ली के आरम्भिक नव-प्रस्तर को धूसर रंग के हस्तनिर्मित चमकीले पात्रों तथा लाल पात्रों द्वारा पहचाना गया है। इस चरण की दूसरी विशेषता यहाँ के गर्त हैं, जिनका प्रयोग खाद्य संचय, कूड़ा फेंकने तथा आवास के लिए किया जाता था।  
भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण विभाग के तत्वावधान में किये गये इस स्थल के उत्खनन से प्राप्त प्रमाणों के आधार पर नव-प्रस्तरकालीन तीन उप-चरण पहचाने गए हैं। इनमें से दो तो नव-प्रस्तर काल के प्रारम्भिक एवं परवर्ती चरण हैं तथा तीसरे चरण के अंतर्गत नव-प्रस्तर तथा महाश्मकालीन संस्कृतियों का मिश्रित स्वरूप मिला है। पोयमपल्ली के आरम्भिक नव-प्रस्तर को धूसर रंग के हस्तनिर्मित चमकीले पात्रों तथा लाल पात्रों द्वारा पहचाना गया है। इस चरण की दूसरी विशेषता यहाँ के गर्त हैं, जिनका प्रयोग खाद्य संचय, कूड़ा फेंकने तथा आवास के लिए किया जाता था।  


पोयमपल्ली में प्राकृतिक रूप से ठोस जमाव वाली मिट्टी को खोद कर बनाए गर्त-स्तम्भ छाजन के अस्तित्व का संकेत करते हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि इन गर्ताश्रयों को एक से अधिक बार आवास के लिए चुना गया था। इस चरण के अन्य अवशेषों में घर्षित पाषाण परम्परा में बनी कुल्हाड़ियाँ, हथौड़े, वलय-प्रस्तर का बाहुल्य है। अस्थि उपकरणों में छिद्रक, छोलनी उल्लेखनीय आकार हैं। मृदा मूर्तियों में लम्बे सींग वाले वृषभ सम्भवतः पशुपालन के साक्ष्य प्रस्तुत करते हैं। सीपी, सीसा, मृदा तथा अर्द्ध मूल्यवान पाषाण पर बने मनके विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं।  
पोयमपल्ली में प्राकृतिक रूप से ठोस जमाव वाली [[मिट्टी]] को खोद कर बनाए गर्त-स्तम्भ छाजन के अस्तित्व का संकेत करते हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि इन गर्ताश्रयों को एक से अधिक बार आवास के लिए चुना गया था। इस चरण के अन्य अवशेषों में घर्षित पाषाण परम्परा में बनी कुल्हाड़ियाँ, हथौड़े, वलय-प्रस्तर का बाहुल्य है। अस्थि उपकरणों में छिद्रक, छोलनी उल्लेखनीय आकार हैं। मृदा मूर्तियों में लम्बे सींग वाले वृषभ सम्भवतः पशुपालन के साक्ष्य प्रस्तुत करते हैं। सीपी, सीसा, मृदा तथा अर्द्ध मूल्यवान पाषाण पर बने मनके विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं।  


