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[[मेघालय]] दक्कन के पठार से राजमहल दर्रे द्वारा अलग किया हुआ एक उच्च भूखंड है। यहाँ की चट्टानें और भू-वैज्ञानिक संरचना [[बिहार]] और [[बंगाल]] के छोटा [[नागपुर]] क्षेत्र जैसी है। चट्टानें पूर्व कैंब्रियन काल की आद्य महाकल्पी शैल और ग्रेनाइट, निम्न-पुराजीवी [[शिलांग]] समूह, अपर गोंडवाना, सिलहट ट्रैप और तीसरे युग के कठोर अवसादी जमावों से बनी हुई है। इसके शिखरों की ऊँचाई 1,220 से 1,830 मीटर के बीच है। पश्चिम में गारों पहाड़ियाँ ब्रह्मपुत्र की घाटी से 305 मीटर की ऊँचाई तक उठती हैं और फिर [[खासी पहाड़ी|खासी]] व [[जैंतिया पहाड़ियाँ|जैंतिया पहाड़ियों]] से जा मिलती हैं, जो निकट की पर्वतीय प्रणालियाँ है और पूर्वोन्मुखी कगारों की श्रृंखला द्वारा विभक्त पठारों का एक अकेला पर्वतखंड बनाती हैं। पठार का दक्षिणी मुख, जो [[बांग्लादेश]] के निचले इलाकों की तरह उन्मुख है, ख़ासतौर से तीव्र ढाल वाला है। इस पठार से बहुत सी नदियाँ और धाराएँ निकलकर गहरी, संकरी और ऊचे कागारों वाली घाटियाँ निर्मित करती हैं; इनमें सबसे महत्त्वपूर्ण है उमियम-बारापानी, जो [[असम]] और मेघालय के लिए पनबिजली का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत है। | [[मेघालय]] दक्कन के पठार से राजमहल दर्रे द्वारा अलग किया हुआ एक उच्च भूखंड है। यहाँ की चट्टानें और भू-वैज्ञानिक संरचना [[बिहार]] और [[बंगाल]] के छोटा [[नागपुर]] क्षेत्र जैसी है। चट्टानें पूर्व कैंब्रियन काल की आद्य महाकल्पी शैल और ग्रेनाइट, निम्न-पुराजीवी [[शिलांग]] समूह, अपर गोंडवाना, सिलहट ट्रैप और तीसरे युग के कठोर अवसादी जमावों से बनी हुई है। इसके शिखरों की ऊँचाई 1,220 से 1,830 मीटर के बीच है। पश्चिम में गारों पहाड़ियाँ ब्रह्मपुत्र की घाटी से 305 मीटर की ऊँचाई तक उठती हैं और फिर [[खासी पहाड़ी|खासी]] व [[जैंतिया पहाड़ियाँ|जैंतिया पहाड़ियों]] से जा मिलती हैं, जो निकट की पर्वतीय प्रणालियाँ है और पूर्वोन्मुखी कगारों की श्रृंखला द्वारा विभक्त पठारों का एक अकेला पर्वतखंड बनाती हैं। पठार का दक्षिणी मुख, जो [[बांग्लादेश]] के निचले इलाकों की तरह उन्मुख है, ख़ासतौर से तीव्र ढाल वाला है। इस पठार से बहुत सी नदियाँ और धाराएँ निकलकर गहरी, संकरी और ऊचे कागारों वाली घाटियाँ निर्मित करती हैं; इनमें सबसे महत्त्वपूर्ण है उमियम-बारापानी, जो [[असम]] और मेघालय के लिए पनबिजली का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत है। | ||
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मेघालय दक्कन के पठार से राजमहल दर्रे द्वारा अलग किया हुआ एक उच्च भूखंड है। यहाँ की चट्टानें और भू-वैज्ञानिक संरचना बिहार और बंगाल के छोटा नागपुर क्षेत्र जैसी है। चट्टानें पूर्व कैंब्रियन काल की आद्य महाकल्पी शैल और ग्रेनाइट, निम्न-पुराजीवी शिलांग समूह, अपर गोंडवाना, सिलहट ट्रैप और तीसरे युग के कठोर अवसादी जमावों से बनी हुई है। इसके शिखरों की ऊँचाई 1,220 से 1,830 मीटर के बीच है। पश्चिम में गारों पहाड़ियाँ ब्रह्मपुत्र की घाटी से 305 मीटर की ऊँचाई तक उठती हैं और फिर खासी व जैंतिया पहाड़ियों से जा मिलती हैं, जो निकट की पर्वतीय प्रणालियाँ है और पूर्वोन्मुखी कगारों की श्रृंखला द्वारा विभक्त पठारों का एक अकेला पर्वतखंड बनाती हैं। पठार का दक्षिणी मुख, जो बांग्लादेश के निचले इलाकों की तरह उन्मुख है, ख़ासतौर से तीव्र ढाल वाला है। इस पठार से बहुत सी नदियाँ और धाराएँ निकलकर गहरी, संकरी और ऊचे कागारों वाली घाटियाँ निर्मित करती हैं; इनमें सबसे महत्त्वपूर्ण है उमियम-बारापानी, जो असम और मेघालय के लिए पनबिजली का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत है।
वन्य एवं प्राणी जीवन
वनों की द्दष्टि से यह राज्य समृद्ध है[1] और यहाँ देवदार, साल और बाँस के वृक्ष बहुतायत से मिलते हैं। अन्य प्रजातियों में भोज, बीच और मेग्नोलिया आते हैं। वन्य जीवों में हाथी, बाघ, तेंदुए, हिरन, जंगली सूअर, गौर (जंगली भैंसे), मिथुन या गायल (गौर की पालतू नस्ल), भालू, बंदर, वानर, पैंगोलिन, गिलहरियाँ सर्प, खरगोश और सांभर खूब मिलते हैं। मेघालय में पाए जाने वाले प्रमुख पक्षियों में मोर, तीतर, कबूतर, धनेश (हॉर्नबिल), जंगली मुर्गा, मैना और तोता शामिल हैं।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ लगभग 42 प्रतिशत भूभाग वनाच्छादित है