"क्यों इन तारों को उलझाते? -महादेवी वर्मा": अवतरणों में अंतर

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<poem>क्यों इन तारों को उलझाते?
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अनजाने ही प्राणों में क्यों
क्यों इन तारों को उलझाते?
अनजाने ही प्राणों में क्यों,
आ आ कर फिर जाते?
आ आ कर फिर जाते?


पल में रागों को झंकृत कर,
पल में रागों को झंकृत कर,
फिर विराग का अस्फुट स्वर भर,
फिर विराग का अस्फुट स्वर भर,
मेरी लघु जीवन वीणा पर
मेरी लघु जीवन वीणा पर,
क्या यह अस्फुट गाते?
क्या यह अस्फुट गाते?


लय में मेरा चिर करुणा-धन
लय में मेरा चिर करुणा-धन,
कम्पन में सपनों का स्पन्दन
कम्पन में सपनों का स्पन्दन,
गीतों में भर चिर सुख चिर दुख
गीतों में भर चिर सुख, चिर दुख,
कण कण में बिखराते!
कण कण में बिखराते!


मेरे शैशव के मधु में घुल
मेरे शैशव के मधु में घुल,
मेरे यौवन के मद में ढुल
मेरे यौवन के मद में ढुल,
मेरे आँसू स्मित में हिल मिल
मेरे आँसू स्मित में हिल मिल,
मेरे क्यों न कहाते? </poem>
मेरे क्यों न कहाते?  
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11:05, 9 फ़रवरी 2021 के समय का अवतरण

क्यों इन तारों को उलझाते? -महादेवी वर्मा
महादेवी वर्मा
महादेवी वर्मा
कवि महादेवी वर्मा
जन्म 26 मार्च, 1907
जन्म स्थान फ़र्रुख़ाबाद, उत्तर प्रदेश
मृत्यु 22 सितम्बर, 1987
मृत्यु स्थान प्रयाग, उत्तर प्रदेश
मुख्य रचनाएँ मेरा परिवार, स्मृति की रेखाएँ, पथ के साथी, श्रृंखला की कड़ियाँ, अतीत के चलचित्र, नीरजा, नीहार
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची
महादेवी वर्मा की रचनाएँ

क्यों इन तारों को उलझाते?
अनजाने ही प्राणों में क्यों,
आ आ कर फिर जाते?

पल में रागों को झंकृत कर,
फिर विराग का अस्फुट स्वर भर,
मेरी लघु जीवन वीणा पर,
क्या यह अस्फुट गाते?

लय में मेरा चिर करुणा-धन,
कम्पन में सपनों का स्पन्दन,
गीतों में भर चिर सुख, चिर दुख,
कण कण में बिखराते!

मेरे शैशव के मधु में घुल,
मेरे यौवन के मद में ढुल,
मेरे आँसू स्मित में हिल मिल,
मेरे क्यों न कहाते?