पोयमपल्ली में परवर्ती नव-प्रस्तर चरण में धूसर पात्रों में लाल पात्रों की संख्या अधिक है। स्लेटी मृद्भाण्डों के किनारों को गेरु रंग से चित्रण की प्रथा भी विशेष रूप से दिखाई देती है। [[पृथ्वी]] तल के ऊपर बने यह आवास-गृह पत्थर के टुकड़ों तथा मिट्टी व राख के लेप द्वारा निर्मित फर्शों से बनाए गए हैं। इस आकार पर घास-फूस की झोंपड़ियों का निर्माण किया जाता था। इस चरण में अस्थि पर बने अस्त्रों के अनुपात में फलक पर बने अस्त्रों की संख्या अधिक है। इसमें सिल, लोढ़े, ओखल, मूसल मुख्य हैं। इस चरण में धातु की कोई वस्तु प्राप्त नहीं हुई है।  
पोयमपल्ली में परवर्ती नव-प्रस्तर चरण में धूसर पात्रों में लाल पात्रों की संख्या अधिक है। स्लेटी मृद्भाण्डों के किनारों को गेरु रंग से चित्रण की प्रथा भी विशेष रूप से दिखाई देती है। [[पृथ्वी]] तल के ऊपर बने यह आवास-गृह पत्थर के टुकड़ों तथा मिट्टी व राख के लेप द्वारा निर्मित फर्शों से बनाए गए हैं। इस आकार पर घास-फूस की झोंपड़ियों का निर्माण किया जाता था। इस चरण में अस्थि पर बने अस्त्रों के अनुपात में फलक पर बने अस्त्रों की संख्या अधिक है। इसमें सिल, लोढ़े, ओखल, मूसल मुख्य हैं। इस चरण में [[धातु]] की कोई वस्तु प्राप्त नहीं हुई है।  
==अर्थव्यवस्था==
==अर्थव्यवस्था==
विभिन्न साक्ष्यों के आधार पर पोयमपल्ली का नव-प्रस्तर काल ई.पू. लगभग 1100 से 1800 माना है। इस चरण की अर्थव्यवस्था विस्तृत पशुपालन व सीमित [[कृषि]] पर आधारित थी। पालतू पशुओं में मवेशी, भेड़, सूअर व मुर्गी की अस्थियाँ मिली हैं। कृषि के प्रमाण चना व दालों के रूप में मिले हैं। आखेटक पशुओं में हिरण, जंगली बिल्ली व गेंडा के प्रमाण मिले हैं। लगभग 1470 ई.पू. से 745 ई.पू. के मध्य नव-प्रस्तरकालीन संस्कृति का सम्पर्क महाश्मककालीन सांस्कृतिक वर्ग से हुआ जिसके प्रमाणस्वरूप ऊपरी स्तरों से नव-प्रस्तरकालीन अवशेषों के साथ ही लौह उपकरण, कृष्ण-लोहित मृद्भाण्ड मिले हैं। नव-प्रस्तरकाल की अर्थव्यवस्था इस समय भी प्रचलित थी। पोयमपल्ली का महाश्मककालीन सांस्कृतिक वर्ग लगभग 850 ई.पू. से 275 ई.पू. के मध्य माना है। इस काल में मृतकों के विसर्जन पर विशेष ध्यान दिया जाने लगा था जबकि मृतक विसर्जन का कोई भी स्पष्ट प्रमाण पोयमपल्ली के नव- प्रस्तरकालीन चरण से प्राप्त नहीं होता है।  
विभिन्न साक्ष्यों के आधार पर पोयमपल्ली का नव-प्रस्तर काल ई.पू. लगभग 1100 से 1800 माना है। इस चरण की अर्थव्यवस्था विस्तृत पशुपालन व सीमित [[कृषि]] पर आधारित थी। पालतू पशुओं में मवेशी, भेड़, सूअर व मुर्गी की अस्थियाँ मिली हैं। कृषि के प्रमाण चना व [[दाल|दालों]] के रूप में मिले हैं। आखेटक पशुओं में हिरण, जंगली बिल्ली व गेंडा के प्रमाण मिले हैं। लगभग 1470 ई.पू. से 745 ई.पू. के मध्य नव-प्रस्तरकालीन संस्कृति का सम्पर्क महाश्मककालीन सांस्कृतिक वर्ग से हुआ जिसके प्रमाणस्वरूप ऊपरी स्तरों से नव-प्रस्तरकालीन अवशेषों के साथ ही लौह उपकरण, कृष्ण-लोहित मृद्भाण्ड मिले हैं। नव-प्रस्तरकाल की अर्थव्यवस्था इस समय भी प्रचलित थी। पोयमपल्ली का महाश्मककालीन सांस्कृतिक वर्ग लगभग 850 ई.पू. से 275 ई.पू. के मध्य माना है। इस काल में मृतकों के विसर्जन पर विशेष ध्यान दिया जाने लगा था जबकि मृतक विसर्जन का कोई भी स्पष्ट प्रमाण पोयमपल्ली के नव- प्रस्तरकालीन चरण से प्राप्त नहीं होता है।  


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पोयमपल्ली तमिलनाडु के आर्कोट ज़िले में शेवोय पर्वत श्रृंखला की तलत्तपमलाई पर्वतमाला के नाम से जानी जाती है। इस पर्वतीय क्षेत्र की घाटी में महाश्मककालीन समाधियाँ तथा अन्य पुरातात्विक अवशेषों के प्रमाण मिले हैं।

उत्खनन

भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण विभाग के तत्वावधान में किये गये इस स्थल के उत्खनन से प्राप्त प्रमाणों के आधार पर नव-प्रस्तरकालीन तीन उप-चरण पहचाने गए हैं। इनमें से दो तो नव-प्रस्तर काल के प्रारम्भिक एवं परवर्ती चरण हैं तथा तीसरे चरण के अंतर्गत नव-प्रस्तर तथा महाश्मकालीन संस्कृतियों का मिश्रित स्वरूप मिला है। पोयमपल्ली के आरम्भिक नव-प्रस्तर को धूसर रंग के हस्तनिर्मित चमकीले पात्रों तथा लाल पात्रों द्वारा पहचाना गया है। इस चरण की दूसरी विशेषता यहाँ के गर्त हैं, जिनका प्रयोग खाद्य संचय, कूड़ा फेंकने तथा आवास के लिए किया जाता था।

पोयमपल्ली में प्राकृतिक रूप से ठोस जमाव वाली मिट्टी को खोद कर बनाए गर्त-स्तम्भ छाजन के अस्तित्व का संकेत करते हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि इन गर्ताश्रयों को एक से अधिक बार आवास के लिए चुना गया था। इस चरण के अन्य अवशेषों में घर्षित पाषाण परम्परा में बनी कुल्हाड़ियाँ, हथौड़े, वलय-प्रस्तर का बाहुल्य है। अस्थि उपकरणों में छिद्रक, छोलनी उल्लेखनीय आकार हैं। मृदा मूर्तियों में लम्बे सींग वाले वृषभ सम्भवतः पशुपालन के साक्ष्य प्रस्तुत करते हैं। सीपी, सीसा, मृदा तथा अर्द्ध मूल्यवान पाषाण पर बने मनके विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं।

पोयमपल्ली में परवर्ती नव-प्रस्तर चरण में धूसर पात्रों में लाल पात्रों की संख्या अधिक है। स्लेटी मृद्भाण्डों के किनारों को गेरु रंग से चित्रण की प्रथा भी विशेष रूप से दिखाई देती है। पृथ्वी तल के ऊपर बने यह आवास-गृह पत्थर के टुकड़ों तथा मिट्टी व राख के लेप द्वारा निर्मित फर्शों से बनाए गए हैं। इस आकार पर घास-फूस की झोंपड़ियों का निर्माण किया जाता था। इस चरण में अस्थि पर बने अस्त्रों के अनुपात में फलक पर बने अस्त्रों की संख्या अधिक है। इसमें सिल, लोढ़े, ओखल, मूसल मुख्य हैं। इस चरण में धातु की कोई वस्तु प्राप्त नहीं हुई है।

अर्थव्यवस्था

विभिन्न साक्ष्यों के आधार पर पोयमपल्ली का नव-प्रस्तर काल ई.पू. लगभग 1100 से 1800 माना है। इस चरण की अर्थव्यवस्था विस्तृत पशुपालन व सीमित कृषि पर आधारित थी। पालतू पशुओं में मवेशी, भेड़, सूअर व मुर्गी की अस्थियाँ मिली हैं। कृषि के प्रमाण चना व दालों के रूप में मिले हैं। आखेटक पशुओं में हिरण, जंगली बिल्ली व गेंडा के प्रमाण मिले हैं। लगभग 1470 ई.पू. से 745 ई.पू. के मध्य नव-प्रस्तरकालीन संस्कृति का सम्पर्क महाश्मककालीन सांस्कृतिक वर्ग से हुआ जिसके प्रमाणस्वरूप ऊपरी स्तरों से नव-प्रस्तरकालीन अवशेषों के साथ ही लौह उपकरण, कृष्ण-लोहित मृद्भाण्ड मिले हैं। नव-प्रस्तरकाल की अर्थव्यवस्था इस समय भी प्रचलित थी। पोयमपल्ली का महाश्मककालीन सांस्कृतिक वर्ग लगभग 850 ई.पू. से 275 ई.पू. के मध्य माना है। इस काल में मृतकों के विसर्जन पर विशेष ध्यान दिया जाने लगा था जबकि मृतक विसर्जन का कोई भी स्पष्ट प्रमाण पोयमपल्ली के नव- प्रस्तरकालीन चरण से प्राप्त नहीं होता है।


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